कहानी ३६: चुंगी लेने वाले की बुलाहट
यीशु एक बार फिर समुद्र के तट के किनारे चल रहा था। गलील के पानी के चारों ओर पहाड़ों का दिखना कितना सुन्दर दृश्य था। यह शहय पतझर का समय रहा होगा, लेकिन इस्राएल का मौसम सर्दियों में भी समान्य होता है। जब वह था, भीड़ उसके पीछे हो ली। और वह उनको परमेश्वर के राज्य के, में सुना रहा था।
उसका भीड़ को छोड़ के जाने का समय आ गया था और वह जा ही रहा था, एक व्यक्ति जिसका नाम मत्ती था (लेवी) वह एक चुंगी लेने वाला था, और वह चुंगी लेने वाले स्थान पर बैठ कर अपने काम में व्यस्त था। गलील के समुन्दर पर बहुत सा जहाज़ पर सामान लादने और उतारने का काम चलता था। कफरनूम से होते हुए नी तरह से पिरोया है कि एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सड़क गुज़रती थी। यह उत्तर में दमिश्क कि ओर से दक्षिण में मिस्र को जाती है। उस शहर में चुंगी लेने के बहुत से साधन थे।
अब, इस्राइलियों आंखों में, एक यहूदी व्यक्ति जो सबसे भयंकर काम कर सकता था वह था चुंगी लेना। यह इसलिए क्युंकि वे इस्राएल के लिए चुंगी नहीं ले रहे थे। वे अपने यहूदी लोगों से चुंगी लेकर रोम को दे रहे थे। सबसे भत्तर बात यह थी कि वे अधिक पैसा लेकर अपने लिए रख किया करते थे। एक यहूदी चुंगी लेने वाला एक बहुत ही खराब और सब लोगों के लिए एक देशद्रोही था। उन्होंने एक दुष्ट अत्याचारी का पक्ष लिया! परमेश्वर के बच्चों के लिए यह एक शर्मनाक व्यवहार था! चुंगी लेने वालों का इतना भ्रष्टाचार था की सरे इस्राएल में उनसे नफरत की जाती थी। हर कोई जो इस काम में लगा था, उसके साथ परमेश्वर के लोग बहिष्कृत कर लेते थे।
और फिर भी, यीशु ने मत्ती के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया। बल्कि उन्होंने उसकी ओर देखा और कहा, "'मेरे पीछे हो ले!'" वह मत्ती को अपना चेला बनाने के लिए बुला रहा था!
क्या? वाह! यीशु क्या सोच रहे थे? भीड़ में से सारे लोगों में से उन्होंने ने एक चुंगी लेने वाले को ही क्यूँ चुना? हम नहीं जानते कि यीशु के मन में क्या चल रहा था, लेकिन हम यह जानते हैं कि यीशु अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नहीं करेगा। यह मत्ती परमेश्वर कि ओर से चुन लिया गया था।
शायद यह पहली बार नहीं था की यीशु और मत्ती मिले, लेकिन यह उसके जीवन का बहुत बड़ा मोड़ था। वह एक सा कभी नहीं होगा। जब उसने यीशु कि वाणी को सुना, तो वह हिचकिचाया नहीं। वह तुरंत उठा और सब कुछ पीछे छोड़ कर यीशु के पीछे हो किया। यीशु में हुए, उसने एक बहुत अच्छी नौकरी छोड़ दी। धन दौलत से सुरक्षा मिलने वाला जीवन तो चला गया, परन्तु एक नया जीवन जिसमें आदर, साहस और अनंत काल कि आशा थी वह उसे मिली!
मत्ती यीशु के पीछे जाने के लिए इतना आनंदित था कि ख़ुशी में उसने अपने घर में बहुत बड़ी दावत की। वह अपने नए विश्वास को गुप्त नहीं रखने वाला था! चुंगी लेने वाले और उनके साथ के सारे पापी बुलाये गए। उन दिनों में,'पापी' एक बहुत ही अपमानित शब्द होता था। जो भी परमेश्वरके विरुद्ध जाता था उसके लिए यह शब्द उपयोग होता था। जिस प्रकार का जीवन वे बिताते थे उनके कारण संसार में अन्धकार फ़ैल गया था। फिर भी येही लोग हैं जिनको मत्ती नमे यीशु के साथ शाम बिताने को बुलाया! यह एक बहुत दिलचस्प सभा थी, और इन सब के बीच में यीशु अपने के लोंग के साथ मेज़ पर भोजन करने बैठा हुआ था। यहूदी संस्कृति में, किसी के साथ भोजन करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण चिन्ह माना जाता था। यीशु इस बात कि पुष्टि कर रहे थे कि वे दोनों पुरुष और स्त्रिओं को अपने पास आने से स्वीकारते थे।
यीशु क्या कर रहे थे? वे उन लोगों के साथ दोस्ती क्यूँ कर रहे थे जो उसके पिता के विरुद्ध थे? क्यूंकि वे नहीं थे। वे यीशु पर विश्वास करते थे, और वे उसके चेले बन गए थे। आपको लगता है कि यीशु इस बात से झूठ केह रहे होंगे और उनको बताया होगा कि उनके पाप सही हैं? आपको लगता है कि वे उसके चेले हुए होंगे यदि उन्होंने पश्चाताप नहीं किया होगा? नहीं। यह सभा उन लोगों से भरी थी जिनके ह्रदय परिवर्तित हो गए थे, और ऐसा करना एक बहुत ही बड़ी और अच्छी बात थी उत्सव मनाना!
फरीसी और कानून के शिक्षक इस उत्सव के बारे में सुनकर बड़बड़ाये। वे इस बात बहुत अपमानित हुए कि यह नया शिक्षक ऐसा दुष्ट लोगों के साथ संगती करता है। उन्होंने यीशु के चेलों के पास जाकर शिकायत की। "'तुम चुंगी लेने वाले और पापियों के साथ संगती क्यूँ करते हो?'"
यीशु ने उनको सुन लिया और कहा,"'एक स्वस्थ को चकित्सक कि ज़रूरत नहीं होती लेकिन एक बैर को। परन्तु जाओ और सीखो कि इसका क्या अर्थ है; मुझे दया कि ज़रुरत है, बली कि नहीं।' पर मैं धार्मिक को बुलाने नहीं आया हूँ, परन्तु पापियों को।'"
यीशु पुराने नियम से यहोशू 6 :6 से अपनी बात का प्रमाण इन यहूदियों को देने के लिए बोल रहे थे। वे अपने ही नहीं कि बैटन को इंकार नहीं कर सकते थे! आपको क्या लगता है कि यीशु का क्या मतलब होगा? यह सच था कि जो लोग मत्ती के यहाँ भोज को आये थे वे पाप का जीवन बिता रहे थे, लेकिन अब वे यीशु के प्रति समर्पित थे! उसने उनपर दया दिखाई, और वे विश्वास के साथ उसके पीछे हो लिए!
वे धर्मी अग्वे बहुत ही घमंड से भरे हुए थे, और उन्होंने अपने आप को औरों से अधिक ऊंचा दर्ज दे दिया था। उनको लगता था कि उनको न्याय करने का अधिकार है। लेकिन इस समय वे परमेश्वर के विरुद्ध थे, क्यूंकि वे परमेश्वर के पुत्र का इंकार कर रहे थे। वे उसके पीछे आने से इंकार कर रहे थे और वही दया जो वह इस्राएल के खोये हुए बच्चों को दिखा रहा था वे नहीं कर पाए। क्या वे कभी सीख पाएंगे?