कहानी ९९: मिलापवाले तम्बू का पर्व : यीशु का जीवन जल देना 

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मिलापवाले तम्बू का पर्व शुरू हो चुका था और सब यही सोच रहे थे कि यीशु कब आएगा और इस बात कि अफवाह फैलाई गई थी कि यहूदी अगुवे उसे मरवा देंगे। वह आया और बहुत साहस और सफाई के साथ बोला। पूरे देश में लोगों ने अब तक इस मनुषय के बारे में अफवाहें सुनी थी लेकिन अब वे स्वयं उसे सुन रहे थे। पर्व का अंतिम दिन आ चूका था। जश्न अपने पूरे ऊचाई पर था। इस पर्व कि एक रसम यह थी कि लोगों को पानी कि मदिरा उँड़ेलनी थी। यह उस समय को स्मरण करने के लिए किया जाता था जब परमेश्वर ने जंगल में इस्राएलियों को अद्भुद तरीके से पानी पिलाया था। इस्राएली बगैर पानी के बहुत दिनों से थे और वे मूसा को पुकारने लगे थे। परमेश्वर ने एक चट्टान से बहुतायत का पानी उपलब्ध कराया। सैकड़ों लोगों और पशु पक्षियों के लिए पर्याप पानी था!

हमारे लिए यह कल्पना करना मुश्किल है कि यहूदियों के लिए ये यादें कितनी महत्वपूर्ण हैं। जब उन्होंने अपनी योग्यता और मूल्य के विषय में सोचा, तब वे अपने व्यक्तिगत को नहीं सोच रहे थे। वे अपने एक परिवार का हिस्सा मानते थे। उनका पहला परिवार वो था जिसमें वे पैदा हुए थे, और हर एक सदस्य महत्वपूर्ण था। वे इब्राहिम के पुत्र थे, और परमेश्वर के लोगों का भी हिस्सा थे। परमेश्वर ने अपने लोगों में उद्धार लाकर फारून के दुष्ट हाथों से छुड़ाया था। परमेश्वर ने उन्हें सीनै पर्वत पर अपनी पवित्र व्यवस्था दी, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ उनका पवित्र वाचा था। वह उन्हें एक पवित्र राष्ट्र बनाने के लिए तैयार कर रहा था। जब वे येरूशलेम में जश्न मना रहे थे, वे परमेश्वर के निरंतर सुरक्षा का भी जश्न मना रहे थे जो उनके साथ साथ बनी हुई थी। सब देशों से हट कर, यह एक विशाल आशीष और बुलाहट का हिस्सा था। इन पुराने नियम के वाचाओं में उनकी आशा मसीह में बहुत गहरायी से बंधी हुईं थी। क्या वे उस अभिषेक किये हुए कि वाणी को सुनेंगे जब वह परमेश्वर के उद्देश्य को उनके भविष्य के लिए देगा?

पर्व के अन्तिम और महत्वपूर्ण दिन यीशु खड़ा हुआ और उसने ऊँचे स्वर में कहा,“'अगर कोई प्यासा है तो मेरे पास आये और पिये। जो मुझमें विश्वासी है, जैसा कि शास्त्र कहते हैं उसके अंतरात्मा से स्वच्छ जीवन जल की नदियाँ फूट पड़ेंगी।'”

यीशु पवित्र आत्मा के विषय में कह रहा था। वही सच्चा जीवन का जल है। चट्टान में से पानी का निकलना इस बात को दर्शा रहा था कि परमेश्वर अपने लोगों के लिए कुछ महान करने जा रहा था, बस इस बार बढ़कर सामर्थी काम होने जा रहे थे। एक बार यीशु जब मरकर जी उठेंगे और स्वर्ग में जाने के बाद, वह अपनी पवित्र आत्मा को उन लोगों पर उँडेलेगा जो उस पर विश्वास करते हैं। यीशु को हमारे पापों के लिए मरना ही था और उस दाम को देना था ताकि वह अपनी आत्मा हमारे लिए भेज सके। परन्तु उसने यह उन सब के लिए देने का वायदा किया है जो उस पर विश्वास करेंगे।

भीड़ के कुछ लोगों ने जब यह सुना वे कहने लगे, “यह आदमी निश्चय ही वही नबी है।” कुछ और लोग कह रहे थे, “यही व्यक्ति मसीह है।” कुछ लोग कहते थे कि वह मसीहा नहीं है क्यूंकि पुराने नियम में कहीं नहीं लिखा है कि वह गलील से आएगा। वे जानते थे कि मसीह बेथलेहम से आएगा। वे यीशु के जन्म कि कहाँ को ठीक तरह से नहीं जानते थे। इस तरह लोगों में फूट पड़ गयी। कुछ उसे बंदी बनाना चाहते थे पर किसी ने भी उस पर हाथ नहीं डाला।

इसलिये मन्दिर के सिपाही प्रमुख धर्माधिकारियों और फरीसियों के पास लौट आये। इस पर उनसे पूछा गया कि वे उसे पकड़कर क्यों नहीं लाये।

इस पर फरीसियों ने उनसे कहा,“क्या तुम भी तो भ्रमा नहीं गये हो? उनके गुस्से की कल्पना कीजिये जब उन्होंने देखा कि सिपाहियों को भी वे यीशु के विरुद्ध नहीं कर पाये। उसके उपदेश देने कि सामर्थ और चुम्बकत्व कितना सराहने लायक था! किसी भी यहूदी नेता या फरीसियों ने उसमें विश्वास नहीं किया है।केवल वो भीड़ जिसे पवित्र शास्त्र और व्यवस्था का कोई ज्ञान नहीं था उन्होंने उस प्रचारक की बातों पर विश्वास किया! उन्होंने घोषित किया कि भीड़ श्राप के कारण संक्रमित हो गयी थी।

नीकुदेमुस ने जो पहले यीशु के पास गया था उन फरीसियों में से ही एक था। उसने देखा कि धार्मिक अगुवे यीशु से बहुत क्रोधित हैं और उसे मरवा देना चाहते हैं, तो उसने कहा,“हमारी व्यवस्था का विधान किसी को तब तक दोषी नहीं ठहराता जब तक उसकी सुन नहीं लेता और यह पता नहीं लगा लेता कि उसने क्या किया है।” यीशु को मारने कि उनकी योजना ने उनके उस व्यवस्था का उलंघन कर दिया था जिका उन्हें बहुत गुरूर था। यदि उनके ह्रदय परमेश्वर कि इच्छा को करने के लिए तैयार होते तो निकुदेमुस की बातों से उनके ह्रदय बेचैन हो गए होते। वे अपनी योजनाओं से पश्चाताप करते। उन्होंने क्रोध में आकर उससे कहा,“क्या तू भी तो गलील का ही नहीं है? शास्त्रों को पढ़ तो तुझे पता चलेगा कि गलील से कोई नबी कभी नहीं आयेगा।” वे इस बहस को लेकर यह साबित करना चाहते थे कि यीशु गलत है। उन्होंने इस झूठ कि इस तरह फैला दिया था कि बहुत से लोग भीड़ में से भी विश्वास करने लग गए थे। जिस महान पर्व पर मसीह मंदिर के आंगनों में प्रचार करने के लिए आया था, वहाँ लोगों में बटवारा होने लग गया था। जिन धार्मिक अगुवों को चाहिए था कि वे यीशु का स्वागत करें, वे लोगों को वहाँ से भगाने में लग गए और उन्हें चुप करा रहे थे। उन्हें सांसे बड़ा इनाम दिया गया था और वे ही उसे अस्वीकार कर रहे थे। परमेश्वर का न्याय उनके ऊपर आ रहा था।