पाठ 34 : सदोम के लिए इब्राहीम का निवेदन

इब्राहीम से तीन आगंतुक मिलने के लिए आये। उसने उनकी दावत कि और अपने घर पर उनकी उपस्थिति का सम्मान किया। ये अतिथि एक सम्मान के योग्य थे। क्यूंकि आप देखिये, वे वास्तव में दो स्वर्गदूत और स्वयं प्रभु था! वे इब्राहीम और सारा को बताने आए थे की ठीक एक साल बाद उन्हें एक पुत्र होगा। 

 

जब वे लोग जाने को तैयार हुए, उन्होंने वे नीचे मैदानों को इब्राहीम के तम्बू से बाहर देखा। उनके सामने, कुछ दूरी पर सदोम का शहर था। वहां के लोग नैतिक रूप से गंदा जीवन बिताते थे। जब इब्राहिम ने लूत को बचाया, उसने अपने आदमियों के साथ मिलकर सदोम के लोगों को और उनके पशुओं और सोने को बचा लिया। लेकिन इब्राहीम ने इसे रखने से इनकार कर दिया। वह उनके साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहता था। उसने उनके तरीकों को पूरी तरह से अस्वीकार किया।  

 

यद्यपि उसने उन्हें बचाया, इब्राहीम की उदारता और सिद्धता सदोम के लोगों को बदल नहीं पाई। उनके विरुद्ध उसकी फटकार का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। परमेश्वर के विरुद्ध उनके आक्रामक विद्रोह जारी रहे। इब्राहीम और उसके महान अतिथि जब सदोम किऔर देख रहे थे, तब प्रभु ने अपने मन में सोचा: 

 

"'क्या मैं इब्राहीम से वह कह दूँ जो मैं अभी करूँगा? इब्राहीम से एक बड़ा और शक्तिशाली राष्ट्र बन जाएगा। इसी के कारण पृथ्वी के सारे मनुष्य आशीर्वाद पायेंगे। मैंने इब्राहीम के साथ खास वाचा की है। मैंने यह इसलिए किया है कि वह अपने बच्चे और अपने वंशज को उस तरह जीवन बिताने के लिए आज्ञा देगा जिस तरह का जीवन बिताना यहोवा चाहता है। मैंने यह इसलिए किया कि वे सच्चाई से रहेंगे और भले बनेंगे। तब मैं यहोवा प्रतिज्ञा की गई चीज़ों को दूँगा। मैं ऐसा करने के बारे में क्या कर रहा हूँ।'"

 

परमेश्वर ने एक महान राष्ट्र बनाने के लिए अब्राहम के साथ एक बहुत ही विशेष वाचा को बनाया था। उसकी इच्छा थी की इब्राहीम के बच्चे सिद्धता के साथ रहें और दुनिया को अपनी शुद्धता और अच्छाई के साथ आशीर्वाद दें। सदोम के देश ने इसके विपरीत किया था। वे कुल पाप के गहरे अंधेरे की गंदगी में रहते थे। उनके पाप केवल विकृत नहीं थे, लेकिन हिंसक भी थे। लोगों ने अपने आप को शैतान को सौंप दिया था, और वे उनके समान बन गए थे। वे कमज़ोरों को अपना शिकार बनाते थे और अच्छाई की कोई भी उम्मीद को नष्ट कर देते थे। जो अच्छा बनना चाहता थे वे द्वेष, छल, और प्रलोभन का लक्ष्य बन जाते थे। परमेश्वर ने दीन की गुहार सुनी जो दुष्ट के तहत पीड़ा में थे और अब वह उनका न्याय करने जा रहा था। 

 

इब्राहीम परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र का पिता बनने जा रहा था। दुष्ट के ऊपर परमेश्वर के न्याय को समझना उसके लिए महत्वपूर्ण था। पृथ्वी के सभी लोगों के लिए परमेश्वर के पास जबरदस्त दया और करुणा थी। वह आसानी से फैसले में नहीं आया था। यह हमेशा पूरी तरह से निष्पक्ष था। तो परमेश्वर ने इब्राहीम के साथ एक चर्चा शुरू की। यह दो बातें साबित करेगा। सबसे पहले, यह इब्राहीम को एक महान दयालू इंसान के समान प्रदर्शित करेगा। वह बहुत कुछ परमेश्वर के समान था। दूसरा, परमेश्वर की सही पवित्रता और न्याय की अखंडता में, वह बुराई और दुष्टता को अनियंत्रित जारी रखने की अनुमति नहीं देगा। परन्तु जब वह न्याय करेगा, वह धर्मी और निर्दोष की अधिक रक्षा और देखभाल करेगा। परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा: 

