कहानी ११०: युद्ध

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प्रभु का दिन आने वाला है, और जिस समय यीशु पृथ्वी पर चला करते थे, वह उसकी अपेक्षा करते थे। वो दिन न्याय का दिन होगा और अविश्वास और विद्रोह के विरुद्ध में आग होगी। जो उस पर विश्वास करेंगे उनके लिए उद्धार का दिन होगा। अभिशाप का अंतिम समय होगा, और युगानुयुग कि शांति का एक नया दौर शुरू होगा। बाइबिल कहती है कि हम सब को उस दिन की अपेक्षा करनी चाहिए! लेकिन दुष्ट को पूरी तौर से हारना बाकि है। यीशु इस पृथ्वी पर अपने चुने हुओं को अंधकार के राज्य से बचाने के लिए आया था। ऐसा करने के लिए, वह अपने आप को पिता कि आज्ञा के अनुसार बलिदान करने जा रहा था। उसने कहा :

“'मैं धरती पर एक आग भड़काने आया हूँ। मेरी कितनी इच्छा है कि वह कदाचित् अभी तक भड़क उठती। मेरे पास एक बपतिस्मा है जो मुझे लेना है जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ।'"

क्या आप यीशु को अपने भय के बारे में बोलते सुन सकते हैं जब वह मरने के लिए तैयार हुआ? यीशु के दुख कि कल्पना कीजिये जिससे वह गुज़र रहा था। वह जानता था कि अगले कुछ ही महीनों में वह क्रूस के लिए अपने आप को बलिदान करने जा रहा है। वह उन दुष्ट, स्वार्थी अगुवों को अनुमति देगा कि वे उसे क्रूस पर चढ़ाएं। पूरे समय, वह परमेश्वर के क्रोध को जो पाप और मनुष्य कि दुष्टता के विरुद्ध है, उसे सहेगा। क्रूस उसके जीवन के ऊपर एक परछाई कि तरह मंडराता रहेगा। उसकी उन बातों को समझना मुश्किल था जिस समय वह शिक्षण और चंगाई दे रहा था। वह कितना अद्भुद उद्धारकर्ता है जो हमारे बोझ को हमारे ऊपर ले लेगा। यीशु हमारी समझ से बढ़कर अच्छा है, निस्वार्थ है और हमारे प्रेम और भक्ति के योग्य है।

उसके जी उठने और मृत्यु और जी उठने से यीशु परमेश्वर के अनुग्रह के यशस्वी मार्ग को स्थापित कर रहा था। वह उद्धार को खरीद रहा था, और वे जो उस पर विश्वास कर रहे थे उनके लिए रास्ता तैयार कर रहा था। उसके उपहार को कोई कैसे इंकार कर सकता था? और फिर, आदम और हव्वा कैसे अपने परमेश्वर का इंकार कर सकते थे। कोई कैसे परमेश्वर से मुह मोड़ सकता है, और अपने पापों कि सीमा पार कर सकता है? इसका कोई अर्थ नहीं निकलता है! वो जानता था कि वे ना केवल उसके अनुग्रह और दया को अस्वीकार करेंगे। वे परमेश्वर के विरुद्ध दुश्मन के साथ मिलकर उससे लड़ेंगे। यीशु क्रूस पर चढ़कर विजयी हुआ और शैतान को हरा दिया लेकिन फिर भी शैतान बहुत नुक्सान करने से नहीं से तब तक नहीं रुकेगा जब तक यीशु दुबारा नहीं आता। यीशु जानता था कि पृथ्वी पर स्वर्ग के राज्य के फैलने से रोकने के लिए शैतान लड़ाई करेगा। वह लोगों को धोखे से अपनी ओर खीचेगा और उनको भी अपने साथ लड़ाई करने में शामिल कर लेगा। यीशु के  इस पृथ्वी पर के जीवन से लेकर जब तक वो दुबारा नहीं आ जाता, मानवजाति के बीच और अंधकार कि ज्योति और स्वर्ग राज्य कि ज्योति के बीच एक गहरा विभाजन रहेगा। यीशु ने इस तरह समझाया:

"'तुम क्या सोचते हो मैं इस धरती पर शान्ति स्थापित करने के लिये आया हूँ? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ, मैं तो विभाजन करने आया हूँ। क्योंकि अब से आगे एक घर के पाँच आदमी एक दूसरे के विरुद्ध बट जायेंगे। तीन दो के विरोध में और दो तीन के विरोध में हो जायेंगे।पिता, पुत्र के विरोध में, और पुत्र, पिता के विरोध में,माँ, बेटी के विरोध में,और बेटी, माँ के विरोध में,सास, बहू के विरोध में,और बहू, सास के रोध में हो जायेंगी।'"
लूका १२:४९-५३

