कहानी ८१: याईर कि पुत्री और एक बीमार स्त्री
हाल ही में चेलों का यीशु के साथ कैसा नाटकीय क्षण रहा है! उन्होंने उसे शब्दो से तूफ़ान को थमते हुए देखा था। उन्होंने उसे एक खतरनाक इंसान को मानसिक रूप से स्थिर करते देखा। ऐसे चुंबकीय शिक्षक के भीतर से पूर्ण विजय निकल के आ रही थी। उस मसीहा से यह कितना भिन्न दिखता था जिसे उन्हें जीवन भर खोजना था, परन्तु उन्हें उसकी महिमा कि झलक दिखने के बाद, यीशु के चेले और बढ़ते चले गए। यह वह मनुष्य था जिसके उन्हें धार्मिक अगुवों के उसके खिलाफ होने के बावजूद पीछे चलना था। उसके परिवार और विशाल भीड़ के उसको अस्वीकार के बावजूद उन्हें उसके साथ वफादार रहना था। फिर वह कश्ती में बैठ कर अपने चेलों के साथ गिरासेनियों के क्षेत्र से निकल गया। की उन्होंने अचम्भा किया यह देखकर कि कितनों ने उसे अस्वीकार किया? क्या वे शहर के लोगों से नाराज़ थे कि उन्होंने उसके चमत्कारों कि महिमा को नहीं पाया? वे उसे वहाँ से जाने को कैसे कह सकते थे? क्या वे अचंभित थे कि सब को छोड़ केवल इन्ही लोगों को विश्वास करने का महान खज़ाना दिया गया था?
यीशु और उनके चेले वापस नौकाओं में चढ़ गए और गलील के क्षेत्र के लिए वापस रवाना हुए। उसके नाव से उतरने से पहले लोगों की बड़ी भीड़ वहाँ उसके लिए इंतज़ार कर रही थी। यीशु तट पर भीड़ के साथ तेरे रहे। जब वह शिक्षण दे रहा था, एक आदमी उसके पास आया और उसके पैरों पर गिर गया। यह स्थानीय आराधनालय को चलने वालों में से एक अधिकारी, याईर था। जिस व्यक्ति को रबी और यरूशलेम के धार्मिक अगुवे मारने कि ताक में थे, उसके यीशु यह व्यक्ति क्यूँ आया?
याईर कि केवल एक बारह साल कि बेटी थी। उस वक़्त वह मौत के करीब बिस्तर में पड़ी हुई थी। हताश होकर यह पिता उसे ढूंढ रहा था जो उसकी बेटी के लिए एक आखरी उम्मीद थी। यीशु से आग्रह के साथ विनती करता हुआ बोला, “मेरी नन्हीं सी बच्ची मरने को पड़ी है, मेरी विनती है कि तू मेरे साथ चल और अपना हाथ उसके सिर पर रख जिससे वह अच्छी हो कर जीवित रहे।”
तब यीशु उसके साथ चल पड़ा और एक बड़ी भीड़ भी उसके साथ हो ली जिससे वह दबा जा रहा था।क्या आप उस दृश्य कि कल्पना कर सकते हैं जब भीड़ याईर के घर को जा रही थी?
जब वे जा रहे थे, यीशु के पास भीड़ से एक स्त्री उसके पास आ पहुँची। उसे बारह बरस से लगातार खून जा रहा था। वह अनेक चिकित्सकों से इलाज कराते कराते बहुत दुखी हो चुकी थी। उसके पास जो कुछ था, सब खर्च कर चुकी थी, पर उसकी हालत में कोई भी सुधार नहीं आ रहा था, बल्कि और बिगड़ती जा रही थी। लगातार खून बहना कैसा महसूस होता है। वो लगातार धोना, गंध, उसका खून उसे यहूदी परिवार और दोस्तों से खुद को दूर कर दिया था जिसके कारण वह विधिपूर्वक अशुद्ध हो गयी थी। कितना एक दर्दनाक और अकेले का जीवन है यह! लेकिन उसने यीशु के बारे में सुना था, और उनके उल्लेखनीय चंगाई के विषय में सुनकर उसे उम्मीद मिल गयी थी।
वह भीड़ के बीच से यीशु के पास आयी यह सोच कर कि यदि वह उसके वस्त्र को छु लेती है तोह पूरी चंगाई पा लेगी। वह उसके ध्यान को अपनी ओर खींचना नहीं चाहती थी, क्यूंकि वह विधिपूर्वक अशुद्ध थी, और यदि कोई उसे छु लेता है तो वह भी अशुद्ध हो जाएगा। और वह उसे परेशान नहीं करना चाहती थी। शायद अगर वह उसके वस्त्र को छु लेती है तो, वह ध्यान नहीं दे पाएगा! उसने उनकी ओर हाथ बढ़ाया और और जब उसने उसके वस्त्र को छूआ, उसे अपने शरीर में ऐसी अनुभूति हुई जैसे उसका रोग अच्छा हो गया हो। उसे मालूम था कि इतने बरस के बाद, उसकी यह भयानक बीमारी चली गयी थी। वह चंगी हो गयी थी।
यीशु ने भी तत्काल अनुभव किया जैसे उसकी शक्ति उसमें से बाहर निकली हो।उसने भीड़ में पीछे मुड़कर पूछा, “मेरे वस्त्र को किसने छुए?” उसके चारों ओर चलने वालों ने इंकार किया कि उन्होंने उसे छूआ। पतरस ने कहा,“तू देख रहा है भीड़ तुझे चारों तरफ़ से दबाये जा रही है।'"
फिर वह स्त्री, यह जानते हुए कि उसको क्या हुआ है, भय से काँपती हुई सामने आई और उसके चरणों पर गिर कर उसने सब सच सच कह डाला। फिर यीशु ने उससे कहा,“बेटी, तेरे विश्वास ने तुझे बचाया है। चैन से जा और अपनी बीमारी से बची रह।”कितना सुंदर परमेश्वर है! शक्ति मुझ से बाहर चला गया है '" उसने ना केवल उसे उस क्षण भर के लिए चंगा किया था। उसने उसे उसके जीवन भर के लिए चंगा कर दिया था। यीशु के पास कितनी जीवंत, ज्वलंत सामर्थ थी! उस सामर्थ पर उस स्त्री के विश्वास का कितना अद्भुद असर हुआ! परन्तु सबसे बड़ी आशीष जो उसे मिली वो थी यीशु का उसे "पुत्री" कहकर पुकारना। वह परमेश्वर के विश्वासियों के परिवार का सदस्य बन गयी थी!
