कहानी १०२: सत्तर चेलों को नियुक्त करके भेजा जाना 

लूका १०:१-२४

यीशु अपने चेलों के साथ यहूदिया में ही था। मिलापवाले तम्बू का पर्व समाप्त हो गया था परन्तु यीशु के प्रति विरोध बढ़ गया था। येरूशलेम के धार्मिक अगुवे गुस्से से उबल रहे थे। जो लोग आपस में नफ़रत करते थे वे अब एक जुट होकर यीशु के विरुद्ध साज़िश रच रहे थे। उसे रोका जाना ज़रूरी था। वे उसे मरवा देना चाहते थे।

बहुत से उस पर विश्वास करते थे। जो साधारण लोग थे वे अचंबित रहते थे। जो लोग यीशु से नफरत करते थे वे मूसा कि व्यवस्था को अच्छी तरह जानते थे। वे परमेश्वर के वचन में माहिर थे! यदि उनके कठोर नियमों कि खातिर लोगों में दूरियां आ गयीं थीं तो यह दर्शाता है कि परमेश्वर भी कितना निराश और दूर हो गया था! इस्राएल में बहुत से लोग अपने पापों के कारण भयानक रूप से शर्मिंदा महसूस कर रहे थे और उस वयवस्था से जो उनके ऊपर मंडरा रही थी। और लोग बहुत कुटिल थे। उन्होंने यह देखा कि किस तरह धार्मिक अगुवों ने अपने लिए धन जमा कर लिया था। वे मंदिर में जानवरों के बेचे जाने से कितने अपमानित थे और उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि ये धार्मिक अगुवे जो पवित्र परमेश्वर कि प्रतिनिधि करते हैं इस बात से बिलकुल भी अपमानित नहीं हुए। उन्हें अपने आप के पाप तो दिखे, लेकिन उन्हें उन धार्मिक अगुवों के भ्रष्टाचार और अहंकार भी दिखाई दिए। वे इन बातों से कई सालों से पीड़ित थे।

जिन बातों को यीशु उन्हीं दिखा रहा था उन बातों से लोगों को एहसास हो रहा था। वे इन बातों का चर्चा बंद दरवाज़ों के पीछे करते थे, क्यूंकि वे परमेश्वर के दिखाये रास्तों को और शासन चलाने वालों के रास्तों को लेकर भ्रमित थे।

जब यह यीशु बोला तब उसने यहोवा के यशस्वी आश्चर्य को और उसके उज्जवल, स्वच्छ और उत्तम राह को दर्शाया। उसने मानव जाती के पाप के कारण लाये सब अव्यवस्था को अपने ऊपर ले लिया था। उनका देश कितना सुन्दर होता यदि उन्होंने उसकी बातों को सुना होता! वह उस राज्य कि बात कर रहा था जिसके विषय में सुनकर उनके ह्रदय आनंदित हो जाते। वह अवश्य मसीहा होगा!

यीशु और उसके चेलों ने गलील के चरों ओर जा कर स्वर्ग राज्य का सुसमाचार सुनाया और उत्तरी इस्राएल के गाँव और शहरों में गए। अब वक़्त था कि दक्षिण में जाकर सुसमाचार सुनाएं।  इस बार उसने बहत्तर चेलों को नियुक्त करके उन्हें दो दो कर के भेजा। वे गाँव और शहरों में जा जा कर यीशु के आने कि खबर देंगे। वही उनका राजा था, जो स्वर्ग राज्य विषय में अपने पवित्र राष्ट्र को प्रचार कर रहा था। गलील मैम बहुतों ने यह विश्वास कर लिया था कि पश्चाताप कि प्रतिक्रिया और प्रभु कि ओर फिरना घटित नहीं हुआ। यहूदिया में क्या होगा? क्या वे सुसमाचार पर विश्वास और अपने उस राजा का आदर करेंगे? क्या वे पश्चाताप करेंगे?

