कहानी ९७: पर्व के लिए यरूशलेम को जाना
पिछले छे महीनो से, यीशु ने अपने आप को लोगों के आगे आना बंद कर दिया था। यहूदी अगुवे उसे मारने के ताक में थे, गलील के लोग अपने पापों से पश्चाताप करने से इंकार कर रहे थे। उनमें से कुछ ने उसे राजा बनाने कि साजिश भी रची। हेरोदेस राजा स्वयं भी इस प्रचारक द्वारा धमकाया गया। यह व्यक्ति कौन था जो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का इतना करीब था? ऐसा चमत्कारी सामर्थ से भरा हुआ मनुष्य उस राजा का क्या बिगाड़ सकता था जिसने यूहन्ना को एक साल पहले मरवाया था?
कुछ ही भक्तों को छोड़, यहूदी राष्ट्र ने उनके मसीहा प्रतिक्रिया करने में विफल रहे। यीशु अपने चेलों के साथ उन धोखा देने वाले लोगों से दूर गलील क्षेत्र को चला गया। उसने उनको सीखने के लिए वक़्त लगाया क्यूंकि उसके मरने के बाद, वे परमेश्वर के राज्य के दूत होंगे। उन्होंने उनसे अभ्यास करने के लिए बाहर भेजा,और उन्हें चंगाई और दुष्ट आत्माओं को निकालने का वही अधिकार दिया जो यीशु को पवित्र आत्मा द्वारा मिला था। अब तक. यीशु ने अपने दयावान सामर्थ से लोगों को चंगाई दी, सिखाया और भूखों को खिलाया।
मिलापवाले तम्बू के पर्व मनाने का समय आ गया था। इसे मंडप का पर्व भी कहा जाता था। पुराने नियम में यह तीन पर्वों में से एक था जिसमें लोग येरूशलेम से चल कर अपने देश आराधना करने के लिए आते थे। यीशु के समय से हर साल इस्राएल के देश के इतिहास में यह वार्षिक पर्व डूबा हुआ था। इस पर्व के दौरान सुलेमान का मंदिर समर्पित किया गया था। समर्पण के दौरान, परमेश्वर को स्तुति देने के साथ, बहुत जश्न मनाया गया। जश्न के बीच, उन्होंने परमेश्वर कि आत्मा को मंदिर के ऊपर और सबसे पवित्र स्थान पर एक बादल के समान उतरते देखा। परमेश्वर की इस पृथ्वी पर यह राजगद्दी थी, जहां उसकी उपस्थिति करुणा के सिंहासन पर होगी, जो सोने से वाचा के संदूक को ढांपे हुए है। परमेश्वर कि उपस्थिति को देख कर लोग श्रद्धायुक्त भयभीत हो गए। उसने इस रास्ट्र को वास्तव में अपने पवित्र अगुवे और बहुमूल्य खज़ाना के रूप में चुन लिया था।
जब यहूदी राष्ट्र बंधी बना लिया गया था, तब वाचा का संदूक उनसे ले लिया गया था जो कभी भी उन्हें लौटाया नहीं जाएगा। परमेश्वर अपने लोगों को बंधन से छुड़ा रहे थे, और जब वे येरूशलेम वापस आये, तो शहर खंडहर बन चुका था। उन्हें मन्दिर फिर से बनाना था लेकिन जिस संदूक को मूसा के कारीगरों ने बनाया था वह जा चुका था। दाऊद के शहर को जब लोग बना रहे थे, वे उस पर्व को मनाने लगे जो परमेश्वर ने अपने लोगों को दिया था। मिलापवाले तम्बू के पर्व के दौरान एज्रा ने, जो परमेश्वर का वफादार सेवक था, यहूदी लोगों को पापों से पश्चाताप करने के लिए आमंत्रित किया। (नेह.8:13-18)
इस पर्व के लिए, जश्न मनाने के लिए सबको पुरुषों के साथ आना था। बीवी, बच्चे, और अन्य परिवार के सदस्यों को भी उपस्थित होना था। और अनाथों, सेवकों, दास और परदेसियों को भी वहाँ लाना था। उस चहल पहल कि कल्पना कीजिये जो शहर में हो रही थी जब लोग येरूशलेम से चलकर परमेश्वर की महिमा करने के लिए आते जा रहे थे। वे परमेश्वर कि महिमा दे रहे थे जिसने पूरे साल उन्हें अच्छी फसल दी। लोग परमेश्वर को उसके लगातार कार्यों के लिए और आशीषों के लिए स्तुति दे रहे थे। सात दिन के लिए वे येरूशलेम में तम्बू लगाकर रहने वाले थे। पहले दिन, पेड़ों की टहनियों से लोग तम्बू बना रहे थे। इससे वे मंदिर में अपने पहले फल की भेंट चढ़ाते। यह एक स्वेच्छाबलि कहलाती थी क्यूंकि लोग वो सब ला सकते थे जो वे आशीष के रूप में चढ़ाना चाहते थे।
येरूशलेम कि यात्रा से पहले, किसानों को एक आज्ञाकारिता का कार्य करना था। फसल के समय, जो अनाज खेत के कोनों में, उन्हें छोड़ देना होता था। पुराने नियम में, परमेश्वर ने थी कि उन्हें गरीबों को अनाज को इकठ्ठा करने कि अनुमति देनी होगी। यदि सारे ज़मींदार इस आज्ञा को मानते हैं, तो निर्जन और गरीब लोगों को भी भोजन मिल।सकेगा। आपने देखा कि वही परमेश्वर जिसने इस्राएल के देश को स्थापित किया और परमेश्वर का पुत्र जो इस्राएल के लोगों के बीच चला फिरा, उसी दया और करुणा से भरा हुआ था?
