कहनी ११३: समर्पण का पर्व : जन्म से अँधा आदमी फरीसियों के साथ 

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फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे, उसे देख कर हैरान हुए। वह उस व्यक्ति के समान दिखता था जिसे वे हर रोज़ देखते थे लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था? उन्होंने एक दूसरे से पुछा,“क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

कुछ ने यकीन किया। दूसरों को लगा कि वह नहीं हो सकता।

कुछ ने कहा,“यह वही है,” दूसरों ने कहा,“नहीं, यह वह नहीं है, उसका जैसा दिखाई देता है।”

इस पर अंधा कहने लगा,“मैं वही हूँ।”

इस पर लोगों ने उससे पूछा,“तुझे आँखों की ज्योति कैसे मिली?”

उसने जवाब दिया,“यीशु नाम के एक व्यक्ति ने मिट्टी सान कर मेरी आँखों पर मली और मुझसे कहा, जा और शीलोह में धो आ और मैं जाकर धो आया। बस मुझे आँखों की ज्योति मिल गयी।”

फिर लोगों ने उससे पूछा कि वह कहाँ है। उस व्यक्ति को जो पहले अंधा था, वे लोग फरीसियों के पास ले गये। यीशु ने जिस दिन मिट्टी सानकर उस अंधे को आँखें दी थीं वह सब्त का दिन था। एक बार फिर धार्मिक अगुवे इतने निरोधक थे कि वे परमेश्वर के पुत्र को भी उसकी इच्छा को उस दिन भी करने दे रहे थे। परन्तु परमेश्वर उन्हें ऐसे ही उसकी व्यव्यस्था के साथ नहीं कुछ करने दे सकता था। उसने फिर भी उस व्यक्ति को चंगाई दी।

जब फरीसियों को पता चला तो वे सोचने लगे कि यीशु को कैसे पकड़ा जाये। वे उसे इस बात के लिए पकड़ सकते थे! सो उन लोगों ने उस व्यक्ति से पूछा कि वो कैसे देख पा रहा था। उसने बताया कि यीशु ने मिटटी उसकी आँखों में लगाई थी।

फिर उस व्यक्ति ने जो अँधा था बताया कि यीशु ने उसे जाकर धोने को कहा और फिर वह देखने लगा।

सो अब यीशु दूसरे लोगों को भी सबत के दिन काम करने को कह रहा था।

जब फरीसियों ने यह सुना, वे आपस में बहस करने लगे। कुछ फ़रीसी कहने लगे कि यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं है क्योंकि वह सब्त का पालन नहीं करता। दूसरे कहने लगे कि यदि यीशु एक पापी होता, तो वह ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे कर सकता था। उनके लिए कोई भी  था क्यूंकि वे सच्चाई को नहीं अपनाना चाहते थे। सो उन्होंने उस अंधे व्यक्ति से पुछा कि वह क्या सोचता है कि यीशु कौन हो सकता है। उसने कहा कि वह नबी है।

अब यहूदी यह नहीं मन्ना चाहते थे कि वास्तव में इस तरह का कोई शानदार चमत्कार हुआ है। यदि यीशु एक नबी था, तो वे परमेश्वर के चुने दूत के खिलाफ लड़ने के दोषी ठहरेंगे! वे कहानी में बुरे लोग थे! वे पुराने नियम की कहानियों में नफ़रत करने वाले दुष्ट लोगों के समान थे। यह असंभव था! इसलिए वे साबित कि वह आदमी झूठ बोल रहा था। वह वास्तव में अँधा नहीं रहा होगा! सवाल करने के लिए वे उसके माता पिता को ले आये।

उन्होंने पुछा,“क्या यही तुम्हारा पुत्र है जिसके बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा था। फिर यह कैसे हो सकता है कि वह अब देख सकता है?”