यह उसके चेलों के लिए आज्ञा थी:
“'फसल बहुत व्यापक है किन्तु, काम करने वाले मज़दूर कम है। इसलिए फसल के प्रभु से विनती करो कि वह अपनी फसलों में मज़दूर भेजे।

“जाओ और याद रखो, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ के मेमनों के समान भेज रहा हूँ। अपने साथ न कोई बटुआ, न थैला और न ही जूते लेना। रास्ते में किसी से नमस्कार तक मत करो। जिस किसी घर में जाओ, सबसे पहले कहो, ‘इस घर को शान्ति मिले।’ यदि वहाँ कोई शान्तिपूर्ण व्यक्ति होगा तो तुम्हारी शान्ति उसे प्राप्त होगी। किन्तु यदि वह व्यक्ति शान्तिपूर्ण नहीं होगा तो तुम्हारी शान्ति तुम्हारे पास लौट आयेगी। जो कुछ वे लोग तुम्हें दें, उसे खाते पीते उसी घर में ठहरो। क्योंकि मज़दूरी पर मज़दूर का हक है। घर-घर मत फिरते रहो।

“और जब कभी तुम किसी नगर में प्रवेश करो और उस नगर के लोग तुम्हारा स्वागत सत्कार करें तो जो कुछ वे तुम्हारे सामने परोसें बस वही खाओ। उस नगर के रोगियों को निरोग करो और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’

“और जब कभी तुम किसी ऐसे नगर में जाओ जहाँ के लोग तुम्हारा सम्मान न करें, तो वहाँ की गलियों में जा कर कहो, ‘इस नगर की वह धूल तक जो हमारे पैरों में लगी है, हम तुम्हारे विरोध में यहीं पीछे जा रहे है। फिर भी यह ध्यान रहे कि परमेश्वर का राज्य निकट आ पहुँचा है।’ मैं तुमसे कहता हूँ कि उस दिन उस नगर के लोगों से सदोम के लोगों की दशा कहीं अच्छी होगी।

“ओ खुराजीन, ओ बैतसैदा, तुम्हें धिक्कार है, क्योंकि जो आश्चर्यकर्म तुममें किये गए, यदि उन्हें सूर और सैदा में किया जाता, तो न जाने वे कब के टाट के शोक-वस्त्र धारण कर और राख में बैठ कर मन फिरा लेते। कुछ भी हो न्याय के दिन सूर और सैदा की स्थिति तुमसे कहीं अच्छी होगी। अरे कफ़रनहूम क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा उठाया जायेगा? तू तो नीचे नरक में पड़ेगा!

“शिष्यों! तो कोई तुम्हें सुनता है, मुझे सुनता है, और जो तुम्हारा निषेध करता है, वह मेरा निषेध करता है। और जो मुझे नकारता है, वह उसे नकारता है जिसने मुझे भेजा है।'”  --लूका १०:२-१६

यीशु ने मंदिर में भीड़ को बताया था कि वह ज्योति है और वे सब जो उस पर विश्वास करते हैं उसकी ज्योति उनके अंदर होगी। इन चेलों को उस ज्योति को लेकर जाना था। उसके सन्देश को फ़ैलाने कि अत्यावश्यकता थी। बहुत सारा काम था और सुसमाचार को पूरे यहूदिया के क्षेत्र में फैलाना था। और इस काम के लिए मजदूर कम थे। उसने उनसे कहा कि वे फसल देने वाले परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह उनके कार्य को अशिक्षित करे। उनका कार्य केवल परमेशवर के बल से अगुवाई से सफल होगा। वे उसके दूत थे! यीशु ने उन्हें आदेश दिया कि वे राह में ना रुकें। हर एक को एक दिशा दी गयी थी और उन्हें उस काम को पूरा करना था! उसने उनसे कहा कि जब वे उस स्थान में पहुँचते हैं जहाँ उन्हें भेजा गया है, उन्हें वहाँ के लोगों कि खातिरदारी को स्वीकार करना है। जो कोई भी उनके दिए हुए सन्देश को अपने घर पर ले जाकर स्वीकार करता है, उसे परमेश्वर पिता स्वयं देगा। जो कोई उन्हें जो परमेश्वर के दूत का अतिथि-सत्कार करता है, उसे अवश्य प्रतिफल मिलेगा।

