कहानी १६७: पीलातुस और हेरोदेस के पास
पेंतुस पीलातुस के जैसे आदमी के लिए, यहूदी महासभा के पुरुष एक हास्यास्पद भीड़ की तरह होंगे। पिलातुस रोमी राज्यपाल था जिसे दुनिया में सबसे शक्तिशाली आदमी द्वारा नियुक्त गया था - रोमी कैसर। रोमी साम्राज्य ने ज्ञात दुनिया पर विजय प्राप्त की और सैकड़ों वर्ष के लिए इतिहास पर प्रभुत्व की। इस्राएल के देश का नक्षा एक तुच्छ धब्बे की तरह लगता था। उनके धार्मिक नेता भी हर रूप में भ्रष्ट, और सत्ता के भूखे थे- ठीक रोमी राजनीति में खेलने वालों की तरह, पर बिना उस आकर्षण और चमक धमक के। वे एक राष्ट्र के रूप में स्वयं के महत्व से भरे थे, जो बाकि दुनिया के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। रोमियों के लिए इन पर आँखे चड़ाना आसान था, लेकिन पिलातुस के लिए, वे एक वास्तविक खतरा थे। यहूदी नेतृत्व का लोगों पर जबरदस्त प्रभाव था। वे एक विद्रोही उन्माद में भीड़ को उकसा सकते थे। जो आखरी चीज़ पिलातुस चाहता था वो था रोम को एक रिपोर्ट कि वह अपनी सत्ता को कायम नहीं रख सकता है।
जब महासभा यीशु के साथ पहुंची, उन्होंने अंदर कदम रखने से इनकार कर दिया। यह एक बड़ा किला था जहाँ रोमी राज्यपाल रहता था, और इसलिए उसकी भूमि अशुद्ध थी। अगर यहूदी अंदर चले जाते, तो वे अशुद्ध हो जाते। वो फसह के बाकी के पर्व को मनाने के लिए अयोग्य हो जाते। पिलातुस यहूदियों के धार्मिक रीति रिवाजों के प्रति संवेदनशील था, इसलिए वह उनसे मिलने के लिए बाहर चला गया। वहां वो यीशु के सामने खड़ा हो गया, जिसके हाथ पैर एक आम कैदी की तरह बंधे हुए थे। उनका चेहरा चोट के निशान से भरा हुआ था। इस साधारण आदमी ने कैसे इन शक्तिशाली पुरुषों को ऐसे आक्रोश में डाल दिया, और वो भी उनके त्योहार के चरम बिंदु पर? और वे उसे वहां क्यूँ ला रहे थे?
"'तुम इस आदमी के खिलाफ क्या आरोप लगते हो?'" पिलातुस ने पूछा।
"'अगर यह आदमी बुराई का कर्ता नहीं होता, हम इसे आप के पास नहीं लाते," उन्होंने कहा। "'हमने इस आदमी को हमारे देश को गुमराह करने और कैसर को कर का भुगतान मना करने का, और खुद को मसीह -एक राजा घोषित करने के अपराध में पाया है!'"
ज़ाहिर है, यह आरोप झूठे थे। और यह उन आरोपों से काफी अलग थे जो उन्होंने अपने स्वयं की कार्यवाही में घोषित की थी। लेकिन पेंतुस पीलातुस और रोमी साम्राज्य इस बात की परवाह नहीं करते थे कि कौन अपने को यहूदी मसीह बोलता है, और वे इसके लिए मौत की सजा कभी नहीं देते। यहूदी नेतृत्व इस से अच्छी तरह परिचित थी, इसलिए उन्होंने झूठे आरोप बनाए ताकि वो पिलातुस को यीशु को मौत के सजा सुनाने के लिए विश्वास दिला सके। वे यह बोल रहे थे कि यीशु ने अपने को रोमी कैसर की शक्तियों के मुकाबले किया। यह एक इतना हास्यास्पद दावे की तरह लग रहा था कि पिलातुस ने इसे आसानी से खारिज कर दिया। उसने कहा, "'उसे अपने आप ले जाओ और अपने खुद के कानूनों द्वारा उसका न्याय करो।"
"'हम कानूनी रूप से किसी को मौत की सज़ा नहीं सुना सकते है," उन्होंने उत्तर दिया।
आह। उनके आने का असली कारण पता चल रहा था। वे जंजीरों में इस आदमी को मारना चाहते थे। रोमी लोग अपने न्याय की नीतियों पर गर्व करते थे, और पीलातुस जानता था कि धार्मिक नेताओं को उसे सच बताने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसे कोई दूसरे रास्ते से पता लगाना होगा कि असल बात क्या थी। तो उसने यीशु को अंदर बुलाया ताकि वे अकेले में उनसे बात कर सके।
"'क्या तुम यहूदियों के राजा हो?'" उसने पुछा। अब, रोमी राज्यपाल भी यह सुझाव दे रहा था कि यीशु एक राजा हो सकता है!
