कहानी ८८: जीवन कि सच्ची रोटी

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यीशु ने पंद्रह हजार लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन में पांच रोटियां और दो ​​मछली खिलाईं। वे सभी उस दिन तृप्त होकर अपने घर को गए। उन्होंने जितना उसके शिक्षण कि बातों को लिया उतना ही भोजन पर भी किया। उन्होंने उन शानदार चमत्कारों को भी देखा जिससे कि बंधी आज़ाद हुए, अंग मज़बूत किये गए, और आँखें खुल गईं। जब यीशु ने उन्हें घर वापस भेजा, वे बाकि के मानवजाति जिन्होंने यह सब नहीं देखा था, उनसे अधिक देख लिया था। क्या उनके ह्रदय आखिरकार पश्चाताप करेंगे?

भीड़ ने यह भी देखा कि यीशु अपने चेलों के साथ नाव में नहीं जा रहा है। वह प्रार्थना करने के लिए ऊपर पहाड़ पर जा रहा था। अगले दिन उन्होंने देखा कि, यीशु गलील के दूसरी छोर पहुँच गया है। अब वह अपने चेलों के साथ कफरनहूम के आराधनालय में है। ऐसा कैसे हुआ?

उन्होंने ने पुछा,“हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”
“मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे हो कि तुमने आश्चर्यपूर्ण चिन्ह देखे हैं बल्कि इसलिए कि तुमने भर पेट रोटी खायी थी।'" यीशु जानता था कि यह लोग उसके पास एक सच्चे ह्रदय से नहीं आये हैं। उसे कितना दुःख हुआ होगा जबकि वह उन पर रोज़-ब-रोज़ अनुग्रह और परमेश्वर कि सामर्थ को उन पर उंडेलता था। वे केवल रोमांचकारी चमत्कारों को देखना चाहते थे, वे उन बातों से आज़ाद होना चाहते थे जो उनके जीवन को कष्ट देती थीं, और वे उस भोजन का आनंद उठाना चाहते थे जो चमत्कार के द्वारा प्राप्त हुआ था। उनके ह्रदय यीशु से इन बातों को लेने को तैयार थे, परन्तु उसको अपना विश्वास नहीं देना चाहते थे। उन्हें स्वर्ग राज्य के तोहफे पसंद थे, लेकिन वे उस प्रायश्चित जीवन को नहीं जीना चाहते थे जो स्वर्ग के राज्य के लिए अपेक्षित था। वे स्वर्ग के जीवित परमेश्वर के योग्य प्रजा नहीं थे। यीशु ने फिर कहा:

"'उस खाने के लिये परिश्रम मत करो जो सड़ जाता है बल्कि उसके लिये जतन करो जो सदा उत्तम बना रहता है और अनन्त जीवन देता है, जिसे तुम्हें मानव-पुत्र देगा। क्योंकि परमपिता परमेश्वर ने अपनी मोहर उसी पर लगायी है।” यह भीड़ अपनी ख़ुशी और आशा के लिए केवल संसार कि ऊपरी चीज़ों पर भरोसा करती थी। यीशु उनको खोज रहा था जो उस पर भरोसा करेंगे। परमेश्वर के राज्य की कुंजी यह है कि स्वयं यीशु पर भरोसा करना है, और ना कि जो वह तुम्हारे लिए कर सकता है।

लोग अस्तव्यस्त हो गए थे। वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि यह शिक्षक क्या चाहता है। सो उन्होंने पुछा,“जिन कामों को परमेश्वर चाहता है, उन्हें करने के लिए हम क्या करें?”'

उत्तर में यीशु ने उनसे कहा,“'परमेश्वर जो चाहता है, वह यह है कि जिसे उसने भेजा है उस पर विश्वास करो।'”

लोगों ने पूछा,“'तू कौन से आश्चर्य चिन्ह प्रकट करेगा जिन्हें हम देखें और तुझमें विश्वास करें? तू क्या कार्य करेगा? हमारे पूर्वजों ने रेगिस्तान में मन्ना खाया था जैसा कि पवित्र शास्त्रों में लिखा है। उसने उन्हें खाने के लिए, स्वर्ग से रोटी दी।'”

मन्ना वह चमत्कारी भोजन था जो परमेश्वर ने इस्राएल के देश के लोगों को दिया जब वे मूसा के साथ जंगल के सफर में थे। चालीस साल तक हर सुबह, इस्राएल के लोग बाहर जाकर मन्ना जमा करते थे। यह परमेश्वर के निरंतर देखभाल का एक खूबसूरत चिन्ह था। यहूदियों का एक विश्वास था कि परमेश्वर एक बार फिर मसीह के दुसरे आगमन में मन्ना भेजेगा। यीशु ने 5000 लोगों को भोजन खिलाया। लेकिन मूसा के समय में, परमेश्वर ने अपने लोगों के लिए प्रति दिन मन्ना भेजा। उन्होंने यीशु के किये हुए कामों को अस्वीकार किया और अधिक से अधिक पाने कि चाहत रखी।

यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ वह मूसा नहीं था जिसने तुम्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी थी बल्कि यह मेरा पिता है जो तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी देता है। वह रोटी जिसे परम पिता देता है वह स्वर्ग से उतरी है और जगत को जीवन देती है।”

आपको यह समझ में आया? परमेश्वर यह बता रहे थे कि वे उन्हें अब वह रोटी नहीं दे रहे थे जो आटे से बनी थी। वह एक व्यक्ति था। स्वर्ग कि रोटी कौन है? जब इस्राएली रेगिस्थान में थे, परमेश्वर ने उनकी ज़रूरतों को पूरा कर के उनकी जान बचाई थी। अब वह उनको उससे भी बढ़कर कुछ दे रहा था। यीशु अनंत का जीवन दे रहा था! क्या वे उसे स्वीकार करेंगे?

