कहानी १५१: अज्ञात घड़ी
मत्ती २४:३२-४१1, मरकुस १३:२८-३२, लूका २१:२८-३३
यीशु ने अपने शिष्यों को वह उपदेश दिया जो पूरा इस्राएल सुनना चाहता था। जब वे जैतून के पहाड़ पर बैठे थे, उसने पूरे मनुष्य के इतिहास के लिए अपनी योजना को दिखाया। पापी संसार में समय बहुत कठिन होने जा रहा था, और महान क्लेश के समय तक बहुत कष्ट बढ़ने वाला था। परन्तु दुष्ट के नीचे जीवन के क्लेश कम होने जा रहे थे, और मनुष्य का पुत्र, प्रभु यीशु पूरी सामर्थ के साथ आएगा! यीशु ने अपने चेलों को चौकन्ने रहने को कहा।
उसने कहा:
"'अब देखो, ये बातें जब घटने लगें तो तुम खड़े होकर अपने सिर ऊपर उठा लेना। क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट आ रहा होगा। फिर उसने उनसे एक दृष्टान्त-कथा कही: “और सभी पेड़ों तथा अंजीर के पेड़ को देखो। उन में जैसे ही कोंपले फूटती हैं, तुम अपने आप जान जाते हो कि गर्मी की ऋतु बस आ ही पहुँची है। वैसे ही तुम जब इन बातों को घटते देखो तो जान लेना कि परमेश्वर का राज्य निकट है। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें घट नहीं लेतीं, इस पीढ़ी का अंत नहीं होगा। धरती और आकाश नष्ट हो जाएँगे, पर मेरा वचन सदा अटल रहेगा।'"
यीशु का क्या मतलब था जब उसने उन अद्भुद बातों के विषय में बताया जो इस पीड़ी के गुज़रने से पहले होंगी? कभी कभी हम पीड़ी को उन लोगों के समूह को समझ जाते हैं जो एक समय में पैदा होती है। आपके माता पिता शायद उसी पीड़ी में पैदा हुए होंगे, और आप उसके बाद वाली पीड़ी में। लेकिन कभी कभी पीड़ी का मतलब उन लोगों का समूह जो उसी वंश के हों। यीशु के चेले वे थे जो पवित्र आत्मा को पा कर यीशु में नयी सृष्टि हो जाएंगे। वे उस अद्भुद सन्देश को सुसमाचार के माध्यम से सुनाएंगे, और बहुत से अपने विश्वास यीशु पर डालेंगे, और बहुत से उस पर विश्वास करेंगे। परमेश्वर उन्हें उस विश्वास को आगे बढ़ने के लिए मदद करेगा, और दो हज़ार वर्ष के लिए मसीही धर्म बढ़ता जाएगा। उस स्थिति में, हर कोई जो यीशु पर विश्वास लाएगा, वह उस पीड़ी का सदस्य बन जाएगा जिसके विषय में यीशु कह रहे थे। परमेश्वर यीशु के शरीर को उस समय तक जीवित रखेगा जब तक अंत में वह सब कुछ नया नही कर देता। क्या यह सम्भव है कि हम जानें कि ऐसा कब होगा?
यीशु ने कहा:
“'उस दिन या उस घड़ी के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। न स्वर्ग में दूत और न स्वयं पुत्र। केवल परम पिता जानता है। जैसे नूह के दिनों में हुआ, वैसे ही मनुष्य का पुत्र का आना भी होगा। वैसे ही जैसे लोग जलप्रलय आने से पहले के दिनों तक खाते-पीते रहे, ब्याह-शादियाँ रचाते रहे जब तक नूह नाव पर नहीं चढ़ा। उन्हें तब तक कुछ पता नहीं चला जब तक जलप्रलय न आ गया और उन सब को बहा नहीं ले गया। मनुष्य के पुत्र का आना भी ऐसा ही होगा। उस समय खेत में काम करते दो आदमियों में से एक को उठा लिया जायेगा और एक को वहीं छोड़ दिया जायेगा। चक्की पीसती दो औरतों में से एक उठा ली जायेगी और एक वहीं पीछे छोड़ दी जायेगी।'"
परमेश्वर के पुत्र को भी नहीं मालूम कि अंत का समय कब होगा। ऐसे कैसे हो सकता है? क्या यीशु परमेश्वर नहीं है? हाँ, वह पूरी तौर से परमेश्वर है, परन्तु जब वह मनुष्य रूप में इस पृथ्वी पर आया, वह बड़ा हुआ और अन्य मनुष्य कि तरह उसने भी करते हैं शिक्षा ली। वह अपने पिता पर बुद्धि के लिए निर्भर रहता था, जैसे कि हम! सारे महाप्रतापी सच्च को परमेश्वर कि आत्मा ने उसे सिखाया। यह बहुत अद्भुद है कि यीशु ने भी उसी तरह जीवन व्यतीत किया जिस प्रकार कि हमें करना है, केवल यह है कि उसने सम्पूर्ण रीति से जीया।
मनुष्य जीवन को पूर्ण रीति से जीने का वह उत्तम उदहारण था। यदि परमेश्वर के पुत्र को भी नहीं मालूम कि परमेश्वर पिता अंतिम समय कब लाएगा, यीशु अपने चेलों से तब तक क्या चाहता है कि वे करें?
