कहानी ६१: पृथ्वी पर धन? या स्वर्गीय धन?

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पहाड़ पर के अपने उपदेश में, यीशु ने एक सच्चे शिष्य के गुण दिखाए। जो आत्मा से दीन हैं, यही है जो परमेश्वर के प्रति उस भक्ति को जीवन के शुरुआत को दर्शाता है। यीशु ने आशीष देने का वादा किया। उसने अपने चेलों को दुसरे धार्मिक आग्वो को सुनने से मना किया। उसने परमेश्वर के नियमों के उन भयानक, भ्रष्ट व्याख्याओं को दूर किया। उसने परमदश्वर के राज्य को पूरी शुधता से वर्णन किया। वे इस बात पर बोलने लगे कि कैसे अपने जीवन के पूरे केंद्र को बदलना है ताकि उनका पूरा समय इस पृथ्वी पर स्वर्ग राज्य पर केंद्रित रहे।

अपने सुनने वालों को पराथना करने के सही और पवित्र तरीके बताने के बाद, उसने उपवास करने के सही तरीके बताय। यीशु के समय के धार्मिक अगवों ने इसका का भी गलत उदहारण दिखाया। यहूदी लोग ना खाने को लेकर बहुत बड़ा विचार बनाते थे कि वे कितने धार्मिक हैं। वे मूँह लटकाके, और भूखे चेहरे बनाके निकलते थे ताकि सब जानें कि वे उपवास कर रहे हैं। यह एक तरीका था लोगों को बढ़ा चढ़ा के दिखने का के वे कितने धार्मिक और धर्मपरायण हैं। परमेश्वर के प्रति प्रेम दिखने के लिए वे उपवास नहीं करते थे। वे अपने ही महिमा करने के लिए करते थे।

यह एक बहुत घृणास्पद धोखा था। उपवास परमेश्वर के सामने एक भक्ति के साथ आना होता है। यह एक विशेष समय होता है जो परमेश्वर के लिए पूरे ह्रदय से उसके पीछे जाना होता है! इसका मतलब है कि उसकी मर्ज़ी में पूरी तौर से दे देना। यह एक बहुत ख़ूबसूरत बात है!

यीशु ने कहा कि उपवास करने का सबसे सही तरीका है गुप्त में उपवास करना। उसने कहा कि जब एक सच्चा चेला उपवास करता था, वह अपने चेहरे को धोकर और सर पर तेल लगाता था ताकि वह साफ़ और आनंदित दिखे। इस तरह, केवल परमेश्वर ही देख पाएंगे और एक विशाल इनाम देंगे।

सोचिये यह कितना अद्भुद होगा! परमेश्वर, जो स्वर्ग में विराजमान है  और जो तारों को प्रकाशित रखता है, वो आपको ऊपर से नीचे देखता है! वो तुम्हारे भक्ति की भेंट से प्रसन्न होता है। वाह।  हम क्यूँ परवाह करें यदि कोई नहीं जानता? हमें सुनने वाला परमेश्वर है!

पर आप को पता है? अधिकतर समय हम जानते हैं। हम पापी हैं, और अधिकतर समय हम इस संसार कि वस्तुओं को महत्व देते हैं जिनको हम देख सकते हैं परन्तु  उस महानप्रतापी को महत्त्व नहीं देते जिसे हम नहीं देख पाते!

