पाठ 61 एक नए शहर की जीवनशैली
पौलुस ने उन कलीसियाओं को कई पत्र लिखे जिन्हें परमेश्वर ने उसकी सेवकाई के माध्यम से स्थापित किया था। उनमें से कई अब नए नियम का हिस्सा हैं। रोमियों, पहला और दूसरा कुरिन्थियों, गलातियों, इफिसियों, फिलिप्पियों, कुलुस्सियों, और पहला और दूसरा थिस्सलुनीकियों, ये सभी पत्र हैं जिन्हें पौलुस ने विभिन्न कलीसियाओं को लिखे थे । उसने इन्हें इसलिए लिखा ताकि वह अपने आध्यात्मिक बच्चों से दोबारा जुड़ सके। वह वह कलीसिया को एक महान परिवार के रूप में देखता था, और उनके बीच का प्रेम बहुमूल्य था। उसने कहा कि एक दूसरे के प्रति प्रेम को बनाये रखना अति महत्वपूर्ण था, भले ही उसने उन्हें कई वर्षों तक नहीं देखा था। वह उन्हें बताएगा कि वह हर समय उनके लिए कैसे प्रार्थना करता था। वह अक्सर उन्हें याद दिलाता था कि वह समय कितना मूल्यवान था जब वे एक साथ थे।
थिस्सलुनिकियों को लिखे अपने पत्र में इसका एक उदाहरण यहां दिया गया है: " यद्यपि हम मसीह के प्रेरितों के रूप में अपना अधिकार जता सकते थे किन्तु हम तुम्हारे बीच वैसे ही नम्रता के साथ रहे जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पिला कर उसका पालन-पोषण करती है। हमने तुम्हारे प्रति वैसी ही नम्रता का अनुभव किया है, इसलिए परमेश्वर से मिले सुसमाचार को ही नहीं, बल्कि स्वयं अपने आपको भी हम तुम्हारे साथ बाँट लेना चाहते हैं क्योंकि तुम हमारे प्रिय हो गये हो। हे भाइयों, तुमहमारे कठोर परिश्रम और कठिनाई को याद रखो जो हम ने दिन-रात इसलिए किया है ताकि हम परमेश्वर के सुसमाचार को सुनाते हुए तुम पर बोझ न बनें।
तुम साक्षी हो और परमेश्वर भी साक्षी है कि तुम विश्वासियों के प्रति हमने कितनी धार्मिकता और दोष रहितता के साथ व्यवहार किया है। तुम जानते ही हो कि जैसे एक पिता अपने बच्चों के साथ व्यवहार करता है वैसे ही हमने तुम में से हर एक को आग्रह के साथ सुख चैन दिया है। और उस रीति से जाने को कहा है जिससे परमेश्वर, जिसने तुम्हें अपने राज्य और महिमा में बुला भेजा है, प्रसन्न होता है।"
1 थिस्सलुनीकियों 1: 6बी -12 )
पौलुस और सीलास ने थिस्सलोनिका में उसी तरह से जीवन स्थापित किया जैसा उनका उन शहरों में था जहाँ वे गए थे। पौलुस अपनी टीम के लिए तंबू बनाकर पैसा कमाता था। वह उनके भोजन और रहने के स्थान के लिए भुगतान करता था। कभी-कभी वह एक छोटी सी दुकान भी स्थापित करता था। पौलुस एक शहर में एक आराधनालय में पढ़ा कर शुरुआत करता था। वह शायद अपनी दुकान से काम करने के साथ साथ सिखाता भी था। पौलुस के थिस्सलोनिका छोड़ने के लगभग छह महीने बाद, उसने विश्वासियों को लिखा कि कैसे उसने रात-दिन परिश्रम किया, और उनके बीच रहकर श्रम और प्रेम के साथ परिश्रम किया (1 थिस्सलुनीकियों 2: 9)। पौलुस और सीलास ने ध्यानपूर्वक उदाहरण रखा कि एक विश्वासी को किस प्रकार जीना चाहिए। अपनी पत्रियों में, वह उन्हें याद दिलाता है कि उसकी जीवनशैली कैसी थी और फिर उन्हें उसी तरह जीने के लिए प्रोत्साहित करता है.
" शांतिपूर्वक जीने को आदर की वस्तु समझो। अपने काम से काम रखो। स्वयं अपने हाथों से काम करो। जैसा कि हम तुम्हें बता ही चुके हैं। " (1 थिस्सलुनीकियों 4:11)।
पौलुस उन प्रथों के विषय में भी लिखता है जो परमेश्वर के विषय में कलीसियाओं ने पूछे थे। अक्सर वह परमेश्वर के विषय में होने वाली गलतफहमी और एक दूसरे के साथ के विभिन्न व्यवहार को लेकर उन समस्याओं को ठीक करने की कोशिश करता था। थिस्सलोनिका के लोग नहीं समझ पाते थे कि जब कोई मर जाता है तब क्या होता है। पौलुस ने यूँ लिखा "हे भाईयों, हम चाहते हैं कोई जो चिरनिद्रा में सो गए हैं, तुम उनके विषय में भी जानो ताकि तुम्हें उन औरों के समान, जिनके पास आशा नहीं है, शोक न करना पड़े। "क्योंकि यदि हम यह विश्वास करते हैं कि यीशु की मृत्यु हो गयी और वह फिर से जी उठा, तो उसी प्रकार जिन्होंने उसमें विश्वास करते हुए प्राण त्याग दिए हैं, उनके साथ भी परमेश्वर वैसा ही करेगा। और यीशु के साथ वापस ले जायेगा। क्योंकि स्वर्गदूतों का मुखिया जब अपने ऊँचे स्वर से आदेश देगा तथा जब परमेश्वर का बिगुल बजेगा तो प्रभु स्वयं स्वर्ग से उतरेगा। उस समय जिन्होंने मसीह में प्राण त्यागे हैं, वे पहले उठेंगे। 17 उसके बाद हमें जो जीवित हैं, और अभी भी यहीं हैं। उनके साथ ही हवा में प्रभु से मिलने के लिए बादलों के बीच ऊपर उठा लिए जायेंगे और इस प्रकार हम सदा के लिए प्रभु के साथ हो जायेंगे। (1 थिस्सलुनीकियों 4: 13-14, 16-17)
थिस्सलुनीका के लोग यीशु की वापसी के बारे में उत्साहित थे, जिस प्रकार हम सभी को होना चाहिए। यह कितना अद्भुत होगा! अद्भुत! वे अपने उन मित्रों के लिए भी चिंतित थे जो यीशु के आने से पहले मर गए थे। पौलुस ने यह स्पष्ट किया कि हम सभी अनंत काल में होंगे, चाहे हम पृथ्वी पर मर जाएँ या फिर जब हम यीशु के साथ उसके दूसरे आगमन के समय उठाये जाने के समय होंगे! पौलुस की पत्रियों में ऐसे प्रश्नों के उत्तर हैं जो कलीसियाओं के मनों में थे। वे हमारे पढ़ने के लिए अदभुत पत्रियाँ हैं क्योंकि वे हमारे प्रश्नों का उत्तर भी देती हैं। ये उत्तर हमारे लिए उतने ही सही हैं जितना वे उनके लिए थे!