पाठ 133 : शुद्ध और अशुद्ध भाग 1: कौन सा पशु खाना है और कौन सा नहीं

परमेश्वर ने मूसा और हारून से बात की और उन्हें और अन्य निर्देश दिए। इससे पहले, मंदिर के निर्देश में, वे यह सीख रहे थे की क्या पवित्र है, और क्या साधारण। ऐसा लगता था मानो परमेश्वर उन्हें सबसे पवित्र जगह में सबसे पवित्र चीज़ को  सिखा रहा है। फिर उसने उन्हें उस पवित्र स्थान के विषय में सिखाया जहां प्रार्थना की सुगन्धित धूप और दीवट रखे जाते थे। उसके दूसरी ओर आंगन था, जहां कांस्य वेदी पर भेंट लाई जाती थी। जो परदे मंदिर के चारों ओर लगाये गए थे वे पवित्र स्थान के किनारों को चिह्नित करने के लिए थे, लेकिन इस्राएल के डेरे को भी अलग निर्धारित किया गया था। वे परमेश्वर के पवित्र लोग थे। अब वे अपने दैनिक जीवन में सीखेंगे की पवित्र जीवन कैसे जीना है। उनका डेरा मंदिर की तरह उतना पवित्र नहीं था, लेकिन फिर भी यह वो जगह थी जहां परमेश्वर के लोग रहते थे। वे शुद्ध और अशुद्ध के बारे में सीखेंगे, और अपने परिवारों को, और सब चीज़ों को इस दुनिया में स्वच्छ रख सकेंगे जहां सब कुछ अशुद्ध है। 

परमेश्वर ने इस्राएलियों को दो श्रेणियाँ दीं ताकि वे शुद्ध और अशुद्ध में फर्क कर सकें। आसान बनाने के लिए उसने मूसा और हारून को एक सूची दी। उदाहरण के लिए, कुछ पशु खाने के लिए शुद्ध थे और कुछ नहीं। दो भाग में फटे खुर के साथ जुगाली करने वाला पशु शुद्ध था। जैसे गाय, बकरी, और भेड़। यह बहुत दिलचस्प है की इस्राएलियों को उस पशु के मांस को खाने की अनुमति दी गई थी जिनको वे बलिदान करते थे। हर भोजन में जब मांस परोसा जाता था, इस्राएलियों को यह स्मरण दिलाया जाता था की वह अलग किया हुआ था। परमेश्वर ने उनके आहार को विशेष रूप से बनाया था। (सिकंदर, स्वर्ग से वादे वादा के देश में, 229) 

जिस पशु के खुर फटे हुए नहीं थे या वे जुगाली नहीं करते थे, उन्हें खाने किअनुमति नहीं थी। इस्राएलियों को उन्हें अशुद्ध मानना था। उन्हें खरगोश और सुअर और ऊंट जैसे पशुओं से दूर रहना था। यदि वे उन्हें खा लेते हैं या एक मरे हुए को छु लेते हैं, उन्हें पूरे दिन अशुद्ध माना जाएगा। कोई भी अपवित्र व्यक्ति या कोई भी चीज़ किसी भी चीज़ को छु लेती है, तो वह भी अशुद्ध हो जाती थी। हर किसी को उनसे दूर रहना पड़ता था। उन्हें अपने कपड़े धोने पड़ते थे और स्वच्छ होने के लिए शाम तक इंतजार करना पड़ता था।

परमेश्वर ने शुद्ध और अशुद्ध पशुओं और पक्षियों को दो सूचियों में बाट दिया। वे टिड्डियों जैसे कीड़ों को खा सकते थे जिनके पैर जुड़े होते हैं। वे उन कीड़ों को नहीं खा सकते थे जिनके पंख थे और वे अपने पैरों पर चलते थे। यदि उनके बर्तन में एक अशुद्ध प्राणी गिर जाता है, तो वह बर्तन अशुद्ध हो जाता है और उसके मालिक को उसे तोड़ना होगा। अशुद्ध जीव को तम्बू में रखना मूर्खता थी। उन्हें वास्तव में अपने घरों को स्वछ रखना बहुत ज़रूरी था। उन्हें देखते रहना पड़ता था यदि कोई रेंगने वाली चीज़ उनके घर में ना हो।  

शुद्ध और अशुद्ध पशुओं के विचार इस बात को परिलक्षित करते थे किइस्राएल के लोग साफ़ थे और दूसरे देशों से अलग किये गए थे। वे शुद्ध पशु थे, और राष्ट्र एक अशुद्ध जीव थे! इस्राएलियों के लिए दूसरे देश के लोगों के साथ खाना मुश्किल था क्यूंकि उनके आहार बहुत अलग थे। मिस्र के और कनान के लोग कुछ ऐसी चीज़ों को मेज़ पर परोस सकते थे जो इस्राएलियों को अस्वीकार करना पड़ता। परमेश्वर अपने लोगों को जीवन कि हर छोटी और बड़ी बातों से अपने लिए अलग कर रहा था। (सिकंदर, स्वर्ग से वादे के देश में, 230)।

हारून और मूसा को खाने के बारे में इन निर्देशों को देने के बाद परमेश्वर ने कहा;

"'मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ! मैं पवित्र हूँ इसलिए तुम्हें अपने को पवित्र रखना चाहिए।''' लैव्यव्यवस्था 11: 44a

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं किइस्राएलियों की पहचान परमेश्वर के साथ इस तरह की जाती थी। उन्हें सम्मानजनक तरीके से रहना था क्यूंकि परमेश्वर अति सम्मानजनक है। परमेश्वर के निकट रहना उन्हें ऊंचा उठाता था। परमेश्वर उनकी समझ को उस दिशा में बदल रहा था जो उनके लिए ठीक था! वह उनके स्तर को दूसरे देशों के तुल्य बहुत अधिक ऊंचा कर रहा था। यह परमेश्वर का अपने लोगों के प्रति प्रेम था जिसके कारण वह उन्हें स्वाभाविक रूप से बहतर करना चाहता था और उन्हें ऐसा बनने का रास्ता प्रदान कर रहा था।