जब यीशु ने सिखाया कि परमेष्वर को कैसे प्रसन्न करना है, जो पहली बात उन्होंने ने सिखाई वो ज़रूरतमंद को देना। दूसरी बात जो परमेश्वर को पसंद है वो है प्रार्थना और उपवास। यह दिलचस्प है कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा 'यदि' तुम प्रार्थना और उपवास करते हो। उन्होंने ने कहा "जब" तुम प्रार्थना और उपवास करो। ये परमेश्वर के राज्य के नागरिकों के लिए करना महत्वपूर्ण है! महान राजा के इस संसार में उसके सामर्थ्य कार्य को करने के लिए उसके दासों का उससे जुड़ने का यह एक रास्ता है। ऐसे ही धार्मिक चमकते हुओं को परमेश्वर इनाम देने के लिए देखना चाहता है। लेकिन जब हम  चमकना चाहते हैं और खुद कि महिमा के लिए करना चाहते हैं तो हमें एक ही इनाम मिलेगा और वह है अस्थिर भीड़ कि।

एक और तरीका जो यीशु के राज्य के सदस्य अपनी भक्ति को दिखाते हैं वह है उनका धन के प्रति रुख और उसे कैसे उसको चीज़ों पर खर्च करना। यीशु ने ऐसा कहा

“अपने लिये धरती पर भंडार मत भरो। क्योंकि उसे कीड़े और जंग नष्ट कर देंगे। चोर सेंध लगाकर उसे चुरा सकते हैं।  बल्कि अपने लिये स्वर्ग में भण्डार भरो जहाँ उसे कीड़े या जंग नष्ट नहीं कर पाते। और चोर भी वहाँ सेंध लगा कर उसे चुरा नहीं पाते। याद रखो जहाँ तुम्हारा भंडार होगा वहीं तुम्हारा मन भी रहेगा।'"
मत्ती ६ः१९-२१

आपको क्या लाता है कि यीशु के क्या अर्थ होगा जब वे यह कहते हैं "धरती पर धन"? स्वर्गीय धन क्या है? उन्हें इकट्ठा करने के कौन से तरीके हैं?
यीशु के प्रति हमारी सेवा कि भक्ति में, हम स्वर्ग में वो धन इकट्ठा कर रहे हैं जो हमेशा के लिए रहेगा ! गरीबों के प्रति हमारी दयालुता, उपवास और प्रार्थना, धार्मिकता कि खोज में भूख और प्यास, यह  सारी चीज़ें हमारे उस ख़ज़ाने को बढ़ा रही हैं जो हमेशा के लिए है।

इस पृथ्वी पर रहते हुए हम नहीं सोच सकते कि स्वर्ग कितना शानदार होगा। हम सुंदर कपड़े या अच्छे घरों या चमकदार सोने और कीमती चीजों को देखते हैं और वे इतनी कीमती और अद्भुत लगती हैं। लेकिन जब हम स्वर्ग जाएंगे, तब फोन और टीवी जैसी चीज़ें जर्जर और सस्ते लगने लगेंगे। यीशु की जीवित प्रकाश में जो सही मायने में योग्य बातें हैं वही अद्भुत लगेंगी।

जब हम स्वर्गीय आशीषों से अधिक संसार कि चीज़ों को ज़यादा चाहते हैं, तो वह भूख से मरने कि स्थिति जैसा या एक गंदे पानी से भरे गिलास कि चाहत जैसा हो जाता है। बजाय इसके कि परमेश्वर पर ठहरना और उसके आज्ञाकारी होना ताकि हमें वो पानी मिल सके जो अनंतकाल का है, इंसान उस गंदे पानी कि लालसा करता है जो उसे बीमार कर सकता है! वह विषाक्त है। परन्तु परमेश्वर ने अपने हाथ में जीवन देने वाला जल पकड़ा हुआ है जो हमें सम्पूर्ण बनाएगा, और हम उसमें से पीने का चुनाव कर सकते हैं!

