कहानी ५१: पहाड़ी उपदेश: व्यवस्था के लिए सही आज्ञाकारिता

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यीशु ने पहाड़ी उपदेश में धन्य वचन प्रचार किये। फिर उन्होंने सिखाया कि जो सुन्दर विनम्रता और निर्भरता उनके अशिक्षित किये हुए लोग दिखाएंगे वह नमक और प्रकाश की तरह होगा।

अब, परमेश्वर ने पहले से ही यहूदी लोगों को उसे सम्मान और पालन करने के बारे में बहुत कुछ सिखाया था। उसने मूसा को उसके लोगों के बीच में भेजा ताकि वह उनके लिए नियम लिख सके, और उसने नबियों को भेजा ताकि वे देशों का सामना कर सकें और उनको आज्ञाकारी होने के लिए चुनौती दे सके। क्या यीशु नए विचारों को सिखा रहे थे? क्यूँ वे पुराने नियम को इंकार कर रहे थे ?

सबसे पहली बात, यीशु परमेश्वर का पुत्र है। उसी ने मूसा को नियम दिए। वे उसके विचार थे! यहूदी नियम कि उसकी समझ और ज्ञान अतुलनीय है। यीशु उन धार्मिक अगवों कि तरह उन नियमों के अधिकार के नीचे नहीं था, वह उनसे ऊपर था। उसी ने उन्हें बनाया था! सो जब यीशु उन पर्वत पर के उपदेश के नियमों को सिखा रहा था, वह अपने चेलों को उनके सही अर्थ सिखा रहा था। उसने कहा,

“यह मत सोचो कि मैं मूसा के धर्म-नियम या भविष्यवक्ताओं के लिखे को नष्ट करने आया हूँ। मैं उन्हें नष्ट करने नहीं बल्कि उन्हें पूर्ण करने आया हूँ।'"

जब यीशु कहता है, "नियम और भविष्यवक्ता," वह पूरे पुराने नियम के विषय  में कह रहा था। यह पवित्र शास्त्र यूनानी लोगों लो दी गई थी ताकि वे इस शार्पित संसार में उस रास्ते को तैयार कर सकें जो मुक्तिदाता के आने के विषय में है। यीशु ने स्वयं ही पुराने नियम को पूरा किया! वह उसे बहुत से तरीकों से कर। अपने उद्देश्यों में, जैसे कि पर्वत पर उद्देश्य, वह नियम को ठीक उसी तरह से सिखाता जैसे कि होना चाहिए। फिर वह जाकर के एक पूर्ण धार्मिकता का जीवन नियम के धार पर बीताता। इस संसार में रहते हुए उसके माध्यम से वे आज्ञाएं पूरी हुईं! लेकिन वह पुराने नियम को भी अपने जीवन की घटनाओं से पूरा किया जो उन बैटन पर रौशनी डालती हैं जो परमेष्वर ने यहूदी लोगों के लिए किया।

जब हम इस्राएल के जंगल में चालीस सालों पर ध्यान करते हैं, तब हमें यीशु के वीरान के चालीस दिन याद आते हैं। जब हम यीशु को जीवन कि रोटी के विषय में सिखाते सुनते हैं, हमें याद आता कि कैसे परमेष्वर ने यहूदी लोगों को रोज़ मन्ना खिलाया। जब हम उस बलिदान के विषय में सोचते हैं जो यहूदी चढ़ाते थे एक मेमने के लहू के द्वारा, हम देखते हैं कि कैसे पुराने नियम के रस्मे यीशु के क्रूस पर बलिदान को देने का प्रतिफल बन जाते है। सब कुछ जो पुराने नियम में है वह उसकी ओर दर्शाता है।

पुराना नियम यीशु के पहले परमेष्वर के कार्यों को सिखाता है, और यीशु का दुसरा आगमन अगला कदम है। परमेश्वर कि मर्ज़ी को पूरा करना ही यीशु के जीवन का उद्देश्य था। उसके जीना, मृत्यु और जी उठना परमेश्वर कि योजना का केंद्र था।यीशु के जी उठने के बाद, यीशु अपने चेलों को सिखा रहा था ताकि वे परमेश्वर कि योजनाओं को आगे ले जा सकें।

