कहानी ९६: स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन 

story 109.jpg

एक बार यीशु के शिष्यों के बीच इस बात पर विवाद छिड़ा कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। वे आपस में बहस कर रहे थे कि परमेश्वर के राज्य में कौन सबसे बड़ा होगा। यहूदी संस्कृति में, पद और हैसियत बहुत ज़रूरी थे। समाज में सब अपने पद को जानते थे। वे जानते थे कि किसका आदर करना है, और वे यह भी जानते थे कि किसके साथ रहने से अनादर होता है। यीशु उन सभी कठोर सामाजिक नियमों को तोड़ रहे थे, जिसका यह कारण था कि सब उससे बेहद नाराज़ थे। वह खुद एक बढ़ई था और उसके मित्र मछुए और कर लेने वाले थे। यीशु कि सेवकाई गरीबों, टूटे मन वालों, और बीमारी से पीड़ित लोगों में थी। यीशु ने उन्हें उसके ध्यान और देख भाल का सम्मान दिखाया।

यीशु के अद्भुद चमत्कारों के चिन्ह यह दर्शा रहे थे कि वह परमेश्वर से महान आदर और सामर्थ पा रहा है। फिर भी यही यीशु ने सदूसियों और फरीसियों के नियमों को अस्वीकार किया। उसे इस बात कि पर्व नहीं थी कि वे उसकी सेवकाई को पसंद करते हैं या नहीं। उसे ऐसा लगता था कि उसे बताना चाहिए कि कब वे सही हैं और कब नहीं!

धार्मिक अगुवे इसके आदि नहीं थे। वे अपने राष्ट्र में कठोर आदर और महिमा के स्थानों को हासिल करने के आदि थे।उनके ह्रदय पुराने नियम के परमेश्वर कि और निष्ठावान नहीं थे, बल्कि अपने पद के। यीशु उनके लिए कितना दरोध दिलाने वाला था। उसे उनके पद या शक्ति का कोई सम्मान नहीं था, और इस तरह बोलता था जिससे कि इस्राइल के लोगों में उनके नेतृत्व का अपमान हो। सच्चाई कड़वी लगती थी।

चेलों ने अपनी सारी ज़िन्दगी यहूदी समाज में, इसलिए यह स्वाभाविक था कि वे अपने देश के अगुवों के दिखाए रास्ते में वापस जा सकते थे। राज्य के जीवन के बारे में चर्चा कर रहे थे, वे यह जानना चाहते थे कि किसे इज़ज़त और प्रतिष्ठा मिलेगी। क्या वह पतरस हो सकता है जिसने कि यीशु के सबसे चुनौतीभरे सवालों का उत्तर दिया था? यीशु ने कहा था कि वह उसके ऊपर अपनी कलीसिया बनाएगा। या वे पतरस और याकूब और यूहन्ना हैं जिन्हें पहाड़ पर यीशु के साथ निमंत्रण मिला था? उस राज्य में जिसे यीशु लाने वाला था कौन सा चेला सबसे महान होगा? जब वे येरूशलेम को जा रहे थे, कि अपेक्षा थी कि कुछ महान होने जा रहा है। मसीहा क्या करने जा रहा था? और किसे वह इज़ज़त देने जा रहा था?

जन वे कफरनहूम को घर में इकट्ठे आये, तब यीशु ने उनसे पूछा कि रास्ते में किस बात पर सोच विचार कर रहे थे,पर वे चुप रहे। लेकिन यीशु जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं। तब यीशु ने एक बच्चे को अपने पास बुलाया और उसे उनके सामने खड़ा करके कहा,“'मैं तुमसे सत्य कहता हूँ जब तक कि तुम लोग बदलोगे नहीं और बच्चों के समान नहीं बन जाओगे, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकोगे। इसलिये अपने आपको जो कोई इस बच्चे के समान नम्र बनाता है, वही स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा है। और जो कोई ऐसे बालक जैसे व्यक्ति को मेरे नाम में स्वीकार करता है वह मुझे स्वीकार करता है।'"