कई मायनों में, हमें स्वर्ग के खजाने का आनंद लेने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अब हम उनका मजा ले सकते हैं! जैसे धार्मिकता को खोजने कि प्रचुरता और आनंद हमारे जीवन को लेलेता है, परमेश्वर के रस्ते को शुद्ध शांति से भरा है वह वो आनंद देगा जो इस संसार का अन्धकार समझ नहीं सकता। जब हम परमेश्वर से प्रेम से प्रतिक्रिया करते हैं, वो हमारे भीता गहरे कुआं बनता है ताकि हम उसके गहरे प्रेम को ले सकें। हमारे प्रार्थना और स्तुति आराधना ज़यादा अनमोल हो जाता है और किसी भी काम से ज़यादा वो हमें आनंद से भर देता है। और दूसरों से प्रेम करने कि क्षमता और मज़बूत और पूर्ण हो जाती है। हम अपने परिवार के लिए और कलीसिया के लोगों के लिए और महान प्रेम को पाते हैं जब हम स्वर्ग कि ओर और लीनता से बढ़ते जाते हैं। और एक बार जब हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे, वो सारी बातें उसके अच्छाई और ज्योति से भर जाएंगे। वह परमानन्द अनंतकाल का जीवन हो जाएगा।

अब, वे जिनका विश्वास स्वर्ग में और परमेश्वर के इनाम में नहीं है, ये वादे उनके लिए मायने नहीं रखते। परन्तु वे जो विश्वास करते हैं जो यीशु ने कहा, ये वादे मानवता के इतिहास में बहुत उल्लेखनीय है!

यीशु ने अपने चेलों को उत्तेजन दिया कि वे धन कि बजाय परमेश्वर के धन कि चाह रखें, वह यह नहीं कह रहा कि धन बुरी चीज़ है। वो यह बता रहे थे कि धन के प्रति प्रेम गलत है विशेष करके जब परमेश्वर से ज़यादा धन और वस्तुओं को अधिक चाहना। यीशु के अनुयायियों के लिए परमेश्वर के राज्य के लिए और इनाम के लिए सब कुछ करना उनके निर्णय लेने पर आधारित रहेगा। धन भी परमेश्वर कि सेवा करने का एक और तरीका बन जाता है। वो ही सबसे महान धन और वो ही सबके योग्य है।
जो कुछ जो हमारे लिए खजाना है वह हमारी अपनी आँखों से लंबे समय से चाहने वाली वस्तुएं हैं। यीशु ने कहा:

“शरीर के लिये प्रकाश का स्रोत आँख है। इसलिये यदि तेरी आँख ठीक है तो तेरा सारा शरीर प्रकाशवान रहेगा।  किन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो जाए तो तेरा सारा शरीर अंधेरे से भर जायेगा। इसलिये वह एकमात्र प्रकाश जो तेरे भीतर है यदि अंधकारमय हो जाये तो वह अंधेरा कितना गहरा होगा।" '
मत्ती ६ः२२-२३

क्या आपने कभी कुछ चाहा है जो आपका नहीं है? आपको कभी ऐसा निश्चय रूप से लगा कि आप सही हैं सही हैं लेकिन बाद में आपको यह पता चले कि आप गलत थे? वो समय वह था जब आपकी आँखें  थीं। जब हम गलत आखों से देखते हैं, बातें अन्धकार में हमारे पीछे आती हैं! वह हमारे अधिनियम और सोच पर असर डालता है।

फरीसियों और सदोसियों कि यही समस्या थी। वे इतने निसचिंत थे कि उनको लगता था कि वे सपस्त ज्योति में रहे हैं, परन्तु वास्तव में वे अपने पापों के अन्धकार से सब कुछ देख रहे थे। यह सब मनुष्य के लिए बहुत भयंकर खतरा है…एक मनुष्य दोनों ज्योति और अन्धकार कि सेवा एक ही समय में नहीं कर सकता।

यीशु कि चेतावनी एक भक्तियुक्त भय को लाना चाहिए। अन्धकार से बचने के लिए सबसे अच्छा बचाव है ज्योति में आ जाना! जब हम यीशु के पास सच्चे और नम्र होकर अपने पापों कि क्षमा मांगने के लिए आते हैं, तब हम साफ़ किये जाते हैं और हमारी आँखों को अपने पुत्र कि ज्योति से चमका देता है!