कहानी ३२: प्रभु की आत्मा

 

फिर वह नासरत आया जहाँ वह पला-बढ़ा था ताकी वहाँ के लोगों को यह शुभ सन्देश बता सके की परमेश्वर क्या कर रहा है। क्या वे यह विश्वास करते की वह यहाँ है?

आदत के अनुसार सब्त के दिन वह यहूदी आराधनालय में गया। जब वह पढ़ने के लिये खड़ा हुआ तो यशायाह नबी की पुस्तक उसे दी गयी। उसने जब पुस्तक खोली तो उसे वह स्थान मिला जहाँ यशाया ६१ः१-२ लिखा था और लोगों को पढ़ कर सुनाया :

“प्रभु की आत्मा मुझमें समाया है उसने मेरा अभिषेक किया है ताकि मैं दीनों को सुसमाचार सुनाऊँ। उसने मुझे बंदियों को यह घोषित करने के लिए कि वे मुक्त हैं, अन्धों को यह सन्देश सुनाने को कि वे फिर दृष्टि पायेंगे, दलितो को छुटकारा दिलाने को और प्रभु के अनुग्रह का समय बतलाने को भेजा है।”

फिर उसने पुस्तक बंद करके सेवक को वापस दे दी। और वह नीचे बैठ गया। आराधनालय में सब लोगों की आँखें उसे ही निहार रही थीं। पुराने यहूदियों को ये वचन यशाया नबी द्वारा दिए गए थे, और वे मसीहा के विषय में थे। उसका आना प्रभु के पक्ष के वर्ष को लाना था। वो साल बर महीने की तरह नहीं था जैसा की हम समझते हैं। यह समय उस इतिहास का महत्वपूर्ण समय था जब उद्धार इस दुनिया में आने वाला था। परमेश्वर मसीह को पाप के बंधन से आज़ाद करने के लिए भेज रहा था। वह उस पाप के शर्म और परिणाम से आज़ादी को ले आता जो पाप के कारण से दुनिया में लाया गया। वह समय आ गया था कि परमेश्वर अपने सामर्थ से उस भयंकर श्राप को जो आदम और हवा अपने पाप के कारण इस दुनिया में लाये। एक नाय दौर आ रहा था, और मसीह उसको ला रहा था !

आराधनालय में सब जानते थे कि यीशु बिमारों को चंगा कर रहा था। उन्होंने यह सुना था कि कैसे उसने मंदिर में मुद्रा लेने वालों की मेज़ को पलटा था और उस मंदिर को अपना पिता का घर कहा था। और यह भी जानते थे कि वह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का चचेरा भाई था और कैसे वह गलील में यरदन नदी में लोगों को बपतिस्मा दे रहा था। क्या यह वही वयक्ति था जिसके विषय में यशायाह नबी ने बताया था? क्या यह वही था?

सबने यीशु के विषय में वह बातें सुनी जो उसने कीं, और वे उसके बारे में अची बातें कहते थे। जो बातें वह उन्हें सिखाता था उसपर वे लोग अचंभित होते थे। वे अनुग्रह से भर गए थे! "'क्या यह युसूफ का पुत्र है?'" उन्होंने पुछा। एक बढ़ाई का पुत्र इतना बुद्धिमान और अच्छा बोलने वाला कैसे हो सकता है? वह इतना कुछ कैसे जानता था?

नासरी के लोग बहुत ईमानदारी के साथ सवाल नहीं पूछ रहे थे। उन्हें आदर न देने को कहा गया था। यह सवाल उसको नीचा दिखने के लिए पूछे जा रहे थे। यह बढ़ाई का बेटा अपने आप को क्या समझता था? इसके की वे परमेश्वर के पुत्र की बातें सुनें और विश्वास करें, वे उससे सवाल करते और उस पर शक करते थे। क्या वे भूल गए थे कि युसूफ दाऊद राजा के वंश का था?