वह अभी बोल ही रहा था कि यहूदी आराधनालय के अधिकारी के घर से कुछ लोग आये और उससे बोले, “तेरी बेटी मर गयी। अब तू गुरु को नाहक कष्ट क्यों देता है?”
किन्तु यीशु ने, उन्होंने जो कहा था सुना और यहूदी आराधनालय के अधिकारी से वह बोला,“डर मत, बस विश्वास कर।” याईर के घर जाते समय उसके लिए वो रास्ता कैसा रहा होगा! फिर वह सब को छोड़, केवल पतरस, याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को साथ लेकर यहूदी आराधनालय के अधिकारी के घर गया।
फिर वह सब को छोड़, केवल पतरस, याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को साथ लेकर यहूदी आराधनालय के अधिकारी के घर गया।
उसने देखा कि वहाँ खलबली मची है, और लोग ऊँचे स्वर में रोते हुए विलाप कर रहे हैं। वह भीतर गया और उनसे बोला, “यह रोना बिलखना क्यों है? बच्ची मरी नहीं है; वह सो रही है।” यीशु ने अब तक उस बच्ची को नहीं देखा था, फिर उसे कैसे मालूम था कि वह मरी है या नहीं? सच्चाई यह है कि, वह मरी नहीं थी, यीशु उसे वापस जीवित करने के लिए आये थे। उन्हें पूरा विश्वास था कि उस सब विलाप करने बीच वह वो करेगा जो सत्य है!
लड़की को आए लोगों का दुःख को यीशु के शब्दों को निंदक हँसी में बदल दिया। उसे क्या लगता है कि वह कौन है?उन्हें यकीन था कि वह मर चुकी है! उनका दुःख कितना थोड़ा था कि उसकी चंगाई कि उम्मीद को उन्होंने हसी में उड़ा दिया!
यीशु ने कहा, "'हटो! लड़की मरी नहीं है, परन्तु सो रही है।'" फिर उसने सब लोगों को बाहर भेज दिया और बच्ची के पिता, माता और जो उसके साथ थे, केवल उन्हें साथ रखा। उसने बच्ची का हाथ पकड़ा और कहा,“तलीता, कूमी।”(अर्थात् “छोटी बच्ची, मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ी हो जा।”) फिर छोटी बच्ची तत्काल खड़ी हो गयी और इधर उधर चलने फिरने लगी। उसने उसे न केवल मृत्यु से जिलाया, उसने उसे पूर्ण ताक़त और सामर्थ भी दिया! उसके माता पिता और चेले अचंबित हुए।
यीशु ने यह चमत्कार लोगों को प्रभावित करने या संसार को सन्देश देने के लिए नहीं किया था। यीशु ने यह एक निराशाजनक पिता पर दया खा कर और उस बच्ची के जीवन को श्राप से छुड़ाने के लिए किया। वह नहीं चाहता था कि इस चमत्कार का सन्देश फैले। उन्होंने उनको चेतावनी दी वे किसी से ना कहें। स्वर राज्य के विषय में खुलकर प्रचार करने के बाद और दृष्टान्तों के द्वारा भी, चमत्कार अब गुप्त और शांत सहानुभूति का कार्य था। जो विश्वास करते थे यह उनके लिए खज़ाना था। जो परमेश्वर कि निंदा करते थे उन्होंने उसके आश्चर्य कर्म को देखने का मौका खो दिया था। इस्राएल के धर्मी अगुवों ने एक अनंतकाल का पाप किया था, और अब से यीशु इस बात से सावधान रहेग कि किसके साथ सुसमाचार को बाटे।
जब वह छोटी बच्ची उठ खड़ी हुई और स्वस्थ हो गयी, यीशु ने उनसे उसे कुछ खाने को देने को कहा। इन सब बातों के बीच में भी,यीशु को उस बच्ची कि साधारण सी ज़रुरत का भी कितना ध्यान था। उसने उसे उसी ध्यानपूर्वक चिंता के साथ प्रेम किया जिस प्रकार उस बीमार स्त्री को किया। उसकी नज़र में यह दोनों का बड़ा महत्त्व था।
किसी तरह, चमत्कार का सन्देश यहूदियों के देश भर में फ़ैल गया। गलील के फरीसी यह सुनने के बाद कि यीशु ने याईर कि बेटी को चंगा किया, उसे मरवाना चाहते थे। एक और चमत्कार के बारे में सुनकर भीड़ अचंबित रह गयी। यीशु, जो गलील में घूमा करता था, उसके विषय में यह सन्देश सुनकर, लोगों के बीच बातें होनी लगी। येरूशलेम के धार्मिक अगुवों ने क्या किया जब, उन्हें यह पता चला कि जिस यीशु के विषय में उन्होंने यह कहा था कि उसने शैतान से शक्ति प्राप्त कि है, उसी ने आराधनालय के अगुवे कि बेटी को मृत्यु में से जिलाया!