कहानी ८६: ५००० पुरुषों को खिलाना 

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यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले कि मृत्यु के बाद चेले यीशु के पास वापस आ गए। वे सुसमाचार सुनाते हुए, दो दो कर के गलील के क्षेत्र में यात्रा करने लगे। इन्होने अपने सेवकाई के दौरान जो कुछ बीता उसे आकर यीशु को सुनाया। यीशु इन को परमेश्वर कि सामर्थ और अधिकार में प्रक्षिशण दे रहे थे। गलील में जाकर सुसमाचार सुनाने से यीशु कि सेवकाई को और प्रकाशन मिला। यहूदी समाज को यह दिखाया गया कि सन्देश चेलों को सौंपा जा रहा था। ना केवल धार्मिक  अगुवे अपने लिए धमकी महसूस कर रहे थे। हेरोदेस राजा भी यीशु के विषय में। क्या वह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला था, जो वापस जीवित् होकर उसे डरा रहा है क्यूंकि उसने उसे मरवाया था? जो लोग अधिकार में थे, वे भी परेशान थे। क्या वह एक विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए जा रहा था? वह उन सब प्रभाव के साथ अब क्या करेगा ?

यीशु के अगले कदम की भविष्यवाणी वे नहीं कर सकते थे क्यूंकि उसकी योजनाएं बिलकुल भिन्न होती थी। वह इस दुनिया के तरीके के अनुसार, यानि पदों कि या प्रसिद्धि की मांग कर के नहीं जीता था। आगे कि कहानियों में हम पढेंगे कि यीशु भीड़ से अपने आप को दूर करता जा रहा था। वह अपने ध्यान इन समर्पित चेलों पर रखेगा। वह उन्हें राज्य के विषय में सिखाएगा, और उसके मृत्यु और जी उठने के पश्चात् सुसमाचार फ़ैलाने के लिए तैयार करेगा।

जब चेले सेवकाई कर के व्यस्त दिन से लौट आए, वे थके हुए थे। फिर भी भीड़ उन्हें घेरी हुई थी, जहां कहीं भी यीशु जाता था उसके पीछे वे जाते थे। अक्सर यीशु अपने स्वर्गीय पिता के साथ एकांत में समय बिताने के लिए एक शांत स्थान में अलग चला जाता था, और अपने चेलों को भी सिखाया कि उन्हें भी एकांत में समय बिताना चाहिए। “तुम लोग मेरे साथ किसी एकांत स्थान पर चलो और थोड़ा आराम करो।”

इसलिये वे अकेले ही एक नाव में बैठ कर बैतसैदा के शहर के पास किसी एकांत स्थान को चले गये।जब भीड़ ने यीशु और चेलों कि नाव को उस दिशा में जाते देखा तो वे समझ गए कि वे कहाँ जा रहे हैं। वे शहर के कोने कोने से निकल कर बैतसैदा को निकल पड़े। जब तक कि उनकी कश्ती पहुँचती, भीड़ वहाँ पहले पहुँच गयी। वे उन शानदार चिन्हों को देखना चाहते थे जो यीशु किसी बीमार को चंगा कर के दिखाता था।

यीशु जो आराम चाहते थे वह उन्हें उस दिन नहीं मिलने वाला था। जब वह तट पर गए, उन्होंने बड़ी भीड़ देखी और उनके लिए बहुत दया आयी। वे बिना चरवाहे की भेड़ों जैसे थे।जिन धार्मिक अगुवों को उनकी अगुवाई करनी चाहिए थी, वे असफल रहे। यीशु ने उनका स्वागत किया और परमेश्वर के राज्य के विषय में उन्हें बताया। और जिन्हें उपचार की आवश्यकता थी, उन्हें चंगा किया।

शाम होने लगी थी, और यह फसह से पहले कि रात थी। यह मिस्र के फिरौन से हजारों साल पहले यहूदियों की मुक्ति होने में मनाया गया एक महान पर्व था। जब दिन ढलने लग रहा था तो वे बारहों उसके पास आये और बोले,“भीड़ को विदा कर ताकि वे आसपास के गाँवों और खेतों में जाकर आसरा और भोजन पा सकें क्योंकि हम यहाँ सुदूर निर्जन स्थान में हैं।”

यीशु ने फिलिप्पुस से कहा,“'इन सब लोगों को भोजन कराने के लिए रोटी कहाँ से खरीदी जा सकती है?'" यीशु ने यह बात उसकी परीक्षा लेने के लिए कही थी क्योंकि वह तो जानता ही था कि वह क्या करने जा रहा है।

फिलिप्पुस ने उत्तर दिया, “दो सौ चाँदी के सिक्कों से भी इतनी रोटियाँ नहीं ख़रीदी जा सकती हैं जिनमें से हर आदमी को एक निवाले से थोड़ा भी ज़्यादा मिल सके। वहाँ केवल पांच हज़ार से अधिक पुरुष ही थे, जिनमें स्त्रीयाँ और बच्चे नहीं गिने गए! उस दिन करीब पन्द्रह हज़ार लोग थे जो यीशु को सुनने के लिए आये थे।

यीशु के एक दूसरे शिष्य शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने कहा,“यहाँ एक छोटे लड़के के पास पाँच जौ की रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं पर इतने सारे लोगों में इतने से क्या होगा।”

यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि उन्हें पचास पचास के समूहों में बैठा दो। उस स्थान पर अच्छी खासी घास थी इसलिये लोग वहाँ बैठ गये। ये लोग लगभग पाँच हजार पुरुष थे। फिर यीशु ने रोटियाँ लीं और धन्यवाद देने के बाद जो वहाँ बैठे थे उनको परोस दीं। इसी तरह जितनी वे चाहते थे, उतनी मछलियाँ भी उन्हें दे दीं। वहाँ जितने भी मौजूद थे उन्होंने पेट भर खाया!

जब उन के पेट भर गये यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे जाकर बचे हुए टुकड़ों को इकटठा कर लें ताकि कुछ बेकार न जाये। फिर शिष्यों ने लोगों को परोसी गयी जौ की उन पाँच रोटियों के बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरीं।

जब लोगों को यह एहसास हुआ कि एक शानदार चमत्कार उनकी आँखों के सामने हुआ है, तो वे आपस में कहने लगे कि वास्तव में यीशु परमेश्वर की और से भेजा हुआ के नबी है। यीशु जानता था कि वे लोग उसको ज़बरदस्ती लेजा कर उसे राजा बना देंगे। इसलिए हेरोदेस राजा परेशान था, यदि गलील के चारों ओर ऐसी अफवाहें फ़ैल रही थीं। यीशु ने  को कश्ती में बैठकर समुन्द्र के पार भेज दिया और भीड़ को बर्खास्त कर दिया। फिर वह एक पहाड़ी पर जाकर प्रार्थना करने लगा। यह सच था कि यीशु एक राजा बन्ने के योग्य था, लेकिन उसकी प्रजा अभी भी तैयार नहीं थी। गलील में उन्होंने पश्चाताप नहीं किया था, और उनकी मंशा स्वार्थ से भरी थी।