कहानी ७९: यीशु का तूफान को शांत करना

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यीशु ने जब दृष्टान्तों को बताना समाप्त किया, वह समुद्र तट से चला गया, लेकिन भीड़ ने उसका पीछा करना जारी रखा। वह अवश्य कितना थक गया होगा। एक दिन में उसने इतने शक्तिशाली कार्य किये। उसने उस अंधे और गूंगे को चंगा किया, उसने शैतान के साथ भागीदारी होने के आरोपों को खारिज किया, उसने अपने ही परिवार को ठुकराया क्यूंकि उन्होंने उसे पागल समझा, और उसने राज्य के बारे में अपने पूरे संदेश को जो परमेश्वर के राज्य के विषय में था स्थानांतरित करके दृष्टान्त में बातें करने लगा।

शाम हो गयी, और यीशु थक गया था। यीशु पूर्ण रूप से परमेश्वर था, लेकिन वह पूरी तरह से इंसान था, और वह हर उस बात को महसूस करता था जो दूसरे इंसान करते थे। भारी भीड़ उसके आसपास आती रही और उसका पीछा करती रही। वह कैसे आकर्षित करने वाला था! कफरनहूम में उनसे नहीं बच सकते थे। इसलिए यीशु ने सागर के दूसरे तरफ जाने का फैसला किया। वह अपने शिष्यों के साथ एक नाव में बैठ कर दूर के शोर को निकल गए। वहाँ और भी कश्तियाँ थी जो यीशु के वफादार विश्वासियों से भरी हुई थी।

यीशु नाव की कड़ी पर चला गया और एक तकिया पर लेट कर गहरी नींद में सो गया। लेकिन फिर एक हवा चलनी शुरू हो गयी। यह एक भयंकर हवा में तब्दील हो गयी, और एक जबरदस्त तूफान उन पर आ गया था! बड़ी लहरें नाव को मार रही थी, और उसे पानी के साथ भर दिया। यह खतरनाक होता जा रहा था।

जब चेलों ने यीशु को देखा कि वह क्या कर रहा है, उन्होंने देखा कि वह अभी भी गहरी नींद में था! क्यों वह नाव को किनारे करने में मदद नहीं कर रहा था? सो उन्होंने उसे उठाया जौर कहा, "'गुरु, क्या तुझे परवाह नहीं कि हम डूब रहे हैं!'"

यीशु चेलों के घबराय हुए चेहरों को देख कर, हवा कि तेज़ आवाज़ और कश्ती पर पानी के टकराने से वह उठ गया। वह खड़ा हुआ, चारों ओर पानी को देखा, हवा और पानी को डांटते हुए कहा, "शांत हो जा।'" उसी समय हवा थम गयी और पानी भी वापस थम गया। क्या आप उस शानदार षण कि कल्पना कर सकते हैं? क्या आप उस हिला देने वाली सामर्थ और अधिकार कि कल्पना कर सकते हैं जो यीशु के शक्तिशाली आत्मविश्वास के पीछे है? जीवते परमेश्वर के पुत्र होने हुए उसे अपने काम में पूरा भरोसा था।

एक पल के लिए, जिस इंसान के साथ चेले रोज़ चलते थे, उसकी पहचान इस दुनिया कि सब शक्तियों से बढ़कर थी, और एक ही आज्ञा से सब पर नियंत्रण रखने कि क्षमता थी। अपने चेलो कि ओर मुड़ कर वह बोला, "'तुम इतने डरे हुए क्यूँ हो? कहाँ गया तुम्हारा विश्वास?'"

चेले अचंभित हो गए। आप क्या करेंगे यदि आपके शिक्षक आपके सामने खड़े होकर प्रकृति के ज़ोर के आगे अपनी कला दिखाए? उसने उस भयंकर तूफ़ान को पूरे अधिकार के साथ कहा, जिस प्रकार एक अच्छा पिता अपने बिगड़े हुए बालक से बोलता है! चेले एक दुसरे कि ओर अचंभित होकर और एक गहरे श्रद्धा के साथ देखने लगे। उसके अंदर वो अधिकार था जिसके विषय में वे सोच भी नहीं सकते थे। “आखिर यह है कौन जो हवा और पानी दोनों को आज्ञा देता है और वे उसे मानते हैं?” चेलों ने यीशु में ऐसा विश्वास दिखाया, लेकिन वह जिसके साथ उन्होंने यात्रा कि उसकी महानता अपरम्पार है। उन्होंने यीशु के साथ कश्ती में जाने का निर्णय उस समय लिया जब शक्तिशाली धार्मिक अगुवे उसके विरुद्ध में खड़े हो रहे थे। लेकिन उसने उनको अपना परिवार माना था, उसने उनको अपने भाई कहा और वे उसके पीछे दुनिया के अंत तक चलने वाले थे। चेलों को बहुत कुछ दिया जा चूका था। पवित्र आत्मा ने उनको देखने के लिए आखें दी और उनके बीच होने वाली महीना के विषय में सुनने के लिए कान भी दिए। और चूंकि वे उसके पीछे चलते रहे,उन्होंने उस बात को देखा जो किसी और ने नहीं देखि थी। यह यीशु हवा और तूफ़ान का अधिकारी था!