"'क्या आप अपनी स्वयं की पहल पर यह कह रहे हैं, या क्या दूसरों ने आपको मेरे बारे में बताया है?'" यीशु ने उत्तर दिया।
"'मैं एक यहूदी तो नहीं हूँ, हैना?" पिलातुस ने कहा। "'तुम्हारे अपने ही देश और महायाजक ने तुमको मुझे सौपा है। तुमने क्या किया है?"
क्या यह दिलचस्प नहीं है कि पिलातुस यहूदियों के बातों से ज्यादा यीशु को सुनना चाहता था? वो प्रभु को उनके भ्रष्ट नेतृत्व के उन्माद के उपरान्त, अपना नाम साफ़ करने का मौका दे रहा था।
यीशु ने उत्तर दिया: "मेरा राज्य इस दुनिया का नहीं है। अगर मेरा राज्य इस दुनिया का होता, तो मेरे दास जंग छेड़ रहे होते ताकि मै यहूदियों को न सौपा जाऊं; लेकिन, मेरा राज्य इस दायरे से नहीं है। '"
कल्पना कीजिये कि उनका जवाब पिलातुस को कितना अटपटा लगा होगा। उसने यीशु से पुछा: "'तो तुम एक राजा हो?"
प्रभु ने उसे बोला: "'आपने मुझे राजा कहकर सही बोला है। मैं इसलिए पैदा हुआ हूँ, और इसलिए दुनिया में आया हूँ ताकि मैं सच के लिए साक्षी दे सकूं। जो कोई मेरी आवाज सुनता है, सच्चाई सुनता है।'"
"सच्चाई क्या है? '" पिलातुस ने कहा।
यह स्पष्ट था कि यीशु रोमी साम्राज्य के लिए कोई वास्तविक खतरा नहीं थे। रोम, दार्शनिकों और शिक्षकों से भरा था जो अपना जीवन उच्च विचारों पर चर्चा करके बिताते थे, और वे एक अहिंसक भीड़ थे। पिलातुस यह नहीं समझा कि यीशु ही वास्तव में सत्य है, जो जिंदा और मनुष्य के रूप में अवतीर्ण हैं, और यह कि वह पिलातुस द्वारा पूछे गए हर गंभीर सवाल का जवाब दे सकते थे। लेकिन वो यह जानता था कि यह आदमी मौत के योग्य नहीं है। वो बाहर महासभा के मंथन गुस्से में चला गया और घोषणा की, "'मैं उस में कोई दोष नहीं पाता हूँ।'"
महायाजक और बड़े बहुत कठोरता से यीशु पर आरोप लगाने लगे। उनके उठे हाथों और हिंसक जुनून में उठाए आवाज की कल्पना कीजिये। यीशु उनके व्यंग्य का सामना करते हुए, चुपचाप, पूर्ण संतुलन में खड़े रहे। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। लोगों को सच्चाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी। पिलातुस चकित था। वह यीशु को वापस अंदर ले गया और उससे कहा: "क्या तुम्हारे पास कोई उत्तर नहीं है? देखो वो तुम्हारे खिलाफ कितना दोष लगा रहे हैं!"
पिलातुस यीशु के पास वहाँ खड़े होकर उन्हें कुछ बोलने के लिए उत्साहित कर रहा था ताकि वो यीशु के बचाव में कुछ कह सके। लेकिन यीशु ने पहले से ही सच्चाई पर पिलातुस के सवालों का जवाब दे दिया था, और उन्हें अधिक कहने के लिए कुछ भी नहीं था।
पिलातुस यीशु पर हैरान था। यीशु के शाही, आत्मसमर्पित शान्ति के विपरीत, धार्मिक नेता गंभीर से गंभीर सजा की मांग करते रहे। "'वह यहूदिया भर में शिक्षण देता है - गलील से शुरू करके और यहाँ इतनी दूर तक वो लोगों को उकसाता है।'"
पिलातुस के आगे एक समस्या बड़ती जा रही थी। वो जानता था कि लोग झूठ बोल रहे थे और आरोप झूठे थे, लेकिन वे इसे जाने के लिए राज़ी नहीं थे। और इस यीशु ने खुद का बचाव करने से इनकार कर दिया था। वह अपने को इस झंझट से बाहर कैसे निकले?
जब उसने सुना कि यीशु गलील से नीचे आया है, उसने पूछा था अगर यीशु वास्तव में एक गलीली था। क्यूंकि बात असल में यह थी कि हेरोदेस अन्तिपस उस क्षेत्र के उत्तरी भाग पर शासक नियुक्त किया गया था, तो फिर पेंतुस यह मामला उसे सौप देता। हेरोदेस को उसके बजाय इस झंझट को संभालना पड़ता!
