पाठ 45 : इसहाक का परीक्षण

इसहाक और रिबका कुछ समय के लिए अबीमेलेक के देश में रहे, और हर कोई यह मानता था किवे भाई बहन हैं। यह बहुत घटनाचक्र था। लेकिन फिर एक दिन, राजा अबीमेलेक ने इसहाक को अपनी पत्नी के साथ वो निविदा स्नेह करते देखा जो केवल एक पति और पत्नी के बीच होना चाहिए। उसे इसहाक के झूठ बोलने पर क्रोध आया। उसने आदेश दिया की इसहाक से पूछताछ करने के लिए उसे उसके सामने लाया जाये। 

"वह वास्तव में तुम्हारी पत्नी है!'" उसने कहा। "'तुमने क्यूँ कहा कि वह तुम्हारी बहन है?" इसहाक ने कहा की उसे डर था की कोई रिबका को पाने के लिए उसे मार देगा। राजा को इससे तसल्ली नहीं मिली। यदि किसी भी एक देशवासी ने रिबका को अपना लिया होता, तो यह पूरे देश में दुष्टता को ले आता।इसहाक के झूठ ने उसकी पत्नी को जोखिम में डाल दिया होता और अबीमेलेक को अपने राष्ट्र की रक्षा करने में बहुत कठिनाइयां आतीं। एक बार उसे जब पूरा सच पता चल गया, अबीमेलेक ने आदेश दिया की दोनों इसहाक और रिबका उसके शाही संरक्षण के तहत रहेंगे। जो कोई उन्हें हानि पहुंचाएगा उसे मार डाला जाएगा!

            

इसहाक और रिबका कुछ समय के लिए उस देश में बस गए। उसने फ़सल लगाई, और परमेश्वर ने उनके काम को इतनी आशीष दी की एक सौ गुना वृद्धि हुई। इसहाक पहले से ही बहुत धनि था, और यह आगे विकसित होता चला गया। पूरी पहाड़ी उसके पशु और भेड़ और बकरियों के झुंड से भर गया, और उसके पास इस विशाल संपत्तियों का प्रबंधन करने के लिए नौकर भी थे। उसकी आशीषों को देख कर पलिश्ति, जो अबीमेलेक के राष्ट्र के लोग थे, उनकी सफ़लता से जलने लगे। वे उनका इतना विरोध करने लगे कि वे इब्राहिम के खोदे हुए कुओं को छिप करके देखने के लिए गए। ये कुएं सूखी जगाहों को साफ़ पानी उपलब्ध करते थे। लेकिन गरार के लोग इतने द्वेष से भर गए की, उन्होंने कुओं को बेकार करने के लिए उनमें गंद और चट्टान भर दिए। 

 

राजा अबीमेलेक ने अंत में इसहाक को उसके क्षेत्र को छोड़ने के लिए आदेश दिया। उसके लोग अत्यंत ईर्ष्या करने लागे थे। वह अब इसहाक की सुरक्षा के लिए उसे और वादा नहीं कर सकता था। इसहाक उसकी सभी भूमि को भक्षण कर रहा था और उसके लोगों के धन को हासिल कर रहा था!

 

इसहाक ने वैसा ही किया जैसा राजा अबीमेलेक ने उससे कहा। वह गरार कि घाटी को चला गया जो अबीमेलेक के राज्य से बाहर था। उसने फिर से जीवन की शुरुआत की और उन कुओं को फिर से खोदा जो इब्राहीम ने कई दशक पहले खोदे थे। उनके परिवार और उनके नौकरों और जानवरों के लिए पर्याप्त पानी होगा। इसहाक ने कुओं को वही नाम दिए जो इब्राहिम ने दिए थे, और प्रत्येक उस परमेश्वर कि महिमा करते थे जो सब उपलब्ध करता है। 

 

जिस समय इसहाक के कुछ सेवक कुआँ खोद रहे थे, उन्हें पानी का ताज़ा स्रोत मिला। कुछ स्थानीय चरवाहों ने आकर विद्रोह किया यह कहकर की वे उनके थे। सो उन्होंने एक कुआँ खोदा, और फिर से वही हुआ। एक बार फिर, इसहाक चला गया और एक और कुआँ खोदा गया। इस बार, उस कुएँ के लिए झगड़ा करने कोई नहीं आया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम रहोबोत रखा। इसहाक ने कहा, “यहोवा ने यहाँ हमारे लिए जगह उपलब्ध कराई है। हम लोग बढ़ेंगे और इसी भूमि पर सफल होंगे।” तीन बार के बाद, उसके खानाबदोश जनजाति के लिए जगह हुई और उन्होंने कुएं के चारों ओर विश्राम किया!

 

उस जगह से इसहाक बेर्शेबा को गया। यहोवा उस रात इसहाक से बोला, “मैं तुम्हारे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूँ। डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को महान बनाऊँगा। मैं अपने सेवक इब्राहीम के कारण यह करूँगा।”

 

एक बार फिर, परमेश्वर इसहाक के पास आये और उसे अपने वादे को दोहराया। जिस प्रकार इब्राहिम के साथ था, परमेश्वर इसहाक़ को आश्वासन दिला रहे थे की निश्चित रूप से वह अपने सभी वादों को पूरा करेंगे। परेमश्वर समझते थे की इंतज़ार करना कितना कठिन होता है और साथ ही विश्वास का परखना भी। इसहाक ने परेमश्वर के प्रति समर्पण में वहां एक वेदी बनाई। उसने अपने पूरे कबीले को वहां तंबू गाड़ने और एक और कुआँ खोदने का आदेश दिया। 

