कहानी १४१: अंतिम सप्ताह कि शुरुआत: यंत्रणा का दूसरा दिन (सोमवार) 

यीशु ने यरूशलेम में स्तुति और प्रशंसा करते हुए प्रवेश किया। जब वह बछड़े के ऊपर बैठ कर आ रहा था लोग उसके साथ नाचते थे, और जकर्याह की भविष्यवाणी को पूरा कर रहे थे। उस दिन कि कहानियों का उस रात येरूशलेम में बहुत चर्चा हुई। उसके आने पर उन्होंने टहनियों को फैराया,जिस समय वह परमेश्वर के मंदिर कि ओर जा रहा था, और वे अद्भुद चमत्कार जो उसने अपनी सामर्थ के साथ दिखाए, उन नेताओं का गुस्सा, गाते हुए बच्चे, और उस बात का एहसास कि कुछ होने जा रहा है।

अगली सुबह, यीशु और उसके चेले शहर वापस चले गए। रास्ते में, यीशु को भूख लगी। थोड़ी दूर पर उसे अंजीर का एक हरा भरा पेड़ दिखाई दिया। यह देखने के लिये वह पेड़ के पास पहुँचा कि कहीं उसे उसी पर कुछ मिल जाये। किन्तु जब वह वहाँ पहुँचा तो उसे पत्तों के सिवाय कुछ न मिला क्योंकि अंजीरों की ऋतु नहीं थी। तब उसने पेड़ से कहा, “अब आगे से कभी कोई तेरा फल न खाये।” उसके शिष्यों ने यह सुना। उसका क्या मतलब हो सकता था?

पुराने नियम में, अंजीर इस्राएल राष्ट्र का चिन्ह था। उदहारण के लिए, यर्मियाह कहता है:

“‘मैं उनके फल और फसलें ले लूँगा जिससे उनके यहाँ कोई पकी फसल नहीं होगी।
अंगूर की बेलों में कोई अंगूर नहीं होंगे।
अंजीर के पेड़ों पर कोई अंजीर नहीं होगा।
यहाँ तक कि पत्तियाँ सूखेंगी और मर जाएंगी।
मैं उन चीज़ों को ले लूँगा जिन्हें मैंने उन्हें दे दी थी।’” --यर्मियाह ८:१३

यीशु उस वृक्ष से क्रोधित नहीं था। अंजीर पर्व के समय नहीं उगते थे। वह आत्मिक सच्चाई को गहराई से सिखा रहा था। यहूदी लोग उस वृक्ष के समान थे जो फल नहीं लाता है। उनके जीवन केवल पर्व और त्यौहार मनाने, और सबत को रीति रिवाज़ के तौर पर मानने में बीत जाता था, परन्तु उनके ह्रदय परमेश्वर से बहुत दूर थे। परमेश्वर कि ओर पूरी भक्ति सच्ची आराधना और फल के बगैर नहीं हो सकती। और चूँकि उन्होंने अपने आप को परमेश्वर से दूर रखा था, वह वैसा ही होने जा रहा था जैसे कि यर्मिया ने कहा। उनकी फसल उनसे ले ली जाएगी।

जब यीशु ने उस अंजीर के वृक्ष को श्राप दिया, तो वह उस श्राप का चिन्ह था जो इस्राएल देश के ऊपर आने वाला था। यीशु ने इस्राएल में सच्ची भक्ति को खोज था। उसने उनको पश्चाताप करने के लिए पुकारा था और अपने आप को परमेश्वर के आगे समर्पण कर दें। उसने उन्हें चिन्ह और चमत्कार और सच्चाई दिखाई, और अपने ह्रदय को उनके लिए उंडेल दिया। परन्तु उसके प्रेम का अप्रतिदत्त हुआ। और जिस राष्ट्र को उसके मसीह कि महिमा करनी चाहिए थी, वह शून्य हो जाएगी। परन्तु इस्राएल के प्रलय सम्बन्धी असफलता के बावजूद, परमेश्वर कि योजनाएं असफल नहीं हुईं। यीशु वह कार्य करने जा रहा था जिसका फल इस संसार के येरूशलेम कि दिवारों से कहीं अधिक लम्बा चलने वाला था।

