कहानी ९३: एक अंधा आदमी

चेले यीशु के संग बैतसैदा चले आये। वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे को लाये और उससे प्रार्थना की कि वह उसे छू दे। उसने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया। उसने उसकी आँखों पर थूका, अपने हाथ उस पर रखे और उससे पूछा,“तुझे कुछ दिखता है?” ऊपर देखते हुए उसने कहा,“मुझे लोग दिख रहे हैं। वे आसपास चलते पेड़ों जैसे लग रहे हैं।” कल्पन कीजिये कि यह व्यक्ति अपनी सारे ज़िन्दगी ऐसे ही पेड़ों से टटकराता रहा होगा। अब वह उन लम्बे, पतले पेड़ों को जिन्हें वह देख रहा था वे चल फिर रहे थे! वे इंसान थे!

तब यीशु ने उसकी आँखों पर जैसे ही फिर अपने हाथ रखे, उसने अपनी आँखें पूरी खोल दीं। उसे ज्योति मिल गयी थी। वह सब कुछ साफ़ साफ़ देख रहा था।

घर जाकर जब अपनी पत्नी और माँ बाप को उसने बताय होगा तो कैसा रहा होगा? पड़ोसियों ने क्या कहा होगा जब उन्होंने देखा होगा कि वह अँधा नहीं था? क्या आप कल्पना कर सकते हैं जब आराधनालय के अगुवों को यह पता चला होगा कि यीशु ने उस चंगा किया है तब उन्होंने क्या कहा होगा? यीशु ने उसे घर वापास भेज दिया लेकिन उसे गाव से जाने को मन किया था। अगर सबको पता लग जाता कि यीशु ने क्या किया है, तो एक और बवाल खड़ा हो जाएगा। यहूदी लोग नहीं जानते थे कि उसकी सामर्थ को लेकर किस तरह सही प्रतिक्रिया करें। वे या तो उसे राजा बनाना चाहते थे या फिर उसे मार देना चाहते थे!

यीशु ने इस व्यक्ति को दो चरणों में क्यूँ चंगा किया? बाइबिल में केवल यही एक कहानी है जहां इसका वर्णन किया गया है, और हम जानते हैं कि यीशु ने यह जानबूझकर किया है। और हम जानते हैं कि यीशु ने ऐसा अच्छे कारण के लिए किया है। सब कुछ जो वह करता था वह अच्छे कारण के लिए ही करता था! हम यह भी जानते हैं कि उस मनुष्य को एक साथ चंगा करने कि सामर्थ थी उसमें! वह एक सबक सिखाना चाहता था! शायद यीशु ने इस तरह किया ताकि हम रुक करके उसके चमत्कार के विषय में सोचें। शायद यीशु अपने चेलों को यह सिखाना चाहता था कि सेवकाई में कुछ चमत्कार औरों कि तरह एक दम नहीं होते हैं। कुछ चंगइयां समय लेती हैं। या फिर उनके लिए यह ऐसी तस्वीर थी जो यह बताती है कि आध्यामिक दृष्टी साफ़ होने में समय लेती है।

यीशु में विश्वासी जन विश्वास को अलग अलग चरणो में सीखते हैं, और हर एक चरण उद्धारकर्ता के विषय में स्पष्ट विचार दर्शाता है। यह उसके चेलों के लिए सत्य था। यीशु के साथ चलने में, उन्हें उसके पीछे नज़दीकी से चलते रहना है। उसकी शिक्षाओं ने जब राजाओं और धार्मिक अगुवों को क्रोधित किया, उन्हें इस बात का सामना करना था कि वास्तव में यीशु वही है जो वह अपने बारे में कहता है। क्या उनके अपने जीवन उसके जोखिम उठाने लायक था? भीड़ जब उसे अस्वीकार कर रही थी और पश्चाताप करने से इंकार कर रही थी, उन्हें यह निर्णय लेना था कि उनको भी अस्वीकृति का सामना करना होगा। उन्होंने इस बात का प्रमाण दे दिया था कि वे गलील में जाकर सुसमाचार सुनाएंगे। वे इस सन्देश में और चमत्कार में विश्वास करते थे। उनकी आँखें साफ़ होती जा रही थीं। परन्तु क्या वे स्वयं यीशु पर विश्वास करेंगे?