 

“'मैंने बार—बार सुना है कि सदोम और अमोरा के लोग बहुत बुरे हैं। इसलिए मैं वहाँ जाऊँगा और देखूँगा कि क्या हालत उतनी ही खराब है जितनी मैंने सुनी है। तब मैं ठीक—ठीक जान लूँगा।'"

 

परमेश्वर के ऐसा बोलते ही दो स्वर्गदूत सदोम की ओर चलने लगे, लेकिन परमेश्वर पीछे ही रहे।इब्राहीम सदमे में वहाँ खड़ा रहा। परमेश्वर क्या कह रहे थे? क्या वह वास्तव में सदोम और अमोरा के नगरों को नष्ट करने जा रहे थे? वे उसके पास गए और कहा: 

 

"'क्या तू बुरे लोगों को नष्ट करने के साथ अच्छे लोगों को भी नष्ट करने की बात सोच रहा है? यदि उस नगर में पचास अच्छे लोग हों तो क्या होगा? क्या तब भी तू नगर को नष्ट कर देगा? निश्चय ही तू वहाँ रहने वाले पचास अच्छे लोगों के लिए उस नगर को बचा लेगा। निश्चय ही तू नगर को नष्ट नहीं करेगा। बुरे लोगों को मारने के लिए तू पचास अच्छे लोगों को नष्ट नहीं करेगा। अगर ऐसा हुआ तो अच्छे और बुरे लोग एक ही हो जाएँगे, दोनों को ही दण्ड मिलेगा। तू पूरी पृथ्वी को न्याय देने वाला है। मैं जानता हूँ कि तू न्याय करेगा।'”

 

वाह! परमेश्वर ने इब्राहीम को उसकी योजना दिखा दी थी, और अब हम अपने परमेश्वर कि भलाई के लिए इब्राहीम के जुनून को देखते हैं। उसका परमेश्वर अन्य देवताओं की तरह नहीं था। वह गलत तरीके से निर्दोष को सज़ा नहीं देता था। इब्राहीम ने परमेश्वर के संग बहस करते हुए सदोम के लोगों के लिए मध्यस्ति की। क्या पचास धर्मी लोगों के लिए परमेश्वर अपने न्याय को रोक देगा? उन दिनों में एक छोटे से शहर में लगभग सौ लोग ही होते थे, तो पचास लगभग आधा शहर होगा। इब्राहिम किचिंता उन धर्मी लोगों के लिए थी जिनका दुष्ट के साथ भी न्याय हो सकता है। 

 

धर्मी के लिए परमेश्वर की चिंता इब्राहिम से भी ज़्यादा थी। परमेश्वर ने इब्राहीम के चरित्र को, ना की अपनी ही अच्छाई को साबित करने के लिए बातचीत शुरू की थी। इब्राहीम जिस समय निर्दोष का बचाव कर रहा था, उसकी अपनी पवित्रता और धार्मिकता को चमकने दिया। वह न्याय के लिए परमेश्वर के साथ बहस करने के लिए मजबूर हुआ!

 

परमेश्वर जानता था कि वह कहानी कई पीढ़ियों तक सुनाई जाएगी। इब्राहीम के बच्चे इसे अपने बच्चों को सुनाएंगे और वे महत्वपूर्ण सबक सीखेंगे। वे इब्राहीम के चरित्र को देखेंगे जो उनके राष्ट्र का सम्मानित पिता है। वे ये बात सीखेंगे कि धर्मी जन का जीवन बहुमूल्य है और उनकी रक्षा करना अधिक मूल्यवान है। परमेश्वर के पवित्र देश के लिए ये बातें उच्च मूल्य का स्तर बना लेंगी। यह सैकड़ों वर्ष के लिए लोगों के दिलों और उनके राजा के निर्णयों को प्रभावित करेंगी। एक हज़ार वर्षों बाद, इब्राहीम के वंशज एक कहावत कहेंगे। 