इस महान पर्व का समय आ गया था, और इस्राएल के सारे लोग इसमें जाने कि तैयारी कर रहे थे। यीशु के परिवार के लोग जो योजनाएं बना रहे थे, यीशु के अपने भाई उसका ठट्ठा उड़ा रहे थे। वे उसे यहूदिया में जाने को कह रहे थे, जो येरूशलेम के क्षेत्र में था, और वहाँ अपने महान चमत्कारों को अपने चेलों के सामने दिखाने को कह रहे थे। कोई भी वह व्यक्ति जो लोगों में प्रसिद्ध होना चाहता है अपने कामों को छिपा कर नहीं करता।"क्योंकि तुम आश्चर्य कर्म करते हो इसलिये सारे जगत के सामने अपने को प्रकट करो।”
यीशु किसी के दबाव में आकर कुछ करना नहीं चाहते थे। उनकी दिलचस्पी केवल परमेश्वर कि इच्छा कारने में थी। चाहे वो लोगों के सामने मूर्ख कि तरह दिखता हो, वह अपने स्वर्गीय पिता के सामने नम्रता से खड़े रहता था। “'मेरे लिये अभी ठीक समय नहीं आया है। पर तुम्हारे लिये हर समय ठीक है। यह जगत तुमसे घृणा नहीं कर सकता पर मुझसे घृणा करता है। क्योंकि मैं यह कहता रहता हूँ कि इसकी करनी बुरी है। इस पर्व में तुम लोग जाओ, मैं नहीं जा रहा क्योंकि मेरे लिए अभी ठीक समय नहीं आया है।'”
यीशु समझ गया कि एक दिन वह येरूशलेम जाएगा और मारा जाएगा, लेकिन वह यह भी जानता था कि उसके पिता ने यह सब करने के लिए समय ठहराया हुआ था। अभी वक़्त आया नहीं था। जब उसके भाई दक्षिण येरूशलेम जाने के लिए रवाना हुए, यीशु गलील में ही ठहर गया। फिर वह गुप्त रीति से येरूशलेम को चला गया। वह बाद में अपने को दर्शा देता और अपने दुश्मनों कि सारी योजनायों को ख़ारिज कर देता।
इस बीच, पर्व में, येरूशलेम में सारे यहूदी उसे ढूंड रहे थे, और एक दुसरे से कानाफूसी कर के एक दुसरे से यीशु के विषय में पूछ रहे थे। भीड़ कुछ भी सोच नहीं पा रही थी। बहुत से कहते थे कि यीशु एक अच्छा इंसान था, लेकिन कुछ उसे धोखा देने वाला समझते थे। लेकिन यहूदी अगुवों के डर से कोई भी ज़ोर से बात नहीं करता था। उनके पास अधिकार था, और वे यीशु को लेकर सब लोगों को ढूंड रहे थे। गलील के प्रचारक के साथ वफादारी दिखने पर एक बड़ा इनाम था।
यीशु कि आँखें अब येरूशलेम कि ओर लगीं थी, यह जानते हुए कि अब उसका स्वर्ग कि ओर जाने का समय निकट आ गया था। उसने अपने चेलों को राह तैयार करने के लिए पहले से भेज दिए थे। यीशु कि तैयारी करने के लिए वे सामरिया को चले गए थे। सामरिया के रास्ते को यहूदी लोग कभी नहीं लेते हैं। सामरी के लोग इस्राइलियों का मिश्रण थे जिन्होंने अतीत में परमेश्वर से बग़ावत की थी और दुसरे देश के लोगों में विवाह किया था। यीशु के समय के यहूदी अपने ही क्षेत्र में जाना पसंद नहीं करते थे। यीशु ने कुँवे पर उस स्त्री से बात करके उस बंधन को तोड़ दिया था। लेकिन हर सामरी ने उसे ग्रहण नहीं किया था। येरूशलेम के मंदिर में यीशु के जाने से सामरी लोग अपमानित हो गए थे। वे परमेश्वर को अपने ही पहाड़ पर दंडवत करते थे और यह ऐलान करते थे कि वह उनके परमेश्वर की पवित्र उपस्थिति कि जगह है। वे येरूशलेम के रास्ते पर किसी को भी ठहरने कि जगह नहीं देते थे।
जब उसके शिष्यों याकूब और यूहन्ना ने यह देखा तो वे बोले,“प्रभु क्या तू चाहता है कि हम आदेश दें कि आकाश से अग्नि बरसे और उन्हें भस्म कर दे?”
इस पर वह उनकी तरफ़ मुड़ा और उनको डाँटा फटकारा, फिर वे दूसरे गाँव चले गये।