हेरोदेस उस समय यरूशलेम में था, तो पिलातुस ने यीशु को उसके पास भेज दिया। हेरोदेस यीशु के आने पर खुश था। उसने उन सब चमत्कारों के बारे में सुना था और चाहता था कि यीशु उसके लिए कोई चिन्ह का प्रदर्शन करें। इस हेरोदेस को लोगों को एक तार पर टंगे कठपुतलियाँ बनाकर इस्तेमाल करने की आदत थी क्यूंकि उसे इससे रोमांच होता था। उसने एक बारअपनी युवा सौतेली बेटी को अपना आधा राज्य देने का वादा किया था क्योंकि उसने अपने नृत्य के साथ उसके मेहमानों को खुश किया। उसकी भयानक इच्छा थी एक थाली पर यूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले का सर। राजा हेरोदेस को इस तरह का विद्रोही अनुरोध मना करने का साहस नहीं था, और इसलिए यीशु के चचेरे भाई को उसी दिन मौत का सामना करना पड़ा।
यह सोचना दिलचस्प है यीशु की उन प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रतिक्रिया क्या थी जो पिता उसके मार्ग में लाए थे। जिनके दिल खुले लेकिन चोट खाए हुए थे, उनके लिए वह चमत्कार और सच्चाई का संदेश लाए। शिष्यों या निकोदेमुस या मार्था और मरियम की तरह विश्वास में उनके साथ खड़े होने वालों के लिए, उन्होंने परमेश्वर के रहस्यों के बारे में गहरे से गहरा खुलासा किया। यीशु ने पीलातुस के सवालों के जवाब इज्ज़त और सम्मान से दिया - अपने उच्च, अनन्त राज्य के बारे में रहस्य एक ऐसे आदमी के साथ बांटा जो अधिकार के स्तरों और दुनिया में शासन के बारे में बहुत समझटा था। परमेश्वर के अपने लोगों के कड़े - दिल, धार्मिक नेताओं के लिए, वह पश्चाताप करने के लिए और परिवर्तन लाने के अवसरों के साथ बार - बार आए। जब उन्हें मारने के लिए कार्यवाही चल रही थी, तो उन्होंने जवाब नहीं देने का कारण यह बताया कि वो नहीं सुनेंगे। यह छोटी सी स्पष्टीकरण भी उनके नेताओं को मन बदलने के लिए एक 'दरवाजे में एक दरार' का एक अवसर प्रदान करती थी।
यीशु ने प्रत्येक व्यक्ति से उनके जरूरत के स्थान पर मुलाकात की और खुद को ऐसे दिया जिसको वो समझ नहीं सकते थे, प्रत्येक को उतना उभारा जितनी आत्मा ने उन्हें अनुमति दी। यहाँ तक कि उनकी चेतावनी भी एक दया थी, क्योंकि वह एक दयावंत परमेश्वर की चेतावनियाँ थी। तो यह देखना दिलचस्प है कि जब प्रभु को हेरोदेस के सामने लाया गया था, यीशु ने पत्थर जैसी चुप्पी बनाई रखी।
धार्मिक नेता अपने आरोपों और मांगों के साथ आए थे। हेरोदेस को उनके लिए कोई बड़ा स्नेह नहीं था। उन्होंने एक दूसरे के प्रति आपसी अवमानना में लंबे साल बिताए थे। इसके पश्चात, वह सवाल के बाद सवाल के साथ यीशु की ओर मुड़े, लेकिन यीशु के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था। परमेश्वर का पुत्र, परमेश्वर की शक्ति और सच्चाई का इस्तेमाल इस घृणित आदमी द्वारा अपने खुद के मनोरंजन के लिए अनुमति नहीं देगा। जैसे ही हेरोदेस को यह एहसास हुआ कि उसका यीशु पर कोई बोलबाला नहीं था, उसका मोह उपहास में बदल गया। उसने इस भटकते उपदेशक के साथ मनोरंजन का एक और रास्ता निकल लेगा। वह और उसके साथ सैनिक प्रभु का ठठ्ठा उड़ाने लगे। उन्होंने एक राजा के लायक एक खूबसूरत, शाही वस्त्र लेकर उसके कन्धों एक चारों तरफ बाँध लिया, और इस बढ़ई के शाही सत्ता के योग्य होने के दावे को तिरस्कृत करने लगे। तब उन्होंने यीशु को वापस पिलातुस के पास भेजा। उस समय तक, हेरोदेस और पीलातुस के बीच एक शांत दुश्मनी रही थी। पर जब दोनों को इस शांत उपदेशक के खिलाफ परिहासशील यहूदी नेताओं का सामना मिलकर करना पड़ा लेकिन, उनको एक जुट होने का मौका मिला। वे महासभा से घृणा करते थे, और सच्चा राजा जब आया, तो अपने घुटने झुकाने में विफल रहे। उस दिन से, वे दोस्त बन गए।