"'जो कोई अपने लोगों के साथ दयालु होगा वह निश्चय ही हमारे पिता इब्राहिम की संतान होगा, और जो कोई भी उनके प्रति निर्दय होगा वह निश्चित रूप से हमारे पिता इब्राहिम की संतान नहीं हो सकता'"  

(बेतसाह 32b तल्मूड से लिया गया)

 

वे इस कहानी से यह भी सीखेंगे की परमेश्वर न्याय करने वाला परमेश्वर है। वह निर्दोष को मूल्यवान समझता था इसीलिए वह उनकी रक्षा करने के कारण दुष्ट लोगों के खिलाफ निर्णय को रोक रहा था। उसके न्याय पर भरोसा किया जा सकता था और उसका दण्ड निष्पक्ष था। जब परमेश्वर का न्याय आया, सब इस बात से सुनिश्चित थे कि वे अच्छे कारण के साथ आएंगे। 

 

इब्राहिम जब परमेश्वर के साथ सदोम कि ओर मुख कर के खड़ा था, तो वह सोच भी नहीं पा रहा था की सदोम के लोग इतने दुष्ट होंगे की उनमें से एक भी बचने के योग्य नहीं था। परमेश्वर उनके पापों की गहराई को साबित करने के लिए उसके साथ काम करने को तैयार था। 

 

परमेश्वर ने इब्राहीम के अनुरोध से सहमति व्यक्त की। वह पचास धर्मी लोगों के लिए सदोम के शहर को बक्श देगा। इब्राहीम अगली बार, और अधिक विनम्रता के साथ आया। क्या यदि वहां पचास भी नहीं थे? उसने कहा, “हे यहोवा, तेरी तुलना में, मैं केवल धूलि और राख हूँ। लेकिन तू मुझको फिर थोड़ा कष्ट देने का अवसर दे और मुझे यह पूछने दे कि यदि पाँच अच्छे लोग कम हों तो क्या होगा? यदि नगर में पैंतालीस ही अच्छे लोग हों तो क्या होगा। क्या तू केवल पाँच लोगों के लिए पूरा नगर नष्ट करेगा?”

 

परमेश्वर ने इब्राहीम के साथ सहमति व्यक्त की। दुष्ट को दंडित करने से धर्मी जो थोड़े थे उनके लिए न्याय को रोकना अधिक महत्वपूर्ण था। यदि पैंतालीस धर्मी लोग शहर में पाए गए हैं, वह उनका न्याय नहीं करेगा। 

 

लेकिन इब्राहीम ने अभी समाप्त नहीं किया था। वह जानता था की सदोम एक बहुत दुष्ट जगह थी। सो उसने शहर में केवल चालीस धर्मी लोगों के लिए परमेश्वर से पूछा कि वह अपने न्याय को वापस लेगा। परमेश्वर ने कहा कि वो करेंगे। फिर उसने तीस धर्मी लोग और फिर बीस के लिए पूछा। इब्राहिम के अनुरोध से सहमत हो कर परमेश्वर अपनी दया कि महानता दिखा रहे थे। अंत में अब्राहम ने कहा, "हे यहोवा तू मुझसे नाराज़ न हो मुझे अन्तिम बार कष्ट देने का मौका दे। यदि तुझे वहाँ दस अच्छे लोग मिले तो तू क्या करेगा?” परमेश्वर ने अपने दयालु सेवक कि ओर देखा और कहा,"'यदि मुझे नगर में दस अच्छे लोग मिले तो भी मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।'” और फिर परमेश्वर अपना कार्य करने को चला गया और इब्राहीम अपने घर लौट आया।

सदोम के शहर में क्या होगा? स्वर्गदूतों को क्या वहाँ दस धर्मी लोग मिलेंगे? 

