कहानी १५५: यीशु का अंतिम भोज-भाग 1 

The Washing of the Feet

गुरुवार आया। यह अखमीरी रोटी का दिन था। मिस्र में उस दिन की याद में शासकीय फसह के मेमने को बलिदान किया जाएगा।बेदाग भेड़ के बच्चे के रक्त को हर एक इस्राएली घर के चौखट पर लगाना था। इससे उनका पहलौठा पुत्र बच गया और स्वतंत्रता के द्वार को खोल दिया गया। वह पहला बलिदान और उद्धार केवल एक रूप था और यीशु अपने ही लहू से खरीदने वाला था।

चेलों ने उससे पुछा कि तैयारी के लिए वह क्या चाहता था कि कहाँ की जाये।

उसने यूहन्ना और पतरस से कहा,
“'तुम जैसे ही नगर में प्रवेश करोगे तुम्हें पानी का घड़ा ले जाते हुए एक व्यक्ति मिलेगा, उसके पीछे हो लेना और जिस घर में वह जाये तुम भी चले जाना। और घर के स्वामी से कहना,‘गुरु ने तुझसे पूछा है कि वह अतिथि-कक्ष कहाँ है जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ फ़सह पर्व का भोजन कर सकूँ।’ फिर वह व्यक्ति तुम्हें सीढ़ियों के ऊपर सजा-सजाया एक बड़ा कमरा दिखायेगा, वहीं तैयारी करना।'”

वे चल पड़े और वैसा ही पाया जैसा उसने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया। यीशु के अपने पिता के आज्ञाकारी होने के साथ ही उस पवित्र योजनाओं का खुलासा हो गया। हर एक पल परमेश्वर कि ओर से नियुक्त था और यीशु उसे पूरी श्रेष्ठा से प्रदर्शित कर रहे थे।

संध्या काल में,यीशु अपने शिष्यों के साथ भोजन पर बैठा। उसने उनसे कहा,“'यातना उठाने से पहले यह फ़सह का भोजन तुम्हारे साथ करने की मेरी प्रबल इच्छा थी। क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तक परमेश्वर के राज्य में यह पूरा नहीं हो लेता तब तक मैं इसे दुबारा नहीं खाऊँगा।'”

इसे समझिये, यीशु परमेश्वर था और परमेश्वर उससे असीम प्यार करता था।  फिर भी जब यीशु उस पाप के ढेर को उठाये हुए था, वह उन स्वार्थी चेलों के साथ ही रहना चाहता था। उसका प्रेम उनके प्रति गुणवत्ता के अनुसार नहीं था। उसके प्रेम कि महानता उसके प्रेम करने कि योग्ता के कारण था। जब हम उन बातों को पढ़ते हैं जो उसने अपने चेलों के साथ बांटीं, हम उसके वचन को बहुत ही व्यक्तिगत तरीके से ले सकते हैं। वे हमारे भी हैं।

जब यीशु भोजन कर रहा था, वह जानता था कि यह उसके कष्ट उठाने से पहले का अंतिम भोज है। फिर भी उसका उद्देश्य क्रूस पर से नहीं हटा। वह क्रूस के माध्यम से उस विजय कि ओर देख रहा था। एक बहुत जश्न जिसे मेमने के विवाह का भोज कहा जाता है, आ रहा था। वे जो यीशु कि मृत्यु और जी उठने के कारण बचाय गए वे एक बार फिर उसकी यशस्वी  दुल्हन बनकर उसके साथ भोजन करेगी। वह जानता था कि वह परमेश्वर कि ओर से आया है और अपने पिता के पास वापस चला जाएगा। वह जानता था कि उसके पिता ने उसे उसके हाथ में सब कुछ दे दिया है। अभी वह गया नहीं था और अंत तक अपनों से प्रेम करता रहेगा।

यीशु  उठा और अपने बाहरी वस्त्र उतार दिये और एक अँगोछा अपने चारों ओर लपेट लिया। फिर एक घड़े में जल भरा और अपने शिष्यों के पैर धोने लगा और उस अँगोछे से जो उसने लपेटा हुआ था, उनके पाँव पोंछने लगा। अपने स्वामी को ऐसे करते देख वे अचंबित हुए। यह एक बहुत नीच और गन्दा काम था। इस्राएल में, केवल वे जो यहूदी नहीं हैं वे ही यह काम करते थे। लेकिन यहं यीशु यह सब काम कर रहा था।

फिर जब वह शमौन पतरस के पास पहुँचा तो पतरस ने उससे कहा,“प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धो रहा है।”

उत्तर में यीशु ने उससे कहा,“अभी तू नहीं जानता कि मैं क्या कर रहा हूँ पर बाद में जान जायेगा।”

पतरस ने उससे कहा,“तू मेरे पाँव कभी भी नहीं धोयेगा।”

यीशु ने उत्तर दिया,“यदि मैं न धोऊँ तो तू मेरे पास स्थान नहीं पा सकेगा।”

शमौन पतरस ने उससे कहा,“प्रभु, केवल मेरे पैर ही नहीं, बल्कि मेरे हाथ और मेरा सिर भी धो दे।”