जब यीशु नाव पर चढ़ गया, उसने धार्मिक नेताओं के साथ एक महान संघर्ष को समाप्त किया था। उसने कहा कि जो अकल्पनीय उपहार यीशु ने परमेश्वर के परिवार में होने के लिए उन्हें दिया था वह उनसे निकाला जा रहा था। वह दृष्टान्त को कपटवेश में केवल उन्हें समझा रहा था जो सच्ची श्रद्धा के साथ आये थे।

फिर भी यहूदी, अविश्वासी भीड़ आती रही, और इसलिए यीशु और उसके चेले नाव में बैठ कर गलीली सागर के दूसरे ओर चले गए। अब, शायद यह एक छोटी सी बात की तरह लग सकती है। यीशु उपदेश और बेरहम भीड़ के बीच महान , अद्भुत चमत्कार करते हुए, गलील में चारों ओर गया।फिर वह गिरासेनियों के क्षेत्र में गया। इस इलाके में बहुत से अन्यजाति रहते थे। ये इस्राएल देश का हिस्सा नहीं थे, और यहूदी इन्हें अशुद्ध मानते थे। वे उनके साथ बैठ कर भोजन भी नहीं करते थे।

अब, पुराने नियम में, परमेश्वर ने इस्राएल के राष्ट्र को आसपास के देश से अलग रहने की आज्ञा दी थी। परमेश्वर चाहता था कि उसके लोग मूर्ति पूजा और दुष्टता से उनके जीवन को प्रदूषण करने वाली बातों से शुद्ध रहे। परन्तु उसने अपने लोगों को बताया कि कैसे अपने देश में रहने वाले परदेसियों के साथ बर्ताव करना चाहिए। जिस देश में एक अलग भाषा बोली जाये वहाँ पर्दिसियों के साथ आसानी से भेद भाव होता है और पक्षपात और कट्टरता दमनकारी ताकतें हैं। लेकिन पुराने नियम के अनुसार, इस्राएल में रहने वाले परदेसी परमेश्वर के संरक्षण में थे।

इब्राहीम के साथ पहले वाचा के शुरुआत से, इस्राएल सभी देशों के लिए आशीष था। उन्हें दुनिया के लिए याजक के समान होना था, श्रापित और बोझ से दबे हुओं को सिखाना और प्रशिक्षण देना और उद्धार का रास्ता दिखाना। अब जब कि उन्होंने मसीह को और उद्धार को अस्वीकार कर दिया था, यीशु अब उद्धार के सन्देश को स्वयं ही अन्यजातियों के बीच ले जा रहे थे! परमेश्वर के लोग असफल हो गए थे, परन्तु इससे परमेश्वर कि जो योजना है कि मनुष्य को छुटकारा मिले, वह रुक नहीं सकता था।

यीशु और उसके शिष्य जब नाव में गए, वे दूर यहूदी तट से रवाना हुए और अन्यजातियों के क्षेत्र की ओर चले गए। यीशु खोये हुओं के लिए सन्देश को ले जा रहा था, मूसा के माध्यम से इस्राएल के राष्ट्र में और एक नए युग में, उन सब के लिए उद्धार था जो परमहस्वर पिता कि इच्छा के अनुसार जी रहे थे। जब वे जा रहे थे, एक तेज़ तूफ़ान ने उन्हें घेर लिया, लेकिन उसमें कोई असली सामर्थ नहीं थी। यीशु उससे कहीं अधिक शक्तिशाली था। उसे केवल बोलना था, लेकिन उसके समक्ष अशिकर से, तूफ़ान थम गया।

यह अद्भुत है, लेकिन इसके दूसरी ओर और भी आश्चर्यजनक है। यदि यीशु वास्तव में परमेश्वर का पुत्र था और हर समय सभी प्रकृति पर, सब बिमारियों पर, सब दुष्ट आत्माओं कि ताक़तों पर और दिष्ट मनुष्य पर यह अविश्वसनीय शक्तियों के द्वारा उन पर अधिकार से बोलता था, तो सोचिये कि कितनी विनम्रता से वह उन्हें उपयोग में लाता था। जिस प्रकार फरीसी उस पर आरोप लगाते थे और भीड़ के सामने उसे अपमानित करते थे, यीशु अपने स्वर्गीय पिता के समक्ष आज्ञाकारी होकर खड़ा रहा। उसने परमेश्वर का पुत्र होते हुए उन अकल्पनीय शक्तियों का प्रयोग नहीं किया। उसने हमारी तरह जीवन के सीमाओं और कमज़ोरियों के बीच अपना जीवन व्यतीत किया। जब वह पवित्र आत्मा द्वारा शक्ति को प्राप्त करता था तभी उसने अपनी अद्भुद शक्ति का प्रदर्शन किया, और वह भी परमेश्वर पिता के पूर्ण आज्ञाकारी होकर।

क्या होता यदि यीशु अन्यजातियों के ओर चला जाता? क्या वे परमेश्वर के पुत्र को अस्वीकार कर देते?