कहानी ९४: रूप - परिवर्तन
पतरस ने यह घोषणा की कि यीशु, जीवते परमेश्वर का पुत्र है। यह एक साहसिक, अयोग्य बयान था, और वह ऐसा करना चाहता था। यह केवल सच्चाई कि घोषणा नहीं थी, बल्कि यह राज निष्ठा कि भी घोषणा थी। पतरस एक पक्ष का चयन कर रहा था क्यूंकि वह जानता था कि यीशु ही परमेश्वर का अभिषेक किया हुआ है। और वह भीड़ और अपनी भूमि के सबसे शक्तिशाली अगुवों की दुश्मनी और अस्वीकृति के खिलाफ यीशु का चयन कर रहा था।
पतरस दुसरे चेलों कि ओर से बोल रहा था। वही सबसे साहसी था जो बाकियों के दिल में चल रही बातों को कह देता था। और इस घोषणा के बाद, इन लोगों ने दिखाया कि वे परमेश्वर कि योजनाओं को सुनने के लिए तैयार थे। यीशु अपने चेलों को समझा रहे थे कि वे अब येरूशलेम जाने को तैयार थे, और वो वहाँ दुःख उठाने के लिए जा रहा था। उसने कहा, “यह निश्चित है कि मनुष्य का पुत्र बहुत सी यातनाएँ झेलेगा और वह बुजुर्ग यहूदी नेताओं, याजकों और धर्मशास्त्रियों द्वारा नकारा जाकर मरवा दिया जायेगा। और फिर तीसरे दिन जीवित कर दिया जायेगा।”
यह इतना तो साफ़ था। चेलों की आशंकाएं सच होने जा रही थीं। लेकिन यह कैसे हो सकता है? चेलों ने सुन रखा था कि मसीहा इस्राएल के राष्ट्र के लिए विशाल, शक्तिशाली सैन्य जीत लाने जा रहा था। अब यीशु बता विपरीत होने के जा रहा था। मसीहा वध करने के लिए एक मेमने की तरह मारा जाने वाला था, और यह यहूदी लोगों के हाथों से होने जा रहा था! वे अपने स्वयं के मसीहा को मारने जा रहे थे! यह निश्चित रूप से शिष्यों के लिए उम्मीद की गई थी दृष्टि नहीं थी!
तब पतरस उसे एक तरफ ले गया और उसकी आलोचना करता हुआ उससे बोला,“हे प्रभु! परमेश्वर तुझ पर दया करे। तेरे साथ ऐसा कभी न हो!”
फिर यीशु उसकी तरफ मुड़ा और बोला,“पतरस, मेरे रास्ते से हट जा। अरे शैतान! तू मेरे लिए एक अड़चन है। क्योंकि तू परमेश्वर की तरह नहीं लोगों की तरह सोचता है।”
जिस व्यक्ति के ऊपर यीशु अपनी कलीसिया को बनाने जा रहे थे वही अब परमेश्वर पिता कि इच्छा कि ओर महान अंधेपन को दिखा रहा था। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर कि यह योजना थी कि वह दुःख उठाय और मारा जाये, जाती के पापों को अपने ऊपर लेकर मृत्यु कि सामर्थ को नष्ट कर दे। यह इतना विशाल था कि चेले इस महाकाव्य आशा को अपने दिमाग में समा नही सके। यीशु जब एक इंसान के रूप में खड़े थे, उसके आसमानी बाप उद्देश्य उसके सामने थे। पतरस यीशु को अपने पिता कि मर्ज़ी करने से दूर हटाना चाहता था। शैतान ने भी ऐसा ही किया जब वह यीशु को जंगल में लुभा रहा था। यीशु पतरस कि गलती को पूरी तरह से स्पष्ट कर रहे थे। पतरस को चाहिए था कि एक बार फिर यीशु के आगे घुटने टेकता।
फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह अपने आपको भुलाकर, अपना क्रूस स्वयं उठाये और मेरे पीछे हो ले। जो कोई अपना जीवन बचाना चाहता है, उसे वह खोना होगा। किन्तु जो कोई मेरे लिये अपना जीवन खोयेगा, वही उसे बचाएगा। यदि कोई अपना जीवन देकर सारा संसार भी पा जाये तो उसे क्या लाभ? अपने जीवन को फिर से पाने के लिए कोई भला क्या दे सकता है?मनुष्य का पुत्र दूतों सहित अपने परमपिता की महिमा के साथ आने वाला है। जो हर किसी को उसके कर्मों का फल देगा। मैं तुम से सत्य कहता हूँ यहाँ कुछ ऐसे हैं जो तब तक नहीं मरेंगे जब तक वे मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते न देख लें। '"
