कहानी २०: वह ज्योति जो चमकती है|
यूहन्ना ने यीशु के जीवन के बारे में अपना सुसमाचार यह समझाते हुए आरम्भ किया कि प्रभु ही वह परमेश्वर का वचन था जिसने सम्पूर्ण पृथ्वी और आकाश की सृष्टि की थी ! वह अनंतकाल भूत से जीवित है, बिना किसी आरम्भ के, क्योंकि वह स्वयं परमेश्वर है ! मनुष्य के सम्पूर्ण इतिहास में प्रभु यीशु ने परमेश्वर पिता के साथ आकाश पर राज किया, उस समय तक जब वह इस धरती पर आया और एक नन्हे बच्चे के रूप में पैदा हुआ । वाह । सृष्टि का राजा जो हर जीवित प्राणी को सांस देता है, स्वयं एक छोटा, सांस लेता हुआ बालक बन गया ! हम नहीं समझ सकते कि यह कैसे हो सकता है, लेकिन यह सत्य है ! यह बात हमारी छोटी और कमज़ोर बुद्धि से बढ़कर है । यूहन्ना ने ध्यान रखा की वह अपनी पुस्तक में सबसे पहले इसी बात को समझाए । अगला, उसने यह कहा :
"उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी । और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया ।"
यूहन्ना १ः४-५
क्या आप देख रहे हैं की यूहन्ना कैसे "जीवन" और "ज्योति" शब्दों के इस्तेमाल से मसीह के कार्यों की सामर्थ्य का वर्णन कर रहा है ? जहाँ जीवन नहीं है, वह वहाँ जीवन लाता है । उस ने सृष्टि के आरम्भ में जीवन दिया था । और अब, यीशु नया जीवन लाता है उन मनुष्यों के लिए जो श्राप के पाप और मौत से घायल हैं । यूहन्ना मसीह को ज्योति के वर्णन से भी समझाता है । आप कल्पना कर सकते हैं क्या होगा जब एक बहुत अंधेरे कमरे में मोमबत्ती जलाई जाये । जब यीशु इस दुनिया में प्रकाशित होता है, वह हमेशा पाप के अन्धकार और भ्रम में रौशनी लाता है । वह दुष्टता और असत्य के विरोध में पवित्रता और सत्य की रौशनी को चमकाता है । जब हम यीशु के धरती के जीवन के बारे में पढेंगे, हम देखेंगे की वह कैसे अपने सिद्ध और सही तरीकों से उस समय की दुनिया को उज्वल करता है । शैतान का अन्धकार और श्राप की दुष्टता कभी भी यीशु के सुन्दर कार्य को नहीं बिगाड़ सकती, जो यीशु ने इस धरती पर आकर शुरू किया था ।
सुसमाचार की कहानी में इस बात का संदेह कभी नहीं था कि क्या यीशु की सम्पूर्ण विजय हो पायेगी या नहीं । वह तो सर्वशक्तिमान और सामर्थी है ! सुसमाचार में प्रश्न यह था : जब यीशु के समय के लोगों को मसीह की ज्योति के द्वारा अपना पाप और अपनी आवश्यकता दिखाई देगी, तो क्या वे पुराने नियम के धर्मी वीरों की तरह मन फिराएंगे? या फिर पहले के दिनों के दुष्ट आदमियों और औरतों की तरह अपने हृदयों को कठोर करेंगे ? यूहन्ना ने यह कहा :
"सच्ची ज्योति, जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी । वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना । वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया ।"
यूहन्ना १ः९-११
वाह । यूहन्ना हमें पहले से ही बता रहा है की कहानी में आगे क्या होगा । यीशु आया था मसीह बनकर, उद्धारकर्ता, यहूदी लोगों के लिए । वे इस्राएल का देश थे, इस धरती पर परमेश्वर के प्रिय लोग । परमेश्वर ने स्वयं उनको चुना था कि वे एक पवित्र याजकों का देश रहें जो अपने मसीह का स्वागत करेंगे जब वह धरती पर आएगा पाप और मौत की सामर्थ्य को तोड़ने । लेकिन यूहन्ना बताता है कि जब वह आया, उसके अपने लोगों ने ही उसे तिरस्कार किया । उन्होंने मंफिराव न करके अपने पवित्र प्रभु की अराधना करने से इनकार कर दिया । यह एक बहुत ही गंभीर और बुरी स्थिति थी । मनुष्य के इतिहास में यह सबसे नीचा समय था । लेकिन कहानी का यहाँ अंत नहीं होता । क्योंकि इस्राएल देश का हर कोई मनुष्य मसीह के अद्भुत प्रेम का तिरस्कार नहीं करने वाला था । यूहन्ना ने उनके विषय में यह कहा :
"परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विशवास रखते हैं । वे न तो लहू से, न शारीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं ।"
यूहन्ना १ः१२-१३
वाह । जब यूहन्ना यीशु के नाम पर विशवास के विषय में लिखता है, उसका अर्थ है की उसके शिष्य यीशु के हर दावे को स्वीकार करते हैं और अंगीकार करते हैं । केवल यह मानना काफ़ी नहीं है कि यीशु कोई विद्वान गुरु या दर्शनशास्त्री था । यह भी मानना काफ़ी नहीं है कि वह कई भगवानों में से एक अच्छा भगवान है । प्रभु यीशु ने अपने विषय में बताया कि केवल वह ही मार्ग है, वह ही सत्य है और वह ही ज्योति है, और परमेश्वर पिता के पास कोई नहीं आ सकता जिस के पास मसीह में विशवास न हो । यीशु मसीह में उद्धार के विश्वास का अर्थ है केवल मसीह ही में विश्वास ! प्रभु यीशु मसीह को जानना परमेश्वर की ओर से देन है । जब कोई मनुष्य यीशु के पास विश्वास में आता है, ऐसा होता है जैसे कि उनका नया जन्म हुआ हो । यह जन्म उनके पहले जन्म के समान नहीं है, जब वह अपनी माता के गर्भ से एक छोटे बच्चे के रूप में आये थे । बल्कि यह जन्म उनके दिल में होता है । यह जन्म ऐसा होता है जैसे कि प्रभु ने हमारे पापी कठोर पत्थर दिलों को निकालकर हमें नए दिल दे दिए, और हमें नया प्राणी बनाया । वह हमें पवित्र करता है और पवित्र ठहरता है, पाप के क़र्ज़ को यीशु की धार्मिकता से बदलकर । वाह ! जैसे जैसे हम सुसमाचार को पढ़ते जायेंगे, हम कई पात्रों का सामना करेंगे । उन में से हर एक को मसीह के आने पर उत्तर देना होगा । उन में से कुछ तो यह साबित करेंगे कि वह परमेश्वर के संतान हैं । वे मनफिराएंगे और यीशु के पीछे चलेंगे । लेकिन दुसरे साबित करेंगे कि वे परमेश्वर के शत्रु के सेवक हैं । ऐसे लोग परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का विरोध करेंगे और उसके विरुद्ध लड़ेंगे । वे यीशु का नाश करना चाहेंगे । पर जैसा की यूहन्ना प्रेरित हमें बता चूका है, अन्धकार ने मसीह की ज्योति पर जय नहीं पायी । दो हज़ार वर्ष के बाद मालूम पड़ता है की वे लोग और वे देश जो उस समय दुनिया पर राज कर रहे थे, ख़तम हो चुके हैं - लेकिन यीशु की ज्योति आज तक विश्वभर में रौशनी चमकाती है । आकाश और धरती के प्रभु की स्तुति हो!