कहानी ९५: विश्वास की कमी
अगले दिन, यीशु के रूपांतरण होने के बाद वे पहाड़ से पतरस, याकूब और यूहन्ना के साथ जब वापस आये तो, भीड़ बाकी के चेलों को घेरी हुई थी। कुछ शास्त्री, जो धार्मिक अगुवे थे जो उनके साथ बहस कर रहे थे। यीशु को आते देख भीड़ अचरज में पड़ गई। वे उसके पास दौड़ कर गए। यीशु ने चेलों से पूछा कि वे भीड़ के साथ क्या बात कर रहे थे। तभी भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्ला उठा,“गुरु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे बेटे पर अनुग्रह-दृष्टि कर। वह मेरी एकलौती सन्तान है। अचानक एक दुष्ट आत्मा उसे जकड़ लेती है और वह चीख उठता है। उसे दुष्टात्मा ऐसे मरोड़ डालती है कि उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। वह उसे कभी नहीं छोड़ती और सताए जा रही है।"
क्या आप इस व्यक्ति कि आवाज़ में पीड़ा और दुःख को समझ सकते हैं? यह कितना दर्द्नाक रहा होगा कि अपने एक लौते पुत्र को इस तरह रोज़ ब रोज़ भयानक कष्ट में देखना। इसीलिए वह यीशु के आगे घुटनों के बल गिर गया! उसने उससे कहा, "मैं उसे तेरे शिष्यों के पास लाया, पर वे उसे अच्छा नहीं कर पाये।”
उत्तर में यीशु ने कहा, “अरे भटके हुए अविश्वासी लोगों, मैं कितने समय तुम्हारे साथ और रहूँगा? कितने समय मैं यूँ ही तुम्हारे साथ रहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” पूरे सुसमाचारों में केवल यही एक समय था जब यीशु ने उसके आस पास हो रही उन बातों के प्रति बेसब्री दिखाई। वह किसके साथ बेसबर हो रहा था? शायद शास्त्रियों के साथ। वे मसीह कि सेवकाई को नष्ट करने कि साजिश रच रहे थे। वे शायद यह जान चुके थे कि वहाँ केवल नौ चेले हैं, और वे उस व्यक्ति के दुष्ट आत्मा से युक्त बेटे को वहाँ ले आये थे। यदि उन्होंने यीशु के चेलों को और कुछ करते देख लिया होता, तो वे यीशु के भी पीछे पड़ गए होते! ये राष्ट्र के अगुवे उस अतिदुखी व्यक्ति या उसके बेटे कि मदद नहीं कर रहे थे, वे उसे यीशु को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे! इसीलिए यीशु इतने हताश हो गये थे!
तब वे लड़के को उसके पास ले आये और जब दुष्टात्मा ने यीशु को देखा तो उसने तत्काल लड़के को मरोड़ दिया। वह धरती पर जा पड़ा और चक्कर खा गया। उसके मुँह से झाग निकल रहे थे। तब यीशु ने उसके पिता से पूछा कि ऐसा कितने दिनों से है। पिता ने उत्तर दिया,“यह बचपन से ही ऐसा है। दुष्टात्मा इसे मार डालने के लिए कभी आग में गिरा देती है तो कभी पानी में। क्या तू कुछ कर सकता है? हम पर दया कर, हमारी सहायता कर।”
यीशु ने उससे कहा,“तूने कहा,‘क्या तू कुछ कर सकता है?’ विश्वासी व्यक्ति के लिए सब कुछ सम्भव है।”
तुरंत बच्चे का पिता चिल्लाया और बोला, “मैं विश्वास करता हूँ। मेरे अविश्वास को हटा!”
अब तक इस बात कि खबर फ़ैल गयी थी, और लोग सारी दिशाओं से वहाँ आ रहे थे। उसने दुष्टात्मा को ललकारा और उससे कहा,“ओ बच्चे को बहरा गूँगा कर देने वाली दुष्टात्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ इसमें से बाहर निकल आ और फिर इसमें दुबारा प्रवेश मत करना!”