 

परमेश्वर किकहानी पर ध्यान करना।  

आपको इस कहानी में कोई बात पसंद या ना पसंद आई? क्यों परमेश्वर ने इब्राहीम को वो प्रकट किया जो वह उसके साथ करने जा रहे थे? सदोम पर परमेश्वर का निर्णय अन्यायपूर्ण लग रहा था इसीलिए इब्राहीम परेशान था। इब्राहिम को परमेश्वर कि अच्छाई पर पूरा भरोसा था क्यूंकि वह अपने प्रभु में किसी भी प्रकार के अधर्म के बारे में सोच भी नहीं सकता था। क्या आपको कभी ऐसा लगा कि परमेश्वर अन्याय कर रहा है? क्या आप अपने सवालों के साथ, इब्राहीम की तरह, उसके पास गए हैं? उसके कामों को समझने के लिए क्या आपने उत्सुकता और सच्ची इच्छा दिखाई है?  

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

इब्राहीम सदोम और अमोरा की तरह नहीं होना चाहता था। वह उनके निकट नहीं रहेगा। उन्हें लड़ाई से बचाने के लिए वह उसका श्रेय भी नहीं लेगा। फिर भी उसके अंदर उन लोगों के लिए दया थी! उनके लिए वह परमेश्वर से मध्यस्ति करता है की वह उन पर दया करे। क्या कोई ऐसे लोगों को आप जानते हैं जो बहुत पापी हैं? क्या आप ऐसे स्थानों को जानते हैं जो दुष्टता के कारण खतरनाक हैं और जो परमेश्वर की अच्छाई और शांति की अवहेलना करते हैं? यदि इब्राहीम हमारा आदर्श है, तो हमें क्या करना चाहिए? हम परमेश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं। हमें अपने मसीह के साथ सिंहासन पर बैठने का ऊंचा और अकल्पनीय महान सम्मान मिला है। हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए? 

 

जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

हम पूरी आशा कर सकते हैं क्यूंकि परमेश्वर ने हमें अंधकार के नहीं परन्तु प्रकाश के बच्चे चुना है।हमारे दिल और दिमाग के लिए पूरी तरह से और गहराई से इस दुनिया के झूठ को समझने के लिए, ज़रूरी है कि हम बाइबिल पर उन बातों पर अध्ययन करें जो बताती हैं की वास्तव में हम कौन हैं। अकेले या फिर एक साथ एक परिवार के रूप में निम्नलिखित आयतों को पढ़ें। जिन शब्दों को टेढ़ा लिखा गया है उन्हें दो या तीन बार पढ़ें। बीच में थोड़ा रुकें और परमेश्वर से प्रार्थना करें की वह आपको दर्शाये कि ये शब्द कितने सामर्थी हैं:

 

"एक समय था जब तुम लोग उन अपराधों और पापों के कारण आध्यात्मिक रूप से मरे हुए थे जिनमें तुम पहले, संसार के बुरे रास्तों पर चलते हुए और उस आत्मा का अनुसरण करते हुए जीते थे जो इस धरती के ऊपर की आत्मिक शक्तियों का स्वामी है। वही आत्मा अब उन व्यक्तियों में काम कर रही है जो परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते। एक समय हम भी उन्हीं के बीच जीते थे और अपनी पापपूर्ण प्रकृति की भौतिक इच्छाओं को तृप्त करते हुए अपने हृदयों और पापपूर्ण प्रकृति की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए संसार के दूसरे लोगों के समान परमेश्वर के क्रोध के पात्र थे। किन्तु परमेश्वर करुणा का धनी है। हमारे प्रति अपने महान् प्रेम के कारण उस समय अपराधों के कारण हम आध्यात्मिक रूप से अभी मरे ही हुए थे, मसीह के साथ साथ उसने हमें भी जीवन दिया (परमेश्वर के अनुग्रह से ही तुम्हारा उद्धार हुआ है।) और क्योंकि हम यीशु मसीह में हैं इसलिए परमेश्वर ने हमें मसीह के साथ ही फिर से जी उठाया और उसके साथ ही स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाया। ताकि वह आने वाले हर युग में अपने अनुग्रह के अनुपम धन को दिखाये जिसे उसने मसीह यीशु में अपनी दया के रूप में हम पर दर्शाया है।                                                     इफिसियों 2: 1-7