कहानी ५०: स्वर्ग राज्य के गवाह
प्रभु यीशु ने उन लोगों के गुणों का वर्णन किया जो स्वर्ग राज्य में धन्य हैं। वे दुनिया की आँखों में आदर और सम्मान प्राप्त किये हुओं से बहुत अलग हैं। यीशु के दिल को छूने देने वाले चरित्र गुणों की समीक्षा करते हैं। मसीह के चेले हमेशा एक विनम्रता कि आत्मा में बढ़ते जाते हैं, पाप के प्रकोपों के खिलाफ उनके शोकाकुल दुख, सभी उपहार और प्रतिभा जो यीशु द्वारा दिए गए उनको नम्र इच्छा से इस्तेमाल करना, धार्मिकता में बढ़ने कि लालसा, जरूरमंद लोगों के लिए आगे बढ़के करने वाला ह्रद्य रखना, किसी भी शर्मनाक या पापी रवैय्ये को ह्रदय कि शुद्ता से साफ़ करने कि इच्छा, एक शांति बनाने वाली आत्मा जो मेल मिलाप और समझ को लाने कि इच्छा रखे, और एक परमेश्वर के प्रति लगन जो सताव और पराजय के बावजूद बेहद निष्ठावान रहे।
आप ऐसे लोगों को जानते हैं जिनके अंदर ये सुन्दर गुण हों? क्या आप देख सकते हैं कि कैसे परमेश्वर कि अच्छाई और प्रकाश कैसी भी स्थिति में लाने में सक्षम हैं? उनके संसार के प्रति एक आशीष बनने कि क्षमता तब शुरू हुई जब उन्होंने यीशु को अपनाया और अपने ह्रदय कि गहराईयों में उसके लहू से शुद्ध हुए! परमेश्वर हमें बदलता है ताकि हम उसके प्रतिनिधि बनके इस दुनिया को बदल सकें! परन्तु यदि हम उन गुणों को छुपाते हैं और संसार को नहीं दिखाते जो हमारे पास वो है जो प्रभु ने हमें दिया है तो हम उसका अनादर करते हैं। यीशु ने इस तरह उसका वर्णन दिया;
“तुम समूची मानवता के लिये नमक हो। किन्तु यदि नमक ही बेस्वाद हो जाये तो उसे फिर नमकीन नहीं बनाया जा सकता है। वह फिर किसी काम का नहीं रहेगा। केवल इसके, कि उसे बाहर लोगों की ठोकरों में फेंक दिया जाये।"
वाह। क्या तुमने कभी नमक के बिना भोजन का स्वाद चखा है? यह बहुत नीरस हो सकता है। जब आप नमक डालते हैं, तो उसका स्वाद निखर कर आता है! यीशु के शिष्य जहाँ भी जाते हैं, उनको अनन्त जीवन का स्वाद लाना चाहिए। परमेश्वर उनको इस्तेमाल करता है ताकि उनका यीशु के साथ समाधान हो सके, जो सच्चा और ज्वलंत है।
मसीह के समय में, नमक भी भोजन को संरक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। जब चेले एक नमकीन, ज्वलंत जीवन जीने के लिए चुनाव करते हैं, वे इस संसार कोशिश देते हैं और उसमें धार्मिकता बनाये रखते हैं। वे समाज को दुष्टता से बचते हैं और वे जो पापों का पश्चाताप करना चाहते हैं उनको यीशु कि ज्योति में आने का रास्ता दिखाते हैं।परन्तु यदि चेले अपने उद्देश्य से हटते हैं और यीशु के अनुसार सिखाये हुए तरीके से अशिक्षित नहीं होते, तो वे इस संसार के लिए बेकार और बेस्वाद हो जाते हैं। उनका कोई असर नहीं रह जाता और समाज सड़ने लग जाता है।
यीशु ने एक रूप दिखाया जो उसके बदलने देने वाले कार्य का हिस्सा बनती है:
"'तुम जगत के लिये प्रकाश हो। एक ऐसा नगर जो पहाड़ की चोटी पर बसा है, छिपाये नहीं छिपाया जा सकता। लोग दीया जलाकर किसी बाल्टी के नीचे उसे नहीं रखते बल्कि उसे दीवट पर रखा जाता है और वह घर के सब लोगों को प्रकाश देता है। लोगों के सामने तुम्हारा प्रकाश ऐसे चमके कि वे तुम्हारे अच्छे कामों को देखें और स्वर्ग में स्थित तुम्हारे परम पिता की महिमा का बखान करें।'"
एक गहरे, घोर अंधकार की एक जगह की कल्पना कीजिये।सोचिये आप अँधेरे में चल रहे हैं, और आप कुछ भी देख नहीं पाते। आपको शायद ठोकर लग सकती है या कुछ चुभ सकता है। ऐसा लगेगा कि शायद आप खो गए हैं। फिर सोचिये कि कैसा लगे जब कोई एक मोमबत्ती जला देता है। अचानक से, उसकी ज्योति से आस पास कि चीज़ों का अकार दिखाई देने लगता है। तब आप समझ पाते हैं कि आप को कैसे आगे बढ़ना है।
यह दुनिया एक अंधेरी जगह है। पृथ्वी के लोग भ्रम और धोखे में डूब रहे हैं। शैतान और उसके अनुयायियों लगातार झूठे धर्म और पाप और अत्याचार के माध्यम से अंधेरा फैला रहे हैं। यीशु के शिष्य हिंसा के बीच यीशु के प्रेम को जब दिखाते हैं, या नीच गौरव के खिलाफ नम्रता को दर्शाते हैं, या पूरे दिल से परमेश्वर के ऊपर भरोसा करना चाहे धन या शक्ति हो, वे एक मोमबत्ती के सामान ज्योति बन जाते हैं। अचानक, शैतान कि घिनौनप दिख जाता है। अचानक से, अन्धकार में धार्मिकता दिख जाती है। आगे बढ़ना एक रहस्य नहीं रह जाता। यीशु कि ज्योति उसके पीछे चलने वालों के लिए प्रज्वलित हो जाता है! वे खोये हुओं को यीशु के पास ला सकते है।