पाठ 178 : # 7 दूसरी आज्ञा के लिए निहितार्थ

व्यवस्थाविवरण 12

यहोवा ने पहली आज्ञा यह दी कि इस्राएल के लोग उसके अलावा कोई अन्य देवता को नहीं मान सकते थे। मोआब के मैदानों पर उसके उपदेश में, मूसा ने इस्राएलियों को बहुत सी चेतावनियां दीं की उन्हें परमेश्वर को पहला स्थान देना होगा। इस्त्राएलियों के लिए उसकी दूसरी आज्ञा यह थी की; 

 

"किसी की मूर्तियाँ या किसी के चित्र जो आकाश में ऊपर, पृथ्वी पर या नीचे समुद्र में हों, न बनाओ। किसी प्रकार के प्रतीक की पूजा या सेवा न करो। क्यों? क्योंकि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ। मैं अपने लोगों द्वारा किसी अन्य देवता की पूजा से घृणा करता हूँ। ऐसे लोग जो मेरे विरुद्ध पाप करते हैं, मेरे शत्रु हो जाते हैं। मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा और मैं उनके पुत्रों, पौत्रों और प्रपौत्रों को दण्ड दूँगा। किन्तु मैं उन लोगों पर बहुत दयालु रहूँगा जो मुझसे प्रेम करते हैं. और मेरे आदेशों को मानते हैं। मैं उनकी सहस्र पीढ़ी तक उन पर दयालु रहूँगा! (व्यवस्था 5: 8-10)।

 

यहोवा नहीं चाहता था कि इस्राएली किसी भी प्रकार की मूर्ती बना कर उसकी पूजा करें। चाहे यहोवा की उपासना करने के लिए एक मूर्ती ही क्यूँ ना बनाई हो। वह मूर्तियों या चित्रों में नहीं पाया जाता है। वह सच्चा और जीवित है! कोई तस्वीर उसे समां नहीं सकती थी। वह चाहता है किउसके लोग उसके पास प्रार्थना में आएं जैसे वह स्वर्ग में अपने सिंहासन पर विराजमान है। एक तस्वीर या मूर्ती उसकी सुंदरता और महिमा को उसकी छवि में प्रकट करने कि एक बहुत ही अल्पमूल्य तरीके हैं। इसीलिए उसने उस वादे के देश में, जिसे वे जीतने जा रहे थे, मूर्तियों और वेदियों को नष्ट करने के लिए लोगों को आज्ञा दी। 

 

वास्तव में, परमेश्वर नहीं चाहता था की इस्राएली ऐसे सवाल करें किदूसरे देशों के लोग किस प्रकार अपने देवताओं किपूजा करते थे। ऐसा करने से वे वैसा ही करने के लिए परीक्षा में पड़ सकते हैं। अपने जीवन के मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर के पास जाने के बजाय, वे सितारों को देखकर जाननेकिकोशिश कर सकते हैं किउन्हें क्या करना चाहिए। परमेश्वर की इच्छा को जानने के बजाय, वे जादुई मंत्र कर के या मृत की आत्माओं से पूछने की कोशिश कर सकते हैं। परमेश्वर के शुद्ध और पवित्र नियमों का पालन करने के बजाय, वे मंदिर के वेश्याओं के पास जा सकते हैं या अपने पड़ोसियों पर शाप डाल सकते हैं। यहोवा काननियों के सभी घृणित, भयानक बातों को समझ गया था, और वह चाहता था कि वे पूरी तरह से इनसे अलग हों। 

 

