कहानी १६३: हर कोई दूर हो जाता है: गिरफ्तारी
जब यीशु ने बगीचे के अंधेरे में प्रार्थना में घुटने टेके, तो उन्होंने अपने को पिता की इच्छा के सुपुर्त कर दिया। तब वह अपने पैरों पे उठकर अपने चेलों के पास गए। उन्होंने उन्हें एक बार फिर से सोया पाया। "'बाद में सो कर अपना आराम ले लेना" उन्होंने कहा। "देखो, समय आ गया है , और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाएगा। उठो, हमें जाना है।"
यीशु ने यह बोलना खत्म ही नहीं किया था, जब वे लोग आ गए। कवच की आवाज़ और पैरों की गड़गड़ाहट सुनाइ दे रही थी और मशालों की लौ बगीचे के पेड़ों के अंधेरे में झिलमिला रही थी। यहूदा एक पुरुषों की टोली का नेत्रित्व कर रहा था। महायाजक, बड़े और फरी,सी रात की घटनाओं का एक हिस्सा बनने के लिए उत्सुक, अपनी लालटेन और हथियारों के साथ आए थे। वे अपने साथ रोमी सैनिकों की एक टोली भी लाए थे। कम से कम दो सौ पुरुष अपने हथियार ले कर आए थे, मानो जंग के लिए आए हो।
"'तुम किसे चाहते हैं?'" यीशु ने पूछा , यह अच्छी तरह जानते हुए कि वे उसके पीछे आ रहे थे।
"'यीशु नासरी'" उन्होंने जवाब दिया।
"'मैं वही हूं," प्रभु ने कहा। उनके शब्दों से, भीड़ वापस खिच कर जमीन पर गिर गई। क्या वो इसलिए गिर गए क्यूंकि परमेश्वर ने उनके सामने खुद को घोषित कर दिया था, या वे उसकी घोषणा की सरासर साहस से अचंबित हो गए?
फिर यीशु ने पूछा: "तुम किसे चाहते हो?" यीशु बिलकुल निर्भय थे और उन्होंने अपने को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया। उन्होंने पहले से ही अपने पिता का पालन करने का निर्णय किया था, और पिता ने यही घटनाए ठहराई थी। जब वे वापस होश में आए, तो उन्होंने कहा: "'यीशु नासरी।"
प्रभु ने कहा: " मैंने तुम्हे बोला था कि मै ही वो हूँ। अगर तुम मुझे ही ढून्ढ रहे हो, तो दूसरों को जाने दो।" यीशु अपने शिष्यों के बारे में बात कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से खुद की पहचान करी और अपने आदमियों की रक्षा के लिए आगे कदम रखा। बस एक रात पहले ही, उसने कहा था कि वो परमेश्वर के दिए शिष्यों में से एक को भी नहीं खोएगा।बारह में से केवल एक को उन्होंने खो दिया था, लेकिन उसके कार्यों से यह पता चला कि वो मसीह का कभी था ही नहीं।
जैसे जैसे यहूदा ने यहूदियों के साथ योजना बनाई और साजिश रची, उसने उन्हें उस बगीचे के बारे में बताया जहाँ यीशु सोने के लिए हर रात अपने चेलों के साथ जाते थे। यह उसे गिरफ्तार करने के लिए सबसे सही जगह होगी। भीड़, जो उसके प्रति वफादार थी बहुत दूर, गहरी नींद में सोए रहे होंगे। वे उसकी रक्षा करने में सक्षम नहीं होंगे। वे लोगों के सामने उनके असंभव सवालों के बिना, यीशु को गिरफ्तार कर सकते थे।
लेकिन एक समस्या थी। रात के अंधेरे में, यह पता लगाना मुश्किल था कि वास्तव में बगीचे में पुरुषों में से कौन यीशु है। केवल यहूदा यीशु और उसके चेलों के तरीके को अच्छी तरह से जानता था, जिसके कारणवश वो तुरंत प्रभु की पहचान कर सकता था। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई। जब वे बगीचे में पहुंचेंगे, यहूदा को यीशु के पास जाना था और गाल पर उन्हें चुंबन करना था। यह सैनिकों के लिए एक चिन्ह था कि वो ही यीशु था।
यहूदा प्रभु के पास गया और कहा, "'नमस्ते गुरु!'" और यीशु को गाल पर चूमा।"'यहूदा'" प्रभु ने कहा "'क्या तुम एक चुंबन के साथ मनुष्य के पुत्र को धोखा दे रहे हो?'" तब उन्होंने कहा, "'मेरे दोस्त, जिसके लिए तुम आए हो उसे करो।'" वो अपने विश्वासघाती के साथ कितनी नम्रता से पेश आए।
यह सभी बातों कुछ ही क्षणों में हो गई। कल्पना कीजिये सैनिकों की अराजकता और खलल को जो दुःख, मदहोश नींद से उठकर आए थे। अचानक, रोमी सैनिकों और उनके जहरीला यहूदी नेताओं के चेहरे लालटेन की रोशनी में वहां खड़े दिख रहे थे। और यहूदा वहाँ था। क्या हो रहा था? क्या यही अंत था?