यीशु और उसके चेले शहर आये और मंदिर को चले गए। बाहरी आंगनों में लेन देन करने वाले बहुत व्यस्त थे। जिस स्थान को परमेश्वर ने अविश्वासियों के रखा था कि वे आकर जीवते परमेश्वर कि आराधना करेंगे, उसे उन्होंने घेर लिया था। उन्हें भीतरी अहाते में आना मना था। यह वह अवसर था जो परमेश्वर केवल अपने ही चुने हुए लोगों को देना चाहता था। परन्तु यीशु ने यह स्थान गैर यहूदियों के लिए रख छोड़ा था ताकि वे जीवते परमेश्वर कि आराधना कर सकें। अब यह पवित्र स्थान शोर और कोलाहल से भर गया था। यह सच्ची आराधना का स्थान नहीं रहा।

कुछ साल पहले, जब यीशु ने अपनी सेवकी शुरू की थी, वह इन्ही आंगनों में गुस्से भर कर आया था। उसने पैसे का लेन देन करने वालों की चौकियाँ उलट दीं और कबूतर बेचने वालों के तख्त पलट दिये। उन्होंने परमेश्वर के घर को  भ्रष्टाचार और गंदगी से कब्ज़ा कर लिया था, और अपने लाभ के लिए उन भेटों के दाम बढ़ा दिए जो परमेश्वर के लोगों को शुद्ध करने के लिए थीं। परमेश्वर का पुत्र यह सब सहन नहीं करने वाला था।

उन लोगों को यह सब देखकर बहुत जब उन्होंने उसके सिद्ध साहस को उनके ऊपर फेकते हुए देखा। हर साल वे मंदिर आया करते थे। उस स्थान कि गन्दगी को एक शुद्ध आदर्श वाले ह्रदय ने स्वीकार नहीं किया जो परमेश्वर का इस पृथ्वी पर उसका पवित्र सिंहासन है, उनके अगुवों ने उसे स्वीकार कर लिया। वास्तव में, उन्होंने उसे अपना लिया था। एक साधारण यहूदी के लिए, उनका अधिकार और पद, परमेश्वर के स्थान को स्वीकार करने के लिए काफी था जो घट चुका था। वे कौन होते हैं परमेश्वर के चुने हुए अगुवों के विरुद्ध में बोलने वाले? परन्तु यीशु को उनके झूठ का सामने करने के लिए कोई संदेह नहीं था।

जब यीशु ने उज्जवल सत्य को उनके सामने रखा तो धार्मिक अगुवे गुस्से से भड़क उठे। यदि वे उस प्रज्वलित अगुवे कि डाट को मानते हैं, तो इससे उनकी संपत्ति घाट जाएगी और उनके अपने देवता के प्रति वफादारी भी जिससे वे समझौता नहीं कर सकते थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का मंदिर एक तरफ, लेकिन उनका अपना सुख और पद वह एक तरफ।

इस पर्व के लिए जब यीशु वापस मंदिर गया, उसने सब कुछ वैसा ही। पाया जो स्थान अविश्वासी लोगों के लिए था उसमें वे व्यापार कर रहे थे। जो मंदिर प्रार्थना के घर के लिए दिया गया था, वह अब परमेश्वर के पास जाने के मार्ग को बंद कर रहा था।

एक बार फिर, परमेश्वर का पुत्र ऐसे नहीं छोड़ने वाला था। मरकुस जब इस सुसमाचार में उसका बयान करता है तो आप कल्पना कीजिये उस दृश्य की:

".... जब उन्होंने मन्दिर में प्रवेश किया तो यीशु ने उन लोगों को जो मन्दिर में ले बेच कर रहे थे, बाहर निकालना शुरु कर दिया। उसने पैसे का लेन देन करने वालों की चौकियाँ उलट दीं और कबूतर बेचने वालों के तख्त पलट दिये। और उसने मन्दिर में से किसी को कुछ भी ले जाने नहीं दिया।" --मरकुस ११:१५-१६