जब इस्राएली मरुभूमि में फिर रहे थे, यहोवा ने उन्हें उसकी उपासना करने के लिए एक बहुत ही खास जगह दी थी। वे मंदिर में जाते थे। वे परमेश्वर की उपस्थिति को मंदिर के ऊपर दिन में बादल और रात में आग के खम्भे में मंडराते हुए देखते थे। लेकिन अब, जब मूसा इस्राएलियों को जब प्रचार कर रहा था, उसने समझाया की जब वे वादे के देश में जाएंगे तब सब बदल जाएगा। इस्राएल का राष्ट्र फिर कभी इस तरह मंदिर को डेरे के बीच में रख कर नहीं जियेगा। वे पूरी भूमि में फ़ैल जाएंगे। वे एक दूसरे से मीलों दूर होंगे। प्रत्येक परिवार अपनी जनजाति को लेकर उस भूमि में होगा जो उसे दिया जाएगा। वाचा का संदूक और मंदिर अब कभी उनके बीच में नहीं पाया जाएगा। यह उनसे कई मील दूर होगा और उस तक पहुंचना भी बहुत मुश्किल होगा। 

 

चाहे मंदिर उनसे कितना भी दूर क्यूँ ना हो जाय, इस्राएली तभी भी स्वयं किवेदियां नहीं बनाएँगे। चाहे वे अपने घर के नज़दीक यहोवा के लिए मंदिर या वेदी बनाएं, वह परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध होगा। परमेश्वर ने कहा की वह उनके पहुंचने पर उन के लिए उसकी उपासना करने का स्थान निर्धारित करेगा। अपने लोगों के बीच उसकी पवित्र उपस्थिति के लिए वह एक जगह स्वयं उनके लिए निर्धारित करेगा। इस्राएल के लोगों को साल में तीन बार उन त्योहारों को मनाने के लिए और अपने पापों का बलिदान चढ़ाने के लिए उस स्थान पर यात्रा करनी होगी। उन्हें सब बड़ी आशीषों के लिए परमेश्वर की पवित्र उपस्थिति में अपने पशुओं में से पहलौठे पशु का बलिदान दे कर करना होगा। पूरे साल भर, जब नया बछड़ा पैदा होता था, प्रत्येक माँ के पहलौठे को स्मरण किया जाना था। उन्हें उसे परमेश्वर के अनमोल उपहार के रूप में याद करना होगा। वे उसे खा नहीं सकते थे। उसे मंदिर में लाकर यहोवा की उपस्थिति में उसका बलिदान चढ़ाना था। यह उन सब आशीषों को याद दिलाने का एक प्रतीक था जो उसकी ओर से आती थीं। 

 

जब मूसा प्रचार कर रहा था, उसने यह सुनिश्चित किया कि परमेश्वर के लिए बलिदान के लिए जो बछड़ा लाया गया है वह उसकी माँ का पहलौठा है। बाकि सब पशु इस्राएली खा सकते थे। जो भी पशु अशुद्ध था या जिसके अंदर खून था, ऐसे पशु को छोड़ इस्राएली अन्य कोई भी पशु को खा सकते थे। वास्तव में, वे जितना चाहे खा सकते थे। 

 

याजकों का ध्यान रखना, दूसरी आज्ञा का एक अन्य महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस्राएली उन पुजारियों या पुजारिन के पास नहीं जा सकते थे जो दूसरे देवताओं की पूजा करते थे। वे केवल लेवियों के पास ही जा सकते थे जो परमेश्वर के याजक थे। लेवीय याजकों कि देखभाल करना उनकी आज्ञाकारिता का एक हिस्सा था। जब इस्राएल के अन्य सभी जनजातियों को देश के महान वर्ग दिए जाते थे, लेवियों को कुछ भी नहीं दिया जाता था। भूमि का उत्तराधिकार अन्य सभी जनजातियों को दिया जाता था। लेवियों को एक बहुत अलग और खास उत्तराधिकार प्राप्त होता था। उन्हें परमेश्वर किसेवा प्राप्त होती थी। इसका मतलब, अन्य सभी जनजातियों को परमेश्वर के सम्मानित रूप में लेवियों किजरूरतों के लिए प्रदान करना आवश्यक था। 

Jennifer Jagerson