यीशु का क्या मतलब था जब उन्होंने कहा कि बच्चे के समान होना है? क्या उन्हें वापस उसी उम्र में चले जाना चाहिए? क्या उन्हें सिकुड़ कर छोटे लोग बन जाना चाहिए? नहीं, लेकिन उन्हें परमेश्वर के पास उसी स्वभाव के साथ आना चाहिए जो एक छोटे बच्चे का होता है? जैसे जैसे लोग बढ़ते हैं, वे नयी बातें सीखते हैं। कभी उन्हें लगता है कि वे सब कुछ जानते हैं। कभी कभी, जीवन के क्लेश और मुसीबतें उन्हें कठोर और कुटील बना देते हैं। परन्तु परमेश्वर पवित्र, उज्जवल और अच्छा है। वह सम्पूर्ण भरोसे के योग्य है। यहाँ तक वह व्यक्ति जो जीवन में बहुत दुखित रहा हो वह भी यीशु के पास आकर उसके अद्भुद चंगाई को ले सकता है। और सबसे शिक्षित और गुणी व्यक्ति को भी आवश्यकता है कि वह भी परमेश्वर के पास पूरे नम्रता और उम्मीद और भरोसे के साथ उस परमेश्वर के पास आए जो सब कुछ कर सकता है और सब जानता है। आपस में पद के लिए लड़ना और एक दुसरे के विरुद्ध में खड़े होना और यह देखना कि कौन सबसे महान है, यीशु चाहते थे उनके चेले परमेश्वर के सामने पवित्रता में आयें और उसे महिमा दें!

यूहन्ना ने यीशु से कहा,“हे गुरु, हमने किसी को तेरे नाम से दुष्टात्माएँ बाहर निकालते देखा है। हमने उसे रोकना चाहा क्योंकि वह हममें से कोई नहीं था।”

यीशु ने उससे कहा,“'उसे रोको मत। क्योंकि जो कोई मेरे नाम से आश्चर्य कर्म करता है, वह तुरंत बाद मेरे लिए बुरी बातें नहीं कह पायेगा।वह जो हमारे विरोध में नहीं है हमारे पक्ष में है।  जो इसलिये तुम्हें एक कटोरा पानी पिलाता है कि तुम मसीह के हो, मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, उसे इसका प्रतिफल मिले बिना नहीं रहेगा।'"

आप देख सकते हैं कि यह यीशु के लिए कितना महत्वपूर्ण था कि परमेश्वर के राज्य के लोग राज्य के हर एक सदस्य कि प्यार से देख भाल करें ?
“'और जो कोई इन नन्हे अबोध बच्चों में से किसी को, जो मुझमें विश्वास रखते हैं, पाप के मार्ग पर ले जाता है, तो उसके लिये अच्छा है कि उसकी गर्दन में एक चक्की का पाट बाँध कर उसे समुद्र में फेंक दिया जाये।'"

चक्की का पाट एक बहुत बड़ा पत्थर होता है जिसे गोल कर के अनाज के ऊपर लुड़काया जाता है। इसे खेत में अनाज को पीसने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और फसल को बेचने के लिए तैयार करते हैं। यदि किसी के गर्दन पर इस चक्की के पाट को बाँध दिया जाता है, और उसे समुन्द्र में फेंक दिया जाता है, वे तुरंत डूब जाएंगे और फिर कभी वापस ऊपर नहीं आ पाएंगे। यह एक बहुत गम्भीर सज़ा है। क्या आप सोचते हैं कि यीशु ऐसा करना चाहता था? नहीं, वह इसे एक छवि कि तरह इस्तेमाल कर रहा था यह दर्शाने को, कि परमेश्वर का क्रोध उन लोगों के विरुद्ध कितना गम्भीर है जो छोटे बच्चों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। यह बहुत ही भयानक अन्याय है, लेकिन इस दुनिया में, प्रभावशाली लोग यह भूल जाते हैं क्यूंकि उन्हें कोई सज़ा नहीं दे सकता। लेकिन परमेश्वर देगा। यह छोटे बच्चे कौन हैं? क्या वे बच्चे हैं? या आपको लगता है कि यह परमेश्वर के बच्चे हैं, चाहे उनकी कोई भी उम्र हो या कितने भी धनवान या प्रभावशाली हों?

यीशु अपने चेलों को समझाना चाहता था कि सब परमेश्वर कि नज़र में मूल्यवां हैं। चाहे किसी के पास कितनी भी सामर्थ या प्रतिष्ठा हो, उनके पास कोई अधिकार नहीं है कि वे किसी भी छोटे बच्चे को चोट पहुँचाएँ। और यदि वे ऐसा करते हैं, तो उनके लिए खतरे कि बात है क्यूंकि परमेश्वर सब देखता रहता है।