पाठ 141 : तिरस्कार करने वाले पर पथराव
परमेश्वर जब मूसा को इन नियमों और आदेशों और अनुष्ठानों को दे रहा था, पूरा राष्ट्र सीनै पर्वत के निकट मरुभूमि के जंगल में रह रहा था। दो लाख लोग अपने जानवरों और तम्बुओं और बच्चों के साथ थे। हर सुबह उन्हें पर्याप्त मन्ना उनके पूरे परिवार को खिलाने के लिए दिया गया था। दिन प्रति दिन वे काम करते, नहाते धोते और सोते थे, लेकिन उनके कपड़े कभी नहीं फटते थे।
उन्होंने दस आज्ञाओं और नियमों को सुना था और पहले से ही अपनी आज्ञाकारिता से उन्हें सम्मानित करने लगे थे। वे जानते थे की परमेश्वर के लिए कैसे जीना है। वे यह भी जानते थे की उसे अपमानित कैसे करना है। मूसा ने पहले से ही प्रत्येक जनजाति के लिए एक न्यायधीश ठहराया था। जब कोई कानून तोड़ता था, उन्हें सुनवाई के लिए न्यायधीश के पास जाना था। यह एक गंभीर अपराध था, तो वे उस मामले को मूसा के पास ले जाते थे।
एक दिन, एक विशेष मामला मूसा के पास आया। एक इस्राएली व्यक्ति जिसका पिता मिस्री था, एक इस्राएली के साथ लड़ाई कर रहा था। जब वे लड़ रहे थे, पहले व्यक्ति ने परमेश्वर के नाम को शाप दिया। यह निन्दा थी! यह एक भयानक पाप था! इसकी सज़ा पत्थरवाह द्वारा मौत थी! यह एक बहुत ही गंभीर बात थी। परमेश्वर क्या चाहता था किवे करें? उन्होंने जल्दबाज़ी में निर्णय नहीं लिया। इसके बजाय, जब तक वे परमेश्वर किइच्छा नहीं जान लेते, उस व्यक्ति को दूर रखा।
परमेश्वर ने मूसा से कहा:
"'उस व्यक्ति को डेरे के बाहर एक स्थान पर लाओ, जिसने शाप दिया है। तब उन सभी लोगों को एक साथ बुलाओ जिन्होंने उसे शाप देते सुना है। वे लोग अपने हाथ उसके सिर पर रखेंगे। और तब सभी लोग उस पर पत्थर मारेंगे और उसे मार डालेंगे। तुम्हें इस्राएल के लोगों से कहना चाहिए: यदि कोई व्यक्ति अपने परमेश्वर को शाप देता है तो उस व्यक्ति को दण्ड मिलना चाहिए। कोई व्यक्ति, जो यहोवा के नाम के विरुद्ध बोलता है, अवश्य मार दिया जाना चाहिए। सभी लोगों को उसे पत्थर मारने चाहए। विदेशी को वैसे ही दण्ड मिलना चाहिए जैसे इस्राएल में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मिलता है। यदि कोई व्यक्ति योहवा के नाम को अपश्ब्द कहता है तो उसे अवश्य मार देना चाहिए।'"
लैव्यव्यवस्था 24: 14-16
परमेश्वर के नाम कि निन्दा करने के लिए उस व्यक्ति को अपनी जान गवानी होगी। परमेश्वर अक्सर अपने लोगों को पथराव के साथ मृत्युदंड देता था। इस मामले में, जिस किसी ने उस व्यक्ति को परमेश्वर को शाप देते देखा और सुना, वे भी इस सज़ा के भागी होंगे। वे सब भी उन शब्दों के ज़िम्मेदार होंगे जो वे उस व्यक्ति के लिए बोलेंगे। परिणाम का एक हिस्सा होने के कारण उन्हें अपनी बातों पर अटल रहना होगा। प्रत्येक को तब तक पथराव करना है जब तक वह व्यक्ति मर नहीं जाता। कोई एक व्यक्ति ही केवल उसे नहीं मार सकता था। केवल एक ही व्यक्ति उसके प्राण को लेने का भार नहीं उठाएगा।
यह थोड़ा कठोर लग सकता है की उनके कहने पर एक व्यक्ति को मारा जा रहा है। सीनै पर्वत पर उस आग और बादल को याद रखना महत्वपूर्ण है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है की परमेश्वर दस आज्ञाओं में हज़ारों चीज़ें डाल सकता था, लेकिन यह नियम "तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के नाम का उपयोग तुम्हें गलत ढंग से नहीं करना चाहिए।" सबसे उत्तम रहा। उन्होंने इस नियम को स्वयं परमेश्वर के मुख से सुना था। परमेश्वर इतना योग्य और पवित्र है की, दुनिया की किसी भी चीज़ से अधिक कीमती है। परमेश्वर ने कुछ ही शब्दों से पूरे ब्रह्मांड को बनाया है, और जिस शब्द से हम उसे पुकारते हैं वह मूल्यवान है। उसने प्रत्येक व्यक्ति को जीवन दिया, और उसका अनादर करना, एक गन्दा विश्वासघात है।
