कहानी ३३: मरकुस का परिचय

हम पहले से ही लूका की पुस्तक और मत्ती की पुस्तक के लेखकों के बारे में सीख चुके हैं। चलिए अपनी यादों को ताज़ा करते हैं, और फिर हम मरकुस की किताब के लेखक के बारे में जानेंगे। मत्ती, यीशु के शिष्य एक चुंगी लेने के द्वारा लिखा गया था। उसने यह पुस्तक यहूदी लोगों के लिए लिखी ताकी वे यीशु को समझ सकें जो वायदे के अनुसार मसिहा है। मत्ती बहुत सी कहानियों का उपयोग करता है ताकि यह दिखा सके की किस तरह यीशु पुराने नियम के नबियों की भविष्वाणियों को पूरा करता है और यह कि मसीहा का दुबारा आना कैसा होगा।

लूका वह व्यक्ती था जो यीशु के मरने और जी उठने के बाद प्रभु के पास आया था। वह एक यूनानी था जिसका मतलब वह एक नास्तिक था। बहुत से यह मानते हैं कि लूका ने प्रेरितों के काम की पुस्तक ५९-६३ A.D. के बीच लिखी। उसने पौलूस के साथ प्रभु यीशु के सुसमाचार को बताने के लिए रोम राज्य में यात्रा की। वह यीशु के जीवन के ऊपर रिकॉर्ड चाहता था ताकी वे जो यीशु पर विश्वास करते हैं उसके जीवन और मृत्यु और जी उठने को समझ सकें। उसके समय में, यीशु  में बहुत सी झूठी कहानियां बताई जा रही थीं। लूका के साथ समय बिताया जो यीशु को वास्तव में जानते थे। वह नास्तिक लोगों को यह स्पष्ट रूप से बताना चाहता था की यीशु उनको परमेश्वर के राज्य में स्वागत करना चाहता था जो यहूदी नहीं थे।

लूका विशेषकर के यह दिखा रहा है कि यीशु एक दयालु उद्धारकर्ता है। हम उसके गरीबों और दुखी लोगों के, विध्वा के, पापियों और बीमारियों से पीड़ित लोगों के प्रति उसके प्रेम की छवि देखते हैं। लूका यीशु को स्पष्ट रूप दिखाना चाहता था कि एक दुःख उठाने वाला सेवक कैसा होता है जैसे कि यशायाह ने लिखा था। लूका कि किताब लूका के लेख का आधा ही हिस्सा है। प्रेरितों कि किताब उसका दूसरा हिस्सा है, जहाँ लूका यीशु के मरने और जी उठने के बाद की सब अद्भुद बातें लिखता है। जब यीशु पिता के दाहिने हाथ जाकर बैठा, उन्होंने चेलों को संसार के सब राज्यों में सुसमाचार सुनाने के लिए सामर्थ देने के लिए पवित्र आत्मा को भेजा। यह एक बहुत दिलचस्प कहानी है, लेकिन अभी के लिए हम यीशु और उसके पृथ्वी पर के जीवन के विषय में जुड़े रहेंगे।

मरकुस की किताब जिसका परिवार यरूशलेम में रहते थे एक और आदमी के द्वारा लिखा गया था। यीशु के मरने, जी उठने और स्वर्ग में उठाये जाने के बाद, यरूशलेम के पूर्व कलीसियां पवित्र आत्मा के सामर्थ से बढ़ती चलीं गईं। वे मरियम के घर में थे जो मरकुस की माँ थी। जब पौलूस और बरनबास अपने पहले प्रभु के काम के लिए उस यात्रा में निकले, वे अपने साथ मरकुस को भी ले आये। बहुत ही जल्दी मरकुस भयभीत हो गया। उनके प्रचार की हिम्मत और उससे जुड़े खतरों की सम्भावनाएं उसके लिए सच्च हो रहा था, और वह वापस अपने निवास स्थान परगा को चला गया। इससे पौलूस बहुत निराश हुआ। बाद में,जब बरनबास मरकुस को प्रभु के काम के लिए दूसरी यात्रा के लिए ले जाना चाहता था, तब पौलूस इसके इतने विरोध में था की उसने उनसे रिश्ता ही तोड़ दिया। उनके रास्ते बदल चुके थे। मरकुस बरनबास का चचेरा भाई था।

