कहानी १५४: यीशु के खिलाफ साज़िश
महासभा रोष से खदबदा रही थी। तीन साल के लिए उन्होंने इस युवा ढोंगी, यीशु नाम की अभिमानी निन्दा सही थी। कैसे उसने जानबूझकर खुद परमेश्वर के चुने हुए देश पर शासन करने के ठहराए नेतृत्व की खिल्ली उड़ाई, और अपने आकर्षण और शैतानी चमत्कार के साथ लोगों को चालाकी से अपने वश में किया। उन्होंने लोगों के विद्रोह को प्रोत्साहित किया, पवित्र आदेशों के तोड़ने को गर्व से दिखाया, और लोगों की कमजोरियों पर हावी होकर, उनका समर्थन हासिल किया। इस्राएल के देश के समक्ष चुनौतियाँ आई थीं, लेकिन इस झूठे नबी ने उन सब को मात दी।
एक बार फिर से,फसह के पर्व पर, उसकी यह हिम्मत थी कि उसने मंदिर में घुसकर, जीवित परमेश्वर के पवित्र महल के आंगनों में अपने झूटों का एह्लान किया। मूर्ख भीड़ मंत्रमुग्ध थे। यहाँ तक कि नेताओं के सदस्यों ने उसकी ओर से बहस करने की कोशिश की; लेकिन वह अब बहुत हद पार कर चुका था। परमेश्वर के वचन का मोड़ना, विश्राम के दिन के लिए उसकी उपेक्षा, हजारों साल की परंपरा के लिए उसका अनुचित अवमानना, उसकी पापियों की पसंद इसके बजाय पवित्रता और वचन शुद्धता वाले लोगों की, उसके दावे कि वह स्वयं परमेश्वर की ओर से बोलता है, और इस राज्य की उसकी बात... वह देश के लिए खतरा था! अफवाहे यह भी थी कि वह राजा बनना चाहता था! रोमी इस को बरदाश्त नहीं करेंगे और न तो उच्च यहूदी अदालत। इस आदमी को मरना ही था। देश को बचाने का यह एक ही रास्ता था।
साजिश और योजनाऐ महीनों से चल रहीं थी। देश भर में यह बात फैल गई कि यीशु कलंकित था। यह आवश्यक था कि यहूदी नेतृत्व उनके खिलाफ कुछ खोजने के लिए एक साथ काम करे। उन्हें यीशु को अपने ही शब्दों में पकड़ना था; उन्हें यीशु को विधर्मी साबित करने के लिए सबूत ढूँढना था। लेकिन यह यीशु चालाक था। ऐसा लगता था कि शैतान खुद इस बढ़ई की आकर्षित शब्दों को प्रेरित कर रहा था। उन्होंने देश में सबसे प्रतिभाशाली वकीलों को हराया और उन्हें चकित छोड़ दिया।
दूसरी समस्या यह थी कि उसे ढूँढना मुश्किल था। उनकी अपनी कोई आराधनालय नहीं थी और वह अपने समय को बेपरवा भीड़ों में घूम कर, उनके झोपड़ियों में सो कर, और नशा करने वालों में प्रचार कर गवा देते थे। वह एक बंजारे की तरह इस्राएल भर में अपने फटे पैर लेकर चलते और अपने छोटे घिसे पिटे झुण्ड के साथ घूमते जिसे वो 'शिष्य' कहते थे। उनमें से हर एक वही अज्ञानी किस्म के थे जिनकी शिक्षा की कमी की वजह से वह आसानी से बेवकूफ बन जाते थे। उनके प्रिय शिक्षक के जाने के बाद वे क्या करेंगे? उनमें से किसी एक के भी पास, उस गलील के कपटी बढ़ई जैसा आकर्षण नहीं था। जैसे ही वह मर जाएगा, वे भाग निकलेंगे, और फिर सब कुछ शांत हो जाएगा।
अब, अंततः यीशु उनकी मुट्ठी में था, लेकिन भीड़ ने उसे गिरफ्तार करना असंभव बना दिया। वह लोकप्रिय था। भीड़ ने वास्तव में इस अफवाह पर विश्वास किया कि उसने यहूदिया में अपने मृत दोस्त को मुर्दों से जिलाया। अन्य कहानियां भी उड़ रही थी, जैसे कि दस कोड़ियों की चंगाई। उसके दावे कितने अविश्वासनीय थे, इसकी कोई बात नहीं थी; जब तक भीड़ को यह चमत्कार सच लगते थे, उन्हें इंतज़ार करना था। अगर वे उसे गिरफ्तार करने की कोशिश करते, तो एक दंगा तो होना ही होना था। जब फसह की भीड़ छट जाएगी, तब वे आगे बड़ सकते थे। वे उसे चुपके से और बल द्वारा ले जाकर मार सकते थे। वे यह नहीं जानते थे कि इतना सब कैसे होगा, लेकिन उनके यह करने के जुनून ने इसे मुमकिन बना दिया।
