कहानी १४३: इस्राएल और अंजीर का वृक्ष
मत्ती २१:१८-२२, मरकुस ११:१९-२६
यीशु का येरूशलेम फसह के पर्व में आना हवा के समान था, जिसने सब कुछ उल्टा पुल्टा कर दिया था। उसने दिखावे कि झूठी आराधना को उनके भ्रष्टाचार के द्वेष को हिला कर रख दिया था। लोगों के पक्ष को बुलाया गया। क्या वे मनुष्य के रास्ते को चुनेंगे या परमेश्वर के रास्ते को? क्या वे सच्चे इतिहास कि ओर होंगे? क्या वे परमेश्वर के साथ वफादार रहेंगे?
जिस समय सब यह देख रहे थे कि यीशु अब क्या करेगा, किसी को भी यह एहसास नहीं हुआ कि वह उनका ही इम्तिहान ले रहा था। यीशु परमेश्वर कि सामर्थ में उन पापी लोगों के विरुद्ध में सिद्ध और निष्कलंक खड़ा रहा। यह सब पर निर्भर करता था कि वे उसके साथ संरेखित हों। जब कोई भयानक खतरे में पड़ता है, तब एक हल्का सुझाव है एक बचाव करने के लिए। यदि आप उनके जीवन को बचाना चाहते हैं, तब आप उनको चिल्ला चिल्ला कर पुकारते हैं। यहूदी बहुत ही भयानक गलती करने जा रहे थे। केवल यीशु ही उनके त्रासदी कि गहराई को समझ सकता था जो वे अपने ऊपर ले कर आ रहे थे। यीशु कि कठोर चेतावनियां उसकी करुणा और अनुग्रह का अधिनियम था।
सोचिये यीशु उन्हें क्या दिखा रहा था। वह अनतकाल का परमेश्वर है, जो युगानुयुग और पवित्र है। इसके बावजूद वह उनका साथ दिया और उनके साथ भोजन भी किया। वह मनुष्यरूप में आया, और जितनो ने उसे सच्चे विश्वास के साथ माना था केवल वे यह समझते थे कि वह परमेश्वर भी है। यदि उस इस्राएल के परमेश्वर को लोगों ने सच्ची भक्ति से प्रेम किया होता, और उसके नियमों से भी, तो वे उसके पुत्र से भी प्रेम करते। यीशु कि भलाई के प्रति उनका अंधापन और घृणा, यह दिखता है कि उनकी आराधना कितनी झूठी है। उन्हें अपने परमेश्वर को पहचान लेना चाहिए था जब वे उनके पास आया था।
परन्तु कुछ लोग थे जो उसे पहचानते थे। फसह का दूसरा हफ्ता आकर चला गया था। यीशु बैतनिय्याह के रास्ते अपने चेलों के साथ गया। यह जैतून के पहाड़ के पास बसा हुआ एक छोटा सा गाँव था। उन्होंने वहाँ रात बिताई। जब सूरज उगा, तब उन्होंने येरूशलेम की दुर्जेयी दीवारों को देखा। और जब सुबह हुई, यीशु वापस मंदिर कि ओर अपने चेलों को लेकर चला गया।
रास्ते में, उन्हें वही अंजीर का पेड़ मिला जिसे यीशु ने श्रापित कर दिया था। केवल अब, उसमें हरी पत्तियां आ गयी थीं। पूरा पेड़, जड़ से सबसे ऊंची टहनी तक पूरा सूख गया था। यह देखना कितना अचंबित था कि एक दिन पहले जो इतना उज्जवल और जीवित था, वह अगले चौबीस घंटे के भीतर ही पूर्ण रूप से मर गया!
उसके चेलों ने पुछा,"'यह अंजीर का पेड़ एक दम से कैसे सूख गया?'"
तब पतरस ने याद करते हुए यीशु से कहा,“हे रब्बी, देख! जिस अंजीर के पेड़ को तूने शाप दिया था, वह सूख गया है!”