इस महान युद्ध कि विभाजन करने वाली रेखा को क्रूस के पास लेकर जाया जाएगा। मानवता के बीच का महान विभाजन उनके बीच होगा जिन्होंने पाप को ढांपने के लिए बलिदान को स्वीकार किया और वे जिन्होंने उस अनुग्रह को अस्वीकार किया उनके बीच वो मानवता का महान विभाजन रहेगा। यह विभाजन बहुत से व्यक्तिगत रिश्तों के बीच से परिवारों के ह्रदयों को चीरता हुआ निकलेगा। यह हर एक व्यक्ति के ह्रदय से भी होकर निकलेगा, जिस समय वे उस पवित्रता और विश्वास जिसकी यीशु ने आज्ञा दी थी, उससे युद्ध कर रहे होंगे। यह वही विभाजन है जो यीशु के समय में उसके सुनने वालों के बीच था और आज हमारे समय में भी है।

जब यीशु गलील में जाकर प्रचार कर रहे थे, उसके सामना लोगों कि मूर्खता से होता रहा। यहाँ उनका मसीहा था, और वे उसे पहचान ना सके। स्वर्ग का राज्य निकट था, और परमेश्वर के उद्धार प्रगट होने वाला था, लेकिन लोग इसे नहीं समझ पाये। यीशु ने कहा:

“'जब तुम पश्चिम की ओर से किसी बादल को उठते देखते हो तो तत्काल कह उठते हो, ‘वर्षा आ रही है’ और फिर ऐसा ही होता है। और फिर जब दक्षिणी हवा चलती है, तुम कहते हो, ‘गर्मी पड़ेगी’ और ऐसा ही होता है।अरे कपटियों तुम धरती और आकाश के स्वरूपों की व्याख्या करना तो जानते हो, फिर ऐसा क्यों कि तुम वर्तमान समय की व्याख्या करना नहीं जानते?'"      लूका १२:५४-५६

यीशु लोगों को डांट रहे थे। कैसे वे मौसम कि तरह हो सकते हैं जो अस्थिर रहता है, और परमेश्वर के महान और शक्तिशाली कामों के प्रति इतने सुस्त कैसे हो सकते जो उनके बीच में होते आया है? तूफ़ान के बादल इस्राएल के ऊपर मंडरा रहे थे। न्याय होने वाला था। इस्राएल का राष्ट्र नहीं खड़ा हो पाएगा यदि वह मसीह को स्वीकार करता है! लोग इस भ्रम में जी रहे थे कि वे पाप में यूं ही जीते जा सकते हैं। क्या आप यीशु की निराशा देख सकते हैं? फिर उसने कहा:

“'जो उचित है, उसके निर्णायक तुम अपने आप क्यों नहीं बनते? जब तुम अपने विरोधी के साथ अधिकारियों के पास जा रहे हो तो रास्ते में ही उसके साथ समझौता करने का जतन करो। नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाधीश के सामने खींच ले जाये और न्यायाधीश तुम्हें अधिकारी को सौंप दे। और अधिकारी तुम्हें जेल में बन्द कर दे। मैं तुम्हें बताता हूँ, तुम वहाँ से तब तक नहीं छूट पाओगे जब तक अंतिम पाई तक न चुका दो।'”         लूका १२:५७-५९

इस छोटी सी कहानी में, आपको एक अपराध करने वाले आरोपी की कल्पना करनी है। वह दोषी है, और उसके अभियोक्ता के पास पूर्ण प्रमाण है। एक बार अदालत में जाकर अभियोक्ता न्यायाधीश को सभी सबूत दिखान देगा और उस आदमी को निश्चित रूप से जेल जाना होगा। उस आदमी को कौन सी सबसे चतुर बात करनी चाहिए?

• क्या उसे झूठ और निर्दोष होने का नाटक करना चाहिए?
• क्या वह यह मान ले कि न्यायाधीश उसे छोड़ देगा ?
• क्या वह इस झूठी आशा में जीता रहे कि और कोई अन्य कानूनी प्रणाली है?
• क्या उसे रास्ते भर उस अभियोक्ता को इंकार कर और उसका दुरुपयोग करना चाहिए?
• या फिर उसे अपने पापों को मान कर अभियोक्ता से निवेदन करना चाहिए, और एक अधिक उदार के लिए आशा रखनी चाहिए?

यीशु ने जब यहूदी लोगों से बात की थी, इससे पहले कि बहुत देर हो जाये वह उन्हें पश्चाताप करने के लिए बुला रहा था। परमेश्वर के पास उनके पापों का और उनके अनुग्रह कि आवश्यकता का पूरा सबूत था, और यीशु इसे देने के लिए तैयार था। परन्तु एक बार परमेश्वर के फैसले कि घड़ी आ गयी तो बहुत देर हो चुकी होगी।