पाठ 24 : इब्राहीम की मिस्र यात्रा: वहाँ तक जाना और लौट कर आना

परमेश्वर के वादे के अनुसार अब्राम विश्वास के साथ निकल पड़ा। लेकिन वह अपनी यात्रा में अकेला नहीं था, और केवल वही नहीं था जो अकेला परमेश्वर पर भरोसा कर रहा था। उसकी पत्नी सरै ने भी बड़ी वफ़ादारी के साथ ऐसी दुनिया में कदम रखा जो उसके शहर से बिलकुल भिन्न था। उन्होंने मिलकर परमेश्वर पर भरोसा करते हुए पूरी आज्ञाकारिता में परमेश्वर के काम को किया और एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्थन के साथ परमश्वर किछवि को दर्शाया। 

 

वे कनान देश के लिए एक लंबी यात्रा पर निकल गए। वे खानाबदोश थे इसलिए वे अपने साथ तम्बू लेकर चलते थे। वे अपने साथ अपने पशुओं को भी चराने के लिए ले जाते थे और ऐसे स्थान में रुकते थे जहां उनके लिए पीने के पानी और चरने के लिए घास बहुतायत से हो। वे कनान के चारों ओर पहाड़ी क्षेत्रों में ठहर जाते थे और इस बात का ध्यान रखते थे की वहां बसे जनजातियों और राष्ट्रों को किसी प्रकार से उनकी ओर से कोई खतरा ना हो। रास्ते भर अब्राम ने परमेश्वर की स्तुति में वेदियां बनायीं। वे परमेश्वर के लिए और अब्राम के लिए भी ये एक यादगार चिन्ह थे। उसने ज़मीन के लिए कभी लड़ाई नहीं कि और ना ही कोई हेरफेर की। उसने ज़बरदस्ती कर के आक्रमण करने कि कोशिश नहीं की। वह इस विश्वास के साथ खड़ा रहा कि वह परमेश्वर की ओर से मुक्त पाएगा। 

 

जिस समय भीषण अकाल पड़ा वे कनान देश में रह रहे थे। कोई भी अकाल भयानक होता है। इसका मतलब यह है की पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं है। शायद अकाल इसलिए आया होगा क्यूंकि फसल के लिए पर्याप्त बारिश नहीं हुई होगी। या फिर किसी बिमारी ने उस क्षेत्र के पौधों या जानवरों को नष्ट किया होगा। चाहे कोई भी कारण हो, यह खतरनाक था। कई लोग भूख से मरे होंगे। कई अन्य लोग कमजोर और बिमार हो गए होंगे। क्या आप अब्राम किजिम्मेदारी की भावना और उसके डर कि कल्पना कर सकते हैं? यहाँ उसकी पत्नी, भतीजे, उनके सेवक सभी उसके नेतृत्व पर जीवित रहने के लिए उस पर निर्भर थे। क्या वो रात को डर कर उठता होगा यह सोच कर किउसकी पत्नी बिना भोजन के होगी? या वह कल्पना करता होगा की उसके पशु पतले और कमज़ोर हो गए हैं? बाइबिल इसके विषय में यह नहीं बताती कि अब्राम भयभीत हुआ, लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि वह उन सब से उबर पाया। 

 

अपने परिवार को इस सब से बचाने के लिए, वह मिस्र देश की ओर निकल पड़ा। वहां नील की महान नदी थी। जहाँ बारिश कि कमी से सभी क्षेत्र बिना पानी के थे, मिस्र इस नदी के पानी के कारण हमेशा तृप्त रहा। सबसे बदतर समय में भी उनके खेत और पालतू जानवर स्वस्थ रहते थे। नील नदी मिस्र के लोगों के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी की वहां के लोग उसे देवता मान कर पूजते थे। कई मायनों में, अब्राम भी ऐसा ही कुछ कर रहा था। अकाल के डर से उसने परमेश्वर पर भरोसा नहीं किया की वो वादे के देश में उसके लिए प्रदान कर सकता है। वह परमेश्वर के द्वारा नियुक्त किये गए स्थान को ठुकराकर उस जगह गया जहां उसे वो जगह मिल सके जिसे वह स्वयं देख सके और समझ सके। विश्वास वो है जो अनदेखा है। अब्राम विश्वास में स्थिर खड़ा नहीं हो पाया। 