फसह का पर्व दो दिन के बाद था। यरूशलेम की सड़कों पर लोगों का तांता लगा हुआ था। यीशु और उनके चेले, उनके बीच दिन के उजाले के घंटे बिताते थे। सुबह में, लोग मंदिर में यीशु को सुनने के लिए उत्सुक, खोजते थे। वह उनकी एक ऐसी भूख मिटाते थे जिसे वह स्वयं ही नहीं जानते थे। शाम को, यीशु किद्रों की छोटी सी घाटी में और ऊपर जैतून के पहाड़ पर यात्रा करते। वे रात को वहां आराम करते पर सुबह फिर लोगों के पास वापस चले जाते।
इस हलचल के बीच, यीशु के शिष्यों में से एक के मन में चुप्पी से कुछ भयावह चल रहा था। उसके विचार अंधेरे में बदल गए थे। लूका कहता है कि शैतान ने खुद उसमे प्रवेश किया था। बाइबल हमें यह नहीं बताती है कि यहूदा ने यह भयानक काम क्यों किया। यह शैतान का उसके दिल के विद्रोह पर अपने बुरे काम की व्याख्या नहीं करता है। यह केवल इस अकल्पनीय विश्वासघात के बारे में बताता है। उस सप्ताह के एक बिंदु पर, वह प्रभु और चेलों और भीड़ से दूर घिसक गया, और उसने अपना रास्ता महायाजक की ओर रेंगा। उसने पूछा: ' तुम मुझे उसको तुम्हारे हवाले करने के लिए कितना दोगे?' उन दुष्ट निगाहों की कल्पना कीजिए जब उन्होंने उसे देने के लिए तीस चांदी के सिक्के तौले होंगे। यह लगभग चार महीने के वेतन के बराबर था।
जमीन को गड़गड़ाना चाहिए था। पृथ्वी में दरार आनी चाहिए थी। सूरज को शोक के साथ अपनी चमक को छिपाना चाहिए था। किसी को विलाप करना था: " ब्रह्मांड के प्रभु को धोखा दिया गया है!" और शायद स्वर्ग में उन्होंने ऐसा किया हो।
उसने चमत्कार देखे थे। उसने सभी उज्ज्वल, स्पष्ट सबक सुने और अंतहीन यात्रा पर उसके साथ गया था। उसने सख्त धरती को अपना बिस्तर मान कर कई मुश्किल रातें ठंड में बिताई होंगी। वह प्रभु के पीछे हर जगह जाता था और उसे उनके आंतरिक चक्र में आमंत्रित किया गया था! लेकिन जब समय पूरा हुआ, तो वह कपटीपना के लिए रवाना हो गया। वह ऐसा कैसे कर सकता था? वह ऐसा कैसे कर सकता था? वह चंद सिक्कों के लिए प्रभु को धोखा कैसे दे सकता था? हम नहीं जानते है क्यूँ। यह अटपटा है। लेकिन उसने ऐसा किया।
धार्मिक नेताओं के दुष्ट खुशी की कल्पना कीजिए। कल्पना कीजिये कि उन्होंने कैसे मज़ाक बनाया होगा जब उन्होंने यीशु के ही लोगों में से एक के साथ साजिश रची। अचानक, जो काम इतना जटिल लग रहा था, एकाएक सरल हो गया। उनके पास एक भेदी था। उन्हें यीशु को भीड़ के सामने गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं थी, जहाँ उन्हें जनता का सामना करना पड़ता। वे यीशु को रात में उठाकर, बल से महायाजक के घर लेजाकर, और उससे संख्या में बढ़ सकते थे। जिस समय तक गिरफ्तारी की खबर भीड़ तक पहुँचती, सब कुछ समाप्त हो सकता था। नेता एक घोषणा जारी कर सकते थे, और भीड़ को इसे स्वीकार करना होगा। वे इस उपद्रवी को पक्के रूप से अपमानित और शांत कर सकते थे। कोई भी फिर से उनके अधिकार को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करेगा।
अपने सभी पाप और विद्रोह के बीच में, यह पुरुष यह नहीं देख पा रहे थे कि उनके नापाक इरादों को कैसे परमेश्वर की अकथनीय सुंदर योजना को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। उसने इस बात को ठहराया था कि मसीह फसह के पर्व पर अपने जीवन को दे देंगे। यह पर्व उस समय को मनाता था जब परमेश्वर ने एक भेड़ के बच्चे के लहु और लाल सागर के माध्यम से दमनकारी मिस्र के साम्राज्य से इसराइल को उद्धार लाए थे। अब, परमेश्वर एक नया रास्ता निकाल रहे थे, उद्धार का पूर्ण रूप जो अंतिम, परम जीत होगी। यीशु का रक्त उनके शरीर के टूटने के माध्यम से, उद्धार का रास्ता बनाएगी। धार्मिक नेता भीड़ के चले जाने तक प्रतीक्षा करने के लिए तैयार थे। लेकिन यहूदा के विश्वासघात ने यह सुनिश्चित किया कि यह परमेश्वर के सटीक, नियत दिन पर हो।