मूसा ने जब घोषित किया की वह व्यक्ति पर पथराव किया जाये, उसने कुछ और समझाया:
"'और यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को मार डालता है तो उसे अवश्य मार डालना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के जानवर को मार डालता है तो उसके बदले में उसे दसूरा जानवर देना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोस में किसी को चोट पहुँचाता है तो उस व्यक्ति को उसी प्रकार की चोट उस व्यक्ति को पहुँचानी चाहिए। एक टूटी हड्डी के लिए एक टूटी हड्डी, एक आँख के लिए एक आँख, और एक दाँत के लिए दाँत। उसी प्रकार की चोट उस व्यक्ति को पहुँचानी चाहिए, जैसी उसने दूसरे को पहुँचाई है। इसलिए जो व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के जानवर को मारे तो इसके बदनले में उसे दूसरा जानवर देना चाहिए। किन्तु जो व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को मार डालता है वह अवश्य मार डाला जाना चाहिए। तुम्हारे लिए एक ही प्रकार का न्याया होगा। यह विदेशी और तुम्हारे अपने देशवासी के लिए समान होगा। क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।'”
लैव्यव्यवस्था 24:17-22
वाह, यह कठोर लग सकता है। लेकिन दूसरे पक्ष के बारे में सोचिये। यदि कोई आपके पशु को मार देता है, तो क्या उन्हें आपसे कम सज़ा मिलनी चाहिए? नहीं। परमेश्वर अपने लोगों को न्याय का अर्थ सिखा रहा था। उसने कहा कि न्याय का मतलब है की लोगों को उनके काम के अनुसार उतना ही दण्ड मिलना चाहिए जितना उन्होंने किया हो। न कम और न ज्यादा। अश्शूर के देश में, जब कोई किसी मूर्ति किनिन्दा करता है, उनकी जीभ काट दी जाती है। फिर उनके जीवित रहते चमड़ी निकाल दी जाती है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? कितना भयानक है! बेशक इसका मतलब यह है किवे मर जाते हैं। लेकिन मरने से पहले, उन्हें अपमानित और अत्याचार किया जाता है। परमेश्वर ने अपने लोगों के लिए इसकी अनुमति नहीं दी थी। उसने एक बहुत ही सीधी और सिद्ध सज़ा दी थी।
यह कितना दिलचस्प है किये दंड किसी के पद के कारण बदलते नहीं थे। एक नबी या न्यायाधीश को वही न्याय मिलता था जो एक गरीब व्यक्ति या एक विदेशी को। इस्राएल में एक सच्चे संरक्षण तरीके से रहना सुरक्षित था, और सबके लिए पाप करना एक बहुत खतरनाक योजना थी।
जो व्यक्ति परमेश्वर के नाम को शापित करता है, वह उसे निर्लज्जता और जानबूझकर करता है। यह उन दिनों का खुला विद्रोह था जब परमेश्वर उसकी संप्रभु देखभाल के अंतर्गत अपने लोगों को एक साथ ला रहा था। परमेश्वर के न्याय के अनुसार उसे पत्थरवाह द्वारा मार डाला जाना चाहिए। उसकी मौत दूसरों के लिए एक उदाहरण थी। इस्राएल के लोग बोलते समय सावधानी से बोलेंगे। यहां तककिसबसे दुष्ट व्यक्ति भी सोच समझ कर बोलेगा और परमेश्वर का सम्मान करेगा। वे इस बात से सावधान रहेंगे कि वे उसे उसके लोगों के सामने नीचा न समझें क्यूंकि उन्हें डर होगा की उनके साथ क्या हो सकता है। इस्राएलियों ने उस व्यक्ति को डेरे से बाहर लेजा कर वही किया जो परमेश्वर ने आज्ञा दी थी।