पाठ 25 : अब्राम और उसके भतीजे का अलग होना: मूर्ख और बुद्धिमान के निर्णय
परिवार दक्खिन के देश मिस्र से होकर नेगेव कि ओर गया। वे बेतेल के पास के क्षेत्र में लौट आए। इस जगह पर अब्राम ने परमेश्वर के लिए दूसरी वेदी बनाई। वो पल अब्राम के लिए एक उच्च और पवित्र क्षण था, यह महान स्मरण की एक जगह थी।
जब इब्राहीम यात्रा कर रहा था उसका भतीजा लूत भी उसके साथ आ गया। उन दोनों के पास बहुत सारी भेड़ बकरियां थीं। उनके पास इतने सारे जानवर थे कि उन्होंने सारी घास खा ली। जब उन्हें आवश्यकता थी तब उनके पास और खाने के लिए कुछ नहीं बचा था। अब्राम और लूत के मज़दूर आपस में बहस करने लगे।
अब्राम ने लूत से कहा, “हमारे और तुम्हारे बीच कोई बहस नहीं होनी चाहिए। हमारे और तुम्हारे लोग भी बहस न करें। हम सभी भाई हैं। हम लोगों को अलग हो जाना चाहिए। तुम जो चाहो जगह चुन लो। अगर तुम बायीं औरो जाओगे तो मैं दाहिनी ओर जाऊँगा। अगर तुम दाहिनी ओर जाओगे तो मैं बायीं ओर जऊँगा।”(उत्पत्ति 13:8-9)
वाह! यह अब्राम की बड़ी उदारता थी। उसने पहले से ही लूत को ऊपर उठाया था। और अब वह अपने भतीजे को ज़मीन चुनने के लिए पहली पसंद दे रहा था। फिर भी अब्राहम बड़ा था, और वाचा का वादा उसे दिया गया था। अपने लिए सबसे अच्छी ज़मीन चुनने का उसे पूरा अधिकार था। परन्तु अब्राम ने हासिल करने का लालच नहीं किया। उसका भरोसा अपने परमेश्वर पर ही था। उसे विश्वास था की उसका भविष्य परमेश्वर के हाथों में है। यही कारण है कि अपने भतीजे के लिए दिल खोलकर और विनय के साथ उसे पूरी आज़ादी दी। धन और संपत्ति से बढ़कर वो अपने भतीजे के साथ शांति बनाए रखना चाहता था।
लूत ने भूमि कि ओर यरदन नदी के मैदान को देखा। वह हरे हरियाली से भरा। यह खेती और फसलों को उगाने के लिए के लिए सही जमीन थी। उनके पशुओं के खाने के लिए बहुतायत से होगा। यह परमेश्वर के बगीचे कि तरह था। लूत ने अपने लिए सबसे बेहतरीन चुना। उसका निर्णय उसके देखने पर आधारित था। यह परमेश्वर पर भरोसा करके निर्णय नहीं लिया गया था। अब्राम ने लूत की पसंद को सम्मान दिया और कनान देश को चला गया।
लूत का पहला स्वार्थी चुनाव उसके दूसरे विकल्प के समान मूर्खता में लिया गया था। मैदान के सभी शहरों में से उसने सदोम के शहर के पास वाला क्षेत्र चुना। यह वो स्थान था जहां लोग गंदी अनैतिकता और घृणित पाप के जीवन में रहते थे और वह एक महान दुष्टता की जगह मानी जाती थी। परमेश्वर का क्रोध उनके विरुद्ध भर रहा था। वे लूत से दोस्ती करने वाले बुद्धिमान लोग नहीं थे।
लूत के जाने के बाद, परमेश्वर ने एक बार फिर अब्राम से कहा:
"'अपने चारों ओर देखो, उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की ओर देखो। यह सारी भूमि, जिसे तुम देखते हो, मैं तुमको और तुम्हारे बाद जो तुम्हारे लोग रहेंगे उनको देता हूँ। यह प्रदेश सदा के लिए तुम्हारा है। मैं तुम्हारे लोगों को पृथ्वी के कणों के समान अनगिनत बनाऊँगा। अगर कोई व्यक्ति पृथ्वी के कणों को गिन सके तो वह तुम्हारे लोगों को भी गिन सकेगा। इसलिए जाओ। अपनी भूमि पर चलो। मैं इसे अब तुमको देता हूँ।” (उत्पत्ति 13:14-17)
