अब्राम के जीवन कि हालत खस्ता थी। वह पचहत्तर वर्ष का था जब उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।
Read Moreपरमेश्वर के वादे के अनुसार अब्राम विश्वास के साथ निकल पड़ा। लेकिन वह अपनी यात्रा में अकेला नहीं था, और केवल वही नहीं था जो अकेला परमेश्वर पर भरोसा कर रहा था।
Read Moreपरिवार दक्खिन के देश मिस्र से होकर नेगेव कि ओर गया। वे बेतेल के पास के क्षेत्र में लौट आए। इस जगह पर अब्राम ने परमेश्वर के लिए दूसरी वेदी बनाई।
Read Moreवाह। जिस समय हमने उसकी कहानी की शुरुआत की थी, उस समय से अब तक इबराम के जीवन में आए उस अंतर की कल्पना कीजिये I अपनी पत्नी और भतीजे के साथ वह एक भटकने वाले एक व्यक्ति से एक धनि व्यक्ति बन गया, उच्च प्रशिक्षित योद्धाओं की अपनी निजी सेना, और पूरे देश में एक उज्जवल, उच्च सम्मानित प्रतिष्ठा I जैसे ही साल बीत गए, अब्राम का विश्वास बढ़ता चला गया, और परमेश्वर के वादों पर निर्भर होने की उसकी क्षमता एक शक्तिशाली शक्ति बन गयी ।
Read Moreइब्राहीम से तीन आगंतुक मिलने के लिए आये। उसने उनकी दावत कि और अपने घर पर उनकी उपस्थिति का सम्मान किया।
Read Moreइब्राहीम और सारा ने एक बेटे के जन्म के लिए पच्चीस वर्षों तक प्रतीक्षा की। उन सभी पहले के वर्षों में, इब्राहीम ने माना की उसने परमेश्वर के द्वारा एक संदेश सुना है।
Read Moreजैसे जैसे सारा और इब्राहिम का बेटा, जो उनके लिए बहतु खुशियां लाया था, बड़ा होता गया और समय बीतता गया।
Read Moreइब्राहीम और उसकी पूरी जनजाति परमेश्वर के वादों पर भरोसा करते हुए पूरी भूमि पर खानाबदोश के रूप में फिरते रहे।
Read Moreइसहाक और रिबका कुछ समय के लिए अबीमेलेक के देश में रहे, और हर कोई यह मानता था किवे भाई बहन हैं।
Read Moreइसहाक जब बूढ़ा होने लगा, उसकी आँखें इतनी कमज़ोर हो गयीं की वह लगभग अँधा हो गया था।
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