हर कोई इतना कृपालू नहीं होता है। यीशु ने उन्हें चेतावनी दी थी कि चाहे वे परमेश्वर के आज्ञाकारी भेड़ बनके जा रहे हैं, वहाँ लोगों के बीच में भयंकर भेड़िये होंगे जो प्रभु के सेवकों को फाड़ खाएंगे। यह सुनकर पता नहीं चेलों ने सहमति से अपना सिर हिलाया होगा या नहीं। वे यह पता था कि यीशु के विरुद्ध खड़े होने वाले ज़हरीले धार्मिक अगुवे भी हैं। वे जानते थे कि गाँव और शहरों में सुसमाचार सुनाने में, वे अपनी निष्ठां यीशु के प्रति दिखा रहे थे जो अधिकतर बलवान लोगों के विरुद्ध में था। यह एक बहुत ही साहसी काम था, और लोग इसे जान जाते। यहूदी लोग यह अच्छी तरह से समझते थे कि ये पुरुष सुसमाचार के लिए प्राण को जोखिम में डाल रहे थे और उन्हें अपने घर में बुलाना उन के लिए भी खतरा था।

मसीह कि सामर्थ और पापी लोगों कि सामर्थ के बीच संघर्ष हो रहा था और हर एक व्यक्ति को एक निर्णय लेना था। सन्देश को देने के लिए डर से बैठ जाना और क्षमा मांगने के बजाय, चेलों को स्वर्ग राज्य के सुसमचार को पूरे साहस के साथ सुनाना था, और वे जो उसका इंकार कर रहे थे उन्होंने एक बहुत ही कठोर और भयानक निर्णय ले लिया था। परमेश्वर के किसी एक दूत को इंकार करने का मतलब था परमेश्वर को इंकार करना, और बहुत से इस अवसर को खो देंगे! यहूदी संस्कृति में, यदि कोई अपने पाओं को किसी के विरुद्ध पोछता है तो इसे बहुत गम्भीरता से लिया जाता है। वे परमेश्वर के परिवार के नहीं रहे। यीशु अपने चेलों को यह अधिकार दे रहे थे कि वे उन सब को जो सुसमाचार का इंकार कर रहे थे, उन्हें भी इसके विषय में बताएं।

वे सत्तर चेले सफर को निकल पड़े। क्या आप उनकी कल्पना कर सकते हैं? हर एक चेला शहर में जाएगा और सुसमाचार को सुनाएगा। क्या होगा? क्या उनका स्वागत किया जाएगा? या क्या उन्हें शांत कर दिया जाएगा? क्या उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा? कौन से चमत्कारों को करने के लिए परमेश्वर उन्हें अधिकार देगा? इन आज्ञाओं को मानते हुए उन्हें कैसा लग रहा होगा!

यीशु भी अपने चेलों के पीछे गए और उन शहरों में प्रचार किया जो उसके लिए तैयार किये गए थे। जैसे ही चेले अपने कार्य को कर लेते थे वे वापस वहाँ जाते थे जहां यीशु होता था। जब वे वापस आते थे वे सारी घटनाओं को यीशु को बड़े उत्साह के साथ बताते थे। उन्होंने ने कहा,“हे प्रभु, दुष्टात्माएँ तक तेरे नाम में हमारी आज्ञा मानती हैं!” यीशु बंधन में जकड़े हुओं को छुड़ाने के लिए आया था, और अब उसकी सामर्थ भरी सेवकाई उसके वफ़ादार चेलों के भीतर से बह कर निकल रही थी!

