कहानी १६६: सरकारी कार्यवाही
धार्मिक शासकों ने उनकी गिरफ्तारी की रात से पहले ही यीशु की कार्यवाही के परिणाम का फैसला कर लिया था। उनको यह सुनिश्चित करना था कि यह उनकी मौत के साथ समाप्त होगी।वो बहुत ज्यादा खतरनाक था। लेकिन कैफा के घर में मसीह के साथ गुप्त रूप से धौस जमाना अवैध था। क्यूंकि यह रात के अंधेरे में आयोजित किया गया था, उनके निर्णय में कोई बाध्यकारी शक्ति नहीं थी। परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार, उनको पूरे महासभा के सामने, दिन की रोशनी में एक पूर्ण पैमाने पर यह कार्यवाही आयोजित करनी थी। लेकिन दिन के उजाले में, यरूशलेम की सड़कों पर फसह पर्व की भीड़ भी एकत्रित होती। यीशु बेहद लोकप्रिय थे, और उसकी गिरफ्तारी की खबर तेजी से फैल जाती। याजक जानते थे कि अगर लोगों को यह पता चले कि यीशु एक अपराधी ठहराया गया है, तो एक गंभीर विद्रोह हो सकता था। तो सुबह तडके, भीड़ के जागने से पहले, वे इस कार्यवाही को महायाजक के घर से सामान्य वकील कक्ष में ले गए।
महायाजक और पुरनी यीशु की मृत्यु पर चर्चा करने के लिए इकट्ठे हुए। तब वे प्रभु को आगे लाए और उनसे पूछा, "'अगर तुम मसीह हो, तो हमें बताओ।'"
यीशु ने उत्तर दिया: "'अगर मैं आपको बताऊंगा, तो आप यकीन नहीं करेंगे, और अगर मैं एक सवाल पूछू, तो आप जवाब नहीं देंगे।" वह जानते थे कि उनके पास इन लोगों के साथ बात करने के लिए कोई कारण नहीं था। तो उन्हेंने उनके जानलेवा महत्वाकांक्षाओं को औचित्य साबित करने के लिए जानकारी दे दी:
'' लेकिन अब से, मनुष्य का पुत्र परमेश्वर की शक्ति के दाहिने हाथ पर बैठेगा'"
वाह। एक बार फिर, यीशु ने ना केवल यह घोषित किया कि वह दिव्य थे, लेकिन यह कि वह परमेश्वर के सिंहासन से पृथ्वी पर सत्ता में राज करेंगे। क्या उनमे से कोई यह सुन कर काँप उठा? क्या उनमें से किसी ने इसकी सच्चाई के बारे में चिंता नहीं करी? यदि उन्होंने किया भी, तो उनमें से किसी ने कुछ नहीं कहा। "'हमें आगे और गवाही की क्या जरूरत है?'" उन्होंने डाह से घोषणा की। "'हमने उसके ही मुंह से अपने आप सुना है।'"
अब, यहूदा अभी भी आसपास छिपा देख रहा था कि क्या होने जा रहा था। जब उसने देखा की कार्यवाही बदतर होती जा रही है, उसे एहसास हुआ कि उसके पूर्व गुरु की मौत जल्दी आ रही है। अचानक, वह पश्चाताप से भर गया। उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था कि बात यहाँ तक पहुँच जाएगी! वह अपने चांदी के तीस टुकड़ों के साथ महायाजक के पास गया। "'मैंने निर्दोष खून को धोखा देकर पाप किया है।'"
वे अवमानना के साथ यहूदा को देखने लगे। एक निष्पक्ष सुनवाई की गवाही में, इस तरह का एक बदलाव बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था। यह कोई साधारण गवाह नहीं था, यह वही था जिसने यीशु को पकड़वाया था। निश्चित रूप से, उसके शब्दों को भारी वजन मिलते - इसलिए क्यूंकि वो यीशु के आंतरिक चक्र का एक सदस्य था! देशद्रोही अपनी बेगुनाही की घोषणा करने आया था! लेकिन धार्मिक नेता यीशु को मारने की अपनी योजना के रास्ते में आई कोई जानकारी में दिलचस्पी नहीं रखते थे। "'हमें इससे क्या लेना देना? इसको अपने आप देख लो! '"वे बोले।
यहूदा ने मंदिर में ही चांदी के सिक्के फेके और भाग गया। अपने दुख और निराशा में, वह एक खेत में गया और खुद को गर्दन से लटका दिया। दिन की भयावहता फैल रही थी।
