कहानी १०५: शास्त्रियों और फरीसियों का वही रवैया 

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यीशु परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को सुनाने के लिए यहूदिया के क्षेत्र में जाते रहे। शास्त्री और फरीसी यीशु पर आरोप लगाते रहे कि वह शैतान कि ओर से आया है। उसके दुष्ट आत्माओं को निकालने और स्पष्ट रूप से संदेश को सीखाने के बावजूद उन लोगों ने पश्चाताप करने से इंकार कर दिया। फिर वह इसी आशा को लेकर कि एक दिन वे पश्चाताप करेंगे और उनमें से कुछ तो बच जाएंगे, उनके पीछे लगा रहा।

यीशु का धार्मिक नेताओं के साथ आमना सामना करने के बाद, एक फरीसी ने यीशु को अपने घर भोजन के लिए बुलाया। यीशु उसके साथ भोजन करने के लिए बैठ गया। उन दिनों में, मेज़ बहुत नीचे हुआ करती थीं, इसलिए भोजन करने वाले तकिया लगा कर फर्श पर बैठ सकते थे। वे तकियों पर आधे बैठे हुए और आधे लेटे हुए आपस में बात चीत कर सकते थे।

जब फरीसी ने यीशु को मेज़ पर झुके देखा तो वह चकित हो गया। फरीसी भोजन करने से पहले पूरे धार्मिक क्रिया को करते थे। यीशु ने इसे पूरी तरह से छोड़ दिया था। फरीसियों ने इन धार्मिक क्रियाओं को और जोड़ कर नए नियम बना दिए थे। परमेश्वर के वास्तविक व्यवस्था में इनकी ज़रुरत नहीं थी, लेकिन धार्मिक अगुवों का दबाव बहुत शक्तिशाली था। जो कोई भी इन्हें नहीं मानता था, तो दुसरे उसका न्याय करके अपने आप को ऊंच समझ कर प्रसन्न होते थे। एक समूह होते हुए, फरीसी लोग आम लोगों को नीचा देखते थे जो उन नियमों को उनकी तरह प्रवीणता से नहीं मान पाते थे। जो उनके नियमों का पालन नहीं करते थे उनसे प्रेम करने के बजाय फरीसी लोग उनका तिरस्कार करते थे और वे इसे सही मानते थे।

यीशु इन धार्मिक तीव्रता में अपने आप को झूठे प्रदर्शनों में खींचने वाला नहीं था। उसकी वफादारी केवल परमेश्वर पिता और उसके वचन कि ओर थी। इस पर प्रभु ने उनसे कहा,
“'अब देखो तुम फ़रीसी थाली और कटोरी को बस बाहर से तो माँजते हो पर भीतर से तुम लोग लालच और दुष्टता से भरे हो। अरे मूर्ख लोगों! क्या जिसने बाहरी भाग को बनाया, वही भीतरी भाग को भी नहीं बनाता? इसलिए जो कुछ भीतर है, उसे दीनों को दे दे। फिर तेरे लिए सब कुछ पवित्र हो जायेगा।'" क्या आपने इसे समझा?

परन्तु यीशु ने अभी समाप्त नहीं किया था।  उसे फरीसियों और कुछ भी कहना था। उसने उन्हें छे चेतावनियां दीं। जब आप इसे पढ़ते हैं तो इन्हें गिनिएगा। फिर देखिये कि आप इन्हें समझ पाते हैं:

“'ओ फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है क्योंकि तुम अपने पुदीने और सुदाब बूटी और हर किसी जड़ी बूटी का दसवाँ हिस्सा तो अर्पित करते हो किन्तु परमेश्वर के लिये प्रेम और न्याय की उपेक्षा करते हो। किन्तु इन बातों को तुम्हें उन बातों की उपेक्षा किये बिना करना चाहिये था।

“ओ फरीसियों, तुम्हें धिक्कार है! क्योंकि तुम यहूदी आराधनालयों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आसन चाहते हो और बाज़ारों में सम्मानपूर्ण नमस्कार लेना तुम्हें भाता है।तुम्हें धिक्कार है क्योंकि तुम बिना किसी पहचान की उन कब्रों के समान हो जिन पर लोग अनजाने ही चलते हैं।'"