और फिर यीशु और उसके शिष्य कैसरिया फिलिप्पी के आसपास के गाँवों को चल दिये। यह हेरोदेस राजा के क्षेत्र के बाहर था। यहाँ अन्यजातियों के देवता का मंदिर था, और लोग सर्व उच्च परमेश्वर कि आराधना करते थे। यह एक अन्यजातियों का क्षेत्र था, इसलिए चेलों को वहाँ सिखाना यीशु के लिए सुरक्षित था।

रास्ते में यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा,“'लोग क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँ?'" यह एक विषय था जिसके विषय में पूरा इस्राएल बात करता था।

उन्होंने उत्तर दिया कि कुछ लोग उसे बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना समझते हैं पर कुछ लोग एलिय्याह और दूसरे उसे भविष्यवक्ताओं में से कोई एक को कहते हैं। बहुत सारे अनुमान और अफवाहें थीं लेकिन कोई भी निश्चित नहीं था।यीशु जानना चाहता था कि उसके चेले उसके विषय में क्या सोचते हैं। यीशु ने उनसे पूछा,“'और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ।'”

पतरस ने उसे उत्तर दिया,“तू मसीह है।” यह एक साधारण सा वाकया था। यह एक घोषणा थी। पतरस एक दिशसिद्धि के कारण बोल रहा था क्यूंकि उसके जीवन दाव पर लगा हुआ था! वह अपने विश्वास में इस बात को लेकर बढ़ गया था कि जिसके साथ वह सब जगह जाया करता था वही परमेश्वर है! या तो वह सही था, या फिर वह एक मूर्ख था!

जब पहली बार पतरस ने अपने विश्वास कि घोषणा कि, तब वह यहूदियों के नगर में था जहां यीशु के बहुत से चेलों ने उसे छोड़ दिया था। परमेश्वर का पुत्र संसार में आ गया था। पतरस युगानुयुग कि सच्चाई से उत्तेजित था जो मसीह में उपस्थित थी, और वह परिवर्तित हो रहा था।

आपको याद है कि पतरस के साथ कब यह सब घटा? क्या आपको वो कहानी याद है जिसमें पतरस अपने भाई के साथ यरदन नदी पर था जहां यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला सुसमाचार सुना रहा था। वे विश्वास का कदम उठाते हुए परमेश्वर के पीछे चल रहे थे। यहाँ उनकी मुलावत यीशु वे वापस अपने घर गलील उसके साथ चले गए। क्या वे उस वक़्त  अपना जीवन उसको समर्पित करेंगे? फिर एक दिन, जब वे जाल धो रहे थे, यीशु ने उन्हें पुकारा। वे मछुए थे, और वे उसका को बहुत ईमानदारी से कर रहे थे उन्हें सौंपा था। लेकिन जब यीशु ने पुकारा, उन्होंने ने सब कुछ छोड़ कर उस विश्वास के कदम को उठाया जो परमेश्वर ने उन्हें उपलब्ध् कराया था।

परमेश्वर इन लोगों के ह्रदयों में कार्य करने के लिए समय और परिस्थितियों का इस्तेमाल कर रहा था। फिर एक दिन, यीशु ने  मछलियों से भरने के लिए एक अद्भुद  चमत्कार किया। पतरस ने पूरी रात मछली पकड़ने का प्रयास किया पर उसे कुछ हासिल नहीं हुआ। उसने सारी ज़िन्दगी गलील के समुंद पर मछली पकड़ी, और वह समझ गया था कि कैसे एक चमत्कार के द्वारा इतनी सारी चमकदार, चिकनी मछलियां पकड़ी जा सकती हैं। परमेश्वर के आगे घुटनो पर आकर उस चमत्कार के प्रति उसकी प्रतिक्रिया थी। यीशु के पीछे चलते हुए उमड़ते भय के साथ पतरस अपने विश्वास में बना रहा। जब उसने ऐसा किया, वह इस आश्वस्त आश्वासन में बढ़ता गया कि यीशु उसके भरोसे के लायक था। उसके बदले में, यीशु पतरस और दुसरे चेलों को सुसमाचार के सन्देश को और चंगाई कि सामर्थ को सौंप रहा था, जिससे कि  उनका विश्वास और बढ़ गया!