भय और तनाव और दहशत की लहर दौड़ पड़ी। यीशु के प्रति वफादार खड़े रहने का उनका उग्र निश्चय उनके दिल में उठा। "'हे प्रभु, क्या हम तलवार से वार करे?'"उन्होंने कहा। निश्चित रूप से यह किसी भी अन्य परिस्थिति में एक निराशाजनक लड़ाई होती, लेकिन वे मसीहा के पक्ष में थे! वे सचमुच यीशु के लिए जान भी दे सकते थे।
जवाब के लिए इंतजार करने से पहले, शमौन पतरस ने अपनी तलवार खींच कर यीशु को जब्त करने वाले पुरुषों के खिलाफ वार किया। इसकी धार माल्कुस नामक महायाजक के एक दास के सिर पर लगी। पतरस के वार से उसका दाहिने कान कट गया। माल्कुस के पीड़ादायी चीख की कल्पना कीजिये। उस हत्याकांड की कल्पना कीजिये अगर सैनिक यहूदी नेताओं के बचाव में अपनी तलवार उठाते।
पर यीशु ने कहा: "बंद करो! इस से अधिक नहीं! '" सब लोग दंग रह गए। यीशु ने अपना हाथ बड़ा कर माल्कुस को चंगा किया, और पतरस से अपनी तलवार रखने को कहा। "'जो कोई तलवार हाथ में ले लेंगे, वे सब तलवार से नष्ट हो जाएंगे," उन्होंने कहा। "'या फिर तुमको लगता है कि मै अपने पिता को विनती नहीं कर सकता हूँ, और वह एक ही बार में मेरे पास स्वर्गदूतों की बारह से अधिक फ़ौज नहीं डाल देंगे? कैसे फिर इंजील पूरी की जाएगी? यह इसी तरह से होना है। जो प्याला मेरे पिता ने मुझे दिया है, क्या मुझे उसे पीना नहीं चाहिए?"
वाह। पतरस को यह समझ में नहीं आया। यीशु उसे गिरफ्तार करने आए हुए पुरुषों की दया पर नहीं थे। उसके पिता ने उस रात की घटनाए ठहराई थी। धार्मिक नेता भी यह नहीं समझ पाए। उनको लगा कि वे एक विद्रोही, जवान उपदेशक को नष्ट करने के लिए आ रहे थे।
लेकिन यीशु जानते थे कि वह कौन था। वह स्वर्ग में अपने अधिकार को समझते थे।वह जानते थे कि उनके आदेश का पालन करने के लिए हजारों की तादाद में शानदार, शक्तिशाली स्वर्गदूतों तैयार खड़े है। उनके दिव्य योद्धा, एक आँख की झपकी में उस बगीचे में आए हर आदमी को नष्ट कर सकते थे। वे एक पल में यरूशलेम के पूरे शहर को नाश कर सकते थे। वे प्रभु के यहूदी दुश्मन और पूरे रोमी साम्राज्य का सफाया एक दिन में करके, उसे राजा बना सकते थे।
लेकिन यह पिता की योजना नहीं थी।उनके मन में एक बहुत बड़ी और गहरा जीत थी। जब प्रभु दुनिया को जीतने आए थे, यह ठोस बल द्वारा नहीं था। ब्रह्मांड में सबसे बड़ी शक्ति हिंसा के रूप में नहीं आती है। यह सबसे उच्च परमेश्वर को समर्पण के रूप में आती है।
दुनिया शुरू होने से पहले, पिता और पुत्र ने इस उद्धार की योजना बनाई थी। उन्होंने इस्राएल के देश और उनके पवित्र वचन के माध्यम से दुनिया को इसके बारे में संकेत और छवियां दी थी। अब जब आखिरकार समय आ गया था कि परमेश्वर का पुत्र उद्धार लाए, अब कुछ भी उसे यह पूरा करने से नहीं रोकेगी। वो आखरी क्षण तक अपने पिता का पालन करेंगे।