ये मनुष्य उन लोगों से कितने भिन्न थे जो यीशु के पीछे येरूशलेम के मंदिर के आंगनों में झगड़ते रहते थे। धार्मिक अगुवे जब यीशु को मारने कि साज़िश रच रहे थे, ये साधारण लोग उसके विश्वास कि प्रतिक्रिया कर रहे थे। इसलिए यीशु ने उनके विश्वास को और मज़बूत किया और उन्हें स्वर्ग राज्य के यशस्वी कार्य के लिए खींचा! उन्हें स्वर्ग की तेजस्वी शक्ति प्रदान की!

यीशु ने उनसे कहा,“'मैंने शैतान को आकाश से बिजली के समान गिरते देखा है। सुनो! साँपों और बिच्छुओं को पैरों तले रौंदने और शत्रु की समूची शक्ति पर प्रभावी होने का सामर्थ्य मैंने तुम्हें दे दिया है। तुम्हें कोई कुछ हानि नहीं पहुँचा पायेगा। किन्तु बस इसी बात पर प्रसन्न मत होओ कि आत्माएँ तुम्हारे बस में हैं, बल्कि इस पर प्रसन्न होओ कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में अंकित हैं।'”

कुछ बहुत उल्लेखनीय हो रहा था। दुष्ट के विरुद्ध इस उल्लेखनीय लड़ाई में एक शक्तिशाली क्षण आया, जब यीशु के चेले, जो साधारण लोग थे उन्होंने जाकर परमेश्वर के राज्य के विषय में सुसमाचार सुनाया। यीशु संसार में पाप और मृत्यु पर विजय पाने के लिए आया था। ये दो बातें थीं जो शैतान इस दुनिया में आदम और हव्वा के पाप के माध्यम से लेकर आया था। यीशु के चेलों ने जब उस आने वाले विजय के बारे में सुसमाचार सुनाया, तब शैतान को अपने हार का बहुत बड़ा धक्का लगा। ज्योति का राज्य अंधकार के राज्य में प्रवेश कर रहा था।

यीशु जब साँपो और बिच्छुओं के विषय में कह रहा था, तो वह उन प्राणियों के विषय में बोल रहा था जिनसे कि हम भयभीत होते हैं। वह दुष्ट आत्माओं के विषय में बोल रहा था। सुसमाचार कि किताबें हमें यह बताती हैं कि दुष्ट आत्माएं लोगों को किस तरह बीमार करती हैं और उन्हें पागलपन के बंधन में जकड़ लेती हैं। यीशु ने अपने चेलों को उन पर और उनके दुष्ट योजनाओं पर अधिकार दिया था।

बंधनों को मुक्त करने कि सामर्थ से भी बढ़कर, यीशु ने कहा कि इन वफादार लोगों के लिए आनंद मनाने के लिए इससे भी बढ़ कर कुछ है। बाइबिल हमें बताती है कि स्वर्ग में एक विशेष किताब है जिसमें सब विश्वास करने वालों के नाम लिखे जाएंगे। जिस किसी का भी नाम उस जीवन कि पुस्तक में होगा वह अनंत जीवन को पाएगा। वे प्रभु के साथ स्वर्गलोक में युगानुयुग के लिए होंगे!

यदि आपने यीशु पर विश्वास किया है तो, आपका भी नाम उस जीवन कि पुष्तक में लिखा जाएगा जिसमे कि पतरस, याकूब और यूहन्ना के नाम होंगे! क्या आपका कोई ऐसा दिन या क्षण आया है जब आप ख़ुशी के मारे इतने ज़यादा आनंदित हुए हों? ऐसा ही अनुभव स्वर्ग में हम सब एक साथ करेंगे जहां यह कभी ख़त्म नहीं होगा। यह एक वादा है। हम इसी के लिए रुके हुए थे। यही एक सही कारण है जिसके लिए चेलों को आनंदित होना चाहिए। यह एक सबसे बड़ा, उल्लेखनीय, और अद्भुद आशा है!

