पाठ 131 : हारून के पुत्र की मौत: भाग 1

मंदिर को बनाने के काम के विषय में कल्पना कीजिये जो याजकों को सात दिन में पूरा करना था। एक भेड़ के बच्चे का सुबह और शाम बलिदान करना, मिलापवाले तम्बू से सुंगंध का उठना। कल्पना कीजिये किकैसे एक विशाल बैल को तम्बू के प्रवेश द्वार पर लाकर उसे वध किया जाता था। उसका धुआं हवा में उठता था, और लोग जान जाते थे की यह सुगंध परमेश्वर को पहुंची है। पूरा देश जानता था कि याजकों के पद को पहली बार अभिषेक किया जा रहा था, जो कई सालों तक चलता रहेगा। ये याजक इस्राएल कि सेवा टहल करेंगे और उनके देश और परमेश्वर के बीच उसी प्रकार मध्यस्थता करेंगे जिस प्रकार इस्राएल का देश परमेश्वर और अन्य देशों के बीच मध्यस्थता करेगा। याजक उनके लिए नमूना थे ताकि वे दिखा सकें की किस प्रकार वे पृथ्वी के लोगों के बीच सेवा कर सकते हैं। जिस प्रकार एक उच्च और पवित्र कार्य के लिए पवित्र ठहराए गए थे, उसी प्रकार इस्राएल के लोगों को अपने आप को एक उच्च और पवित्र जगह पर अपने आप को देखना था। यह एक बहुत विशेषाधिकार और एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी। यदि याजक अपने काम को करने में असफ़ल रहते हैं, तो इस्राएल के लोग अपनी बुलाहट के प्रति कैसे वफ़ादार रह सकते थे? 

नियुक्ति के सात दिन बाद, एक अंतिम उत्सव होता था। आठवें दिन, परमेश्वर ने बादल से आग भेज कर वेदी के बलिदान को भस्म कर दिया। इस्राएल के इतिहास में एक महान क्षण आ रहा था। मंदिर का काम पूरा हो चुका था, और यह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार किया गया था। यह एक शुरुआत थी। याजकों को अभिषेक किया गया था, और राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार थे। इस्राएलियों ने बहुत आनंद और उत्साह के साथ परमेश्वर के कामों के लिए सहमति दिखाई। यह एक ऐसा समय था जब सब कुछ ठीक था। 

लेकिन आठवें दिन, हारून के दोनों पुत्रों ने एक भयानक निर्णय लिया। उनके नाम नादाब और अबीहू थे। यहोवा द्वारा दिए बलिदानों के आदेश के बीच में, उन्होंने उनकी धूपदानी हटा कर अपनी धुप उसमें डाल दी। उनकी धूपदानी ऐसे बर्तन के समान थी जिसका हैंडल लम्बा था, और उन्हें वेदी पर अंगारे डालने के लिए बनाया गया था। लेकिन नादाब और अबीहू उसे छोटी सी वेदी समझ रहे थे। वे परमेश्वर की उपासना के लिए एक अलग तरीका बना रहे थे। वे परमेश्वर किआराधना करने के ऐसे तरीके अपना रहे थे जो उसकी योजना की बिलकुल विरुद्ध था। यह आराधना नहीं थी। यह एक विद्रोह था! 

परमेश्वर के याजक के रूप में नियुक्त होने के पहले ही दिन, वे परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन कर रहे थे! क्या हारून उन्हें देखकर दहशत में रह गया? क्या उसने और उसके पुत्रों ने इसे रोकने की कोशिश की? वे इस पवित्र क्षण को लेकर परमेश्वर की उपस्थिति में होकर भी उसकी आज्ञा को भंग क्यूँ करेंगे? जब पूरा देश देख रहा था तब उन्होंने ऐसे उच्च और पवित्र समय में परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह क्यूँ किया? और अब परमेश्वर इसके बारे में क्या करने जा रहा था?

परमेश्वर कि उज्ज्वल उपस्थिति एक आग के रूप में गरजते हुए आई और उन याजकों को भस्म कर दिया। यह इतना भयंकर था की उन्हें तुरंत पूरी तरह से भस्म कर दिया। मूसा ने अपने भतीजे को जलते देखा और परमेश्वर की ओर से जान गया की इसका कारण क्या था। याजकों का पद पाप के कारण बाधित हो गया था। इसे बहाल करने की ज़रुरत थी।  तब मूसा ने हारून से कहा,“'यहोवा कहता है, ‘जो याजक मेरे पास आए, उन्हें मेरा सम्मान करना चाहिए! मैं उन के लिए और सब ही के लिये पवित्र माना जाऊँ।’” (लैव्यव्यवस्था 10: 3) हारून वहां शांत हो कर खड़ा रहा। 

तब मूसा ने मीशाएल और एलसाफान को बुलवाया। उनके पिता हारून का चाचा था, और वे परिवार के थे। उसने कहा,“'पवित्र स्थान के सामने के भगा में जाओ। अपने चचेरे भाईयों के शवों को उठाओ और उन्हें डेरे के बाहर ले जाओ।'” उन्होंने मूसा की आज्ञा मानी और उन पुरुषों के शवों को उनके वस्त्रों में ही उन्हें उठा कर ले गए। वे उन्हें मंदिर के बाहर, इस्राएल के डेरे की दीवार के बाहर तक ले गए। 

मूसा ने हारून से कहा, "'कोई शोक प्रकट न करो! अपने वस्त्र न फाड़ो या अपने बालों को न बिखरो! शोक प्रकट न करो, तुम मरोगे नहीं और योहवा तुम सभी लोगों से अप्रसन्न नहीं होगा। इस्राएल का पूरा राष्ट्र तुम लोगों का सम्बन्धी है। वे यहोवा द्वारा नादाब और अबीहू के जलाने के विषय में रो पीट सकते हैं। किन्तु तुम लोगों को मिलापवाले तम्बू भी नहीं छोड़ना चाहिए। यदि तुम लोग उस द्वार से बाहर जाओगे तो मर जाओगे। क्यों क्योंकि यहोवा के अभिषेक का तेल तुम ने लगा रखा है।'”

इस्राएल में, अपना प्रिय जन, जो मर गया हो, उसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान शोक और विलाप कर के दर्शाया जाता है। वे अपने कपड़े फाड़ कर और विलाप कर के अपने दिल की अनुभूति प्रकट करते थे। परमेश्वर हारून के लिए ऐसा करने की अनुमति नहीं देगा। वह परमेश्वर के सामने एक पवित्र अनुष्ठान के बीच में एक महायाजक था। उसके ऊपर अभिषेक का तेल था, और उसे परमेश्वरकिपवित्र सेवा को करते रहना था। उसे इस उच्च और पवित्र प्राथमिकता को अंत तक जारी रखना था। उसके पुत्रों का मरना सही था, क्यूंकि उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया था। उन्हें चेतावनी दी गई थी, और विश्वास नहीं किया था। लेकिन, ओह, परमेश्वर से ऐसी बात पूछना कितनी ज़बरदस्त बात है, हारून को यह कितनी उच्च बुलाहट से अलग किया गया था, और उसने अपनी आज्ञाकारिता से परमेश्वर को महिमा दी।