पाठ 35 : गन्धक और आग

जब दो स्वर्गदूत अपने प्रभु और अब्राहम को छोड़ के चले गए, वे सीधे सदोम को गए। वे शाम को वहां पहुंचे। साँझ होने लगी थी। लूत शहर के प्रवेशद्वार पर बाहर बैठा हुआ था। लूत उठा और स्वर्गदूतों के पास गया तथा ज़मीन तक सामने झुका। वे परमेश्वर के दूत कितने महत्वपूर्ण होंगे। 

लूत ने उन्हें अपने घर में आने का आमंत्रण दिया। वे अपने पैर धोकर सुबह तक आराम करने के पश्चात रवाना हो सकते थे। 

स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया, “'नहीं, हम लोग रात को मैदान में ठहरेंगे।'"

लूत जानता था की शहर में बाहर सोना उनके लिए अच्छा नहीं था। सदोम रात को एक सुरक्षित स्थान नहीं था। उसने उन्हें अपने घर में आने के लिए ज़ोर दिया और वे सहमत हो गए। उसने खमीर के बगैर उन्हें रोटी पका के दी और वे भोजन के लिए बैठ गए। 

 

शहर भर में ख़बर फैल गयी कि दो आगंतुक शहर में आये हैं। शहर के पुरुष अपनी शातिर योजनाओं के साथ लूत के घर के दरवाजे के बाहर इकट्ठा होने लगे। बहुत जल्द, दोनों जवान और बूढ़े वहाँ प्रतीक्षा करने लगे। प्रत्येक पुरुष लूत के दरवाजे पर चला आया। 

सदोम में जीवन इतना विकृत और पापी हो गया था कि हर एक आदमी दूसरी स्त्री के साथ इस प्रकार व्यवहार कर रहा था जैसे की केवल अपनी पत्नी के साथ किया जाता है। उन्हें कोई शर्म नहीं थी। वे ना केवल विकृत थे पर खतरनाक भी थे। वे निर्भीकता और क्रोध में अपने अधिकार को आगंतुकों पर अपनी इच्छाओं को घोषित कर रहे थे। उनकी मांगें भीड़ के क्रोध के समान थीं। 

 

लूत जानता था किसदोम के लोग कैसे हैं। यह कोई नई बात नहीं थी। वह बड़े साहस के साथ अपने आगंतुकों को अपने घर में लेकर आया। वे उसकी घर कि छत के नीचे थे, और अब उनकी रक्षा करना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी। यह व्यक्तिगत सम्मान कि बात थी। 

 

वह बड़ी हिम्मत के साथ अपने घर के बाहर गया और सावधानी से पीछे दरवाज़ा बंद किया। लूत ने उस भ्रष्ट भीड़ से कहा, “नहीं मेरे भाइयो मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप यह बुरा काम न करें। देखों मेरी दो पुत्रियाँ हैं, वे इसके पहले किसी पुरुष के साथ नहीं सोयी हैं। मैं अपनी पुत्रियों को तुम लोगों को दे देता हूँ। तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर आए हैं और मैं इनकी रक्षा जरूर करूँगा।” 

 

यह हमारे लिए कल्पना करना कठिन है कि भीड़ कितनी खतरनाक थी। वे इरादतन क्रोध के तनाव से भरे हुए थे। वह ऐसे ही वहां से जा नहीं सकता था। इससे वे और बिगड़ जाएंगे। उसे अपने मेहमानों और उसकी बेटियों के बीच चयन करना था कि किसकी रक्षा करे। जब लूत ने इन बुरे लोगों के साथ रहने का फैसला किया था, उसने अपनी बेटियों को खतरे में डाला। उसके दिनों किसंस्कृति में, सर्वोच्च प्राथमिकता घर में आगंतुकों कि रक्षा करना होता था। जब लूत ने उन पुरुषों को आमंत्रित किया था, यह लूत के सम्मान में सहमति थी। सदोम की दुष्टता में उनका कोई भाग नहीं था, और उनकी रक्षा करना लूत का काम था। उसे ऐसा प्रस्ताव रखना पड़ा जो उसके परिवार को नाश कर सकता था। 

 

जब सदोम के पुरुषों ने सुना कि लूत ने अपनी ही बेटियों कि पेशकश की है, इससे उन्हें आश्चर्य होना चाहिए था किवे कितने घिनौने लोग हैं। लेकिन वो शहर के कठोर लोग लूत की बातों से क्रोधित हुए। वे चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि लूत सदोम में एक अजनबी के रूप आया था। उनका न्याय करने वाला वह कौन होता है! यह उनके जीवन का तरीका था, और वह उनके जीवन में दखल दे रहा था। 

 

