कहानी ९८: मिलापवाले तम्बू के पर्व पर यीशु येरूशलेम में: यीशु का आगमन 

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येरूशलेम जाने के लिए जब यीशु और उसके चेलों ने गुप्त तरीके से रास्ता निकाला, तब यहूदी उसके आने कि इंतेजारी में थे। लोग आपस में यह बातें करते थे कि यदि वह एक अच्छा आदमी था या धोखेबाज़ जो लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाना चाहता है। फिर भी वे अपने अगुवों के डर से ज़ोर से बातें नहीं किया करते थे। वे यीशु के सबसे शक्तिशाली दुश्मन थे, और वे एक साथ येरूशलेम में थे। उन्होंने यह मान लिया था कि यीशु एक झूठा शिक्षक है और वे उसे शांत कर देने कि साज़िश कर रहे थे। क्या वे इस बात को समझ पा रहे थे कि वे अपने ही लोगों को उनके मसीहा से अलग कर रहे थे? क्या उन्हें इस बात कि परवाह थी?

वे लोग जानते थे कि यदि उनके अगुवों ने उन्हें आपस में यीशु के विषय में बात चीत करते सुन लिया जिसे उन्होंने इंकार कर दिया था, तो वे बेहद नाराज़ होंगे। इसे बगावत कि तरह लिया जाएगा और इसकी सज़ा अवश्य होगी। लेकिन भीड़ उसके चंगाई और सामर्थी शिक्षाओं को अनदेखा नहीं कर सकती थी, और इसलिए वे आपस में बात करते जाते थे।

इन सब साज़िशों के बावजूद, यीशु मंदिर के ऊपर तक गया। उस दृश्य कि कल्पना कीजिये। वह विशाल मंदिर उसके आँगन के ऊपर सोने कि तरह चमक रहा था। हज़ारों लोग अपने अपने परिवारों के साथ अन्नाज लेकर मंदिर के संगीत को सुनते हुए वहाँ आएंगे।

यीशु के आने कि खबर सुनकर लोगों में जो शोर हुआ होगा उसकी कल्पना कीजिये! यीशु मंदिर में जा कर सीखने और प्रचार करने लगा। उसकी ऐसी हिम्मत को देख कर धार्मिक अगुवे कितने गुस्साए होंगे! फिर भी यह मंदी उसके स्वर्गीय पिता का मंदिर था, और उसे औरों से ज़यादा अधिकार था वहाँ आने का।

उसके शिक्षाओं को सुनकर भीड़ चकित रह गयी थी। फरीसियों और शास्त्रियों से उसने औपचारिक प्रक्षिशण नहीं लिया था फिर भी उसे इतना सब कुछ कैसे आता था।

उत्तर देते हुए यीशु ने उनसे कहा,“'जो उपदेश मैं देता हूँ मेरा अपना नहीं है बल्कि उससे आता है, जिसने मुझे भेजा है।'"

यह समझना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसमें गहराई भी है। यह एक ऐसी बात है जिसे हम सोचते हैं कि समझ चुके हैं लेकिन, हमें इसके अर्थ को और गहराई से समझना चाहिए। यीशु ने इंसान होते हुए उन बातों को नहीं सिखाया। उसने परमेश्वर कि ओर से भेजा हुआ एक उत्तम दूत कि तरह सिखाया। उसने परमेश्वर पिता कि इच्छा के अनुसार वही वचन बोले जो वह अपने सिंहासन पर बैठे ठीक समय पर बोले जाने के समय पर चाहता था। पवित्र आत्मा यीशु को सामर्थ और शक्ति दे रहा था कि वह परमेश्वर कि इच्छा को पूरी कर सके। यीशु के प्रति उनकी प्रतिक्रिया क्या थी इससे यहूदी लोग और उनके धार्मिक अगुवे यह दर्शा रहे थे कि उनकी भक्ति किसकी ओर है। जिनके ह्रदय परमेश्वर कि इच्छा को पूरी करने के लिए तैयार थे, वे इस बात को जानते थे कि यीशु ही है जो परमेश्वर कि और से है।

"'जो अपनी ओर से बोलता है, वह अपने लिये यश कमाना चाहता है; किन्तु वह जो उसे यश देने का प्रयत्न करता है, जिसने उसे भेजा है, वही व्यक्ति सच्चा है। उसमें कहीं कोई खोट नहीं है। क्या तुम्हें मूसा ने व्यवस्था का विधान नहीं दिया? पर तुममें से कोई भी उसका पालन नहीं करता। तुम मुझे मारने का प्रयत्न क्यों करते हो?'”