पतरस इस बात को समझ गया था कि जिस शिक्षक के पीछे वो चल रहा था वह परमेश्वर का चुना हुआ, एक अभिषेक किया हुआ राजा था। उसे विश्वास था कि यीशु के पास वो सब करने कि सामर्थ थी जिसका कि वह प्रचार करता था। पतरस को पूरा विश्वास था कि जो मसीहा उसके  परमेश्वर के राज्य को स्थापित करेगा। पतरस के जीवन के यह कुछ पल थे जो उसके ह्रदय में बढ़ते हुए विश्वास को दर्शा रहे थे, और वह उभरता हुआ विश्वास परमेश्वर कि नज़र में अनमोल था। जो परमेश्वर को खोजते हैं वह उन्हें इनाम देता है।

यीशु ने उससे कहा,“'योना के पुत्र शमौन! तू धन्य है क्योंकि तुझे यह बात किसी मनुष्य ने नहीं, बल्कि स्वर्ग में स्थित मेरे परम पिता ने दर्शाई है। मैं कहता हूँ कि तू पतरस है। और इसी चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा। मृत्यु की शक्ति उस पर प्रबल नहीं होगी।'"

स्वर्गीय पिता ने ही पतरस को वह यशस्वी सच्चाई दिखाई। जब इस्राएल के लोग वचन को लेकर आपस में बड़बड़ा रहे थे, पतरस परमेश्वर कि ओर से सीख चुका था। और परमेश्वर पतरस को अपनी कलीसिया को स्थापित करने के लिए सामर्थी तरीकों से इस्तेमाल करने वाला था।

कलीसिया नई वाचा के बने हुए लोगों से  बनी होगी, जो अपने विश्वास प्रभु यीशु पर रखेंगे। उनकी मृत्यु और जी उठने के बाद, यीशु स्वर्ग में उठा लिया जाएगा जहां वह अपने पिता के दाहिने हाथ जाकर बैठेगा। वह अपनी पवित्र आत्मा उन सब पर भेजेगा जो अपने विश्वास उस पर रखेंगे। वे अपने विश्वास को पतरस और अन्य चेलों के साथ बाटेंगे, जो पूरे येरूशलेम में पूरी सामर्थ के साथ उसका प्रचार करेंगे, और वे एक साथ जीवते परमेश्वर कि कलीसिया बनके आएंगे। वे परमेश्वर के राज्य को इस पृथ्वी पर प्रतुत करेंगे!

परमेश्वर जानता था कि शैतान कलीसिया के विरुद्ध खड़ा होएगा, उन सब के विरुद्ध लड़ाई करेगा जो उद्धारकर्ता के प्रति निष्ठा रखते हैं। लेकिन यीशु ने पतरस से यह वायदा किया कि, जिस इंसान ने परमेश्वर के पुत्र का सबसे पहले प्रचार किया, अंत में, शैतान ही हारेगा। परमेश्वर अपनी कलीसिया को सच्चाई कि मज़बूत चट्टान पर अपनी कलीसिया को बनाएगा, जो जीवते परमेश्वर के पुत्र, यीशु ने घोषित किया है! यीशु के लिए उन सब ईमानदारों कि विजय निश्चित है।

यीशु ने आगे कहा:

"'मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दे रहा हूँ। ताकि धरती पर जो कुछ तू बाँधे, वह परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग में बाँधा जाये और जो कुछ तू धरती पर छोड़े, वह स्वर्ग में परमेश्वर के द्वारा छोड़ दिया जाये।'”

यीशु का इससे क्या मतलब था? आपको क्या लगता है स्वर्ग कि कुंजी क्या है? क्या कोई सोने के ताले के साथ सोने कि चाबी है? नहीं। बिलकुल नहीं। यीशु आत्मिक बातों के विषय में कह रहे हैं। स्वर्ग राज्य के लिए कौन सी कुंजी है? यदि  हम देखें जो यीशु ने पतरस को अपनी सारी ज़िन्दगी करने को, हम देखते हैं कि कुंजी परमेश्वर के राज्य के सुसमॅधर को प्रचार काने का चिन्ह है. जन सुसमाचार सुनाया जाता है, तब खोये हुओं के लिए द्वार खुल जाते हैं! वे परमेश्वर के वाचा में बंधे हुए परिवार के हिस्सा बन जाते हैं, याने कि कलीसिया, और यीशु में जीवन बिताते हैं। शास्त्री और फरीसी इसके विपरीत कर रहे थे। यीशु उनके साथ साथ चल रहा था लेकिन वे स्वर्ग राज्य के द्वार को बंद कर रहे थे! मत्ती 23 में, यीशु उन्हें विश्वास के दरवाज़े के सामने खड़े होने के लिए बड़ी कठोरता के साथ डाटा है जो दूसरों के अंदर आने के लिए रास्ता बंद कर रहे हैं। लेकिन यीशु के वफादार लोग उन दरवाज़ों को खोलते रहेंगे ताकि दुसरे उनमें पूरी आज़ाद के साथ आ सकें।