कुछ मायनों में, चेले अभी भी भीड़ की तरह थे। वे अभी भी छह रहे थे कि मसीह उन्हें सांसारिक आशीषों के साथ सांसारिक जीवन का एक हिस्सा भी दे दे। यीशु उन्हें अनंत काल कि बातों कि ओर अपनी आशा को लगाने के लिए दबाव डाल रहे थे। उनका इनाम बहुत महान और उनकी सोच से भी बढ़कर था और वह युगानुयुग के लिए था। परन्तु उन्हें उसके साथ क्रूस तक जाने को तैयार होना होगा और अपने जीवन को एक भेंट कि तरह पहले यीशु को समर्पित करना होगा। चेलों ने शायद पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वे यीशु के लिकए युद्ध में लड़ने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालेंगे। वे दाऊद राजा के समान योद्धा, गौरवशाली और बहादुर होने के लिए तैयार थे। लेकिन यह एक अलग मौत थी। क्या वे अपमान और शर्म को सहने के लिए तैयार थे? क्या वे सांसारिक प्रसिद्धि या महिमा के बगैर अपराधियों की तरह मरने के लिए तैयार थे? क्या वे उसके लिए उस क्रूस के लम्बे, अति पीड़ा देने वाली मौत को सहने के लिए तैयार थे?
यीशु के उग्र मांगों का पालन करने के लिए, उसके चेलों को उसकी अनंतकाल कि सच्चाई कि बैटन पर विश्वास करना होगा, क्यूंकि येही वो इनाम है जो वह उन्हें देना चाहता था।क्या वे उसके पीछे चलेंगे? इसका क्या अर्थ था कि यीशु को उसके राज्य कि सामर्थ में आते देखेंगे? उन्हें जल्द पता चल जाएगा!
चेले यीशु के साथ हर जगह गए जहां वो जाता था। छः दिन बाद यीशु, पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लेकर एकान्त में ऊँचे पहाड़ पर गया। एक महान और पवित्र रहस्योद्घाटन का एक पल आ रहा था, और केवल यीशु के चेले उसे निकटतम से अनुभव करने वाले थे।
जब वे पहाड़ पर खड़े थे, वहाँ उनके सामने यीशु का रूपान्तरण हुआ। वे अब उसे एक उल्लेखनीय बुद्धि और शक्ति वाले मात्र एक आदमी के रूप में नहीं देख रहे थे। उन के सामने एक यशस्वी, उज्जवल सर्वशक्तमान परमेश्वर का पुत्र खड़ा था, जिसने पूरी सृष्टि को बनाय और बनाय रखा है! यह वो परमेश्वर का पुत्र था जिसे युगानुयुग से स्वर्गदूत पहचानते थे। उसका मुख सूरज के समान दमक उठा और उसके उस के वस्त्र चमचमा रहे थे। एकदम उजले सफेद! धरती पर कोई भी धोबी जितना उजला नहीं धो सकता, उससे भी अधिक उजले सफेद थे। उसका दृश्य कितना दम भरने वाला रहा होगा!
जब वे वहाँ खड़े थे तब चेलों को नींद आने लगी। फिर अचानक मूसा और एलिय्याह उनके सामने प्रकट हुए। वे यीशु अपने महिमा और स्वर्गीय शरीरों में बात कर रहे थे।वे उससे इस विषय में बात कर रहे थे कि वह कैसे इस दुनिया को छोड़ कर जाएगा और कैसे उससे पहले येरूशलेम में जाकर वो सब कुछ पूरा करना है। स्वर्ग के धर्मी सलाहकार जानते थे कि क्या होने जा रहा है, और परमेश्वर ने पहले से ही अपने कुछ सम्मानित पुरुषों को भेज दिया था ताकि वे यीशु के संग कि पेहचान बना सकें जो वह करने जा रहा था। पतरस कि मूर्ख और अँधा था कि उन बातों को रोकने कि कोशिश कर रहा था जो स्वर्ग में रखी हुई थीं!