कितना साहस भरा सच था यह! मंदिर के आँगन में, यीशु ने उन धार्मिक अगुवों के गहरी समस्या का प्रचार कर दिया था।वे स्वयं कि महिमा के लिए यह सब कुछ कर रहे थे, और मूसा कि व्यवथा को भी उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए ही रखा था। यीशु ने उसी समय मूसा से भेंट कि थी, और केवल उसी को पूरे राष्ट्र को घोषित करने का अधिकार था। उन्हें चाहिए था कि  था कि वे उसके सामने पश्चाताप करके घुटने टेकें, और उस बात का पश्चाताप करें जो उन्होंने अपने शब्दों का और उसके वचन के बीच मतभेद दिखाया।

लोगों ने जवाब दिया, “तुझ पर भूत सवार है जो तुझे मारने का यत्न कर रहा है।”

उत्तर में यीशु ने उनसे कहा,“'मैंने एक आश्चर्यकर्म किया और तुम सब चकित हो गये। इसी कारण मूसा ने तुम्हें ख़तना का नियम दिया था। (यह नियम मूसा का नहीं था बल्कि तुम्हारे पूर्वजों से चला आ रहा था।) और तुम सब्त के दिन लड़कों का ख़तना करते हो। यदि सब्त के दिन किसी का ख़तना इसलिये किया जाता है कि मूसा का विधान न टूटे तो इसके लिये तुम मुझ पर क्रोध क्यों करते हो कि मैंने सब्त के दिन एक व्यक्ति को पूरी तरह चंगा कर दिया।  बातें जैसी दिखती हैं, उसी आधार पर उनका न्याय मत करो बल्कि जो वास्तव में उचित है उसी के आधार पर न्याय करो।'”

फिर भीड़ यीशु को सुनने लगी और उन बातों को सोचने लगी जो उन्होंने दूसरों से सुनी और कहीं थी। सब जानते थे कि यही वो व्यक्ति है जिसे धार्मिक अगुवे मरवाना चाहते थे। लेकिन अब जबकि वह यहाँ मंदिर का चौखट पर था, और वे कुछ नहीं कर सकते थे। लोगो को इस बात का पूरा आश्वासन था कि अधिकारीयों ने यह सोच लिया कि यीशु मसीहा है, फिर वे कुछ कर क्यूँ नहीं रहे थे। बहुतों को यह सिखाया गया था कि कोई नहीं जानता कि मसीहा कहाँ से आया है। फिर भी सब यह जानते थे कि यीशु नासरी से आया है।

यीशु जब मन्दिर में उपदेश दे रहा था, उसने ऊँचे स्वर में कहा,“'तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो मैं कहाँ से आया हूँ। फिर भी मैं अपनी ओर से नहीं आया। जिसने मुझे भेजा है, वह सत्य है, तुम उसे नहीं जानते। पर मैं उसे जानता हूँ क्योंकि मैं उसी से आया हूँ।'” आप इन लोगों की हठीलता को समझ सकते हैं? उनका अपना मसीहा उन्हें पुकार पुकार कर बुला रहा था के वे उस पर विश्वास करें, परन्तु उन्होंने उस पर विश्वास करने से इंकार कर दिया। उसके बजाय, वे उसे पकड़ रहे थे! कोई भी उसे नुक्सान नहीं पहुँचा सकता था क्यूंकि परमेश्वर का उसके बलिदान देने का समय नहीं हुआ था। उनका उस पर कोई अधिकार नहीं हो सकता था जब तक परमेश्वर पिता उन्हें उसे उनको सौंप नहीं देता।

बहुत से लोग उसमें विश्वासी हो गये और कहने लगे,“'जब मसीह आयेगा तो वह जितने आश्चर्य चिन्ह इस व्यक्ति ने प्रकट किये हैं उनसे अधिक नहीं करेगा। क्या वह ऐसा करेगा?'” उन्होंने उन अद्भुद चमत्कारों को देखा था जो यीशु के द्वारा देखा, और वे इस बात को जानते थे कि ज़यादा कि मांग करना व्यर्थ है। जिन चिन्हों को परमेश्वर ने यीशु के द्वारा दिखाय वे उसकी सामर्थ को दर्शाने के लिए पर्याप्त थे।

भीड़ में लोग यीशु के बारे में चुपके-चुपके क्या बात कर रहे हैं, फरीसियों ने सुना और प्रमुख धर्माधिकारियों तथा फरीसियों ने उसे बंदी बनाने के लिए मन्दिर के सिपाहियों को भेजा। फिर यीशु बोला,“'मैं तुम लोगों के साथ कुछ समय और रहूँगा और फिर उसके पास वापस चला जाऊँगा जिसने मुझे भेजा है। तुम मुझे ढूँढोगे पर तुम मुझे पाओगे नहीं। क्योंकि तुम लोग वहाँ जा नहीं पाओगे जहाँ मैं होऊँगा।'”

यीशु ने इन बातों को जो उसके चमत्कारों और परमेश्वर कि ओर से भेजे जाने कि सच्चाई को घुमाकर उसके मृत्यु कि सच्चाई कि ओर ले गया। उसने इन बातों को इस तरह कहा जो उनकी समझ में नहीं आ सकता था।उसने ऐसे संकेत दिए जिससे कि रहस्य और गहरा हो गया। भीड़ पूछने लगी,“यह कहाँ जाने वाला है जहाँ हम इसे नहीं ढूँढ पायेंगे। शायद यह वहीं तो नहीं जा रहा है जहाँ हमारे लोग यूनानी नगरों में तितर-बितर हो कर रहते हैं। क्या यह यूनानियों में उपदेश देगा? जो इसने कहा है:‘तुम मुझे ढूँढोगे पर मुझे नहीं पाओगे।’ और ‘जहाँ मैं होऊँगा वहाँ तुम नहीं आ सकते।’ इसका अर्थ क्या है?”