कहनी १२६: लाज़र की यात्रा

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यहूदी अगुवे यीशु को गिरफ्तार करने और उसे मार डालने के लिए तैयार थे। हालात हाथ से बाहर हो रहे थे। इस दुष्ट उपदेशक की लोकप्रियता खतरनाक होती जा रही थी। येरूशलेम के अगुवे अपने अधिकार और प्रभाव को जाते देख रहे थे जब सारी भीड़ यीशु की बातों पर पूरा ध्यान लगा रहे थे। उसे रोकने के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। येरूशलेम में तनाव इतना बढ़ गया था कि यीशु को वहाँ से जाना पड़ा। वह और उसके चेले यरदन कि घाटी को चले गए। यह वह स्थान था जहां यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने अपनी सेवकाई पहली बार शुरू की थी। जब लोग यीशु के पास आ रहे थे, वे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को स्मरण कर रहे थे। यूहन्ना के आने से उत्साह तो था लेकिन उसने यीशुकी तरह चमत्कार नहीं किये थे। लोग आपस में यह बात कर रहे थे कि कैसे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने यीशु के विषय में जो बातें उन्हें बताईं थीं वे सच थीं। बहुत से लोगों ने उस पर विश्वास किया। इससे येरूशलेम के अगुवे और भी अधिक क्रोधित हो गये।

बैतनिय्याह का लाज़र नाम का एक व्यक्ति बीमार था। यह वह नगर था जहाँ मरियम और उसकी बहन मारथा रहती थीं, और वे यीशु से बहुत प्यार करती थीं।

लाज़र और बीमार होता गया और फिर इन बहनों ने यीशु के पास समाचार भेजा,“हे प्रभु, जिसे तू प्यार करता है, वह बीमार है।” जब यीशु यह सुना, वह उनके भेजे हुए सन्देश से ज़यादा समझ गया था। वे स्त्रीयां और सन्देश लाने वाले केवल इसे इंसान की नज़र से ही देख सकते थे। यीशु ने आत्मा में होकर सुना, और परमेश्वर कि इच्छा को पूर्ण रूप से समझ लिया। यीशु ने जब यह सुना तो वह बोला,“'यह बीमारी जान लेवा नहीं है। बल्कि परमेश्वर की महिमा को प्रकट करने के लिये है। जिससे परमेश्वर के पुत्र को महिमा प्राप्त होगी।'”

बाइबिल बताती है कि यीशु, मारथा, उसकी बहन और लाज़र को प्यार करता था। इसलिए जब उसने सुना कि लाज़र बीमार हो गया है तो जहाँ वह ठहरा था, दो दिन और रुका। अपने बीमार मित्र के पास जाने बजाय वह यरदन नदी के निकट ही ठहर गया। यह कितना अनोखा लगता है। यदि वह उनसे इतना प्रेम करता था तो फिर वह उनके पास एक दम क्यूँ नहीं गया? उसने लाज़र को क्यूँ नहीं चंगा किया? वह दूर क्यूँ रुक गया?

दो दिन के पश्चात्, यीशु ने अपने चेलों को बताय कि वे यहूदिया को जाएंगे। वे अपने बीमार मित्र से मिलने के लिए जा रहे थे। केवल एक समस्या थी, वे वापस येरूशलेम को जा रहे थे। उसके सभी दुश्मन वहाँ थे जो उसे मार देना चाहते थे! यह बहुत खतरनाक था। क्या खतरे से बचने के लिए यीशु दूर नहीं रुका था? और यदि ऐसा था, तो अब क्यूँ? उसके चेलों ने कहा,“हे रब्बी, कुछ ही दिन पहले यहूदी नेता तुझ पर पथराव करने का यत्न कर रहे थे और तू फिर वहीं जा रहा है।” यह पागलपन था! वे सब अपनी जान जोखिम में डालेंगे यदि वे उसके साथ जाते हैं। सोचिये यह कितना भयानक होगा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? आप क्या करते?