भीड़ जानती थी किकी उनके पक्ष में अधिक पुरुष थे। वे जो चाहे कर सकते थे और कोई कुछ नहीं कर सकता था। इसलिए उन्होंने लूत को दुष्टतापूर्वक धमकाया की वे उसके साथ भी वही व्यवहार करेंगे यदि वह अपने मेहमानों को उनके सुपुर्त नहीं कर देता। दुष्टता ने पूरी तरह से उनकी आत्मा को विकृत कर दिया था। वे पूरी तरह से बर्बर हिंसा और आक्रामकता से भरे हुए थे। 

 

स्वर्गदूतों ने वो सब सुना जो वहां चल रहा था। उन्होंने दरवाजा खोला और लूत को पकड़कर उसे घर में वापस खींच कर दरवाजा बंद कर दिया। फिर स्वर्गदूतों ने उन्हें अँधा कर दिया और वे अंदर आने के लिए संघर्ष कर रहे थे। कल्पना कीजिये कैसे वे चिल्लाते हुए क्रोध में दिवारों को टटोलते हुए गुस्से में उन्हें धमकाते जा रहे थे। 

 

लूत के पक्ष में वापस आने के बाद स्वर्गदूतों ने उसे बताया कि वे क्यूँ आये थे। सदोम कि चिल्लाहट परमेश्वर द्वारा सुनी गयी और वे शहर को नष्ट करने के लिए आये थे। उन्होंने उससे पुछा यदि शहर में कोई रिश्तेदार हैं जिन्हें वह बचाना चाहे। उसकी बेटियों से शादी करने के लिए दो व्यक्ति थे। लूत अपने दोनों दामाद के पास गया और उन्हें उसके साथ भाग जाने को कहा। उसने उन्हें चेतावनी दी की परमेश्वर का न्याय होने वाला है। लेकिन वे जो उसकी बेटियों से शादी करने वाले थे वे केवल हँसे। उन्होंने उस पर विश्वास करने से इनकार कर दिया और एक मज़ाक की तरह उसे लिया। 

 

अगली सुबह, स्वर्गदूतों ने लूत को अपनी पत्नी और बेटियों को ले कर वहां से भाग जाने का आदेश दिया। यदि वे और देरी करते हैं तो उन्हें पूरे शहर के साथ पाप को भुगतना पड़ेगा। एक पल के लिए लूत रुका और स्वर्गदूतों ने उसके हाथ को और उसकी पत्नी और बेटियों के हाथ पकड़ कर उन्हें शहर के फाटकों से बाहर निकाला। उसके पवित्र स्वर्गदूतों की मदद का अवरोध करने के बाद भी परमेश्वर लूत पर अपना अनुग्रह दिखाते जा रहे थे। 

 

शहर से एक बार बाहर आने के बाद, स्वर्गदूतों ने लूत को पहाड़ों पर भाग जाने को कहा। लूत वहां जाना नहीं चाहता था। उसने दूसरे शहर में जाने के लिए बहस की। स्वर्गदूत मान गए और उन्हें शीग्र वहां से जाने को कहा। जब तक वे सुरक्षित नहीं हो जाते, तब तक न्याय नहीं शुरू होगा। लूत और उसका परिवार जल्दी से वहां से चले गए, और परमेश्वर ने उनका इंतज़ार किया। जब तक वे सुरक्षित दूर पहुंचे, सूर्य उदय हो चुका था। तब परमेश्वर ने अपने न्याय को नीचे भेजना शुरू किया। उन्होंने सदोम और अमोरा के नगरों पर स्वर्ग से जलते हुए गन्धक किबारिश की। यह हर मानव को नष्ट करते हुए और सभी पौधों को मारते हुए पूरे नगर पर गिरा। परमेश्वर ने अपने क्रोध को उन लोगों के पाप की गन्दगी पर डाला और उन्हें पूरी तरह से उखाड़ फेका। लूत की पत्नी ने पीछे मुड़ कर देखा और परमेश्वर का न्याय तुरंत उस पर आया। वह नमक का खंबा बन गई।  

 

अगली सुबह, इब्राहीम अपने तम्बू से बाहर आया। वह उस स्थान पर जा खड़ा हुआ जहां वह परमेश्वर के साथ खड़ा हुआ था। उसने सदोम और अमोरा के नगरों के ऊपर धुंए किकी एक मोती काली चादर देखी। पूरा शहर परमेश्वर के न्याय से उबलती आग की तरह था। 

 

परमेश्वर ने वादा किया कि यदि नगर में दस धर्मी लोग भी होते तो वह सदोम को बक्श देता। लेकिन शहर के लोग इतने भ्रष्ट हो चुके थे की उतने भी लोग नहीं पाये गए। अब इब्राहिम को उनके पाप की गंदगी पूरी तरह से समझ आ गयी थी। लेकिन परमेश्वर ने अपने दास इब्राहीम को स्मरण रखा और उसके भतीजे कि जान बचाई। 

