पाठ 160 : एदोम की अस्वीकृति और हारून की मौत
अब समय आ गया था किइस्राएल का राष्ट्र यात्रा पर निकले, लेकिन उनका रास्ता उन्हें दूसरे देश में ले गया। यह एदोम देश था, और ये वे लोग नहीं थे जिन्हें परमेश्वर ने जीत के लिए इस्राएल को बुलाया था। परमेश्वर ने उन लोगों के साथ शांति बनाए रखने के लिए मूसा से कहा था।
मूसा ने उस राष्ट्र से यात्रा करने की इजाज़त एदोम के राजा से पत्र में लिख कर मांगी। उसने लिखा;
"'तुम्हारे भाई इस्राएल के लोग तुमसे यह कहते हैं: तुम जानते हो कि हम लोगों ने कितनी कठिनाइयाँ सही हैं। अनेक वर्ष पहले हमारे पूर्वज मिस्र चले गये थे और हम लोग वहाँ अनेक वर्ष रहे। मिस्र के लोग हम लोगों के प्रति क्रूर थे। किन्तु हम लोगों ने यहोवा से सहायता के लिए प्राथना की।” यहोवा ने हम लोगों की प्रार्थना सुनी और उन्होंने हम लोगों की सहायता के लिए एक दूत भेजा। यहोवा हम लोगों को मिस्र से बाहर लाया है। अब हम लोग यहाँ कादेश में हैं जहाँ से तुम्हारा प्रदेश आरम्भ होता है। कृपया अपने देश से हम लोगों को यात्रा करने दें। हम लोग किसी खेत या अंगूर के बाग से यात्रा नहीं करेंगे। हम लोग तुम्हारे किसी कुएँ से पानी नहीं पीएंगे। हम लोग केवल राजपथ से यात्रा करेंगे। हम राजपथ को छोड़कर दायें या बायें नहीं बढ़ेंगे। हम लोग तब तक राजपथ पर ही ठहरेंगे जब तक तुम्हारे देश को पार नहीं कर जाते।'”
गिनती 20: 14-17
मूसा चाहता था कि वहां का राजा इस बात से सुनिश्चित रहे किइस्राएली उनके देश के लोगों से चोरी या उन्हें चोट नहीं पहुंचाएंगे। लेकिन एदोम का राजा उनकी बातों में आने वाला नहीं था। वे इस्राएलियों को उनके देश से पारित नहीं होने देंगे। उन्होंने कसम खायी कि यदि वे आने की कोशिश करेंगे, तो एदोमी तलवार से उन पर हमला करेंगे और उनके खिलाफ युद्ध करेंगे।
तब मूसा ने एक और संदेश भेजा। उसने वादा किया कि इस्राएली मुख्य मार्ग पर ही रहेंगे, और यदि वे पानी भी पीते हैं तो वे उसका भुगतान करेंगे। एदोमी अभी भी नहीं मान रहे थे। वे वहां से पारित नहीं हो सकते थे। फिर वे अपने हथियारों के साथ उनसे लड़ने के लिए तैयार हो गए।मूसा कुछ नहीं कर सकता था। इस्राएलियों को वादे के देश में जाने के लिए इस देश के बाहर से घूम कर जाना होगा।
उन्होंने एदोम की सीमा के बाहर रह कर होर पर्वत पर यात्रा की। जब वे वहां पहुंचे, परमेश्वर मूसा और हारून के पास एक दुःख भरे काम से आया। उसने कहा की जल्द ही हारून मरने जा रहा था। परमेश्वर उसे घर ला रहा था। हारून इस्राएल का महायाजक था, और उसका जीना और मरना पूरे राष्ट्र के लिए और मंदिर के लिए बहुत महत्व रखता था। हारून के जाने के बाद कौन उस पवित्र काम का नेतृत्व करेगा? कई साल पहले पूरा देश इसके कारण बर्बाद हो चुका था। अब, जब वे वादे के देश की ओर जा रहे थे, इस्राएलियों के लिए यह ज़्यादा महत्वपूर्ण था किवे जानें की परमेश्वर किसे चाहता है किवह यहोवा के लिए वेदी पर शुद्धिकरण का बलिदान चढ़ाये।
परमेश्वर ने हारून और उसके पुत्र एलीआजर को होर के पर्वत पर लाने के लिए मूसा से कहा। जिस समय हारून पर्वत पर आएगा, उसे याजक के वस्त्र पहनने होंगे। जब वे पहुंचे, मूसा को अपने भाई के ऊपर से उन पवित्र वस्त्रों को उतार कर अपने भतीजे को पहनाने थे। और हारून पर्वत पर मर जाएगा।
मूसा ने परमेश्वर किआज्ञा के अनुरूप किया। हारून, मूसा, और एलीआजर होर पर्वत की चोटी पर चढ़ गए। जब वे वापस नीचे आये, तो एलीआजर महायाजक के शाही वस्त्र पहने हुआ था, और हारून चला गया था। जब लोगों ने देखा की क्या हुआ है, तो उन्हें बेहद दु: ख पहुंचा। पूरा देश तीस दिनों के लिए शोक मनाने लगा। शोक आम तौर पर सात दिन के लिए होता था, और इसलिए लोग उस व्यक्ति का सम्मान कर रहे थे जिसने उनकी सेवा कि थी उनके पापों के लिए शुद्धिकरण के बलिदान चढ़ाता था।
एलीआजर ने पूरे समय अपने पिता के साथ काम किया था। उसने यहोवा को पर्वत पर आग में आते देखा था और मंदिर के निर्माण में मदद किथी। जब उसके भाई परमेश्वर के क्रोध किआग में जल गए थे, वह फिर भी परमेश्वर आज्ञाओं के प्रति वफ़ादार बना रहा। और वह मंदिर की सेवा करता रहेगा। उसके बच्चे भी वही करेंगे। जब परमेश्वर ने हारून के याजक पद को ठहराया, तब वह उस समय के लिए एक उच्च और पवित्र क्षण था। लेकिन यह भविष्य के लिए भी, एक महत्वपूर्ण बात थी। आने वाले सैकड़ों वर्षों के लिए हारून का याजक पद के द्वारा इस्राएल के राष्ट्र की सेवा होगी। वे लोगों के लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेंगे, और वे पीढ़ियों के लिए यहोवा के आगे उनकी शुद्धिकरण के लिए बलिदान को लाएंगे।