ज़रा सोचिये कि यीशु के अपने नगर के लोग सामरियों से कितने भिन्न थे! वे उसकी सुनते थे और उससे निवेदन करते थे कि वह उनके साथ और रहे। और वे उसपर विश्वास करते थे। परन्तु यहूदी लोग जो यीशु के साथ साथ बढ़े, उनके दिल कठोर थे। यीशु ने उनसे कहा,

"'मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि अपने नगर में किसी नबी की मान्यता नहीं होती। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ इस्राएल में एलिय्याह के काल में जब आकाश जैसे मुँद गया था और साढ़े तीन साल तक सारे देश में भयानक अकाल पड़ा था, तब वहाँ अनगिनत विधवाएँ थीं। किन्तु सैदा प्रदेश के सारपत नगर की एक विधवा को छोड़ कर एलिय्याह को किसी और के पास नहीं भेजा गया था।और नबी एलिशा के काल में इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे किन्तु उनमें से सीरिया के रहने वाले नामान के कोढ़ी को छोड़ कर और किसी को शुद्ध नहीं किया गया था।'"
लूका ४ः२३-२७

जब नासरी के लोगों ने यह सुना तो वे बहुत क्रोधित हुए। वे स्पष्ट रूप से जानते थे की वह क्या केह रहा है! पुराने नियम में परमेश्वर के सबसे सामर्थी नबी एलिजा और एलिशा थे। परमेश्वर ने उन्हें इस्राएल उस समय भेजा जब सब राज्य के राजा लोगों को मूर्तिपूजा में ले जा रहे थे। एलिजा और एलिशा के द्वारा परमेश्वर ने बहुत सामर्थ के साथ कार्य किया, देशों को यह दिखने के लिए की वे परमेश्वर के बहुत ही महान दूत थे। उन्होंने उन राजाओं और झूठे नबियों का अपमान किया जो मूर्तिपूजा करते थे। परमेश्वर के वे महान लोग थे, और यहूदी लोगों के लिए वे यीशु के समय के हीरो थे। सब यह विश्वास करना चाहते थे की वे एलिओसा और एलिजा के पक्ष में थे। परन्तु यीशु यह कह रहे थे कि वे एलिजा और एलिशा के पक्ष में हैं, और उसे अस्वीकार कर के नासरी के लोग दुष्ट मूर्तिपूजा के सामान परमेश्वर के दुश्मन थे!

फिर यीशु ने कुछ ऐसा कहा जिससे की वे अपमानित हुए। उसने उन्हें दिखाया कि एलिजाह और एलिशा कि कहानियों में जब यहूदी देश ने उसे अस्वीकार किया था, तब परमेश्वर ने उन्हें विदेशी देश में भेजा था। उन महान नबियों को ज़रुरत के समय पर इन विदेशियों ने मदद करी थी, और नामान जैसे विदेशी थे जिनको चंगाई करने की सामर्थ मिली।

पुराने नियम में, परमेश्वर ने दिखाया की वे हैं जो परमेश्वर की इच्छा करने में वफादार हैं और स्वर्ग के राज्य के हक़दार होंगे। यीशु यह बता रहे थे कि नासरी के लोग उन राजाओं के सामान थे जो यहूदी इतिहास में सबसे घृणितक माने जाते थे। और वह पुराने नियम से दिखा रहा था की मसीह का शुभ सन्देश केवल यहूदियों के लिया नहीं था। यदि वे उसे अस्वीकार करते हैं, जो अभिषेक किया हुआ है, वह अविश्वासियों के बीच सन्देश लेकर जाएगा।

इस सन्देश ने यीशु के नगर के यहूदी लोगों को प्रसन्न नहीं किया। परमेश्वर के दिल से उनके दिल मिलते नहीं थे, लेकिन वे जानना नहीं चाहते थे। लेकिन, जब वे बैठ कर यीशु की बातों को सुन रहे थे, वे गुस्से से वहाँ से चले गए। उसने कैसे हिम्मत कि की वह ऐसी बातें कहे! वह अपने को क्या समझता था?

कल्पना कीजिये कि कैसे भीड़ यीशु के विरुद्ध गयी होगी।
उन्होंने उसे आराधनालय में घेर लिया था और उसे वह से बाहर निकलने को मजबूर किया। उन्होंने उसे सड़क पर घसीट कर नगर के किनारे तक लेकर गए। द्वेष और गुस्से से भरकर, भीड़ यीशु को उस ऊंची पहाड़ी तक ले गये जो उनके नगर से ऊपर था। वे उसे मार देना चाहते थे !

