कहानी १०९: विशाल चेतावनियां: भाग II 

story 127.jpg

प्रभु यीशु ने अपने चेलों के लिए स्वर्ग के राज के लिए आशा दी थी। स्वर्ग का राजा चाहता है कि लोग उस पर पूर्ण रीति से भरोसा करें। यहां तक ​​कि उनकी सांसारिक संपत्ति को कम महत्व देते हुए परमेश्वर के कामों में इस पृथ्वी पर लगाना है। और यीशु ने वादा किया कि जो उस पर भरोसा करते हैं उनका ख्याल परमेश्वर करेगा। यीशु के पीछे चलने वालों को कभी इस संसार में अपने को स्थापित नहीं करना है बल्कि अपने राज एके आगमन का इंतज़ार करना चाहिए। यीशु ने समझाया कि जब वह आएगा, वह अपने वफादारों को स्वर्ग के घर में ले जाएगा, जहां वो महान भोज उनके लिए तैयार होगा। और उस महान दिन पर, यीशु जो परमेश्वर का पुत्र है, स्वयं अपने चेलों कि सेवा करेगा।

तब पतरस ने पूछा,“हे प्रभु, यह दृष्टान्त कथा तू हमारे लिये कह रहा है या सब के लिये?” और फिर यीशु ने एक और दृष्टान्त बताया। यह बताता है कि किस तरह जब यीशु अपने आप को प्रगट करता है तो उसके चेलों को उन अवसरों को कैसे सम्भालना है। यीशु कि बुलाहट एक बहुत बड़ी आशीष है और यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ आती है। यह परमेश्वर के बच्चों कि सेवा में एक अती उच्च और पवित्र कार्य है!

इस पर यीशु ने कहा,

“'तो फिर ऐसा विश्वास-पात्र, बुद्धिमान प्रबन्ध-अधिकारी कौन होगा जिसे प्रभु अपने सेवकों के ऊपर उचित समय पर, उन्हें भोजन सामग्री देने के लिये नियुक्त करेगा? वह सेवक धन्य है जिसे उसका स्वामी जब आये तो उसे वैसा ही करते पाये। मैं सच्चाई के साथ तुमसे कहता हूँ कि वह उसे अपनी सभी सम्पत्तियों का अधिकारी नियुक्त करेगा।

“किन्तु यदि वह सेवक अपने मन में यह कहे कि मेरा स्वामी तो आने में बहुत देर कर रहा है और वह दूसरे पुरुष और स्त्री सेवकों को मारना पीटना आरम्भ कर दे तथा खाने-पीने और मदमस्त होने लगे  तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आ जायेगा जिसकी वह सोचता तक नहीं। एक ऐसी घड़ी जिसके प्रति वह अचेत है। फिर वह उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालेगा और उसे अविश्वासियों के बीच स्थान देगा।

“वह सेवक जो अपने स्वामी की इच्छा जानता है और उसके लिए तत्पर नहीं होता या जैसा उसका स्वामी चाहता है, वैसा ही नहीं करता, उस सेवक पर तीखी मार पड़ेगी।'"

आपने देखा किस तरह यीशु का क्रोध उन सब के विरुद्ध भड़का जो अपने पद को लेकर दूसरों को कष्ट देते हैं? क्या आप उसकी नफरत को महसूस कर सकते हैं? आप देख सकते हैं कि वहअपने सेवकों के प्रति कितना अधिकारात्मक है और विशेष करके जब कोई अपने आप को उसका सेवक कहे और दूसरों को सताय? यह एक बहुत गम्भीर और भयंकर वचन है। यीशु का यह बहुत ही स्पष्ट और क्रोधित न्याय है उनके विरुद्ध जो उसके बच्चों के प्रति अपने धार्मिक अधिकार को जताते हैं। हर मसीह कि कलीसिया में पढ़ने वाले अगुवे को इस वचन को लेकर हैरानी होनी चाहिए। उनके अंदर एक श्रद्धालु डर होना चाहिए। और यीशु के अधिकारात्मक प्रेम के प्रति हर एक विश्वासी के अंदर वो शक्तिशाली सामर्थ होनी चाहिए।

नेतृत्व का दुष्प्रयोग बहुत गम्भीर रूप से सज़ा पाएगा। पतरस जो कलीसिया का पत्थर था, उसके लिए क्या चेतावनी थी यह! लेकिन परमेश्वर के पास दो और चेतावनियां थीं:
“'वह सेवक जो अपने स्वामी की इच्छा जानता है और उसके लिए तत्पर नहीं होता या जैसा उसका स्वामी चाहता है, वैसा ही नहीं करता, उस सेवक पर तीखी मार पड़ेगी। किन्तु वह जिसे अपने स्वामी की इच्छा का ज्ञान नहीं और कोई ऐसा काम कर बैठे जो मार पड़ने योग्य हो तो उस सेवक पर हल्की मार पड़ेगी। क्योंकि प्रत्येक उस व्यक्ति से जिसे बहुत अधिक दिया गया है, अधिक अपेक्षित किया जायेगा। उस व्यक्ति से जिसे लोगों ने अधिक सौंपा है, उससे लोग अधिक ही माँगेंगे।'”
--लूका १२:४२-४७

आपने देखा कि कैसे यीशु ने न्याय को दिखाया? जो परमेश्वर कि इच्छा को जानते हुए भी उसको अनदेखा करते हैं तो वे बहुत गम्भीर सज़ा पाएंगे। सज़ा केवल उनके लिए नहीं है जो गलत करते हैं। वह उनके लिए भी है जो सही करने से इंकार करते हैं! यह बहुत दिलचस्प है कि दुष्ट नहीं जानता कि उसकी सज़ा अवश्य है लेकिन उनके लिए नहीं जो जानते हैं और इंकार करते हैं! आप ने देखा कि क्यूँ धार्मिक अगुवे और यहूदी लोग हमेशा इतनी मुसीबत में पड़ते रहते थे? उन्हें परमेश्वर का वचन दिया गया था, और परमेश्वर का पुत्र उनके बीच में चलता फिरता था, और फिर भी उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया!

यीशु कुछ बहुत अद्भुद रीति से स्पष्ट करता है। हर एक व्यक्ति का काम परमेश्वर कि ओर से नियुक्त है। जितना अधिक वो देगा उतना ही अधिक ज़िम्मेदारी भी आएगी! यीशु को पता है कि कौन उसके विषय में कितना जानता है, और जितना वे जानते हैं उसके प्रति कितने आज्ञाकारी होंगे। हर व्यक्ति को यीशु उसके काम के अनुसार न्याय करेगा, उनके गहरे से गहरे विचारों से लेकर उनके ह्रदय के ज्ञान तक!