माता-पिता डर गए। ये फरीसी शक्तिशाली आदमी थे। उन्होंने पहले से ही यह घोषित कर दिया था कि जो कोई यह कहेगा कि यीशु मसीह है उसे आराधनालय से बाहर निकाल दिया जाएगा। यदि उस अन्धे के माता पिता यीशु के विषय में कुछ अच्छा कहते हैं तो उन्हें बहिष्कृत घोषित कर दिया जाएगा।धार्मिक नेतृत्व यह मांग करे तो बाकि के यहूदी समुदाय को उन्हें अस्वीकार करना होगा। यह सबके लिए एक धार्मिक फ़र्ज़ बन जाएगा कि वे उस परिवार के साथ ना कोई व्यापार करें और ना ही उनके बच्चों के साथ विवाह की व्यवस्था करें। जब फरीसी किसी एक व्यक्ति या एक परिवार की निंदा करते हैं, तो उन लोगों के साथ खाना खाना भी एक शर्मनाक बात बन जाती है! आप समझ सकते हैं कि क्यूँ उस अंधे आदमी के माता पिता घबरा गए होंगे? इन नेताओं के बुरे पक्ष कि तरफ होना दुनिया की आँखों में एक विनाशकारी बात थी!

इस पर उसके माता पिता ने उत्तर देते हुए कहा,“हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है और यह अंधा जन्मा था। पर हम यह नहीं जानते कि यह अब देख कैसे सकता है? और न ही हम यह जानते हैं कि इसे आँखों की ज्योति किसने दी है। इसी से पूछो, यह काफ़ी बड़ा हो चुका है। अपने बारे में यह खुद बता सकता है।” 

यीशु ने उनके बेटे को दृष्टि दी थी, लेकिन सामाजिक दबाव की शक्ति बहुत ज़यादा थी। परमेश्वर पर भरोसा करने से अच्छा है कि वे अपने आप को बचाएँ।

यहूदी नेताओं ने उस व्यक्ति को दूसरी बार फिर बुलाया जो अंधा था, और कहा,“सच कहो, और जो तू ठीक हुआ है उसका सिला परमेश्वर को दे। हमें मालूम है कि यह व्यक्ति पापी है।” इसके पहले कि वे केवल यह पूछते कि यीशु कौन है। और अब वे यह घोषित कर रहे थे कि वह एक दुष्ट आदमी है। क्या आप देख सकता हैं कि उनके ह्रदय कितने कठोर होते जा रहे हैं?

इस पर उसने जवाब दिया,“मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं, मैं तो बस यह जानता हूँ कि मैं अंधा था, और अब देख सकता हूँ।” उस अंधे व्यक्ति ने यह जान लिया था कि यह फरीसी कितने हास्यास्पद बन चुके थे। यहाँ एक अद्भुद चमत्कार हुआ था और वे केवल बड़बड़ाने में ही लगे हुए थे।

फरीसियों ने उससे फिर से पुछा कि यीशु ने उसे चंगा कैसे किया, और उसने कहा,“मैं तुम्हें बता तो चुका हूँ, पर तुम मेरी बात सुनते ही नहीं। तुम वह सब कुछ दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके अनुयायी बनना चाहते हो?”

इससे फरीसी बहुत क्रोधित हुए। इस पर उन्होंने उसका अपमान किया और कहा,“तू उसका अनुयायी है पर हम मूसा के अनुयायी हैं। हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की थी पर हम नहीं जानते कि यह आदमी कहाँ से आया है?”

आप सोच सकते हैं कि यदि इन लोगों को पता चलता कि मूसा स्वयं परिवर्तन के पहाड़ पर यीशु के साथ मिलने के लिए आया था? और एलिय्याह भी उसके साथ था!

चर्चा और अधिक से अधिक तीव्र होती जा रही थी। जो अंधा पैदा हुआ था वापस जवाब देने लगा था। यह बहुत ही  उल्लेखनीय है! “आश्चर्य है तुम नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है? पर मुझे उसने आँखों की ज्योति दी है। हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता बल्कि वह तो उनकी सुनता है जो समर्पित हैं और वही करते हैं जो परमेश्वर की इच्छा है। कभी सुना नहीं गया कि किसी ने किसी जन्म से अंधे व्यक्ति को आँखों की ज्योति दी हो।यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से नहीं होता तो यह कुछ नहीं कर सकता था।”

