कहनी १२८: दस कोढ़ी की चंगाई
यीशु ने यहूदिया और पेरी से होते हुए इस्राएल के पूर्ण देश कि यात्रा की। अब उसे येरूशलेम कि अंतिम यात्रा पर निकलना था। गलील और समरिया के रास्ते से होते हुए वह दक्षिण को फसह के पर्व को मनाने के लिए गया। बहुत से यहूदी भी इस पर्व को मनाने के लिए जा रहे थे। जब वे जा रहे थे, यीशु और उसके चेले भी उस राष्ट्रिय तीर्थयात्रा में जुड़ गए। लोग कैसे रुक कर के यीशु और उसके चेलों के झुण्ड को देखते होंगे। वे आपस में फुसफुसाकर बात करते होंगे। सब तरफ यह बात फ़ैल गयी थी कि यीशु भी उस फसह के पर्व को मनाने के लिए आ रहा था, और इसलिए लोगों में अपेक्षा बढ़ गयी थी। क्या होगा यदि यह महान चमत्कार करने वाला उन धार्मिक अगुवों के साथ भिड़ जाता है जो उसे मारना चाहते हैं? यह एक यादगार फसह का पर्व होगा।
जब वह एक गाँव में जा रहा था तभी उसे दस कोढ़ी मिले। वे कुछ दूरी पर खड़े थे। वे ऊँचे स्वर में पुकार कर बोले,“हे यीशु! हे स्वामी! हम पर दया कर!”
फिर जब उसने उन्हें देखा तो वह बोला,“'जाओ और अपने आप को याजकों को दिखाओ।'”
यीशु के पास ऐसा कहने को अच्छा कारण था। पुराने नियम में, परमेश्वर ने यह आज्ञा दी थी कि जिस किसी को भी चर्म रोग है वह समाज से दूर रहे ताकि यह बीमारी किसी दूसरे को ना लगे। यह एक अती गम्भीर और करुणामय आज्ञा थी।
यदि किसी भी समय यह रोग ठीक हो जाता है, वे जाकर अपने आप को याजक को दिखा सकते थे। यदि याजक उन्हें चंगा घोषित कर देता है, वे जाकर लोगों में फिर से मिल सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं।
सोचिये, यीशु कितना महान याजक था। एक बार वे चंगे हो गये वह उन्हें स्वच्छ घोषित कर सकता था। वह उन्हें उस समय भी चंगा कर सकता था जिस समय वे उस बीमारी से पीड़ित थे। श्राप के द्वारा लाये गए सब भयनक चीज़ों को वह शून्य कर सकता था! लेकिन इन लोगों को वापस अपने परिवार और समाज में जाने के लिए उन्हें आधिकारिक याजकों के पास जा कर अनुमति लेनी होगी। यीशु ना केवल उनकी बिमारियों को चंगा करने वाला था, वह उनके जीवन को भी चंगा करता।
जब यीशु ने उन्हें याजक के पास जाने को कहा, तो यह चंगाई अवश्य होनी थी। वे यीशु पर भरोसा कर सकते थे कि वह उनकी सुनेगा, जबकि वे उसे नहीं जानते थे। जब वे वहाँ पहुंचेंगे, याजक उन्हें शुद्ध घोषित कर देगा। वे अपने परिवारों में वापस जा पाएंगे! वे एक दूसरे को गले लगा सकेंगे! वे सामान्य काम कर पाएंगे! उनका अकेलापन अब समाप्त हो जाएगा!
उन्होंने आज्ञा मानी। यह एक विश्वास में किया गया कार्य था। यदि वे अभी भी पीड़ित थे तो जाने कि क्या आवश्यकता थी? पर जब वे याजक के पास जा रहे थे, कुछ अद्भुद होने लगा। उनका कोढ़ ठीक होने लगा! वे चलते जा रहे थे और ठीक होते जा रहे थे!
उनमें से एक ने देखा कि कुछ हो रहा है, वह आनंद से भर गया।वह वापस लौटा और ऊँचे स्वर में परमेश्वर की स्तुति करने लगा। वह यीशु को धन्यवाद देना चाहता था! यह उसके लिए अधिक महत्वपूर्ण था। क्या आप सोच सकते हैं कि उस व्यक्ति को सड़क पर इस तरह ख़ुशी मानते हुए देखना कितना अच्छा होगा?
वह मुँह के बल यीशु के चरणों में गिर पड़ा और उसका आभार व्यक्त किया। यह कितना अच्छा दृश्य रहा होगा देखने के लिए!
यीशु ने उसकी और देखा, जो एक सामरी था और उससे पूछा,“'क्या सभी दस के दस कोढ़ से मुक्त नहीं हो गये? फिर वे नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेसी को छोड़ कर उनमें से कोई भी परमेश्वर की स्तुति करने वापस नहीं लौटा।'”
सामरियों को यहूदी निर्वासित समझते थे। सामरी शहर से ना जाने के लिए, यहूदी मीलों दूर से जाया करते थे। वे सोचते थे कि उनके साथ भोजन करना भी शर्म कि बात है! फिर भी उन दस कोढ़ी में से वह सामरी ही था जो यीशु का आभारी था, और यीशु ने उसके इस मासूम प्रेम को देख कर आनंद किया और धन्यवाद दिया! फिर यीशु ने उससे कहा,“'खड़ा हो और चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा किया है।'”
अब इसका क्या अर्थ है? क्या पूरे दस कोढ़ी चंगा नहीं हुए थे? निश्चय ही। पूरे दस कोड़ी ठीक हुए थे। लेकिन इस सामरी ने यीशु पर जीवित विश्वास को प्रदर्शित किया, जो दूसरों ने नहीं किया, और उसने बाहरी बीमारी से बढ़ कर गहरी चंगाई को प्राप्त किया। उसके ह्रदय ने चंगाई पाई। वे परमेश्वर का हो गया था।