यीशु जब फरीसि के घर में इन बातों को कह रहा था, धार्मिक नेता अधिक से अधिक असहज हो रहे थे। यह सीधे उनके जीवन के लिए चुनौती था। यदि वे यीशु को परमेश्वर का पुत्र मान लेते, तो वे इन वचनों के द्वारा नम्र हो जाते। परमेश्वर कि ओर उनके ह्रदय में गहराई से कार्य होता। वह उन्हें विनम बनाता और और अपने रास्तों सिद्ध कर लेते। लेकिन उनकी प्राथमिक भक्ति यीशु या बाइबिल के परमेश्वर के प्रति नहीं थी। उनका पहला प्रेम उनके पद कि शक्ति और उनके स्वयं कि शान। यीशु के प्रति आज्ञाकारी होने का मतलब था अपने उन सब चीज़ों से हाथ धो बैठना जो उनके लिए बहुमूल्य थीं। उन्हें इसके साथ संघर्ष करना था।

तब एक न्यायशास्त्री ने यीशु से कहा,“गुरु, जब तू ऐसी बातें कहता है तो हमारा भी अपमान करता है।”

यह कितना दिलचस्प था कि ये लोग यीशु के ईमानदार शब्दों द्वारा अपमानित हुए। ये लोग जो यहूदी राष्ट्र को दमनकारी कानूनों के साथ चला रहे थे, वे चाहते थे कि सब उनके बनाय हुए नियमों का पालन करें। उनकी हेकड़ी और प्रकल्पना इतनी बढ़ गयी थी, कि जब स्वयं परमेश्वर ने उन्हें बताया कि वे गलत हैं, उसे धार्मिक अनुशासन समझने के बजाय अपमानित मान रहे थे।

यीशु ऐसे छोड़ने वाला नहीं था। उसने आगे कहा:

इस पर यीशु ने कहा,
“'ओ न्यायशास्त्रियों! तुम्हें धिक्कार है। क्योंकि तुम लोगों पर ऐसे बोझ लादते हो जिन्हें उठाना कठिन है। और तुम स्वयं उन बोझों को एक उँगली तक से छूना भर नहीं चाहते। तुम्हें धिक्कार है क्योंकि तुम नबियों के लिये कब्रें बनाते हो जबकि वे तुम्हारे पूर्वज ही थे जिन्होंने उनकी हत्या की। इससे तुम यह दिखाते हो कि तुम अपने पूर्वजों के उन कामों का समर्थन करते हो। क्योंकि उन्होंने तो उन्हें मारा और तुमने उनकी कब्रें बनाईं। इसलिए परमेश्वर के ज्ञान ने भी कहा,‘मैं नबियों और प्रेरितों को भी उनके पास भेजूँगा। फिर कुछ को तो वे मार डालेंगे और कुछ को यातनाएँ देंगे।’

“इसलिए संसार के प्रारम्भ से जितने भी नबियों का खून बहाया गया है, उसका हिसाब इस पीढ़ी के लोगों से चुकता किया जायेगा। यानी हाबिल की हत्या से लेकर जकरयाह की हत्या तक का हिसाब, जो परमेश्वर के मन्दिर और वेदी के बीच की गयी थीं। हाँ, मैं तुमसे कहता हूँ इस पीढ़ी के लोगों को इसके लिए लेखा जोखा देना ही होगा।

“हे न्यायशास्त्रियों, तुम्हें धिक्कार है, क्योंकि तुमने ज्ञान की कुंजी ले तो ली है। पर उसमें न तो तुमने खुद प्रवेश किया और जो प्रवेश करने का जतन कर रहे थे उनको भी तुमने बाधा पहुँचाई।”

और फिर जब यीशु वहाँ से चला गया तो वे धर्मशास्त्री और फ़रीसी उससे घोर शत्रुता रखने लगे। बहुत सी बातों के बारे में वे उससे तीखे प्रश्न पूछने लगे।'"                                                                             --लूका ११:४६-५३