'यीशु के समय के धार्मिक नेताओं को, प्रभु के संदेश अजीब लग रहे थे। जो वे सिखा रहे थे उससे बहुत भिन्न था। यह इसलिए नहीं था कि यीशु गलत या अवज्ञाकारी थे।उन्होंने वही किया जैसा कि परमेश्वर ने चाहा। सदूकी और फरीसी थे जो पुराने नियम के विषय में गलत थे। उन्होंने कुछ बातों को उसमें जोड़ा और लोगों पर दबाव डाला कि परमेश्वर का ऐसा इरादा नहीं था। यीशु तलवार के सामान आये और उनके झूठ और अधिकारों को और विरूपीकरण को कट डाला ताकि सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर का सच्चा सन्देश फिर से साफ़ हो सके। उसने दिखाया कि परमेश्वर हैं और जो वफादार हैं वे जीवित परमेश्वर के करीब आ सकें!

यीशु ने चेतावनी दी उन लोगों को जो पुराने नियम में दिए गए आज्ञाओं को तोड़ते हैं और दूसरों को भी वैसा ही करने को कहते हैं वे सब उसके राज्य में सबसे छोटे होंगे। फरीसी और अन्य धार्मिक नेता इस बात को नहीं समझज सके। उन्होंने नियम में बहरी व्यवहार के बहुत बुरे मापदंड बनाय जिससे कि लोगों में दर पैदा हो गया। जो सबसे साधारण यहूदी लोग थे वे छोटी सी छोटी भूल करने से भी शर्मिंदा होते थे। अपने लोगों को ख़ूबसूरत नियमों से प्रेम करना सिखाने के बजाय ये लोगों के लिए डर और विधियां बोझ बन गयीं थी।

यहूदी नेता नियम को दूसरों से प्रेम करने के लिए सिखा सकते थे। परन्तु उन्होंने उसका विपरीत किया। विभाजन और लज्जा का नियम एक हथियार बन गया था। यीशु ने कहा कि जो कोई नियम के शिक्षण को अपमानित करता है वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा माना जाएगा। परन्तु जो कोई उसे ठीक से सिखाता है और उसके अनुसार जीता है वह स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा। वाह।

केवल एक ही समस्या थी, कि धार्मिक नेता गलत तरीके से विकृत और पद अध्यापन को लम्बे समय से गलत सिखा रहे थे। यहूदी लोग कैसे जान पाते कि इसे सही तरीके से कैसे सीखाना है? उन्हें बचपन से ही नियम के विषय में गलत सिखाया गया था! खैर, यीशु आगे इसी पर पढ़ाने जा रहे थे।

यीशु ने अपने उद्देश्य में बताया कि वह सिखाएगा कि परमेश्वर सैकड़ों सालों से क्या कहना चाह रहे हैं। वह लोगों को परमेश्वर के नियमों को बाहरी रूप से आज्ञाकारी होने से भीतरी रूप से आज्ञाकारी होने के लिए सिखाएंगे। उसके राज्य के सदस्य न केवल वही करेंगे जो सही है, उनके ह्रदय से वे शुद्ध किये जाएंगे ताकि परमेश्वर कि धार्मिकता उनकी चाहतों से मिल जाये! वह उन चेलों को जो दीन हैं, जो अपने पापों के लिए विलाप करते हैं, जो विनम्र और शुद्ध दिल के हैं और जो धार्मिकता कि खोज में रहते हैं, कैसे परमेश्वर कि आज्ञाओं का पालन करना है। परमेश्वर हमेशा से ऐसे ही चाहता था कि उसके लोग उसके प्रति आज्ञाकारी हों! पर्वत पर के उद्देश्य के अगले भाग में, परमेश्वर ने पुराने नियम में दिए नियमों को मानने के छे विभिन्न उद्धारण दिए।