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पाठ 24 : इब्राहीम की मिस्र यात्रा: वहाँ तक जाना और लौट कर आना

परमेश्वर के वादे के अनुसार अब्राम विश्वास के साथ निकल पड़ा। लेकिन वह अपनी यात्रा में अकेला नहीं था, और केवल वही नहीं था जो अकेला परमेश्वर पर भरोसा कर रहा था। उसकी पत्नी सरै ने भी बड़ी वफ़ादारी के साथ ऐसी दुनिया में कदम रखा जो उसके शहर से बिलकुल भिन्न था।

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पाठ 25 : अब्राम और उसके भतीजे का अलग होना: मूर्ख और बुद्धिमान के निर्णय

परिवार दक्खिन के देश मिस्र से होकर नेगेव कि ओर गया। वे बेतेल के पास के क्षेत्र में लौट आए। इस जगह पर अब्राम ने परमेश्वर के लिए दूसरी वेदी बनाई। वो पल अब्राम के लिए एक उच्च और पवित्र क्षण था, यह महान स्मरण की एक जगह थी।

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पाठ 26 : बुतपरस्त राजाओं पर परमेश्वर की विजय … धर्मी जन से आशीषें

फिरौन द्वारा दिए गए धन और संपत्ति को लेकर अब्राम मिस्र से लौट आया। लूत की भेड़ बकरियां बड़ी हो गईं थीं इसीलिए दोनों गुट अब एक दूसरे के पास नहीं रह सकते थे। सभी जानवरों को खाने के लिए पर्याप्त नहीं था!

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पाठ 27 : प्रभु में अब्राम की विजय

रात के अँधेरे में, इब्राहीम और उसके साथी चार राजाओं के पीछे चले गए। अंधेरे की आड़ में उसने दो समूहों में अपने सैनिकों को विभाजित किया और दो दिशाओं में अपने दुश्मनों पर हमला किया।

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पाठ 29 : पूर्व समय से अजीब रहस्य: वाचा की मुहरबन्दी

परमेश्वर ने जब अब्राम को अपने घर को छोड़ कर वादे के देश में जाने को कहा, उसने उसके साथ कुछ शर्तें भी दीं। यदि अब्राम आज्ञा मानता है, तो परमेश्वर उसे अशिक्षित करेंगे। अब्राम ने आज्ञा का पालन किया। वह अपनी बाँझ पति को लेकर एक अज्ञात जगह को निकल पड़ा।

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पाठ 30 : वाचा

अब्राम के दिनों में, वाचाएं मानव समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। वे संधियों या दो समूहों के बीच शांति रखने का समझौता थे। एक और परिवार, कबीले, या राष्ट्र के खिलाफ एक संघर्ष रक्तपात और युद्ध को ला सकता था, उस समय ये वाचाएं उच्च और महत्वपूर्ण थे।

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पाठ 31 : बेवफ़ाई का दुःख

अब्राम और सारा के दस साल अपने देश में रहने के बाद, उनके अभी भी कोई संतान नहीं थी। सबकी आँखों में सरै की दरिद्रता एक महान कमज़ोरी और असफलता के रूप में देखा जाता था। उसने अब्राम को एक परिवार मिलने से वंचित कर रखा था।

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पाठ 32 : परमेश्वर का चुना हुआ बेटा

इश्माएल के पैदा होने के बाद तेरह साल बीत गए हैं। इतने सालों में उनके जीवन में बहुत कुछ हुआ होगा। फिर भी अब्राम और सरै बेऔलाद थे, और सरै को उसकी दासी को अपने बच्चे के साथ देख, वह उस पीड़ा के साथ जी रही थी। इस कहानी के समय तक, अब्राम निन्यानबे वर्ष का हो गया था। परमेश्वर फिर से उसके सामने प्रकट हुए।

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पाठ 33 : स्वर्गदूतों का दो तरीके से मनोरंजन

एक दिन, दिन के सबसे गर्म पहर में इब्राहीम अपने तम्बू के दरवाज़े पर बैठा था। यह दिन का सबसे गर्म समय था। इब्राहीम और सारा मम्रे में रहते थे जहां उन्होंने रहने के लिए चुना था। वे उन अनैतिकता और बदनामी के शहरों से दूर थे जिन्हें लूत ने चुना था।

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पाठ 34 : सदोम के लिए इब्राहीम का निवेदन

इब्राहीम से तीन आगंतुक मिलने के लिए आये। उसने उनकी दावत कि और अपने घर पर उनकी उपस्थिति का सम्मान किया। ये अतिथि एक सम्मान के योग्य थे। क्यूंकि आप देखिये, वे वास्तव में दो स्वर्गदूत और स्वयं प्रभु था!

