कहानी १६२: गतसमनी का बगीचा-समर्पण की पीड़ा
जब यीशु और उसके चेले फसह मना रहे थे, उसने उन्हें परमेश्वर कि योजना के रहस्य को उनके आगे स्पष्ट रूप से दिखाया। अभी और भी प्रकाशन आने हैं। ऊपरी कमरे में मिले उपदेशों के बाद, यीशु ने पिता से अपने लिए, अपने चेलों के लिए और उन सभी के लिए जो उस पर विश्वास करेंगे। वे सब सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रेम और एकता में बंधे हुए थे। उस धन्य रात को यीशु ने जो कुछ अपने चेलों को सिखाया था उसे समझने के लिए उन्हें पूरा जीवन लग जाएगा। परन्तु अब समय था कि उस पर अमल करें। यीशु के आगे अभी एक अंतिम विजय थी और उसे पूरा करने के लिए उसने आगे कदम बढ़ा लिया था।
फसह के बाद उसके चेलों के साथ उसने एक अंतिम भजन गाया। फिर वे जैतून के पहाड़ पर चले गए। चेलों को नहीं पता था कि आगे क्या होने जा रहा है। जब वे जा रहे थे यीशु उन्हें सावधान कर रहा था। उसने जकर्याह नबी (१३:७) से कहा:
“'तलवार, गड़ेरिये पर चाट कर! मेरे मित्र को मार! गड़ेरिये पर प्रहार करो और भेड़ें भाग खड़ी होंगी और मैं उन छोटों को दण्ड दूँगा। पर फिर से जी उठने के बाद मैं तुमसे पहले ही गलील चला जाऊँगा।'”
आपने देखा कि यीशु को कितना आत्मविश्वास था? इसमें कोई संदेह नहीं था कि वह फिर से जी उठेगा, और वह चेलों को आने वाली बातों के लिए तैयार कर रहा था। परन्तु पतरस को केवल यही सुनाई दे रहा था कि यीशु अपने परमेश्वर को छोड़ देगा। उसने कहा,“चाहे सब तुझ में से विश्वास खो दें किन्तु मैं कभी नहीं खोऊँगा।” मत्ती २६:३३
पतरस को अपने आत्मविश्वास पर पूरा भरोसा था जब कि परमेश्वर के पुत्र ने उसे और कुछ बताया था! यीशु ने उससे कहा,“मैं तुझ में सत्य कहता हूँ आज इसी रात मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मुझे नकार चुकेगा।” यीशु समझ गया था कि इस मनुष्य के भीतर में क्या है। वह अपने चेले कि कमज़ोरी को समझ गया था। उसने अपने अनुग्रह के कारण उन्हें क्षमा कर दिया था। उसकी एक ही चिंता थी कि वह उन्हें चेतावनी दे। आने वाले दिन दहशत भरे थे, परन्तु इन सब के बीच, वे यह याद कर पाएंगे की यीशु यह सब बातें पहले से जानता था। यदि वे विश्वास को चुनते हैं, तो वे यह समझ पाएंगे कि सब कुछ परमेश्वर कि योजना के अनुसार हो रहा था।
तब पतरस ने उससे कहा,“यदि मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े तो भी तुझे मैं कभी नहीं नकारूँगा।” बाकी सब शिष्यों ने भी वही कहा।
फिर यीशु उनके साथ उस स्थान पर आया जो गतसमने कहलाता था। और उसने अपने शिष्यों से कहा,“जब तक मैं वहाँ जाऊँ और प्रार्थना करूँ, तुम यहीं बैठो।” फिर यीशु पतरस और जब्दी के दो बेटों को अपने साथ ले गया। फिर उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत दुःखी है, जैसे मेरे प्राण निकल जायेंगे। तुम मेरे साथ यहीं ठहरो और सावधान रहो।” परमेश्वर का पुत्र होने के नाते उसे अपने पिता कि योजना पर पूरा भरोसा था। परन्तु एक मनुष्य होते हुए उसे अपने दोस्तों कि आवश्यकता थी।