क्या आपने इसे समझा? फरीसी और शास्त्रियों ने सारी ज़िन्दगी परमेश्वर की व्यवस्था को पढ़ा है। वे इस बात से निश्चिन्त थे कि वे भी उन सभी अच्छे लोगों कि तरह हैं जिनका बाइबिल में वर्णन है जैसे कि मूसा जिसने कि इस्राएली लोगों को व्यवस्था दी। परन्तु यीशु ने कहा कि ये अगुवे गलत थे। परमेश्वर कि कहानी में, वे लोग धार्मिक सेवकों कि तरफ थे जिन्होंने उसके पवित्र राष्ट्र को परमेश्वर के वचन दिया। वे उनकी तरफ थे जिन्होंने उनको सताया था! वे उन लोगों कि तरह थे जिन्होंने मूसा के जीवन को जंगल में कठिन बना दिया था। वे उन दुष्ट राजाओं के समान थे जिन्होंने नबियों को मरवा दिया था! वे उन नबियों के सम्मान को अपने लिए चाहते थे जो परमेश्वर ने नबियों के लिए ठहराया था, और उनकी कब्रें बनवा कर राष्ट्र के साधारण लोगों से अपनी महिमा और सम्मान लिया। उन्होंने लोगों को परमेश्वर कि ओर नहीं खींचा बल्कि उनका रास्ता बंद कर दिया। और अब, जब जीवित परमेश्वर का बेटा उनके राष्ट्र में आया, उन्होंने भ्रम और शक पैदा कर दिया। मसीहा आ गया था, और उसके सबसे बड़े विरोधी ये ही लोग थे जिनको उसका आदर सत्कार करना था और परमेश्वर के लोगों को सुसमाचार बताना था!

सो यीशु ने एक अंतिम चेतावनी दी:

“'हे न्यायशास्त्रियों, तुम्हें धिक्कार है, क्योंकि तुमने ज्ञान की कुंजी ले तो ली है। पर उसमें न तो तुमने खुद प्रवेश किया और जो प्रवेश करने का जतन कर रहे थे उनको भी तुमने बाधा पहुँचाई।'”

यीशु ने जब परमेश्वर के राज्य का प्रचार किया, तो उसका प्रभाव धार्मिक नेताओं पर नहीं पड़ा। यदि उनके ह्रदय परमेश्वर कि आत्मा को किसी भी रीति से सुनते होते तो वे इससे बहतर जान पाते। वे परमेश्वर कि महिमा नहीं करना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों के रास्ता में बाधा बन रहे थे जो परमेश्वर कि अच्छाई और सुंदरता को समझ रहे थे। वे अपनी अधार्मिकता से परमेश्वर के लोगों में ज़हर घोल रहे थे, और यीशु उनके राह में सच्चाई कि शक्ति को लेकर खड़ा था। क्या वो परमेश्वर के वचन से उनके ह्रदयों को नम्र बनाने देगा? क्या वे इन चुनौतियों को सुनेंगे और अपने पापों का दुःख मनायेंगे?

बाइबिल कहती है कि वे ऐसा नहीं करेंगे। यीशु कि डाट ने उन्हें उसे लोगों के सामने और अधिक तिरस्कार करने को मजबूर कर दिया। गुप्त स्थानों में, उसके खिलाफ वे यह साजिश करने लगे कि कैसे उसे उसकी कही हुई बातों के लिए जो उसने उनके विरुद्ध में बोलीं, उसे मरवा दिया जाए। अपने पद कि शक्ति को बचने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे। सो उन्होंने उसे फ़साने के लिए ऐसे सवाल तैयार किये जिससे कि वे उसे झूठा बना सकें। फिर वे उसे पूरे राष्ट्र के सामने बदनाम कर उसकी सेवकाई को नष्ट कर देंगे।

अद्भुद बात यह है कि वे ऐसा कुछ भी नहीं कर सके! उन घंटों कि कल्पना कीजिये जो यीशु ने लोगों के साथ बीताय। कितना कुछ उसने उन्हें सिखाया था। जो भी वचन यीशु कहता था वे परमेश्वर कि ओर से होता था, और जो कुछ भी वह करता था वो पवित्र आत्मा कि सामर्थ के द्वारा होता था। जो कुछ भी उसने किया वह परमेश्वर कि धार्मिकता को  आदर देता था, और इसलिए बाइबिल को भी पूर्णरूप से आदर मिला!