कितना हलचल हो रहा होगा। उसने मंदिर के सारे तरीके को नाकाम कर दिया था। जितने भी बाहर से आये थे वे उन बेचने वालों से बाली चढाने के लिए जानवरों को खरीद रहे थे। विदेशी अपने पैसे को बदलने के लिए आये थे। जब वे पहुँचे, उन्होंने वहाँ कुछ नहीं पाया। उन्हें व्यापर मंदिर के बाहर ढूंढना पड़ा जहाँ वह सब बिखर चुका था। यदि कोई यीशु के पास से गुज़ारना चाहता था तो उसे वह भगा देता था। यीशु पिता के घर को साफ़ कर रहा था, और कोई भी उसके पास से गुज़र नहीं सकता था। उसने पूरे दृश्य पर अधिकार जमा लिया था।

फिर उसने शिक्षा देते हुए उनसे कहा,
“क्या शास्त्रों में यह नहीं लिखा है, ‘मेरा घर सभी जाति के लोगों के लिये प्रार्थना-गृह कहलायेगा?’ किन्तु तुमने उसे ‘चोरों का अड्डा’ बना दिया है।”
--मरकुस ११:१७

राजा इस शहर से निकल कर राज्य कि ह्रदय में पहुँच गया था। जब तक वह वहाँ है, वह पिता के घर कि पवित्रता को बनाय रखेगा। परन्तु उन अगुवों और लोगों कि सच्ची भक्ति कि कमी के कारण, उसका विजयी राज एक अस्थायी तोहफा बन के रह गया। राजा लोगों के साथ नहीं रहने वाला था क्यूंकि वे वास्तव में उसके नहीं थे।

जब प्रमुख याजकों और धर्मशास्त्रियों ने यीशु के उन हरकतों के विषय में सुना जो उसने अविश्वासियों के अहास में किया, उन्होंने परमेश्वर के पवित्र शास्त्र कि ओर नहीं देखा।
वे प्रार्थना में घुटनों के बल नहीं आये। उन्होंने मसीह के वचनों पर ध्यान नहीं दिया। उनके ह्रदयों में कोई पश्चाताप नहीं था।
मसीह कि हरकतें उन्हें और अधिक नफरत और विद्रोह से भर रही थीं। जो पाप में फसे हुए होते हैं उनका भी ऐसा ही हाल होता है।

कल्पना कीजिये कि सूरज मक्खन के ऊपर जब चमकता है। क्या होता है? मक्खन मुलायम हो जाता और उसे उपयोग करने में आसानी हो जाती है। परन्तु जब सूरज मिटटी पर चमकता है, तो वह मुलायम नहीं होता। वह सख्त होता जाता है जब तक वह ठोस नहीं हो जाता। फिर वह टूटने लगता है और बिखरने लगता है। यीशु उस सूरज के समान है, जो अपनी सच्चाई को लोगों पर प्रकट करता है। कुछ मक्खन कि तरह थे। पतरस और यूहन्ना और मरियम मगदलीनी और उसके सभी चेले, परमेश्वर के आगे वे मुलायम होकर समर्पित हुए। परन्तु धार्मिक अगुवे मिट्टी के समान थे, यीशु कि जितनी भी ज्योति उन पर चमकती जाती थी वे उतना ही कठोर होते जा रहे थे!

और इसलिए वे साज़िश करते थे कि यीशु को कैसे मरवाया जाये। यीशु को जब लोग आश्चर्य होकर सुनते थे, अगुवे आपस में चर्चा करते थे कि कैसे भेद से बचकर उसे मरवा दिया जाये। भीड़ उसके हर शब्द को सुन रही थी, जिससे कि पकड़वाने और उनके शिकार के बीच रूकावट पैदा हो रही थी।