फिर थोड़ा आगे बढ़ने के बाद वह धरती पर झुक कर प्रार्थना करने लगा। उसने कहा,“हे मेरे परम पिता यदि हो सके तो यातना का यह प्याला मुझसे टल जाये। फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही कर।”
स्वर्ग से एक दूत आया और उसने यीशु को सामर्थ दी। यीशु ने, परमेश्वर का क्रोध जो इंसान के पापों के कारण था, अकेला ही सहा। हमारे पापों को क्रूस तक ले जाने के लिए, उसने परमेश्वर कि सामर्थ का सहारा नहीं लिया। उसने परमेश्वर पिता के आगे पूरी आज्ञता में उसे पूरा किया। यह वो आज्ञाकारिता थी जो कोई भी इंसान नहीं कर सकता था। वे अपने पापों के बोझ के नीचे दब जाते। वह जो योग्य था और पूर्ण रूप से पवित्र था, केवल वही पाप और मृत्यु पर जय पा सकता था। उसके महान प्रेम के कारण, वह ऐसा करने में सक्षम था।
यीशु इतना ज़यादा तनाव में था कि उसका शरीर भी उसे सहन नहीं कर पाया। जब वह उस पीड़ा में प्रार्थना कर रहा था, उसका पसीना लहू कि बूँदें बनकर बह रहा था। जब वह अपने पिता से प्रार्थना कर रहा था वे धरती पर गिर रहे थे।
फिर वह अपने शिष्यों के पास गया और उन्हें सोता पाया। वह पतरस से बोला,“सो तुम लोग मेरे साथ एक घड़ी भी नहीं जाग सके? जगते रहो और प्रार्थना करो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो। तुम्हारा मन तो वही करना चाहता है जो उचित है किन्तु, तुम्हारा शरीर दुर्बल है।”
अपने दुःख के बीच में, यीशु ने कितने विनम्रता और समझ के साथ अपने चेलों पर दया दिखाई। एक बार फिर उसने जाकर प्रार्थना की और कहा,“हे मेरे परम पिता, यदि यातना का यह प्याला मेरे पिये बिना टल नहीं सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।” परन्तु परमेश्वर के क्रोध के प्याले को केवल यीशु ही अपने बलिदान के द्वारा संतुष्ट कर सकता था। तब वह आया और उन्हें फिर सोते पाया। वे अपनी आँखें खोले नहीं रख सके। वे नहीं जानते थे कि वे यीशु को अपनी दूसरी असफलता के लिए क्या बोलें।
सो वह उन्हें छोड़कर फिर गया और तीसरी बार भी पहले की तरह उन ही शब्दों में प्रार्थना की। परन्तु और कोई रास्ता नहीं था। इस श्राप कि समस्या का समाधान केवल उसका प्राण था। यदि वह अपने जीवन को बलिदान नहीं करता, तो और कोई भी नहीं कर पाता। सब कुछ नाश हो जाता। केवल वही सबको बंधन से छुड़ा सकता था। और इसलिए उसने अपने पिता कि इच्छा को स्वीकार किया।
हमारे लिए यह समझ बहुत कठिन है कि यीशु ने "हाँ" किसके लिए बोला होगा। उसका शरीर ऐसी कष्टदायी पीड़ा से गुज़रेगा जो कभी किसी मनुष्य ने ना सहा होगा। वह पाप और म्रत्यु के बोझ को उठाएगा क्यूंकि उसने परमेश्वर के क्रोध को अपने ऊपर ले लिया था। उस कष्टदायी पीड़ा को यीशु क्रूस पर तब चढ़ाए रखेगा जब तक वह उसकी पूरी कीमत नहीं। जो हमारे ऊपर अनतकाल तक के लिए आता यीशु ने एक ही दिन में समाप्त कर दिया। हम युगानुयुग तक उसकी उपासना करते रहेंगे उस कीमत के लिए जो उसने हमारे लिए चुकाई है।