यह बहुत ही साहसी था! इस मनुष्य में वो सब करने का साहस था जो औरों में नहीं था। उसने बिना किसी अफ़सोस किये उन यहूदी अगुवों के मूह पर यीशु कि सच्चाई को घोषित कर दिया! उत्तर में उन्होंने कहा,“तू सदा से पापी रहा है। ठीक तब से जब से तू पैदा हुआ। और अब तू हमें पढ़ाने चला है?” वे कितने गलत थे। यह व्यक्ति परमेश्वर को महिमा देने के लिए ही पैदा हुआ था और वह कितना प्रजवलित हो रहा था! अगले हज़ारों सालों से यीशु के प्रति वफादारी के साहस कि इस कहानी को कितनी बार दोहराया गया है और अभी भी दोहराया जा रहा है, जो लोगों को विश्वास कि परीक्षा के लिए सामर्थ देता है। वह यीशु के साथ वफादार रहा और यीशु उसके साथ वफादार रहा।

परन्तु उस समय के लिए, उसे यीशु पर विश्वास करने के लिए। फरीसियों ने उसे आराधनालय से बाहर निकाल दिया था। अपने लिए जब वह नय जीवन को बना रहा था, वह बिना धार्मिक समूह के पूर्ण था, और इस्राएल में जहां सब कुछ शामिल था। वह बहुत कमजोर महसूस करता होगा। यीशु ने सुना कि यहूदी नेताओं ने उसे धकेल कर बाहर निकाल दिया है तो उससे मिलकर उसने कहा,

“'क्या तू मनुष्य के पुत्र में विश्वास करता है?'”

उत्तर में वह व्यक्ति बोला,“हे प्रभु, बताइये वह कौन है? ताकि मैं उसमें विश्वास करूँ।”

यीशु ने उससे कहा,“तू उसे देख चुका है और वह वही है जिससे तू इस समय बात कर रहा है।”

फिर वह बोला,“प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ।” और वह नतमस्तक हो गया।

यीशु ने कहा,“मैं इस जगत में न्याय करने आया हूँ, ताकि वे जो नहीं देखते वे देखने लगें और वे जो देख रहे हैं, नेत्रहीन हो जायें।”

वहाँ कुछ फरीसी खड़े वो सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने यीशु को ऐसा कहते सुना। वे अपने घुटनों पर नहीं गिरे। उन्होंने उससे पुछा,“निश्चय ही हम अंधे नहीं हैं। क्या हम अंधे हैं?”

यीशु ने उनसे कहा,“यदि तुम अंधे होते तो तुम पापी नहीं होते पर जैसा कि तुम कहते हो कि तुम देख सकते हो तो वास्तव में तुम पाप-युक्त हो।”

आप को समझ में आया? यीशु स्वर्ग कि सच्चाई कि यशस्वी ज्योति से उनके भयंकर झूठ को बदल रहा था। उसने कहा कि यदि फरीसियों कि समस्या उनके आँखों के अंधेपन के कारण है, तो वे पाप के लिए दोषी नहीं ठहरेंगे। श्राप के कारण जो पीड़ा है वे उससे पूर्ण रूप से निर्दोष ठहरेंगे। जो वे लोगों को सिखा रहे थे यह उसके बिलकुल विपरीत था। वे लोगों को यह सिखा रहे थे कि उनके और उनके परिवार के पाप के कारण वे अंधे थे। अपने विचारहीन और गर्व के कारण वे उन लोगों पर झूठे इल्ज़ाम लगा कर उनकी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे जो पहले से ही पीड़ित थे। यह शैतान का काम था।

यीशु अपने साफ़ ज्योति को लाया था। जो शारीरिक रूप से अंधे थे वे उस मृत्युदंड से आज़ाद थे। जो वास्तव में दोषी थे वे केवल फरीसी थे। वे सच्च और परमेश्वर के विषय में सशक्त अधिकार को बताने कि घोषणा करते थे। फिर भी उनकी यह शिक्षा किसी भी नम्रता के साथ बह कर नहीं निकलती थी। वे परमेश्वर के लोगों को शर्मनाक झूठ में फसा कर रखते थे, और परमेश्वर का पुत्र बहुत क्रोधित हुआ। क्या आप इस बात से खुश नहीं हैं कि जिस परमेश्वर ने सब सृजा वह एक न्याय और अनुग्रह का परमेश्वर है? वह रक्षा करता है, फटकारता है और बचाता भी है। उसका मार्ग सबसे उत्तम है।