तब दुष्टात्मा चिल्लाई। बच्चे पर भयानक दौरा पड़ा। और वह बाहर निकल गयी। बच्चा मरा हुआ सा दिखने लगा।फिर यीशु ने लड़के को हाथ से पकड़ कर उठाया और खड़ा किया। वह खड़ा हो गया। यीशु ने उसे उसके पिता को सौंप दिया, और सब यह देख कर परमेश्वर कि महानता को देख कर अचम्भे और श्रद्धायुक्त भयभीत हुए।
इसके बाद यीशु अपने घर चला गया। अकेले में उसके शिष्यों ने उससे पूछा की वे इस दुष्टात्मा को बाहर क्यों नहीं निकाल सके। दूसरी परिस्थितियों में, वे दुष्ट आत्माएं निकल लिया करते थे। तो इस बार क्या हुआ? यीशु ने उन्हें बताया, “क्योंकि तुममें विश्वास की कमी है। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, यदि तुममें राई के बीज जितना भी विश्वास हो तो तुम इस पहाड़ से कह सकते हो ‘यहाँ से हट कर वहाँ चला जा’ और वह चला जायेगा। तुम्हारे लिये असम्भव कुछ भी नहीं होगा।” इस पर यीशु ने उनसे कहा कि ऐसी दुष्टात्मा प्रार्थना के बिना बाहर नहीं निकाली जा सकती थी।
फिर उन्होंने वह स्थान छोड़ दिया। और जब वे गलील होते हुए जा रहे थे तो वह नहीं चाहता था कि वे कहाँ हैं, इसका किसी को भी पता चले। यीशु अब गलील से होते हुए पेरा से यहूदिया को निकल पड़ा। वह क्रूस के लिए जा रहा था, और उसे चेलों को कुछ महत्पूर्ण बातें सिखानी थी। इस सन्देश में कुछ अत्यावश्यकता थी जो उसके चेले बाद में ही समझ पाएंगे।
“अब जो मैं तुमसे कह रहा हूँ, उन बातों पर ध्यान दो। मनुष्य का पुत्र मनुष्य के हाथों पकड़वाया जाने वाला है।”
यीशु उन्हें आगे आने वाले रास्ते को दर्शा रहे थे। यही कारण था जिसके लिए वो आया था, और परमेश्वर का मसीह के लिए शुरू से यही योजना थी। यह एक मुक्तिदाता-सम्बंधित रहस्य था जो कोई भी इसका अनुमान नहीं लगा सकता था। उसने उनसे कहा,"वे उसे मार डालेंगे। किन्तु तीसरे दिन वह फिर जी उठेगा!” चेलों ने उसे सुना, किन्तु वे इस बात को नहीं समझ सके। यह बात उनसे छुपी हुई थी। सो वे उसे जान नहीं पाये। और वे उस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे।यीशु जानता था कि उसके आने वाली परीक्षाएं उसके मित्रों के लिए कठिन होंगी, और वह जानता था कि वे भयभीत होंगे। लेकिन अगर वे अभी जान जानते कि वो जानता कि आने वाला है, तो एक दिन वे इस बात को समझ जाएंगे कि सब कुछ उसके नियंत्रण में था। मसीह का भविष्य कोई दुर्घटना नहीं थी जो इस लिए हुई कि परमेश्वर ने नियंत्रण खो दिया था। यह बहुत ही दिल टूटने वाला परमेश्वर का विशाल उद्धार के कार्य का एक भाग था। यीशु जनता था कि उसे क्या करना है, और जिस तरह साहसपूर्वक उसने पिता कि मर्ज़ी को पूरा किया, उसने चेलों के विश्वास को मज़बूत करने में भी सहयोग दिया।
जब यीशु और उसके शिष्य कफ़रनहूम में आये तो मन्दिर का दो दरम कर वसूल करने वाले पतरस के पास आये। यह कर येरूशलेम के मंदिर कि देख भाल के लिए था। हर पुरुष जो बीस साल से ऊपर था उसे कर देना होता था। उन्होंने पतरस से पुछा कि यीशु भी कर देता है। पतरस ने उत्तर दिया,“हाँ, वह देता है।” और घर में चला आया। यीशु ने उससे कहा,“'शमौन, तेरा क्या विचार है? धरती के राजा किससे चुंगी और कर लेते हैं? स्वयं अपने बच्चों से या दूसरों के बच्चों से?'”
पतरस ने कहा कि वे दूसरों से कर लेते हैं। यीशु ने कहा,"'यानी उसके बच्चों को छूट रहती है। पर हम उन लोगों को नाराज़ न करें इसलिये झील पर जा और अपना काँटा फेंक और फिर जो पहली मछली पकड़ में आये उसका मुँह खोलना तुझे चार दरम का सिक्का मिलेगा। उसे लेकर मेरे और अपने लिए उन्हें दे देना।'”
यीशु और उसके चेले परमेश्वर के शाही घराने के सदस्य थे। नास्तिक यहूदी के घराने दुसरे किस्म के थे, और इनके पास येरूशलेम के मंदिर के ऊपर अधिकार था जो कर लिया करते थे। यह स्वाभाविक था कि वे उनसे कर लेते थे जो परिवार के बाहर के थे और यीशु ऐसे कर को देने में खुश थे जिसमें कि अंतर दिखे।