सो जब वे जागे तो उन्होंने यीशु की महिमा को देखा और उन्होंने मूसा और एलिय्याह को भी देखा जो उसके साथ खड़े थे। आप कल्पना लगा सकते हैं कि पतरस और यूहन्ना और याकूब को कैसा लगा होगा! वहाँ उनके जीवन के महावीर खड़े थे जिन्होंने उन्हें सारी ज़िन्दगी का आदर करने को सिखाया था। शायद यीशु को उनके समय के धार्मिक अगुवों का समर्थन नहीं मिला हो, लेकिन उन्हें परमेश्वर के महँ सेवकों का समर्थन ज़रूर मिला। ये पुरुष पुराने नियम के समर्थन थे कि यीशु ही मसीहा है!
उन महिमायुक्त संतों के जाने का समय आ गया था, लेकिन पतरस, उत्साह में आकर बोला, “प्रभु, अच्छा है कि हम यहाँ हैं। यदि तू चाहे तो मैं यहाँ तीन मंडप बना दूँ-एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।” बिना सोचे समझे पतरस बोल पड़ा। शायद उसे यह लगा कि यीशु अपनी पूरी महिमा में आ गया है। पतरस अभी बात कर ही रहा था कि एक चमकते हुए बादल ने आकर उन्हें ढक लिया और बादल से आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसकी सुनो!”
बाइबिल में, बादल का होना, परमेश्वर कि तीव्र उपस्थिति को दर्शाती है, जो आवर्धित हो गयी है। पहाड़ पर ये पुरुष परमेश्वर पिता कि उपस्थिति से ढंप गए थे, और केवल नम्रता, शांति और आज्ञाकारिता ही से उससे बात कि जा सकती थी। जब शिष्यों ने यह सुना तो वे इतने सहम गये कि धरती पर औंधे मुँह गिर पड़े। तब यीशु उनके पास गया और उन्हें छूते हुए बोला, “डरो मत, खड़े होवो।” जब उन्होंने अपनी आँखें उठाई तो वहाँ बस यीशु को ही पाया।
जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तो यीशु ने उन्हें आदेश दिया कि जो कुछ उन्होंने देखा है वह किसी को ना बताएं। उसने कहा कि जब तक मनुष्य के पुत्र को मरे हुओं में से फिर जिला न दिया जाये तब तक उन्होंने जो कुछ भी पहाड़ पर दृश्य देखा किसी से भी ना कहें। फिर उसके शिष्यों ने उससे पूछा कि यहूदी धर्मशास्त्री फिर क्यों कहते हैं, एलिय्याह का पहले आना निश्चित है। उसने उनसे कहा, “एलिय्याह आ रहा है, वह हर वस्तु को व्यवस्थित कर देगा। किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि एलिय्याह तो अब तक आ चुका है। पर लोगों ने उसे पहचाना नहीं। और उसके साथ जैसा चाहा वैसा किया। उनके द्वारा मनुष्य के पुत्र को भी वैसे ही सताया जाने वाला है।”
तब उसके शिष्य समझे कि उसने उनसे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के बारे में कहा था। कुछ समय से भ्रमित रह्रने के बाद सारे बातों की पुष्टि हो गयी थी। यही सवाल इस्राएल के यहूदी भी पूछते थे, लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिलता था। यीशु के वफादार चेले होने पर, पतरस, याकूब और यूहन्ना ने यीशु कि कही हुई बातों का आदर किया। उनका यह सौभाग्य था कि वे अपनीज़िंदगी इस पृथ्वी पर गवा दें, लेकिन उन्होंने स्वर्गीय दर्शन को पा लिया था। एक हफ्ते के भीतर, यीशु ने वायदा किया था कि उसके कुछ चेले मनुष्य के पुत्र को अपने राज्य में आते देखेंगे, कलीसिया कि पहली भविष्वाणी पूरी हो गयी थी। लेकिन आपस में बात करते थे कि यीशु के क्या मतलब था जब वह यह कहता था कि मनुष्य का पुत्र मुर्दों में जी उठेगा। जब कि चेले अचंबित रहे और लड़खड़के आगे बढ़ रहे थे, परमेश्वर कि योजनाएं आगे कि ओर बढ़ रही थीं।