यीशु ने उससे कहा,“जो नहा चुका है उसे अपने पैरों के सिवा कुछ भी और धोने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि पूरी तरह शुद्ध होता है। तुम लोग शुद्ध हो पर सबके सब नहीं।” वह उसे जानता था जो उसे धोखे से पकड़वाने वाला है। इसलिए उसने कहा था,“तुम में से सभी शुद्ध नहीं हैं।”

यीशु ने यही रात क्यूँ चुनी चेलों के पैर धोने के लिए? वह उसके मरने के पहले की अंतिम घड़ी थी। वे अपने जीवन भर उस समय को याद रखेंगे। वह उस रात जो कुछ भी कहता वह बहुत महत्वपूर्ण होता।

उनके पैर धोना उस बात का चिन्ह था जो यीशु अपनी मृत्यु के समय उनके लिए करने जा रहा था। वह श्राप के बंधन को तोड़ने जा रहा था।  के पाप से मृत्यु आई, यीशु कि मृत्यु उन सब के लिए जीवन को लाएगा जो उस पर विश्वास करते हैं (रोमियो 4और5) वह पाप में गिरे संसार को समाप्त करके एक नए दौर को लेकर आ रहा था। नेही विधि के अनुसार, जो कोई भी यीशु पर विश्वास करता है वह पूर्ण रूप से साफ़ किया जाएगा और परमेश्वर के साथ सिद्ध होगा। उन्हें यीशु कि धार्मिकता दी जाएगी। उसी समय से, वे नए हो जाएंगे। उनके हिरदय बदल जाएंगे, और वे फिर कभी इस दुनिया के नहीं होंगे। जब व पाप करेंगे, वे परमेश्वर के सामने खोये हुए नहीं होंगे। उन्हें केवल पश्चाताप करने कि ज़रुरत है। वह उनके उन गंदे क्षेत्रों को साफ़ करेगा जिस प्रकार उसने चेलों के पैरों को धोया था। जो कोई यीशु पर विश्वास करता है वह यह विश्वास कर सकता है कि परमेश्वर ने उसे साफ़ किया है। फिर भी उसके चेलों को आवश्यकता है कि वे रोज़ अपने पापों को शुद्ध करने के लिए उसके पास आयें जब तक वे इस शार्पित संसार में जी रहे हैं।

जब यीशु ने कहा कि सरे उसके चेले साफ़ नहीं थे, तो उसका किसकी ओर निशाना था? क्या यहूदा जानता था कि यीशु को मालूम है? जब यीशु उसके पाँव धो रहे थे तब उसे कैसा लग रहा होगा? उस समय, और पूरे हफ्ते भर, यहूदा के पास पश्चाताप करने का पूरा समय था। परन्तु जिस समय यीशु उसके पाँव के मेल को धो रहे थे, उसके हिरदय के मेल को वह पकड़ा हुआ था। और इसीलिए वह अपने पाप में स्थायी था।

जब यीशु उनके पाँव धो चुका , तब उसने उनसे कहा,
“'क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे लिये क्या किया है? तुम लोग मुझे ‘गुरु’ और ‘प्रभु’ कहते हो। और तुम उचित हो। क्योंकि मैं वही हूँ। इसलिये यदि मैंने प्रभु और गुरु होकर भी जब तुम्हारे पैर धोये हैं तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोना चाहिये। मैंने तुम्हारे सामने एक उदाहरण रखा है ताकि तुम दूसरों के साथ वही कर सको जो मैंने तुम्हारे साथ किया है। मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ एक दास स्वामी से बड़ा नहीं है और न ही एक संदेशवाहक उससे बड़ा है जो उसे भेजता है यदि तुम लोग इन बातों को जानते हो और उन पर चलते हो तो तुम सुखी होगे।'"  --यूहन्ना १३:१२-१७

यीशु ने अपने चेलो को समझाया कि अब जब उनके पाप धूल चुके हैं, उन्हें आगे बढ़ना है। यीशु पाप और मृत्यु पर विजयी होगा और एक नया दौर शुरू होगा। जो कुछ यीशु ने किया था वे उसके दूत थे, जो उसके सन्देश को संसार में फैलाएंगे। परमेश्वर का राज्य अंधकार के राज्य में के समान घुसेगा और लोग अपने जीवन को यीशु को देंगे। वे भी साफ़ किये जाएंगे और जिस प्रेम कि समिति उन्होंने बनाई है वह इस पृथ्वी के राज्य के लिए ढाल बन कर खड़ी होगी। वे एक दुसरे के साथ कैसा व्यवहार करेंगे? क्या वे फरीसियों के समान लालची होंगे जो अपने पद के लिए लड़ते थे? या वे अपने स्वामी के समान वैसा ह्रद्य रखेंगे? क्या वे विनम्रता और शांति बनाने वाले बनकर एक दुसरे पाँव को धोएंगे? इस पवित्र समय में जब यीशु ने पने चेलों के पाव धोये, वह उस शारीरिक प्रदर्शन को दिखाता है कि कैसे स्वर्गराज के नागरिकों को एक दुसरे के प्रति अपने ह्रदय को रखना है।