यीशु ने उन्हें उत्तर दिया,
"'परमेश्वर में विश्वास रखो।मैं तुमसे सत्य कहता हूँ: यदि कोई इस पहाड़ से यह कहे, ‘तू उखड़ कर समुद्र में जा गिर’ और उसके मन में किसी तरह का कोई संदेह न हो बल्कि विश्वास हो कि जैसा उसने कहा है, वैसा ही हो जायेगा तो उसके लिये वैसा ही होगा। इसीलिये मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुम प्रार्थना में जो कुछ माँगोगे, विश्वास करो वह तुम्हें मिल गया है, वह तुम्हारा हो गया है। और जब कभी तुम प्रार्थना करते खड़े होते हो तो यदि तुम्हें किसी से कोई शिकायत है तो उसे क्षमा कर दो ताकि स्वर्ग में स्थित तुम्हारा परम पिता तुम्हारे पापों के लिए तुम्हें भी क्षमा कर दे।"” --मत्ती २१:२-२२ और मरकुस ११:२२-२६
यीशु के अपने चेलों के साथ बात करने का ढंग और भीड़ के साथ बात करने के ढंग में अंतर देखिये। यीशु को उनके ह्रदयों कि बातों को समझने के लिए आत्मा के द्वारा शक्ति मिली। उसके चेले उसके पीछे विश्वास के साथ चल रहे थे। वे वफादार थे। परन्तु उन्हें और विश्वास कि आवश्यकता थी। वे परमेश्वर को संसार कि स्थितियों को बदलते हुए देखेंगे। महासागर दूर से कितना चमकदार दिख रहा होगा। उनके स्वामी ने उनसे कहा कि वे विश्वास के साथ उस विशाल पहाड़ को पानी में जाने का आदेश दे।
परमेश्वर के लिए उस पर विश्वास करना कितना उल्लेखनीय है। उसे अपने बच्चों के साथ प्रेम का सम्बन्ध चाहिए जब वे उसके पास सच्चे विश्वास के साथ आते हैं। विश्वास और किसी भी चीज़ से बहुत बहुमूल्य है क्यूंकि इसके द्वारा हम अपने परमेश्वर के साथ बांध जाते हैं। परमेश्वर अपने बच्चों से ह्रदय की नज़दीकी और विश्वास को चाहता है। वह चाहता है कि वे पूरे दिल से यह विश्वास करें कि यीशु ही सबसे आवश्यक है! ऐसे प्रेम और विश्वास के स्थापित होने से परमेश्वर के बच्चे उसकी इच्छा में और गहराइ में उतरेंगे। यदि उनकी बिनती परमेश्वर कि ओर से है तो पवित्र आत्मा उन्हें आश्वासन देगा, और जब परमेश्वर उन्हें स्पष्ट कर देगा कि वे सही हैं तो वे यह पूर्ण रूप से विश्वास कर सकते हैं कि परमेश्वर उनकी प्रार्थना का आदर करेगा। कभी कभी प्रार्थना में समय लगता है। कभी कभी उसकी अगवाई के लिए ह्रदय को शांत करना पड़ता है और पूरे दिल से उसे खोजना पड़ता है। परन्तु जिस ख़ूबसूरत प्रक्रिया में चेले यीशु के पीछे गहराई से चले, उस प्रक्रिया से परमेश्वर अपनी इच्छा को संसार में प्रकट करता है! जो कुछ उसके बच्चे विश्वास के साथ मांगे वह उसे उन्हें देने के लिए कुछ भी करेगा!
एक चिंता कि बात यह है कि वह सब मांगते हैं जो उसकी इच्छा के विरुद्ध है। परमेश्वर वही देना चाहता है जो सच्ची आशीष लाता है, और ना कि वह जो अच्छा नहीं है। यह अधिकतर समय सच होता है कि जो मांगते हैं ऐसा लगता है कि परमेश्वर उनकी नहीं सुनता। परन्तु वह हमेशा सुनता है। कभी तो वह "हाँ" बोलता है और कभी "ना।" और कभी तो वह इंतज़ार करने को कहता है। अपने प्रेम और विश्वास में और बढ़ने का मतलब है कि यीशु में उसकी सुनना और उसकी मर्ज़ी को जानने के लिए रुके रहना।
बहुत सालों बाद, पतरस अपनी कलीसिया को अपने विश्वास के विषय में लिखेगा। उन में से एक यह है:
"हमारे प्रभु यीशु मसीह का परम पिता परमेश्वर धन्य हो। मरे हुओं में से यीशु मसीह के पुनरुत्थान के द्वारा उसकी अपार करुणा में एक सजीव आशा पा लेने कि लिए उसने हमें नया जन्म दिया है।ताकि तुम तुम्हारे लिए स्वर्ग में सुरक्षित रूप से रखे हुए अजर-अमर दोष रहित अविनाशी उत्तराधिकार को पा लो। जो विश्वास से सुरक्षित है, उन्हें वह उद्धार जो समय के अंतिम छोर पर प्रकट होने को है, प्राप्त हो। इस पर तुम बहुत प्रसन्न हो। यद्यपि अब तुमको थोड़े समय के लिए तरह तरह की परीक्षाओं में पड़कर दुखी होना बहुत आवश्यक है। ताकि तुम्हारा परखा हुआ विश्वास जो आग में परखे हुए सोने से भी अधिक मूल्यवान है, उसे जब यीशु मसीह प्रकट होगा तब परमेश्वर से प्रशंसा, महिमा और आदर प्राप्त हो।" -१पतरस १:३-७
यह बहुत दिलचस्प है कि इसी पाठ में, यीशु ने क्षमा करने कि बताई। यदि परमेश्वर का बच्चा अपने पिता के पास आना चाहता है, उन्हें दूसरों के प्रति घृणा और प्रतिशोध को छोड़ना होगा। परमेश्वर हमारे पापों कि क्षमा को दूसरों कि क्षमा और अनुग्रह जो हम दूसरों को दिखाते हैं, उससे बांध देता है। हमें अपने ह्रदय को दूसरों के प्रति जांचना है कि हमारे अंदर कोई द्वेष या कठोरता तो नहीं! हमारे परमेश्वर के साथ के साथ के रिश्ते कि खातिर, हमें इन बातों को पूर्णरूप से छोड़ देना चाहिए! पतरस ने क्षमा के विषय में कुछ इस तरह लिखा जो हमने इससे पहले पढ़ा:
"अब देखो जब तुमने सत्य का पालन करते हुए, सच्चे भाईचारे के प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए अपने आत्मा को पवित्र कर लिया है...इसलिए सभी बुराइयों, छल-छद्मों, पाखण्ड तथा वैर-विरोधों और परस्पर दोष लगाने से बचे रहो।नवजात बच्चों के समान शुद्ध आध्यात्मिक दूध के लिए लालायित रहो ताकि उससे तुम्हारा विकास और उद्धार हो।" --१पतरस १:२२; २:१-२
सूखा हुआ अंजीर का पेड़ इस्राएल देश के लिए उस मृत्यु का उदहारण है जो आने वाली है, परन्तु नया जीवन जो यीशु के कार्य के द्वारा आएगा, वही संसार के लिए उद्धार लाएगा!