 

इन सब गतिविधियों और उत्पादन के बीच में, राजा अबीमेलेक अपने मुख्य सलाहकार और उसकी सेना के नेता के साथ आया। वह जिस किसी उद्देश्य से आया हो, वह एक गंभीर उद्देश्य ही होगा! यह एक बहुत महत्व और औपचारिकता की भेँट थी जो दो शक्तिशाली देशों के बीच थी। आप देखिये, अबीमेलेक घबराया हुआ था। इसहाक और उसके गुण और सेवक बहुत महान बन चुके थे, और सीमा से कुछ ही मील की दूरी पर बस गए थे। पहले से ही कुओं पर संघर्ष होता चला आ रहा था। वह किसी भी दुश्मन को इतने नज़दीक नहीं चाहता था। 

 

इसहाक ने पूछा कि इतने प्रतिकूल होने के बाद अबीमेलेक उसके पास क्यूँ आया। अबीमेलेक ने कहा की वो जानता था की इसहाक पर कितनी आशीषें हैं, और वह उसके साथ युद्ध नहीं चाहता था। उसने शांति के एक संधि करने के लिए कहा। इसहाक बड़े उत्साह के साथ सहमत हुआ। उसने उनके लिए एक महान भोज किया और उनके गठबंधन पर आनंद मनाया। अगली सुबह, राजा अबीमेलेक अपने आदमियों के साथ अपने रास्ते चला गया। 

 

परमेश्वर के प्रति इसहाक की वफ़ादारी यह थी कि उसे शांति बनाना अच्छा लगता था। उसे अपने पड़ोसियों के धन और शक्ति का विस्तार करने की तलाश नहीं थी। जिस समय उसके पड़ोसी दुर्भावनापूर्ण या लालची हो रहे थे, उसने नर्मी से संघर्ष से स्थानांतरित करने के लिए चुना। और जब वे शालीन शांति की मांग करने आये, उसने शीग्र ही बड़ी खुशी से उन्हें यह दे दिया। फिर भी पृथ्वी के सभी राजा उससे डरते थे। वह अभी तक एक महान राष्ट्र नहीं था, उसकी व्यापक और विशाल आशीर्वाद को देखकर सब समझ गए थेकिउसका परमेश्वर उसके साथ था। उस पूरे क्षेत्र में सभी के लिए उसका जीवन एक आदर्श था। उनके जीवन सत्य और जीवित परमेश्वर का प्रमाण थे। 

 

इसहाक जब ये सारी यात्राएं कर रहा था, परमेश्वर उसके परिवार में एक कार्य कर रहे थे। उसके जुड़वां लड़के हुए और वे जवान हो गए। जब एसाव चालीस वर्ष का हो गया, उसने दो पत्नियों कीं। वे दोनों हित्तियां थीं। इन महत्वपूर्ण फैसलों में उसने अपने माता पिता के ज्ञान या इच्छाशक्ति को जानने की कोशिश नहीं की, और वह अपने घर में विदेशी महिलाओं को ले आया। उनके दिल बुतपरस्त मूर्तियों के लिए समर्पित थे और उनके तौर तरीके इसहाक और रिबका के जीवन से बहुत भिन्न थे। एसाव की पत्नियां उसके माता पिता के लिए एक निरंतर दु: ख देने वाली थीं। 

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

परमेश्वर ने इसहाक के पास आकर क्या कहा? आपने यह ध्यान दिया की उन्होंने इब्राहीम के बारे में फिर से कुछ कहा? आप उसके सेवक के प्रति परमेश्वर की भक्ति को सुन सकते हैं? "मेरे दास इब्राहीम की खातिर?" आप परमेश्वर की आवाज में स्नेह और वफ़ादारी के स्वर की कल्पना कर सकते हैं? क्या यह अजीब नहीं है? परमेश्वर जब आप से बात करते हैं तो आप क्या सोचते हैं की वह कैसी आवाज़ में बोलता होगा? उसकी कोमल, आशा से भरी और सामर्थी आवाज़ की कल्पना कीजिए जब वह कहता है, "डरो मत. मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगा और ना त्यागूँगा।"

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

परमेश्वर ने इसहाक़ को बहुतायत के भेड़ बकरियों और पशुओं से आशीर्वाद दिया था। तभी भी इसहाक ने अपने आसपास के अन्य लोगों पर अपनी शक्ति का उपयोग नहीं किया। उसने बड़ी विनम्रतापूर्वक अपने पूरे कबीले को चलाया और अपने पिता कि शांति को आदर सम्मान देने के लिए नए कुएं खोदे।  

यीशु ने कहा, "धन्य हैं वे जो शान्ति के काम करते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

 

परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

क्या आप ऐसी कोई स्थिति के बारे में सोच सकते हैं जहां आप शांति करने वाले बने? इसहाक इसके लिए महान त्याग करने को तैयार था। और यीशु भी था। क्या आप परमेश्वर से मांगेंगे कि आप कैसे शांति को ला सकते हैं? क्या यह विनम्रतापूर्वक अपने पिता या भाई को समर्पित होकर आएगा? जिसके साथ आप बात ना कर रहे हों या लड़ाई कि हो, उनके साथ शांति लाना चाहेंगे? क्या प्रार्थना करने से आएगा? जिस किसी के साथ भी आपकी असहमति है, उससे शांति करने के लिए क्या किसी बुद्धिमान व्यक्ति की सहायता लेंगे कि वो आपकी मदद करे? क्या आप एक परिवार के रूप में इन बातों के बारे में बात कर सकते हैं?