नेता जानते थे कि वह यह सिक्के मंदिर के खजाने में नहीं डाल सकता थे। यह खून का पैसा था। यह कलंकित था। उन्होंने इस बात को अनदेखी किया कि वे विश्वासघात खरीदने के लिए पैसे का उपयोग करने से, उस पैसे से ज्यादा कलंकित थे। उन सिक्कों से ज्यादा, परमेश्वर के मंदिर में इन याजकों की कोई जगह नहीं थी। सभी सच्ची धार्मिकता पूरी तरह से त्यागी हुई थी, लेकिन वे, खुद के साथ भी, इस ढोंग को ज़ारी रखते रहे। उन्होंने यहूदा के चांदी के सिक्कों से 'पॉटर फील्ड' नामक एक क्षेत्र को खरीदा - यह एक जगह थी जहाँ राष्ट्र के लिए अजनबी को दफन किया जाता था। आने वाले महीनों और वर्षों में, यह ", हकेल्दामा" के नाम से जाना गया, या 'रक्त का खेत।'
और परमेश्वर का वचन पूरा किया गया। यह वैसे हुआ जैसे यिर्मयाह ने कहा था:
उन्होंने वे तीस सिक्के अर्थार्थ उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्त्राएल की सन्तान में से कितनोंने ठहराया था) ले लिए।
और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी, वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया।।
जैसे यीशु की कार्यवाही का दिन चल रहा था, प्रभु के सच्चे अनुयायी बिखरे हुए थे। महासभा ने उनके परमेश्वर को दोषी ठहराया और उसे बाध्य कर दिया। अब जब उनका खुद का फैसला औपचारिक हो गया था, उन्होंने यीशु को रोमी राज्यपाल के सामने ले जाने का फैसला किया। असल में, महासभा की शक्ति बहुत सीमित थी। वे वास्तव में अपने देश पर राज नहीं करते थे। रोमी साम्राज्य ने उन्हें राज्य में कुछ आजादी दी थी, लेकिन प्राधिकरण के असली मुद्दों में, वे अप्रासंगिक थे। वे यहूदी लोगों पर हावी हो सकते थे जो परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में उनके साथ सम्मानजनक थे। वे अपने प्रतिष्ठा के बल का उपयोग कर उन्हें डरा धमका सकते थे। लकिन सच्चाई यह थी कि जो कुछ भ वो करते थे, उसे रोम के आदेशों के साथ अनुकूल होना था। उनके पास किसी पर मौत की सजा सुनाने की कोई शक्ति नहीं थी। अगर वे चाहते थे कि यीशु को मारा जाए, तो उन्हें उसे रोमी राज्यपाल के पास ले जाना पड़ता था, क्यूंकि यह निर्णय उन्ही के हाथों में था।
जिस रोमी सम्राट को यहूदिया के नेत्रित्व में डाला गया था, उस आदमी का नाम पेंतुस पीलातुस था। वह क्रूर होने के लिए जाना जाता था, और वह यहूदी लोगों से सख्त घृणा करता था। वे एक क्षुद्र, अपरिष्कृत समुदाय था जिसके लोग हमेशा एक दुसरे से छोटी छोटटी बातों में युद्ध करते थे। रोम की भव्यता और उसके शानदार इमारतों, उनके शानदार सेनाओं में प्रदर्शित विशाल शक्ति, साम्राज्य भर में स्थापित अविश्वसनीय सामाजिक आदेश, और उनके राजनीतिक प्रणाली की भव्यता की तुलना में, इसराइल पृथ्वी में एक बेजोड़, पिछड़ा छेद लगता था।
पिलातुस एक ऐसी धूल भरी, फुटपाथ जैसे राज्य पर शासन के सौंपे जाने पर खुश नहीं था - थिस्सलुनीके या इफिसुस की तरह विशाल महानगरों के मामलों और सुख से इतनी दूर। यह एक अपमान था। लेकिन उसकी जगह उन शक्तिशाली पुरुषों के साथ बहस करने के लिए नहीं थी जिन्होंने उसे वहां रखा। अगर वह उनकी अच्छी तरह से सेवा करता, तो शायद वे उसे एक अधिक सहमत स्थल के लिए उसे बढावा देते - ऐसा जो वास्तविक सत्ता और प्रतिष्ठा की हो। रोम को उसके साथ खुश रहना था, इसलिए यह इसका फ़र्ज़ था कि वह दुनिया के इस कोने में शांति बनाए रखे। तो जब यीशु की कार्यवाही के दिन पूरी महासभा रोमी सेनापति के रियासत में गुस्से से घुसी, उसने इस बात पर ध्यान दिया। यह बात आखिरकार कहाँ तक जएगी?