उसने उनसे कहा:
“'सो तुम लोग सावधान रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा स्वामी कब आ जाये। याद रखो यदि घर का स्वामी जानता कि रात को किस घड़ी चोर आ जायेगा तो वह सजग रहता और चोर को अपने घर में सेंध नहीं लगाने देता।इसलिए तुम भी तैयार रहो क्योंकि तुम जब उसकी सोच भी नहीं रहे होंगे, मनुष्य का पुत्र आ जायेगा।'" --मत्ती २४:४२-४४
क्या यीशु का यह मतलब था कि उसके चेलों को हर समय जगे रहना चाहिए? क्या उन्हें सोने कि अनुमंती नहीं थी? यीशु उन्हें यह समझा रहा था कि किस प्रकार उन्हें परमेश्वर कि योजना को अपने जीवन के लिए जागृत रहना है। उन्हीं उसन सब बातों का ध्यान रखना है जो और हो रही थीं। यीशु अपने चेलों को इस प्रकार चाहता कि कि वह किसी भी समय आ जाएंगे।
उसने कहा:
“'सोचो वह भरोसेमंद सेवक कौन है, जिसे स्वामी ने अपने घर के सेवकों के ऊपर उचित समय उन्हें उनका भोजन देने के लिए लगाया है। धन्य है वह सेवक जिसे उसका स्वामी जब आता है तो कर्तव्य करते पाता है। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ वह स्वामी उसे अपनी समूची सम्पत्ति का अधिकारी बना देगा।'"
वफादार सेवकों के लिए वहाँ ऊंचे इनाम थे। यीशु ने हमें शक्तिशाली वजह दी है कि हम उन बातों के लिए करें जो वह चाहता है। परन्तु यीशु जानता था कि बहुत से सेवक होंगे जो भयनकर रूप से बेवफा होंगे, और उसने कहा:
"'.... एक बुरा दास है, जो अपने मन में कहता है मेरा स्वामी बहुत दिनों से वापस नहीं आ रहा है। सो वह अपने साथी दासों से मार पीट करने लगता है और शराबियों के साथ खाना पीना शुरु कर देता है। तो उसका स्वामी ऐसे दिन आ जायेगा जिस दिन वह उसके आने की सोचता तक नहीं और जिसका उसे पता तक नहीं। और उसका स्वामी उसे बुरी तरह दण्ड देगा और कपटियों के बीच उसका स्थान निश्चित करेगा जहाँ बस लोग रोते होंगे और दाँत पीसते होंगे।'" --मत्ती २४:४५-५१
यह कितनी भयानक चेतावनी है। क्या यह अच्छा नहीं कि परमेश्वर उन पापी मनुष्य दूसरों से घृणा करते और उन्हें सताते हैं? वह हर एक मनुष्य को देखता है और ध्यान करता है कि वे एक दूसरे के साथ कैसे व्यवहार करते हैं। हर एक व्यक्ति परमेश्वर के लिए मायने रखता है और किसी को अधिकार नहीं है किसी और के साथ बुरा करे चाहे वे कोई भी क्यूँ ना हों! जो भी परमेश्वर का अपमान करेगा वह दण्ड पाएगा। ऐसा लगता है की कोई भी स्त्री या पुरुष परमेश्वर का था ही नही!