मरकुस प्रेरित पतरस का एक साथी बन गया था।  हमारे पास मज़बूत कारण हैं यह मानने के लिए कि जब मरकुस यह किताब लिख रहा था, उने पतरस के दिया हुए संदेशों में से यह कहानियाँ लीं हैं। जब हम मरकुस कि किताब को पढ़ते हैं, तब हम पतरस के शब्दों को सुन सकते हैं जो उसने अपने उद्धारकर्ता के विषय में लिखीं हैं! यह कितना सुहावना है !

शायद मरकुस ने रोम में सुसमाचार को लिखा होगा, और उसके दर्शक शायद वो रोमी मसीही थे जो भारी उत्पीड़ा का सामना कर रहे थे। बहुत से यह विश्वास करते हैं कि यीशु उनके पहले गया ताकी वह उन्हें दिखा सके की कैसे उसने भी सहा है ताकी उन्हें उनके पीड़ा सहने के लिए उनको साहस मिल सके। उसके कहानी में वह बताना चाहता है की कैसे इंसान के पाप ने एक बलिदान की ज़रुरत को बनाया, और कैसे यह बलिदान केवल परमेश्वर के पुत्र के द्वारा हो सकता था। यह काम केवल एक ऐसा व्यक्ति के द्वारा हो सकता था जिसका जीवन परमेश्वर पिता के प्रति निष्पाप और पवित्र आज्ञाकारिता में होकर चलने वाला हो,और यह केवल यीशु इस पृथ्वी पर आकर कर सकता था। मरकुस इसे बड़े स्पष्ट रूप से दिखता है कि यीशु इंसान (मरकुस ३ः५;६ः३४) और वह पूर्ण रूप से दिव्य परमेश्वर था (मरकुस १ः१-११;३ः११;५ः७)

क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं कि पतरस, जो यीशु के साथ चलता और बातें करता था, और उसकी सेवकाई में भागिदार था, वह जो मॉस और खून का मनुष्य था वह वो स्वयं था? यह पतरस का सन्देश सारी दुनिया के लिए था, और मरकुस जो एक लेखक था वह पतरस के लिये लेख लिखने वाला बन के रहा। परमेश्वर ने इन पुरुषों के दान और सशक्तिकरण को एक और पवित्र सन्देश पवित्र आत्मा के द्वारा लिखने के लिए उपयोग किया।

हम जानते हैं कि समय बीत जाने के बाद, मरकुस और प्रेरित पौलोस एक साथ मिल गये थे। उसके कई साल बाद जब मरकुस उत्पीड़न के दर से भाग गया था, वह रोम में पौलूस के साथ था। पौलूस वहाँ क़ैदी था जिस समय उसने कुलुस्सियों कि किताब लिखी। जिस समय वह एक रोमी नागरिक होने के लिए प्रक्षिशण के लिए तेरा था, वह एक घर में नज़रबंद था। उसने कुलुसियों के लोगों से कहा कि यदि मरकुस उनके पास आता है तो वे उसका स्वागत करें। (कुलुसियों ४ः१०) कुछ सालों के बाद पौलूस ने तिमुतियुस को पत्र लिखा कि वह दुबारा गिरफतार हो गया था। इस बार, वह एक आम कैदी की तरह एक गंदे जेल की कोठरी में जंजीरों में बांधा गया था। लेकिन लूका और प्रेरितों के काम को लिखने वाला, लूका उसके साथ था। पौलूस ने तिमुथियुस के विषय में लिखा जो इफिसियों के कलीसिया को चला रहा था कि वह उसके साथ था। पौलोस ने तिमुथियुस  उसके साथ रहने के लिए कहा और अपने साथ मरकुस को भी लाने को कहा। पौलूस ने कहा कि मरकुस उसकी सेवकाई में बहुत उपयोगी रहा। (२ तीमुथियुस ४ः११)क्या वह उसे उच्च प्रशंसा दे सकता था?