परमेश्वर अपने वादे के आश्वासन के साथ अब्राम की आस्था को पुरस्कृत कर रहे थे। अब्राम को चलकर उस भूमि पर जाना था यह जानकर की परमेश्वर ने वो स्थान उसके लिए पृथक किया है। जिस प्रकार एक राजा अपने राज्य के दायरे का सर्वेक्षण करता है, उसी प्रकार अब्राम ने भी उस भूमि पर अपनी आँखें दौड़ाईं जो परमेश्वर उसके लिए तैयार कर रहा था।
अब्राम ने जब अपना दौरा पूरा किया तब वह सारा को लेकर और अपने सभी सेवकों, भेड़ और झुंड के साथ मम्रे को चला गया। यह हेब्रोन के क्षेत्र में था। इस क्षेत्र को लूत ने नहीं चुना जहां नदियों के पानी का एक निरंतर प्रवाह प्रदान था। यह मिस्र की तरह नहीं था जहां कभी न खत्म होने वाली नील नदी थी।हेब्रोन एक ऐसा क्षेत्र था जो पानी के लिए बारिश पर निर्भर करता था। वहाँ रहने वाले लोगों को सूखा या अकाल से बहुत खतरा था। यदि सब सूख जाता था तो वहां नदी भी नहीं थी जहां से पानी भी लें सकें।अब्राम सूखे के खतरे से अच्छी तरह से वाकिफ था, लेकिन वह यह भी जानता था कि उसका परमेश्वेर इस पृथ्वी पर होने वाली बारिश से भी ऊपर है। वो जानता था कि वह परमेश्वर के हाथ में सुरक्षित है।यह बढ़ता हुआ विश्वास हमारे वीर के अंदर था! वह उससे कितना भिन्न था जो मिस्र को भाग गया था। अब्राम ने परमेश्वर के प्रति एक समर्पण और आभार प्रकट करने के लिए एक वेदी बनाई।
परमेश्वर कि कहानी पर अध्ययन।
आप को इस कहानी में क्या पसंद आया? आप किसी बात से परेशान हुए? अब्राम का विश्वास बढ़ता ही जा रहा था। जब उसने परमेश्वर कि उपासना करने के लिए एक वेदी को बनाया, आपको क्या लगता है उसने क्या कहा होगा? उसने किस बात के लिए परमेश्वर किस्तुति की होगी?
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
इस कहानी में, अब्राम सम्माननीय था क्यूंकि उसने महान उदारता और दया के साथ अपने भतीजे के साथ व्यवहार किया था। माता पिता, आप कैसे ऐसी करुणा अपने बच्चों के प्रति दिखा सकते हैं या फिर उनके साथ जो आपके नीचे काम करते हैं?
यदि आप लूत या अब्राम होते तो क्या निर्णय लेते? यदि आप अब्राम के समान ऐसी सूखी जगह में रह रहे होते, तो आप विश्वास के साथ किस प्रकार की प्रार्थना करते? उसे परमेश्वर पर किस बात के लिए भरोसा करना था? यदि लूत ने अब्राम को उचित सम्मान दिखाया होता तो वह अब्राम को पहले भूमि को चुनने देता। उसने उसके बजाय क्या किया?
परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
परमेश्वर ने हमारे जीवन में लोग दिए हैं जिनका हमें सम्मान करना है। उसने आज्ञा दी कि हमें अपने माता पिता का सम्मान करना है। क्या आप अपने माता पिता के विचारों और इच्छाओं के प्रति सम्मान दिखाते हैं? क्या आप उनकी सेवा करते हैं? क्या किसी भी तरीके से आप उनके खिलाफ विद्रोह करते हैं या चुपचाप मना कर देते हैं जो उनके लिए महत्वपूर्ण है? जब तक आपके अपने माता पिता कुछ ऐसा करने को ना कहते हों जो यीशु मसीह के ख़िलाफ़ है (जो हमारी पहली प्राथमिकता है) उनका अनादर करना पाप है। एक पल के लिए शांत होकर बैठिये। पिछले कुछ दिनों या हफ्तों के बारे में सोचिये। क्या आपके माता पिता के प्रति आपका कोई ऐसा व्यवहार, या कोई ऐसी बात है जिससे आपको पश्चाताप करने कि ज़रुरत है? आप उसका अंगीकार कीजिये और क्षमा मांगिये। आपको अपने माता पिता से किसी बात कि क्षमा मांगनी है?