यीशु ने उत्तर दिया,“'क्या एक दिन में बारह घंटे नहीं होते हैं। यदि कोई व्यक्ति दिन के प्रकाश में चले तो वह ठोकर नहीं खाता क्योंकि वह इस जगत के प्रकाश को देखता है।पर यदि कोई रात में चले तो वह ठोकर खाता है क्योंकि उसमें प्रकाश नहीं है।'”

यीशु का क्या मतलब था? स्मरण कीजिये, यीशु अधिकतर समय अपना वर्णन ज्योति के साथ देता है। यदि चेले उसपर भरोसा करते थे,इसका मतलब उनमें भी वही ज्योति थी। वे कहीं भी जा सकते यह जानते हुए कि वे कभी भी ठोकर नहीं खाएंगे। धार्मिक अगुवे यीशु से अलग जी रहे थे, और इसलिए वे उनके समान थे जो अँधेरे में ठोकर खा कर गिरते हैं। यीशु और उसके चेलों को उनसे डरने कि ज़रुरत नहीं थी। उन्हें केवल परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी होने का भय होना चाहिए था। परमेश्वर चाहता था कि यहूदिया जाकर लाज़र को देख लें! सो यीशु ने कहा,“हमारा मित्र लाज़र सो गया है पर मैं उसे जगाने जा रहा हूँ।”

क्यूंकि आप देखिये, यीशु जानता था कि लाज़र मर चुका है। परमेश्वर ने यीशु के लिए एक बड़ा चमत्कार करने के लिए तैयार किया हुआ था। वह लाज़र को मुर्दों में जिलाएगा। यीशु जानता था कि परमेश्वर ने सब कुछ आयोजित कर रखा था, और उसे विश्वास था कि वह अपने समय में उसे पूरा करेगा। लेकिन उसके चेले नहीं समझ पाये। फिर उसके शिष्यों ने उससे कहा,“हे प्रभु, यदि उसे नींद आ गयी है तो वह अच्छा हो जायेगा।” वे यह सोच ही नहीं पाये कि लाज़र नहीं रहा। इतने चमत्कार देखने के बाद भी वे समझ नहीं पाये। इसलिये फिर यीशु ने उनसे स्पष्ट कहा,“'लाज़र मर चुका है। मैं तुम्हारे लिये प्रसन्न हूँ कि मैं वहाँ नहीं था। क्योंकि अब तुम मुझमें विश्वास कर सकोगे। आओ अब हम उसके पास चलें।'”

यीशु ने ऐसा क्यूँ कहा कि वह खुश था कि वह वहाँ नहीं था? यदि वह वहाँ होता, उसने लाज़र को मरने से पहले ही ठीक कर दिया होता, और फिर यह चमत्कार इस हद तक नहीं हो पाता।

ऐसा नहीं था कि चेले यीशु पर बिलकुल भी विश्वास नहीं करते थे। वे अपनी जान उसके लीए जोखिम में डालने को तैयार थे! परन्तु सच्चा विश्वास वो होता है जो गहरा होता जाता है। परमेश्वर कि शिष्यत्व में, वह परिस्थितियों को उन लोगो के लिए बनाता है जो उसके पीछे चलना चाहते हैं, ताकि और बढे।

थोमा जब यीशु को सुन रहा था, वह फिर भी नहीं समझ पाया। वह जानता था कि वापस येरूशलेम जाना खतरनाक था। वह यह भी जानता था कि वह यीशु के लिए अपनी जान को जोखिम दाल रहा है।फिर थोमा दूसरे शिष्यों से कहा,“आओ हम भी प्रभु के साथ वहाँ चलें ताकि हम भी उसके साथ मर सकें।”

चेले मान गए कि वापस जाना एक किसम से मृत्यु ही है! फिर भी यीशु के संग जाने को तैयार हो गए। उनके पास फिर भी यह विश्वास नहीं था उसे मानने का कि समय और जीवन उसके नियंत्रण में है! उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया जब उसने कहा कि उन्हें चिंता करने कि ज़रुरत नहीं है। लेकिन वे उस पर इतना विश्वास ज़रूर करते थे कि उसके लिए अपनी जान दे सकते थे। जब समय आया, क्या वे वास्तव में वैसा कर पाएंगे? क्या उनका साहस स्थिर रहेगा या फिर गिर जाएगा?