पाठ 128 : यहोवा बलिदान सिखाता है - भाग 3: शुद्धिकरण की भेटें
परमेश्वर ने अगली भेंट बहुत दिलचस्प तरीके से समझाई। यह शुद्धिकरण, या पापबलि कहलाता था। यह भेंट उनके लिए थी जो पाप के कारण परमेश्वर से दूर भटक जाते थे। विशेष रूप से जब कोई परमेश्वर के पवित्र नियमों के विरुद्ध कुछ करता था। चाहे उन्होंने जान बूझकर किया या ग़लती से किया हो, उन्हें भेंट को लाना था। यदि वे किसी भी तरह से अशुद्ध हो जाते हैं तो उन्हें पापबलि लाना होता था। एक स्त्री जिसके एक बच्चा हुआ है और वह विधिपूर्वक अशुद्ध हो जाती है, तो उसे अपने परिवार के साथ आकर भेंट चढ़ानी होती थी। लोगों के पाप और अशुद्धता वेदी को प्रदूषित कर देते थे, और फिर उसे शुद्ध करना होता था। भेंट किआज्ञाकारिता उस व्यक्ति को साफ़ करती थी और क्षमा मिलती थी जो भेंट ले कर आता था।
परमेश्वर ने शुद्धिकरण के लिए विभिन्न प्रकार के पशुओं को भेंट के लिए ठहराया। यदि एक याजक पाप करता है, तो उसे एक बैल लाना होता था। उसे अपने सिर पर अपने हाथ को रख कर परमेश्वर के आगे उसे वध करना होता था। उस अभिषेक किये याजक को मिलापवाले तम्बू में प्रवेश कर के उस खून को ले जाना था। उसे उस परदे पर सात बार लहू को छिड़कना था जो सन्दूक और अति पवित्र स्थान को अलग करता था। छिड़काव पूरे मंदिर के शुद्धिकरण का प्रतीक था। याजक एक उच्च और पवित्र लोग थे, और उन्हें परमेश्वर के लिए अलग किया गया था। उनका परमेश्वर के विरुद्ध पाप, एक गहरा, और अधिक शक्तिशाली अपराध होता था। यह परमेश्वर के पवित्र स्थान में प्रवेश करता था! खून के द्वारा शुद्धता पर्दे तक होती थी। पूरे मंदिर का शुद्धिकरण होना आवश्यक था। तब याजक कुछ खून लेकर पवित्र स्थान में धूप की वेदी के सुनहरे सींगों पर लगाता था। बैल का शेष खून आंगन में रखे कांस्य वेदी पर डाला जाता था। उसकी त्वचा, सिर, पैर, और भीतरी भागों को डेरे के बाहर ले जाया जाता था। इस्राएलियों को डेरे के बाहर के स्थान को साफ़ रखना होता था। बैल के शेष भाग को वहां पर जला दिया जाता था। यह ऐसा था मानो पाप और अपराध के कारण पूरा पशु दूषित हो गया था, और उसे पूरी तरह से परमेश्वर कि उपस्थिति से दूर ले जाना था।
इस्राएल के पूरे समुदाय के पापों का बलिदान और अभिषेक किये याजकों के लिए परमेश्वर के निर्देश वही थे। जिस तरह एक याजक के पाप बहुत गंभीर थे, इस्राएल देश के पाप भी वैसे ही थे जो वे मिलकर करते थे। याजक परमेश्वर के सामने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता था और पवित्र स्थान में हर दिन परमेश्वर के सामने लोगों को लाता था। वह एक कवच को पहनता था जिस पर इस्राएल के बारह जनजातियों के नाम बारह पत्थर के साथ बने होते थे। जिस प्रकार याजक के पाप पवित्र स्थान को दूषित करता था, राष्ट्र के पाप भी अति पवित्र स्थान में सन्दूक तक उनके पाप घुस जाते थे।