 

वे जब मिस्र के करीब पहुंचे, अब्राम कुछ और के बारे में चिंता करने लगा। उसकी पत्नी विकिरणपूर्वक सुंदर थी। वो जानता था की अन्य पुरुष उसे पाने किइच्छा रखेंगे और उसके साथ शातिर व्यवहार कर सकते हैं। वह डर गया था। यहां उसके पास एक और मौका था कि वह परमेश्वर पर अपना भरोसा दिखा सके। इसके बजाय, उसने सरै पर अपने भय के बोझ को डाल दिया। उसने उससे कहा,"मैं जानता हूँ कि तुम एक सुन्दर स्त्री हो। जब मिस्र के लोग तुम्हें देखेंगे तो कहेंगे, "यह इसकी पत्नी है।" तब वे मुझे मार डालेंगे लेकिन तुम्हें छोड़ देंगे। उनसे कहना की तुम मेरी बहन हो ताकि वे तुम्हारी खातिर मुझे छोड़ दें।"

 

जब वे मिस्र में पहुंचे तब यकीनन सारै कि सुंदरता दूर दूर तक फैल गई। ख़बर मिस्र के राजा फिरौन के उच्च अधिकारियों तक पहुंच गई। वे राजा के पास गए और कहा की एक महान सुंदरता उन के बीच में रहने के लिए आई है। फिरौन ने उसको लाने के लिए आदेश दिए। जब उसने उसे देखा, तब उसने अफवाहों पर विश्वास किया। उसको यह बताया गया कि सरै बिना पति के है सो उसने उसे अपने महल में रख लिया। 

इस बीच, राजा को अपनी बहन देने के लिए उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया गया। फिरौन को इतना अच्छा उपहार देने के लिए उसे हर प्रक़र के पशु और नौकर चाकर दिए गए। अब्राम क्या सोच रहा था? सरै शाही हरेम का एक हिस्सा बन गई थी! फिरौन उसके पास उस प्रकार आना चाहता था जिस प्रकार केवल एक पति अपनी पत्नी के पास आ सकता है।

 

अब्राम ने अपनी पत्नी को एक भयानक खतरे में डाल दिया था। उसने परमेश्वर के वादे को खतरे में डाल दिया था। परमेश्वर ने वादा किया था की अब्राम के माध्यम से एक महान राष्ट्र को बनाएगा, लेकिन परमेश्वर की नज़र में, अब्राम और सरै एक बदन थे। वे शादी-शुदा थे, और वाचा का वादा उनके संयुक्त होने के माध्यम से ही आना था। यह उनकी शादी के अंतर्गत साझे द्वारा होना था। सरै की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण थी जितनी अब्राम कि थी। लेकिन अब सरै को औलाद उस व्यक्ति के द्वारा होगा जो उसका पति नहीं था। 

 

राजा के आने के इंतज़ार में, सरै कैसे अकेले बैठी होगी। वह क्या करेगी? क्या वह अब्राम से गुस्सा थी कि उसने अपने आप को बचाने के लिए उसको ज़बर्दस्ती इस में डाला? एक पति के रूप में उसे संरक्षित नहीं करने पर क्या उसे लगा कि उसके साथ विश्वासघात किया गया? परमेश्वर कैसे उनके मघ्य में काम करेगा?

 

परमेश्वर सब्र करता है। अब्राम जिस समय एक विश्वासी होने के लिए संघर्ष कर रहा था, परमेश्वर उसकी मदद ज़रूर करेंगे विशेषकर तब जब वह कमज़ोर या असफ़ल हो। परमेश्वर सरै को ऐसे मूर्तिपूजक राष्ट्र के फरौन द्वारा उसे उल्लंघन करने नहीं देगा। वाचा अटूट था। परमेश्वर ने फिरौन के घराने पर एक गंभीर बिमारी भेजी। दर्द से कैसे तड़प रहा होगा पूरा महल। वे सोच रहे थे की उन्होंने ऐसा क्या किया की उन्हें ऐसी बिमारी सहनी पड़ रही है। तब फिरौन को पता चल गया की यह दर्दनाक दण्ड अब्राम कि पत्नी को हासिल करने से मिला। तब फिरौन ने उसे बुलवाया। 