उनके चिल्लाने और गुस्से की निर्दयता की कल्पना आप कर सकते हैं? क्या आप यीशु को उस शत्रुतापूर्ण भीड़ के बीच में, उस तरह से अपमानित किया जा रहा हो जैसे कि कोई शर्मनात झूठ बोला हो देख सकते हैं?

इन सब गुस्से और अराजकता के बीच में भी यीशु शांत रहा। उसके जीवन आसमानी बाप, परमेश्वर के हाथों में था। उस क्रोधित भीड़ के पश्चात, जब वक़्त आ गया था की उसे छोड़ दिया जाय, यीशु वहाँ से चला गया। वह उस जोश्ले भीड़ के बीच से निकल कर चला गया। वह उस मूर्ख भीड़ को पीछे छोड़ कर जिसने अपने राजा और उद्धारकर्ता को छोड़ दिया, अपनी यात्रा पर निकल गया। वह कफरनहूम के नगर को गया जो गलील के समुन्द्र के किनारे था, और अपना घर वहाँ बनाया। यह जबूलून और नप्ताली के क्षत्र में था।

जब यीशु वहाँ गए, उन्होंने यशायाह  की एक और भविष्वाणी पूरी की। ऐसा लिखा था;

"'जबूलून और नप्ताली के नगर में ,
यरदन के किनारे, समुन्दर के रास्ते ,
अविशवासियों की गलील -
अन्धकार में रहने वाले लोगों ने एक बड़ी ज्योति को देखा है ;
जो मौत की घाटी में रहने वाले जीवते लोगों की ओर एक ज्योति चमकी है। '"

आठ सौ साल पहले यीशु आया, यशायाह ने यीशु के आने के विषय में सबको को बताया। क्या गलील के लोग इस अद्भुद अवसर को समझ पाएंगे जो उनके पास आया था? क्या वे आदर करेंगे ? क्या उनके पास सामरियिों की तरह विश्वास होगा? या क्या वे अपने ह्रदय नासरी लोगों के समान बना लेंगे?

मत्ती में लिखा है  "उस समय से यीशु ने सुसंदेश का प्रचार शुरू कर दिया: “मन फिराओ! क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है।” (मत्ती. ४ः१७)  क्या आप यीशु को, जो राजा है, उसे राज्य के आने के बारे में घोषणा करते सुन सकते हैं? ज्योति थी! परमेश्वर के राज्य की ज्योति इस अन्धकार की दुनिया के श्राप को एक पूरे नए सिरे से तोड़ने जा रही थी!

क्या यीशु का सन्देश ऐसा लगता है मानो हमने पहले कहीं सुना है? यह ठीक वैसा ही है जैसे कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने दिया था! कहानी के इस भाग में, हम यीशु कि उस सेवकाई के नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं जो उसने इस धरती पर की थी। यूहन्ना के सन्देश बताता है कि राज्य आ रहा है! उसका काम था कि वह इस्राएल के ह्रदय को मसीह के आने के लिए तैयार करे।

अब मसीह आ चुका था, और वह अपने साथ उस राज्य को भी लाया था।  राज्य आ चूका था! सबसे पहले गलील के लोग देखेंगे की कैसे परमेश्वर संपूर्ण शक्ती के साथ कार्य करता है। यीशु उसका बेटा था, और वह स्वर्गीय पिता की इच्छा को हर समय पूरा करता था। यह हमारे लिए बहुत ख़ूबसूरत होगा जब हम इस के बारे में पढ़ेंगे कि वह उत्तम प्रेम इस टूटे हुए संसार में कैसे प्रवेश करेगा। बीमारियां ठीक होंगी, पापी पश्चाताप करेंगे और  स्वतंत्र होंगे, दुष्ट और शैतानी ताक़तें दूर किया जाएंगे, झूठ का सामना परमेश्वर के उत्तम, अद्भुद प्रेम से होगा! परन्तु परमेश्वर का राज उस समय स्थापित हो गया जब उसने इंसान के ह्रदय के भीतर आया। वह तब हुआ जन हर पश्चाताप कर के अपने ह्रदय में परमेश्वर के राज के लिए दे दिया!