कहानी १६९: क्रूस की मौत का रास्ता
यीशु के खिलाफ सज़ा, पिलातुस द्वारा घोषित की गई थी। उन्होंने सैनिकों की पूरी रोमी सेना को अंगना में बुलाया। अपनी बोरियत को दूर करने के लिए,प्रभु के आसपास एकत्र हुए एक सौ से अधिक पुरुष उसका ठट्ठा उड़ाने के लिए वहाँ जमा थे। उन्होंने यीशु का वस्त्र छीन लिया और उन पर एक बैंगनी वस्त्र डाल दिया। उन्होंने उनके सिर पर कांटों का मुकुट रखा और उनके प्रभुत्व का मज़ाक बनाने के लिए उनके दाहिने हाथ में एक ईख डाली। वे नकली श्रद्धा में उनके सामने झुक कर कहने लगे - "यहूदियों के राजा की जय हो! '"तब वे उस ईख से उनके सिर को पीटने और थूकने लगे।
यह सभी के बावजूद, यीशु ने कुछ नहीं कहा। जबकि वह एक पल में अपनी मदद के लिए दस हजार स्वर्गदूतों को बुला सकते थे, वह अपने पिता की इच्छा में पूर्ण समर्पण और आज्ञाकारिता में वहाँ खड़े रहे। यह एक शानदार शक्ति, और एक गौरवशाली नम्रता थी। उनकी भक्ति, स्वर्ग के उच्च राजा के लिए थी, और वह जानते थे कि उनके पिता यह सब देख रहे हैं। वह समझते थे कि दूसरी तरफ जीत उनका इंतजार कर रही है, और उन्होंने अपने पिता की ओर आज्ञाकारिता की वजह से होने वाले अपमानित घटनाओं को तुच्छ जाना।
जब सैनिकों ने यीशु का मजाक उड़ा लिया, तो उन्होंने बैंगनी वस्त्र निकाल कर, उन पर वापस उनके कपड़े डाल दिए।उन्होंने उनकी पीठ पर क्रूस का एक छोर रखा, और उन्हें क्रूस पर चढ़ाने के लिए, यरूशलेम में से ले गए। जब वह चल रहे थे, लकड़ी का वजन यीशु के लिए बहुत ज्यादा हो गया। उनका शरीर एक बहुत कमजोर स्थिति में था। तो सैनिकों ने सिरेन नामक स्थान के शमौन नाम के राहगीर को पकड़ लिया। वो फसह उत्सव के लिए देश से यरूशलेम में आया था। वो नहीं जानता था कि परमेश्वर ने उसके लिए क्या रखा है। सैनिकों ने उस पर यीशु का क्रूस उठाने का दबाव डाला। यरूशलेम के पूरे शहर को इन गतिविधियों का ज्ञान हो गया था, और भीड़ सड़कों पर भर गई थी। जैसे यीशु आगे चल रहे थे, शिमौन उनके पीछे भरी भीड़ के साथ पीछे चल रहा था।
राष्ट्र, अपनी सांस यह जानने के लिए पकड़ी हुई थी कि क्या यीशु मसीहा था। शक्तिशाली, चमत्कार काम करने वाले शिक्षक और धार्मिक नेताओं के बीच संघर्ष की स्थापना, तीन साल के तनाव में उमड़ गई थी। जैसे जैसे यीशु यरूशलेम की ओर जा रहे थे, अफवाहें उड़ने लगी। हर किसी की यह आशा थी कि फसह पर्व पर मामला उलझेगा, लेकिन इस तरह नहीं। यह कैसे हो सकता है? मसीहा को सत्ता में आना था! उन्हें एक लोहे की लाठी से प्रभुत्व के साथ शासन करना था! उन्हें राष्ट्रों को जीतना था! आधी रात के कार्यवाही, बर्बर पिटाई की कहानियां, हेरोदेस और पीलातुस के महल के दौरे, पागल की तरह राष्ट्र में घूम रहे थे। जब यीशु शहर के बीच से गए, सब कुछ ठहर गया। इस प्रदूषित जुलूस का शोर यरूशलेम भर में सुनाई आ रहा था। भीड़, क्रूस पर चड़ाए जाने वाले प्रसिद्ध युवा शिक्षक की एक झलक पाने के लिए दौड़ी। वह कितना कमजोर और खून से सना था! वह अपने स्वयं का क्रूस नहीं उठा पा रहा था! क्या यह वास्तव में अंत था? उनकी शिक्षाए कितनी सीधी, सही और सुंदर थी। बहुतों के लिए ऐसा हो रहा होगा जैसे मानो स्वयं अच्छाई ही मर रही है। उन सड़कों में कितने अन्य ने यीशु से चंगाई प्राप्त की होगी? जो यीशु को सुनने के लिए मीलों दूर चल के आते थे, आज उनके जीवन का परिणाम, दहशत में खड़े देख रहे थे। यीशु का अपमान येरूशलेम के साल में एक ऐसे दिन पर था जब ज्यादातर लोग, उस एकलौते, सच्चे मेमने के बलिदान को देखते।
कुछ महिलाए जो यीशु को प्यार करती थी, अपने प्रभु की पीड़ा पर रोते हुए विलाप कर रही थी। यीशु अपने वफादार लोगों के साथ बात करने के लिए मुड़े:
यीशु ने उन की ओर फिरकर कहा; हे यरूशलेम की पुत्रियो, मेरे लिथे मत रोओ; परन्तु अपने और अपके बालकों के लिए रोओ। क्योंकि देखो, वे दिन आते हैं, जिन में कहेंगे, धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया। उस समय वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो। क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साय ऐसा करते हैं, तो सूखे के साय के साथ क्या कुछ न किया जाएगा| --लूका २३:२८-३१
बात असल में यह थी कि यीशु जानते थे कि एक ऐसा समय आने वाला था जब यरूशलेम को मसीहा के तिरस्कार के पाप के लिए पूर्ण परिणाम प्राप्त होगा। उसी सुबह, महायाजकों ने रोमी केसर के लिए अपनी वफादारी घोषित की थी, और लोगों ने यीशु का खून अपने खुद के सिर पर और अपने बच्चों के सिर पर होने की अनुमति दी! और परमेश्वर उन्हें अपने रास्ते जाने की अनुमति दे रहे थे। अपने जीवनकाल में, भीड़ जो यीशु के क्रूस के मार्ग के आसपास धूम मच रही थी, यरूशलेम के लोग यह जानेंगे कि भयानक रोमी सेना की दया पर निर्भर होने का मतलब क्या होता है। वहां कोई दया नहीं होगी। रोम, यरूशलेम को घेराबंद कर देगी। दीवारों के भीतर लोग पीड़ा और भुखमरी में महीने गुजारेंगे। वे घृणित पाप में एक दूसरे पर बारी होंगे। फिर रोमी सेना अपने शक्तिशाली हथियार के साथ पूरी ताकत में हमला करेगी। वो सड़कों जहाँ लोग चलते थे और शानदार मंदिर बर्बाद हो जाएगा, और यहूदी राष्ट्र पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। यीशु जानते थे कि यह भयानक कार्यवाही एक निश्चित अंत लाएगी। तीन दिनों में, वह अनन्त महिमा को फिर से जी उठेंगे। लेकिन कई भयावहता अभी भी यरूशलेम के लोगों के सामने थी। मसीह की आत्मा इतनी महान थी कि यीशु इतनी भयानक यातना के बीच में, कयामत के रास्ते पर चलने वाले लोगों को दया और चेतावनी दे सकते थे|