जब लोगों को अपने पाप पता चलते थे, उन्हें इकट्ठा होकर मंदिर में एक बैल को लाना होता था। बुज़ुर्ग उस बैल को कांस्य वेदी पर लाते थे और अपने सिर पर अपने हाथ रखते थे। फिर उन्हें उसे वध करना होता था। याजक उसके लहू को पवित्र स्थान में लेजा कर सात बार परदे पर छिड़कता था। अधिक खून को स्वर्ण वेदी के सींगों पर लगाया जाता था, जिसका धुआं परमेश्वर के लोगों किप्रार्थना का प्रतीक था। और याजकों के बलिदान कितरह, बाकि के खून को आँगन में कांस्य वेदी के पाए पर उंडेल दिया जाता था, और उसकी चर्बी वेदी पर पूरी तरह से जला दी जाती थी। यह बलिदान वेदी का शुद्धिकरण करेगा जो उनके पाप के कारण अशुद्ध हुआ, और परमेश्वर उनके पापों को क्षमा करेगा। बैल के बाकी भाग को डेरे से बाहर ले जाकर जला दिया जाता था।
समुदाय से यदि कोई याजक पाप करता था और नियम के विरुद्ध कोई काम किया हो, उसे भी एक शुद्धिकरण की भेंट लानी होती थी। बकरे के लहू को कांस्य वेदी पर लगाया जाता था। यदि कोई समुदाय में से परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध पाप करता था, तो उसे मादा बकरी लानी होती थी। बकरे का खून मिलापवाले तम्बू के बाहर आंगन में कांस्य वेदी पर रखा जाता था।
याजकों और पूरे समुदाय और अगुवों के पापों और आम लोगों के लिए बलिदान में एक अंतर होता था। याजक और राष्ट्र को एक बैल लाना होता था, और खून परमेश्वर के भीतरी अभयारण्य के परदे तक जाता था। लेकिन जब समुदाय में किसी अगुवे या व्यक्ति को अपने पाप का एहसास होता था, तो उन्हें आंगन में कांस्य वेदी पर बकरियों को बलिदान करना होता था। आपको क्यों लगता है कि ऐसा अंतर किया जाता था?
जितना अधिक पाप था, उतना ही गहराई से वह परमेश्वर के पवित्र स्थान में प्रवेश होता था। इस्राएल को परमेश्वर के लिए अलग किया गया था। उनका डेरा एक पवित्र राष्ट्र था। मंदिर को डेरे के ठीक बीच में रखा जाना था। जितना अधिक कोई अति पवित्र स्थान की ओर बढ़ता था उतना ही मंदिर कि पवित्रता और शुद्धता बढ़ती जाती थी, जो परमेश्वर की अपने सांसारिक सिंहासन कि चौकी थी। आँगन में कांस्य वेदी एक पवित्र स्थान था जहां लोग परमेश्वर के आगे अपनी भेंट चढ़ाते थे। फिर भी कांस्य सोने के समान इतनी कीमती धातु नहीं है, और बाहरी आंगन अति पवित्र स्थान के समान इतना पवित्र नहीं था। और अति पवित्र स्थान की तरह जहां परमेश्वर का सन्दूक रखा गया था, कोई और चीज़ उसकी तुलना में उतनी पवित्र और शुद्ध नहीं थी। आम अगुवे और इस्राएली आंगन में आ सकते थे, लेकिन वे मिलापवाले तम्बू में प्रवेश नहीं कर सकते थे। याजक धूप जलाने के लिए मिलापवाले तम्बू में प्रवेश कर सकते थे, लेकिन वे परम पवित्र स्थान में प्रवेश नहीं कर सकते थे। केवल महायाजक परम पवित्र स्थान में प्रवेश कर सकता था, और वह भी साल में एक ही बार।
जितना अधिक पाप था, उतना ही वह मंदिर के पवित्र स्थानों में प्रवेश होता था। एक याजक जो परमेश्वर के लिए अलग किया गया है या पूरे राष्ट्र द्वारा किया गया पाप बहुत गंभीर होते थे। वे पर्दे तक प्रवेश करते थे। याजक को इसे शुद्ध करने के लिए पर्दे को साफ़ करना पड़ता था। याजक और आम लोगों के पाप बहुत गंभीर होते थे, लेकिन वे केवल बाहरी आंगन में प्रवेश करते थे।याजक खून को कांस्य वेदी पर लगा देता था, और यह वेदी को शुद्ध करने के लिए काफ़ी था।