कहानी १९: परमेश्वर के प्रेम का पुत्र
जब मत्ती, मरकुस, और लूका ने सुसमाचार के विषय में अपनी अपनी कहानियाँ लिखीं, वे मसीह का यह चित्र दिखाना चाहते थे : वह
मनष्य जो परमेश्वर था । उनकी कहानियाँ मसीह के जन्म से आरम्भ होती हैं, और जो शानदार भाविश्यद्वानियाँ उसके जन्म के विषय में की गयी थीं, उनकी पूर्ती का वर्णन करती हैं । वे यह दिखाना चाहते थे कि यह मनुष्य वास्तव में इम्मानुएल था, परमेश्वर हमारे साथ । यह तीन पुस्तकें मसीहत के शुरूआती दिनों में लिखी गयी थीं, और उस दौर में बाँटी गयी थीं जब युवा कलीसियाएं मसीह को जानने
लगी थीं, और समझने लगी थीं की मसीह के लिए जीवन कैसे व्यतीत किया जाता है । जब युहन्ना प्रेरित ने अपना सुसमाचार लिखा, तो काफ़ी समय बीत चूका था । पौलुस प्रेरित जैसे मसीही सेवकों के कार्य के माध्यम से पूरे रोमन साम्राज्य में कलीसिया स्थापित हो चुकी थी । पहले तीन लेखकों के सुसमाचार स्थानीय कलीसियाओं में दशकों से बाँटे गए थे; पौलुस, पतरस और याकूब की पत्रियों के साथ ।
जब आप युहन्ना की पुस्तक पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि यह सुसमाचार पहले तीन सुसमाचारों से बहुत अलग है । युहन्ना यीशु के बारह चेलों में से एक था । वह रिश्तेदारी में यीशु का छोटा भाई भी था । युहन्ना वह आदमी था जो क्रूस के सामने यीशु की माता और मरियम मगदलीनी के साथ खड़ा था । जब यीशु ने हमारे पापों का कष्ट सहा, उसने क्रूस से नीचे देखा और युहन्ना को यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि यीशु के जाने के बाद वह उसकी माता का ध्यान रखे । युहन्ना ने अपना बाकी जीवन मसीह की सेवकाई में व्यतीत किया, कलीसिया के निर्माण के कार्य में । कलीसियाई परम्परा के अनुसार, युहन्ना ने अपने कई वर्ष एफेसुस में बिताए, और मरियम उसके साथ रही । और जबकि यीशु के बाकी चेलों को उनके विशवास के कारण मार डाला गया, युहन्ना जीवित रहा कलीसिया की अगली पीड़ी की
अगुआई करने के लिए ।उसने तीन ऐसी पत्रियाँ लिखीं जो शास्त्रों में जोड़ी गयीं, और उसने शास्त्रों की आखरी पुस्तक को भी लिखा, जिसका नाम प्रकाशितवाक्य
है। इस पुस्तक में युहन्ना ने कलीसिया को उस दिन की अद्भुत कहानी सुनाई जब उसे स्वर्ग में ले जाया गया था, अंतिम समय के आनेवाली घटनाओं को देखने के लिए; जब मसीह ने शैतन, पाप और मृत्यु पर अपनी अंतिम जय पाई ।
प्रकाशितवाक्य में हम यीशु का ऐसा चित्रण देखते हैं, जो पहले पढ़े गए "धरती पर चलने वाले मनुष्य" के चित्रण से बढ़कर है । युहन्ना के चित्र में पराक्रमी और सामर्थी राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु दिखाई देता है, कायनात का सर्वशक्तिमान शासक । जब युहन्ना प्रतापवान और महिमान्वित मसीह को आते देखता है, तो वह भयभीत होकर चेहरे के बल दण्डवत करता है! इन बातों से हम यह समझ सकते हैं कि जब यीशु मनुष्य बनकर धरती पर आया था, तो उसने अपने शानदार स्थान, स्वयं परमेश्वर के सिंहासन से, अपने आप को नम्र बनाया था । जबकि उसके धरती पर चलने के समय में भी वह सारी सृष्टि का परमेश्वर बना रहा, उसकी ईश्वरीय सामर्थ्य छिपी हुई थी, और वह मनुष्यों के सीमित सामर्थ्य के साथ जिया । जब हम यीशु के चमत्कारी कार्यों या ज्ञान को देखते हैं, हम जानते हैं कि वह अपनी स्वयं ही की ईश्वरीय सामर्थ्य पर भरोसा नहीं रख रहा था, बल्कि वह पूरी तरह से पिता परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर था ।
जब युहन्ना ने अपना सुसमाचार लिखा, वह दिखाना चाहता था कि यीशु ही गौरवान्वित परमेश्वर का पुत्र था जो अनंतकाल से है । यीशु वह पुत्र है जिसने सिंहासन को छोड़ा, और मनुष्य का उद्धार सिद्ध करने के लिए समय में प्रवेश किया । और जब उसने जय प्राप्त की, वह अपने उचित स्थान पर लौटा, उस सिंहासन पर जहां से वह अनंतकाल के लिए शासन करेगा । युहन्ना यह भी दिखाना चाहता था की जब यीशु नयी वाचा को लेकर आया, उसने केवल पुराने यहूदी रिवाजों और मंदिर पूजा को त्याग
नहीं दिया । बल्कि यीशु अराधना और विश्वासी जीवन का केंद्र बन गया । यीशु के गहरे, स्थायी प्रेम में, और उसके साथ रिश्ता रखने में सब कुछ पाया जा सकता था! सारी यहूदी परम्पराएं और प्रतीक और जीवन के तौर-तरीके परमेश्वर का साधन थे, एक ऐसा देश बनाने के लिए जो परमेश्वर के गौरवशाली पुत्र के आने का संकेत करते थे । और जब वह धरती पर आ गया, वे पुराने रिवाज़ अनिवार्य नहीं रहे! मसीह में जीवन का नया तरीका था, और जो मसीह के अपने लोग थे वे एक नयी वाचा के लोग थे!