प्रेरित पौलूस, जो यीशु का एक और महान सेवक था, उसने भी कई वर्षों पहले इसका वर्णन किया था। पहले उसने समझाया कि परमेश्वर का वचन विश्वास के साथ आता है। फिर उसने कहा: कि यदि तू अपने मुँह से कहे,“यीशु मसीह प्रभु है,” और तू अपने मन में यह विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जीवित किया तो तेरा उद्धार हो जायेगा।'" -रोमियों १०:९

लेकिन एक समस्या है। कोई बगैर यीशु के बारे में सुने कैसे पश्चाताप कर सकता है? पौलूस ने इस तरह स्वायल किया:
"'किन्तु वे जो उसमें विश्वास नहीं करते, उसका नाम कैसे पुकारेंगे? और वे जिन्होंने उसके बारे में सुना ही नहीं, उसमें विश्वास कैसे कर पायेंगे? और फिर भला जब तक कोई उन्हें उपदेश देने वाला न हो, वे कैसे सुन सकेंगे? और उपदेशक तब तक उपदेश कैसे दे पायेंगे जब तक उन्हें भेजा न गया हो? जैसा कि शास्त्रों में कहा है: “सुसमाचार लाने वालों के चरण कितने सुन्दर हैं।'" -रोमियों १०:१४-१५

अद्भुद बात यह है कि पतरस के अंत में सुंदर पैर ही होंगे! यीशु के मरने और जी उठने के बाद, पतरस ही वो चेला होगा जो सबसे पहले परमेश्वर के सुसमाचार को पवित्र आत्मा के द्वारा यहूदियों को प्रचार करेगा (प्रेरितों के काम 2), सामरियों को (प्रेरितों के काम 8), और अन्यजातियों को (प्रेरितों के काम 10)  स्वार्ग के राज्य के द्वार को उसने सबके लिए खोल दिया है, सुसमाचार को पूरे संसार में प्रचार करने के लिए उसने रास्ता बना दिया है!

लेकिन यीशु ने और भी कुछ कहा। उसका क्या मतलब था जब उसने ऐसा कहा कि जो पतरस इस पृथ्वी पर बंधेगा वो स्वर्ग में  खोला जाएगा, और जो चीज़ें उसने पृथ्वी में खोई हैं वे स्वर्ग में खोली जाएंगी? इस पूरी कहानी में, पतरस आशीषित हुआ क्यूंकि उसने माना कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है। यही विश्वास स्वर्ग के राज्य के जीवन के द्वार को खोलता है। पतरस को यह दर्शा कर परमेश्वर पिता ने उसे अशिक्षित किया। अब पतरस को प्रचार करने का अधिकार दिया गया था कि कैसे कलीसिया में सिखाय कि पाप कैसे क्षमा हो सकते हैं और किसी के पश्चाताप न करने पर कलीसिया में क्या होता है उस व्यक्ति को निर्वासित कर दिया जाता है। यह बुद्धि और अधिकार पतरस कि अपनी सामर्थ में नहीं था। यह परमेश्वर कि ओर से दी हुई आशीष और ज्ञान था!

पतरस उस दिन इन सब बातों को नहीं समझ पाया। लेकिन उसने यीशु से उन सब बातों को लिया और विश्वास में आगे कदम बढ़ाया, और इन ही सब बातों से अंतर आया। यीशु ने अपने चेलों कोई चेतावनी दी कि वे किसी को ना बताएं कि वह कौन था। जो संदेश विश्वास में बढ़ने वालों के लिए प्रदर्शित हुआ वही उनके लिए जिन्होंने अस्वीकार किया उनसे वह छिप जाएगा।