 

जब प्रभु और उसके दो स्वर्गदूत इब्राहीम के तम्बू में आये, वह अपने बच्चों को नए जन्म और आशा का सन्देश देने आये थे। एक साल पूर्व सारा के एक पुत्र होगा। वह अपने बच्चों को नया जन्म और आशा का एक संदेश देने के लिए आया था। एक साल के भीतर सारा को एक बेटा जन्म होगा! लेकिन वे सदोम की कयामत और विनाश का संदेश देने के लिए भी आये थे। यह इब्राहीम और उसके वंशजों के लिए एक शक्तिशाली चेतावनी होगी, और यह उन्हें न्याय सिखाएगा। वे सदोम की तरह कभी नहीं बनेंगे।  

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

मानव जाति चाहे कितना भी पाप करे और अपने सृष्टिकर्ता का विरुोध करे, फिर भी परमेश्वर उसे जीवन देता है और सृष्टि कि सारी खुशियां और आशीषें देता जाता है। ये आशीषें वह हर एक को देता है चाहे वे उससे प्रेम करें या नहीं। लेकिन जब लोगों के बीच भीषण पाप और घृणा बढ़ जाता है, तब परमेश्वर यह संकल्प कर लेता है कि ये लोग कभी लौट कर नहीं आएंगे। वह उन्हें अपने ज्वलंत, प्रतिकारक पाप से उसकी दुनिया को अपवित्र करने की अनुमति नहीं देगा। बाइबिल में सदोम और अमोरा कि कहानी इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। पाप के कारण निकम्मेपन से गृणा करने में यह हमें मजबूर कर देता है। इस अप्रतिष्ठा से हमें दूर जाने की इच्छा को बढ़ा देता है। यह दर्शाता है की परमेश्वर पवित्र है और हमारे भक्तियुक्त उपासना के योग्य है। हमें आनन्दित होना चाहिए क्यूंकि उसने हमें अपने बेटे और बेटियां बनाया है। पाप और मृत्यु के बंधन से हम स्वतंत्र हैं! पाप की गन्दगी के पीछे जाने से अच्छा है कि हम परमेश्वर पर निर्भर रहे और उसके वचन के द्वारा उसके प्रेम में बदल जाएं। 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

बाइबिल कि कहानी हमें सिखाती है कि संसार में हर इंसान के जीवन में दो विकल्प हैं। या तो हम परमेश्वर कि ज्योति का हिस्सा हो सकते हैं, या फिर अंधकार की ज्योति के निवासी बन सकते हैं। 

 

सदोम और अमोरा के लोग क्रूर दुष्टता के साथ जी रहे थे, परन्तु उनका बाहरी पाप का जीवन भीतरी जीवन को चिन्हित कर रहा था जो उससे भी अधिक भयंकर था। उन्होंने अपने दिल कि गहराई में, परमेश्वर कि सिद्धता को अस्वीकार किया था। चाहे हम सदोम कि तरह भयानक पाप नहीं करते हों, हम भी इसी प्रकार से संघर्ष करते हैं। हम सब टूट चुके हैं।  

हमारे लिए अद्भुत बात यह है कि हम यीशु मसीह को जानते हैं। आपके लिए इसका क्या अर्थ है कि उसने पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त की है? आपके अंधेरे, अभिलाषा से भरे और चोटिल हृदय के लिए यीशु कि मॉफी और चंगाई क्या मायने रखती है?   

 

जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।  

आइये एक पल के लिए सोचें कि परमेश्वर के नजरिए से हम कौन हैं। अपनी एक छवि बनाते हैं जो यह दर्शाये कि प्रभु यीशु में परिवर्तन होना क्या मतलब होता है। 

 

अपने बारे में सबसे अंधेरी, और शर्मनाक बात के बारे में कल्पना कीजिये। कल्पना कीजिये कि आप यीशु के सिंघासन के पास बैठ कर आप पूरे पछतावे के साथ इन सब बातों को उसे दे रहे हैं। कल्पना कीजिये कि उसकी पवित्र करुणा के द्वारा वह सब भस्म कर दिया गया है। आपके पाप चले गए हैं। उसकी सामर्थी ज्योति ने आपके पूरे शरीर को साफ़ कर दिया है। आपको वह अपने प्रज्वलन सिद्धता से भर रहा है। अब आप मसीह किधार्मिकता बन गए हैं! 

 

अब समय है कि आप परमेश्वर की आराधना करें। वह पवित्र और धर्मी और अच्छा है, और वह आपसे अनन्त प्रेम से प्रेम करता है! आप के पास कोई गीत है जिसे आप गाना चाहें या आप नृत्य करना चाहेंगे? आप एक कविता लिखना चाहें या फिर परमेश्वर के प्रेम को दर्शाने के लिए एक चित्र बनाना चाहेंगे?