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पाठ 35 : गन्धक और आग

जब दो स्वर्गदूत अपने प्रभु और अब्राहम को छोड़ के चले गए, वे सीधे सदोम को गए। वे शाम को वहां पहुंचे। साँझ होने लगी थी। लूत शहर के प्रवेशद्वार पर बाहर बैठा हुआ था। लूत उठा और स्वर्गदूतों के पास गया तथा ज़मीन तक सामने झुका।

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पाठ 36 : इब्राहीम और अबीमेलेक

सदोम और अमोरा के न्याय पर परमेश्वर का सामर्थी हाथ पड़ने के बाद, इब्राहिम नेगेव को चला गया। जब तक वह वहां था उसने लोगों को बताया था की सारा उसकी बहन थी। एक बार फिर, वह भयभीत हुआ की उसकी पत्नी कि खूबसूरती देखकर वहां के लोग उसके साथ बुरा व्यवहार करेंगे।

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पाठ 37 : सारा का हसना: इब्राहीम और सारा के विश्वास को एक स्तोत्र

इब्राहीम और सारा ने एक बेटे के जन्म के लिए पच्चीस वर्षों तक प्रतीक्षा की। उन सभी पहले के वर्षों में, इब्राहीम ने माना की उसने परमेश्वर के द्वारा एक संदेश सुना है। यह सिर्फ कोई भी ईश्वर नहीं था, यह पूरी सृष्टि का परमेश्वर था।

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पाठ 38 : हाजिरा के आँसू

इब्राहीम और सारा के ख़ुशी के कई साल बीत चुके थे। इसहाक घुटने के बल चलने लगा था। जब वह दो या तीन साल का हुआ, तब उसके मां का दूध छुड़ा दिया। इब्राहीम ने एक महान दावत करके जश्न मनाया।

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पाठ 39 : इसहाक का बलिदान

जैसे जैसे सारा और इब्राहिम का बेटा, जो उनके लिए बहतु खुशियां लाया था, बड़ा होता गया और समय बीतता गया। जंगल कि सामान्य निराशाएं और जीवन के तनाव आये और गए। इब्राहीम एक विश्वास का जीवन जीता रहा जो सब देख सकते थे।

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पाठ 41 : रिबका की प्रेम कहानी

इब्राहीम वृद्ध हो रहा था, और उसकी प्यारी पत्नी अब नहीं रही। फिर भी उसे हर तरह से परमेश्वर ने आशीषें दीं थीं। वह अपने पुत्र इसहाक के विषय में और उसके भविष्य के बारे में भी सोच रहा था।

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पाठ 42 : रिबका का घर आना

इब्राहीम ने इसहाक के लिए एक पत्नी को खोजने के लिए अपने मुख्य सेवक को भेजा। यह महत्वपूर्ण था की इसहाक की पत्नी एक ही परिवार से हो जिन्हें परमश्वर ने एक विशेष रूप से अलग किया था।

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पाठ 43 : रिबका के योद्धा पुत्र

अब्राहम कि प्रिया पत्नी सारा की मृत्यु हो चुकी थी। उसने उसे इसहाक दिया जो परमेश्वर के वादे का पुत्र था, और इसहाक के माध्यम से, परमेश्वर एक पुरोहित राष्ट्र बनाने के लिए इब्राहिम के साथ बनाये वाचा को रखेगा।

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पाठ 44 : इसहाक और इब्राहीम, एक ही कपड़े से काटे गए

इसहाक और रिबका कि शादी के शुरुआती दिनों में, और उनके जुड़वे बच्चे होने के समय से पहले, वे कई परीक्षणों और संघर्ष से गुज़रे। एक समय पर, एक महान अकाल भूमि पर आया, और परिवारों को खाने के लिए पर्याप्त खोजने के लिए बहुत कठिन होता चला गया।

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