लोगों ने उससे कहा, “हे प्रभु, अब हमें वह रोटी दे और सदा देता रह।”

यीशु ने उनसे कहा, “'मैं ही वह रोटी हूँ जो जीवन देती है। जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा नहीं रहेगा और जो मुझमें विश्वास करता है कभी भी प्यासा नहीं रहेगा।'"

यह शब्द "मैं हूँ " बहुत ही शक्तिशाली हैं। यह वही शब्द हैं जो यीशु ने मूसा को उस जलती हुई झाड़ी से बोले थे। यीशु जानता था इस बात को कि जब वह यह कहेगा "मैं हूँ" तो वह यह बता रहा था कि वही परमेश्वर है। वह उस भूख के विषय में बोल रहा था जो अच्छे खाने से मिट जाती है या वो प्यास जो पानी पीने से चली जाती है। यीशु उन्हें यह बता रहा था कि वही है जो ह्रदयों कि गहरी ज़रूरतों को पूरा कर सकता है। मानव आत्मा पाप के कारण टूट चुकी है। हर एक व्यक्ति परमेश्वर का टूटा हुआ रूप है! हर एक व्यक्ति के अंदर एक विशाल, खाली आवश्यकता है। केवल यीशु ही है जो उसे भर सकता है, और वह केवल उनके लिए कर सकता है जो उस पर विश्वास करेंगे। आगे वह कहता है:

"'मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ कि तुमने मुझे देख लिया है, फिर भी तुम मुझमें विश्वास नहीं करते। हर वह व्यक्ति जिसे परम पिता ने मुझे सौंपा है, मेरे पास आयेगा।  जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं लौटाऊँगा। क्योंकि मैं स्वर्ग से अपनी इच्छा के अनुसार काम करने नहीं आया हूँ बल्कि उसकी इच्छा पूरी करने आया हूँ जिसने मुझे भेजा है। और मुझे भेजने वाले की यही इच्छा है कि मैं जिनको परमेश्वर ने मुझे सौंपा है, उनमें से किसी को भी न खोऊँ और अन्तिम दिन उन सबको जिला दूँ। यही मेरे परम पिता की इच्छा है कि हर वह व्यक्ति जो पुत्र को देखता है और उसमें विश्वास करता है, अनन्त जीवन पाये और अंतिम दिन मैं उसे जिला उठाऊँगा।”

यह कितने खूबसूरत और अद्भुद वायदे हैं। जिस किसी को भी परमेश्वर ने यीशु को सौंपा है कि वह उद्धार पाये, उसे निश्चय ही अनंत का जीवन मिलेगा। इस बात पर ध्यान कीजिये कि उद्धार परमेश्वर के कार्यों से शुरू होता है, और वह पूर्ण रूप से उसी कि ओर से आता है। उनमें एक भी जिसे उसने यीशु को सौंपा है, नाश न होगा। उन सब के पास फिर से जी उठने कि आशा होगी और यीशु के संग उस अनंत जीवन का नित्य और यशस्वी आनंद प्राप्त करेंगे। जो परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा बचाय गए हैं, वे अपने विश्वास में बने रहेंगे क्यूंकि वे यीशु के लोग हैं।

युगानुयुग के जीवन को अनंत जीवन भी कहते हैं। यह युगानुयुग तक चलता रहेगा। अधिकतर लोग इस पृथ्वी पर सत्तर साल के करीब जीते हैं। यह सत्तर साल अभी के लिए हमारे लिए बहुत लम्बा समय लगता है, लेकिन यह उन हज़ारों साल जिसमें हम ह्मेशा के अद्भुद आशा में रहेंगे उसके सामने ये कितने छोटे लगेंगे। इस जीवन के क्लेश और दुःख उस भव्यता और आनंद के सामने एक क्षण कि तरह होगे। और सबसे अद्भुद बात यह होगी कि हमें उसके खत्म होने कि चिंता नहीं करनी पड़ेगी। हमारी उज्जवल प्रतिभाशाली ख़ुशी निरंतर चलती रहेगी जिसका अंत कभी नहीं दिखेगा। हम उस अत्यधिक सुरक्षा में हमेशा के लिए रह सकते हैं जो हमें स्वर्ग के राजा के संतान होने के लिए देती है। यही वह अविश्वसनीय भेंट थी जो यीशु गलील के पूरे क्षेत्र को देना चाहता था, और उन्हें केवल अपने दुष्ट कामों से परमेश्वर के विरुद्ध किये पापों से पश्चाताप करना था!