यीशु इस विचार को लेकर इतने आनंदित हुए कि वे वहीं के वहीं आनंद मनाने लगे! उसने कहा,“हे परम पिता! हे स्वर्ग और धरती के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ कि तूमने इन बातों को चतुर और प्रतिभावान लोगों से छुपा कर रखते हुए भी बच्चों के लिये उन्हें प्रकट कर दिया। हे परम पिता! निश्चय ही तू ऐसा ही करना चाहता था।'"

उसने कहा,“'मुझे मेरे पिता द्वारा सब कुछ दिया गया है।'"

अब हमें मालूम हो गया है कि शैतान क्यूँ स्वर्ग से नीचे गिराया गया। जब आदम और हव्वा ने पाप किया तो, उन्होंने इस संसार को भयानक श्राप में डुबा दिया। उन्होंने दुष्ट के हाथ में उस ज़बरदस्त शक्ति को दे दिया था। लेकिन यीशु का आना इस सब को उल्टा कर देगा और ऐसा करने का वक़्त आ गया था। और एक दिन शैतान के राज्य का अंत आएगा। जब तक उसके पास शक्ति है, उसका नाश निश्चिन्त है। परमेश्वर पिता ने यीशु के अधिकार में सारे अधिकार और अधिराज्य को देने का वादा किया है!

आगे यीशु कहता है,"'और पिता के सिवाय कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र के अतिरिक्त कोई नहीं जानता कि पिता कौन है, या उसके सिवा जिसे पुत्र इसे प्रकट करना चाहता है।'” यीशु के चेले जानते हैं कि वह कौन है क्यूंकि उसने उनको अपने आप को प्रकट किया है। यीशु को परमेश्वर के पुत्र के रूप में जानने का कितना बड़ा अवसर है यह!

फिर शिष्यों की तरफ़ मुड़कर उसने चुपके से कहा,“'धन्य हैं, वे आँखें जो तुम देख रहे हो, उसे देखती हैं। क्योंकि मैं तुम्हें बताता हूँ कि उन बातों को बहुत से नबी और राजा देखना चाहते थे, जिन्हें तुम देख रहे हो, पर देख नहीं सके। जिन बातों को तुम सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, पर वे सुन न पाये।'”

वो क्या था जो राजा और नबी लोग देखना चाहते थे? वो कौन सी अद्भुद बातें थीं जो परमेश्वर ने पूर्व में अपने महान सेवकों से छुपा कर रही थी? परमेश्वर के सेवकों ने बहुत समय से यह आशा रखी थी कि परमेश्वर उन्हें दिखाएगा कि कैसे वह इस श्राप कि बड़ी समस्या को ठीक करेगा। वे व्यवस्था को जानते थे, और अपने पापों के लिए बलिदान भी चढ़ाते थे। उन्होंने मसीह के आने के विषय में बताया और उस राजा के बारे में जो दाऊद के सिंघासन पर विराजमान होगा। उन्होंने इस बात कि भविष्वाणी कि की मनुष्य का पुत्र अपने पूर्ण विजय में आएगा और उसके दुश्मन पर जय पाएगा। उन्होंने उस सेवक के विषय में कहा जो सारी पीड़ा को अपने ऊपर लेकर भुगतान करेगा, लेकिन उसके मार खाने सेवह बहुतों को चंगा करेगा। फिर भी उन्हें नहीं मालूम था कि कैसे परमेश्वर अपनी योजनाओं को पूरा करेगा, और वे उस महान रहस्य को पाना चाहते थे! ना केवल यह चेले उसके सब कार्यों के गवाह बन गए थे, वे उसके महाकाव्य कार्य में जो सबसे शक्तिशाली दुश्मन को हराने का था, उसके भी भागिदार बन गए थे! और हम और आप भी उसके भागिदार होंगे!