उसने कहा: 

 

"'तुमने मेरे साथ बड़ी बुराई की है। तुमने यह नहीं बताया कि सारै तुम्हारी पत्नी है। क्यों? तुमने कहा, ‘यह मेरी बहन है।’ तुमने ऐसा क्यों कहा? मैंने इसे इसलिए रखा कि यह मेरी पत्नी होगी। किन्तु अब मैं तुम्हारी पत्नी को तुम्हें लौटाता हूँ। इसे लो और जाओ।'”                                                  (उत्पत्ति 12: 18b-20)

 

वाह! अब सरै सुरक्षित थी, लेकिन फिरौन के प्रकोप वाचा नियुक्त परिवार के विरुद्ध में था। अब्राम सरै को ले कर और जो कुछ उनके पास था वो सब लेकर मिस्र से चला गया। फिरौन द्वारा दिए बहुत सारे धन के साथ, अब्राम एक बहुत अमीर आदमी बन गया था। उसने बहुत सारे जानवर, चांदी और सोना जोड़ लिया था।  

 

परमेश्वर कि कहानी पर अध्ययन।  

अब्राम कि इस भयानक गलती के बावजूद, आपने देखा की परमेश्वर ने कैसे इस वाचा नियुक्त परिवार कि रक्षा की? परमेश्वर के विषय में आप क्या सीखते हैं?

 

मेरी दुनिया, मेरा परिवार और स्वयं पर लागू करना।  

अब्राम ने एक बहुत मूर्ख निर्णय लिया था। लेकिन सरै उससे अपरम्पार प्रेम करती थी और उसके प्रति समर्पित हो गयी। वह अपने पति के प्रति बहुत नम्र थी, और परमेश्वर ने उसकी रक्षा की। 

 

क्या आपका परिवार किसी प्रकार से आपके साथ उस समय खड़ा हुआ है जब आप गलत हुए हों? क्या आपकी माँ आपके लिए खाना बनाती है जब आप थके हुए हैं और चिड़चिड़ा रहे हों? क्या आपके माता पिता काम करते हैं ताकि आपके रहने के लिए घर हो? क्या आपके भाई या बहन आपकी हरकतों को बर्दाश्त करते हैं? आप उन्हें "धन्यवाद" कैसे कह सकते हैं? क्या आप उन्हें गले से लगाएंगे? क्या आप उन्हें एक नोट लिख सकते हैं? क्या आप उनके भार को हल्का करने के लिए उनका हाथ बटा सकते हैं? 

 

परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

यीशु ने कहा,"धन्य हैं वे जो नम्र हैं" नम्रता उस शक्तिशाली घोड़े की तरह है जो अपनी सामर्थ को उसे उपयोग करने वाले की आज्ञा अनुसार इस्तेमाल करता है। जो नम्र है उसे दूसरों कि सेवा करने में आनंद आता है जब कि वह एक अगुवा भी बन सकता है। कुछ भी करने के लिए वे श्रेय नहीं लेते हैं। वे केवल वही करेंगे जिससे परमेश्वर प्रसन्न हो! यीशु ने कहा कि जो दिल से नम्र हैं वे पृथ्वी के वारिस होंगे। वाह! जब यीशु दुनिया में थे वे नम्र थे। उन्होंने लोगों को चंगा किया और सुसमाचार सुनाया। वे जीवित परमेश्वर के पुत्र थे, लेकिन वह अपने पिता की आज्ञा को मान कर क्रूस पर चढ़ गए!  

आप अपने जीवन के उन क्षेत्रों के बारे में सोचिये जब आप स्वयं पर नियंत्रण करना चाहते हों या जब आप दूसरों पर शासन करना चाहते हों या जब आपको वो नहीं मिलता जो आप चाहते हैं। एक पल के लिए बैठ कर अपने दिल को खोजें। क्या आपको लगता है कि आपको नम्र होने की ज़रुरत है? परमेश्वर आपसे प्रेम करता है और आपकी सहायता करना चाहता है। उससे मदद मांगिए!