क्योंकि युहन्ना यह सब बातें सिखाना चाहता था, उसने अपनी पुस्तक को बहुत ही विशेष तौर से आरम्भ किया । यीशु की वंशावली या उसके जन्म का वर्णन न करते हुए, युहन्ना ने यीशु के अनंत जीवन के विषय में बताया, जो मनुष्यों के उद्धार की
योजना से भी पहले था । युहन्ना ने यह लिखा :
"आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था । यही आदि में परमेश्वर के साथ था । सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वास्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई ।"
युहन्ना १ः१-३
क्या आपने इस बात को समझा? और क्या आपको याद है की पुराने नियम के पहले शब्द क्या हैं? वे यह हैं : "आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की ।" अब युहन्ना विस्तार से लिख रहा है । पुराने नियम में, "परमेश्वर का वचन" यह कहने का तरीका था कि परमेश्वर ने बोला है । और क्योंकि परमेश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सम्पूर्णता से सिद्ध है, जो भी उसने कहा है, अवश्य उसके कहे अनुसार ही होगा । जब वह बोलता है, चीज़ें होती हैं!
अब युहन्ना बताता है कि जब और जैसे परमेश्वर पिता कायनात की सृष्टि कर रहा था, यीशु वहीं उसके साथ उपस्थित था । वह परमेश्वर के साथ था, जिसका अर्थ है कि वह परमेश्वर के साथ रिश्ता भी रखता था,लेकिन स्वयं परमेश्वर भी था । हमारे लिए यह समझना कठिन है ना, की यीशु एक ही साथ यह दोनों कैसे हो सकता है? लेकिन बाईबल की शिक्षा यही है! किसी तरह से यह सत्य है कि परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्र एक दूसरे के साथ सिद्ध रिश्ते में हैं, लेकिन फिर भी दोनों एक हैं!
नया नियम इस सत्य को प्रकाशित करता है की जब शास्त्र "वचन" का वर्णन करते हैं, वह यीशु के विषय में बता रहे हैं । युहन्ना 1:1-3 दोबारा पढ़िए, और इस बार जब भी आप "वचन" का वर्णन देखें, उस शब्द को "यीशु"के नाम से बदल दें । क्योंकि देखिये, यीशु ही वह वचन है! समस्त सृष्टि उसी से उत्पन्न हुई! गौरवशाली तारों और एकांत के चन्द्रमा के बारे में सोचिये! दहाड़ती नदियों और गरजती लेहेरों के बारे में सोचिये! वह हर एक चीज़ जो परमेश्वर ने रची है, उसने अपने पुत्र की सामर्थ्य में रची है । किसी प्रकार से परमेश्वर के वचन की सामर्थ्य यीशु मसीह की महिमा के द्वारा आई । बाईबल की एक अन्य पुस्तक में पौलुस प्रेरित इसी बात को और विस्तार से समझाते हैं:
"वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहलौठा है । क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो या अथवा पृथ्वी की, देखि या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएं, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकारानें, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिए सृजी गयी हैं । और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं ।" कुलुस्सियों १ः१५-१७
वाह! प्रभु यीशु अनंतकाल से परमेश्वर पिता के साथ उपस्थित रहा है ! यह महान सत्य इतने विशाल हैं कि हमें समझने में कुछ कठिनाई
महसूस हो सकती है । और यह भी अनोखी बात है ना? सर्वोच्च परमेश्वर हमारी तुलना में इतना वैभवशाली होना चाहिए कि हम उस के विषय में हर बात को नहीं समझ सकते! यद्यपि इन बातों को मनुष्यों के बीच
सिखाना और समझाना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी अनुचित नहीं कि इन में से कुछ बातें रहस्यमय मालूम पड़ती हैं । क्या हम पशुओं को पढ़ना या फूलों को गीत गाना सिखाते हैं? लेकिन जो अंतर एक गाते हुए, पढ़ते हुए मनुष्य के मुकाबले पशु या फूल में है, उस से कई ज़्यादा अंतर हमारे और परमेश्वर के बीच में है । ऐसी कई चीज़ें हैं जो परमेश्वर कर और समझ सकता है, जो हम नहीं कर या समझ सकते ।